Books - प्रज्ञावतार की सत्ता का आश्वासन
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प्रज्ञावतार की सत्ता का आश्वासन
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गायत्री मंत्र हमारे साथ- साथ
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो, भाइयो!
आप सभी जानते हैं कि जब रात्रि समाप्त होती है, तो सूरज पूर्व दिशा से ही निकलता है। सूरज के निकलने की और कोई दिशा है ही नहीं। जब चारों ओर अंधकार छाया रहता है, तब हर एक आदमी ठोकर खाता हुआ फिरता है। उसे न तो दिशा का ज्ञान रहता है और न ही वस्तु का ज्ञान रहता है। सब जगह घोर अंधकार छाया हुआ रहता है। उस समय उलूक, साँप, बिच्छू, चोर, भूत- पलीत और निशाचरों का साम्राज्य छाया रहता है। भले आदमी खर्राटे भरकर सोये हुए रहते हैं। ऐसे अंधकार के समय में जब चारों ओर निस्तब्धता छायी रहती है, हलचलों का नामोनिशान तक नहीं दिखाई देता, नींद की खुमारी सब पर छायी रहती है। घोर अंधकार के समय में सब जगह सुनसान हो जाता है। उस अंधकार को दूर करने के लिए जब कभी सूरज निकलता है, जब कभी ब्रह्ममुहूर्त आता है- ऊषाकाल आता है, तब हमें उसके लिए सूरज को ही देखना पड़ता है। प्राची अपने साथ ऊषाकाल लाती है। प्रातःकाल में ही सूरज की लालिमा चमकती है और वह घोर अंधकार, जो किसी तरह समाप्त नहीं हो सकता, इसको मिटाने के लिए भी कोई समर्थ नहीं हो सकता, वह केवल प्राची से उदय होने वाले सूरज के द्वारा ही हो सकता है।
मित्रो, लेकिन एक बात ऐसी भी है, जो आपको कभी- कभी ही देखने को मिलती है। कभी- कभी समय ऐसे बदल जाता है और चहुँओर ऐसी परिस्थितियाँ बन जाती हैं, जो मनुष्य के मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव डालती हैं। उसे न ही सामाजिक उत्तरदायित्वों का ध्यान रहता है, न अपने निजी कर्तव्यों का ध्यान रहता है। ऐसी भटकाव की स्थिति में, ऐसी मुसीबतें आकर खड़ी हो जाती हैं, जैसे कि आज के दौर में आप चारों ओर मुसीबतों का माहौल, भयानक आशंकाओं- आतंकों से भरा वातावरण छाया हुआ देखते हैं ।। आज किस तरह भयंकर एटम बमों की विभीषिका छायी हुई है। इसके बारे में आप रोज अखबारों में पढ़ते हैं। हवा के जहरीले हो जाने की, संसार का तापमान बढ़ने की बात आप रोज पढ़ते हैं। यह सब बातें आप लोगों की जानकारी के बाहर थोड़े ही हैं। आपको इन सबकी जानकारी है। क्या आपको मालूम नहीं है कि एटम बमों की वजह से जो विकिरण हवा में भर गया है, उसके कारण कैसी विनाशकारी काली छाया चहुँओर व्याप्त हो गयी है।
उससे कैसे हमारी पीढ़ियाँ कमजोर व अपंग होने वाली हैं? कितनी महामारियों, बीमारियों का दौर आने वाला है? इस विकिरण की वजह से- वायु प्रदूषण की वजह से, जो आज के भटकाव ने पैदा कर दिया है। जनसंख्या की बढ़ती हुई स्थिति के बारे में आप सभी को मालूम है। यदि स्थिति यही रही, तो थोड़े ही दिनों में इस पृथ्वी पर चलने- फिरने की जगह तक नहीं रहेगी। आप सभी जानते हैं कि बकरे के कटने का समय जैसे- जैसे करीब आता है, वह कुछ- कुछ सेकण्डों में थोड़ा- सा चारा खाता है। कुछ- कुछ सेकण्डों में उसमें बदलाव होता रहता है।
यही स्थिति प्रायः आज मनुष्य की हो चली है। एक अज्ञान भय से वह सदा सशंकित बना रहता है। आज मनुष्य का चिन्तन, चरित्र और व्यवहार कितना घटिया हो गया है कि इससे प्रकृति- नेचर भी नाखुश हो गयी है। रोज ही कोई न कोई प्रकृति- प्रकोप की घटना देखने व पढ़ने को मिलती है। प्रकृति का प्रकोप होता है, तो आये दिन महामारियाँ देखने को मिलती हैं। अदृश्य जगत में भयावह वातावरण उत्पन्न हो गया है। प्रकृति के प्रकोप की वजह से आये दिन भूकम्प आते हैं। आये दिन दूसरी मुसीबतें आती हैं। मुसीबतों का अंबार हमारे चारों ओर छाया रहता है। कल के बारे में कोई नहीं जानता कि बढ़ी हुई जनसंख्या का कल क्या परिणाम होगा? आज की आपाधापी जिस तरीके से मनुष्य को हैरान और परेशान करने पर तुली हुई है, उसके परिणाम क्या होंगे? आज ही कौन- सी अच्छी परिस्थितियाँ हैं, लेकिन कल के दिन हमारे और भी खराब आने वाले हैं।
अपराध बेतरीके से बढ़ते जा रहे हैं। आदमी का स्वभाव बहुत उच्छृंखल और अपराधी होता जा रहा है। आज कितनी दुर्घटनाएँ, वर्जनाएँ हो रही हैं। वर्जनाएँ जिसके अन्तर्गत आदमी को कहा जाता था कि उसे मर्यादा में रहना चाहिए। सृष्टि का नियम बिगड़ता जा रहा है। सृष्टि का यह नियम है कि करने वाले को भरना पड़ता है। करने के भरने वाले परिणाम को कोई नहीं रोक सकता। जहर खाने के बाद में बचाव करने की आशा कौन करेगा? आज ठीक इसी तरह की परिस्थितियाँ हैं, जिसमें सभी लोग- सम्पन्न अमीर, गरीब, भारतीय, विदेशी और प्रवासी एवं अन्य लोग भी शामिल हैं।
तो गुरुजी! क्या इस दुनिया का विनाश होगा? नहीं, बेटे, जिस स्रष्टा ने इस बेहतरीन, खूबसूरत दुनिया को बनाया है, जिसके समान अब तक ऐसी खूबसूरत दुनिया कहीं और नहीं है। क्या भगवान् अपनी उस खूबसूरत दुनिया को खत्म कर देगा? नहीं, उसे जब यह मालूम हुआ कि लोग इस बेहतरीन दुनिया को तबाह करने का प्रयत्न कर रहे हैं और इस दुनिया को रसातल में ले जाने की तैयारी हो गयी है, तब भगवान् ने राष्ट्रपति शासन की तरह से इसकी लगाम अपने हाथों में सँभाल ली है और सँभालने के बाद में इस संसार को फिर से सुव्यवस्थित बनाया है। अवतार भी इसी तरह से हुए हैं। अवतार कहाँ से होते हैं तथा किस तरह से होते हैं? यह आप सभी जानते हैं। चाहे उसे दसवाँ अवतार कहिए या चौबीसवाँ अवतार कहिए, यह सब भारतभूमि से उत्पन्न हुए हैं। सूरज के निकलने की एक ही दिशा- पूरब दिशा होती है। विनाश चाहे किसी भी प्रकार से हुआ हो, लेकिन इन सबके उपाय की एक ही जगह है, जहाँ से इन सबको सँभाला जा सकता है। आज फिर वही समय आ गया है कि विनाश की दुनिया जिन लोगों ने पैदा की है, इन सबको ठीक करने का काम एक बार फिर भारत भूमि करने वाली है, जो किसी जमाने में उसने की थी। सतयुग की बातें आपने पढ़ी व सुनी जरूर होंगी कि इस जमीन पर स्वर्ग किस तरह से बिखरा हुआ था। आपने भारतभूमि के इतिहास पढ़े होंगे, जैसे रामायण, महाभारत, वेद, गीता, पुराण आदि। आपको इसके विषय में थोड़ी- बहुत जानकारी होनी चाहिए। प्राचीनकाल में बहुत लम्बे समय तक एक ऐसा लम्बा समय रहा, जिसको कि सतयुग कहा जा सकता है। उस सतयुग की वापसी फिर होने वाली है।
मुसीबतों के दिन क्या ऐसे ही बने रहेंगे? क्या विनाश की तबाही इसी तरीके से ही होती रहेगी? क्या इस सुन्दर दुनिया की बरबादी इसी तरह से होती रहेगी? क्या यह समय ऐसा ही बना रहेगा? नहीं, जिस कलाकार ने इस दुनिया को अपनी सारी कला झोंक करके बनाया है, वह इस दुनिया की तबाही नहीं होने दे सकता। इसलिए अब उसका अन्तिम अवतार होने वाला है। फिर समझदारी, जिम्मेदारी और ईमानदारी का माहौल बनने वाला है। एक ऐसा ही भगवान् आने वाला है, जिसके द्वारा ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ का सिद्धान्त लागू होने वाला है। आज के बिखराव फिर से दूर हो सकें ,, अब वह समय ज्यादा दूर नहीं। अब सारी दुनिया को एक दुनिया बनकर रहना पड़ेगा। वसुधैव कुटुम्बकम् के सिद्धान्त के ऊपर चलना होगा। दुनिया को एक राष्ट्र के रूप में, एक भाषा- भाषी के रूप में, एक धर्म- संस्कृति के अनुयायी के रूप में रहना पड़ेगा। दुनिया को एक व्यवस्था के अन्तर्गत, एक कानून और नियम के अंतर्गत चलना पड़ेगा। अगले दिनों ऐसी व्यवस्था लागू करनी होगा। ऐसी व्यवस्था कहाँ से आएगी? आप जानते है क्या? ऐसी व्यवस्था सिर्फ भारतीय संस्कृति में है। अगले दिनों एक ऐसी व्यवस्था कायम करनी होगी, जो कि बहुत शानदार होगी, जिसमें सभी ओर से सुख और शान्ति होगी। ऐसी व्यवस्था सिर्फ भारतीय संस्कृति में है, जिसको हम देव संस्कृति कहते हैं। देवसंस्कृति की यह विशेषता है कि इनसान की मनःस्थिति को व उसके व्यवहार को ऐसा बनाया जाए कि सारी दुनिया में सुख और शान्ति आये, क्योंकि मनःस्थिति ही सुख और शान्ति प्रदान करती है।
अच्छी परिस्थितियाँ लाने के लिए मनःस्थिति का ठीक होना जरूरी है। यह कार्य धर्म, अध्यात्म और संस्कृति का है। इसको कौन- सी संस्कृति कहेंगे? इसे चाहे इनसानी कहिए, मानवीय कहिए, इसी को पुराने लोग भारतीय संस्कृति कहते हैं। वास्तव में यह मानवीय संस्कृति है, किसी एक देश की संस्कृति नहीं है। इसके विस्तृत होने का समय आ गया है। अगले दिनों भारतीय संस्कृति हर जगह फैलेगी। यह संस्कृति भारतीयों के माध्यम से लोगों को स्नेह देकर के सारी दुनिया के लोगों को एक रास्ते पर चलने के लिए मजबूर कर देगी। वह दिन अब दूर नहीं है, वरन् नजदीक आ गया है। हुआ क्या है? भारत भूमि पर पहले से ही यह प्रकाश फैल रहा है। मानो किसी ने पहले से ही स्कीम बनाकर रख दी हो। जब ऊषाकाल आता है, तो कोई तैयारी करता है क्या? पूरब में से लाल रंग के बादलों में से सूर्य निकलता है। ये सब सूर्य भगवान् के निकलने के लिए तैयारियाँ हैं। भगवान् की तैयारी के परिणामस्वरूप यह होता है कि थोड़े समय में अंधकार का पता नहीं चलता, उलूकों का पता नहीं चलता, चोरों का कहीं पता नहीं चलता, चमगादड़ों का पता नहीं चलता। सोने वालों की खुमारी का कहीं पता नहीं चलता, हर जगह जाग्रति की लहर फैल जाती है।
ठीक इसी तरीके की जाग्रति की लहर भारतभूमि से चल पड़ी है। क्या यह भारतवर्ष तक सीमित रहेगी? सूरज सीमित कहाँ रहता है। सूरज पूरब से निकलता है अवश्य, परंतु थोड़े ही समय में ऊपर चला जाता है। सारी दुनिया को थोड़े ही समय में अँधेरे से निकालकर उजाले का मजा चखा देता है। भारतीय संस्कृति के उदय होने का समय आ गया है। देवसंस्कृति के उत्थान होने का समय नजदीक आ गया है। देवसंस्कृति के द्वारा सतयुग को वापस लाने का समय निकट आ गया है। उन लोगों को चुनौती है, जिन्होंने ऐसी परिस्थितियों को जन्म दिया, जिससे कि इनसान की बरबादी होकर रहे। जिनने विनाशकारी एटम बम बनाए, जिन्होंने असमानताएँ फैलायीं, जिन्होंने ‘क्राइम’ को प्रोत्साहन दिया, जिन्होंने आपाधापी को प्रोत्साहन दिया, जिन्होंने गन्दी फिल्में बनायीं, जिन्होंने इस तरह की रिवाजें चलायी, जिससे इन्सान तबाह होने जा रहा हो, अब इन लोगों को चुनौती है। किसकी ओर से? भगवान् की ओर से, प्रज्ञावतार की ओर से, नये युग की ओर से, जो कि अब बिलकुल नजदीक आ गया है।
इसकी जिम्मेदारी किसकी है? भारतवर्ष की। इसकी जिम्मेदारी फिर से भारतवर्ष ने सँभाली है। पौर्वात्य संस्कृति ने सँभाली है और उस पौर्वात्य संस्कृति की हम और आप संतान हैं। इन सबकी जिम्मेदारी हमारी नहीं होगी, तो किसकी होगी? पूर्व की दिशा से जब सूर्य निकलता है, तो उसकी जिम्मेदारी कौन उठाएगा? किरणें ही तो उठाएँगी। किरणों को ही तो फैलना है। वही तो गर्मी फैलाएँगी। सूर्य की किरणों को हर चीज में प्रकाश और उल्लास भरना है। आप और हम उसकी किरणें हैं। किसकी? प्राची की? प्राची कौन है? प्राची भारतीय संस्कृति है। भारतीय संस्कृति की किरणें हैं- आप आप हिन्दुस्तान में हो तो क्या, हिन्दुस्तान से बाहर हो तो क्या। इससे क्या लेना- देना आप सभी भारतीय संस्कृति के अनुयायी हैं। आप नागरिक कहीं के हों, देश की स्थिति से ‘सिटीजन’ कहीं के हों, मैं क्या कहूँ आप से? आप तो भारतीय संस्कृति के पुत्र हैं और आप वही रहेंगे। आपकी नसों में ऋषियों का खून है, जो कि ज्यों का त्यों बना रहेगा। आप किसी भी मुल्क में रहिए, किसी भी जगह रहिए, कहीं की नागरिकता स्वीकार करिए, कोई भी काम करिए- आपके ऊपर बड़ी जिम्मेदारी है। उस जिम्मेदारी की आगाही करने के लिए ही हम आपकी सेवा में हाजिर हुए हैं। हम आपके पास इसीलिए बार- बार आते हैं और अपने कार्यकर्ताओं को आपके पास भारतीय संस्कृति के संदेशवाहक के रूप में, सतयुग के संदेशवाहक के रूप में, इनसानी उज्ज्वल भविष्य के संदेशवाहक के रूप में भेजते हैं, यह बताने के लिए कि आप महान हैं, आपकी संस्कृति महान है। आपकी परम्परा महान है। आपको अपनी महान परम्परा को जिन्दा रखना है।
इस महान परम्परा को इसलिए जिन्दा रखना है कि इसकी हवा न केवल हिन्दुस्तान में, बल्कि सारी दुनिया में पैदा की जानी है। यह आप लोगों के द्वारा ही की जाएगी। आप ही इस जिम्मेदारी को सँभालेंगे। जो लोग अमेरिका, हालैण्ड, इंग्लैण्ड, जर्मनी आदि देशों में रहते हैं, उन सबकी जिम्मेदारी आप लोगों को सँभालनी है। जो लोग अफ्रीका के किसी भी भाग जैसे- युगाण्डा केन्या या यूरोप में रहते हैं अर्थात् प्रवासी भारतीय हैं, वह सभी हमारे राजदूत के रूप में इस कार्य को करेंगे। जो भी भारतीय संस्कृति के पक्षधर हैं, उनको चाहें, तो हम राजदूत कह सकते हैं। स्वामी विवेकानन्द भारतीय राजदूत थे। किसके? भारतीय संस्कृति के। भारत सरकार के नहीं। आप कहीं भी रहते, चाहे अफ्रीका, अमेरिका, जापान, इंग्लैण्ड या अन्य किसी भी जगह रहते हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हमारे प्रवासी भारतीय चौहत्तर मुल्कों में रहते हैं। आपको भारतीय संस्कृति के बारे में, नवयुग की वापसी के बारे में लोगों को बताना है। इसकी सिर्फ जानकारी ही नहीं देना, बल्कि हर आदमी को इस कार्य के लिए प्रोत्साहित भी करना है। यह काम आपको ही करना है। अगर आप इस काम को नहीं करेंगे, तो आपकी अन्तरात्मा इसके लिए मजबूर करेगी।
साथियो, आपकी नयी पीढ़ियाँ आपसे यही अपेक्षा करेंगी कि आप ठीक समय पर ठीक कार्य करें। आप ठीक समय पर ठीक कार्य करने के लिए कमर कसकर तैयार रहिए। आप कहीं भी, किसी भी देश में रहते हैं, बड़े शानदार ढंग से रहिए। आपकी हर आदमी प्रशंसा करता है। भारतवासियों को आपके ऊपर गर्व है। प्रवासी भारतीयों ने अपने- अपने मुल्कों में रहकर जो काम किया है, वह प्रशंसनीय और सराहनीय है। आप हमसे रहते बहुत दूर हैं, आपसे हमको, भारतमाता को बड़ी आशाएँ हैं। आपकी भी अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारियाँ हैं, बच्चों की, उनकी पढ़ाई की, माता- पिता की, इनको भी पूरा करिए। पर इन जिम्मेदारियों के साथ- साथ भारतीय परम्परा, भारतीय संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए भी उतनी ही मेहनत करनी चाहिए। आप यह काम करेंगे, हमें पूरा- पूरा विश्वास है कि आप हँसी- खुशी के साथ इसे करेंगे। हम अपने कार्यकर्ताओं के मार्फत आपके पास आते हैं। आपको जगाते हैं, समझाते हैं, झकझोरते हैं। आपको कभी खुश करते हैं, कभी नाराज करते हैं, कभी आपको मनाते हैं कि आप इस अमूल्य समय को समझिए। अपनी जिम्मेदारी को समझिए। आपको अभी बहुत सारे काम करने हैं। इसके लिए हमने आपके पास बहुत- सा साहित्य व किताबें भेजी हैं, जिसमें आपको, प्रवासी भारतीयों को क्या करना है, वह सब लिखा है। आपको, स्वयं को भारतीय इकाई के रूप में रहना है। न केवल संतति इकाई के रूप में, बल्कि भारतीय संस्कृति की नुमाइन्दगी करते हुए उस मुल्क में जो भी रहते हैं, उन सबको वह संदेश देना है, जिसको इनसानियत का संदेश कह सकते हैं, भारतमाता का संदेश कह सकते हैं, वसुधैव कुटुम्बकम् का संदेश कह सकते हैं, भारतीय संस्कृति का संदेश कह सकते हैं। यह सब काम आपको करना है।
मित्रो, हमने आपको बहुत सारी बातें बतायी हैं, फिलहाल उनमें से कुछ काम ऐसे हैं, जो आपको जरूर करना है। वह कौन- से काम हैं? पहला काम- जो भारतीय मूल के निवासी हैं, उन सबका सम्मेलन अपने- अपने क्षेत्र में जरूर से करना है। ‘युग निर्माण सम्मेलन’ उसका नाम रखें- प्रज्ञा अभियान सम्मेलन’ नाम रखें। नाम से कुछ नहीं होता है। कुछ भी आप अपने मन से नाम रख सकते हैं। अगर आप वृहद सम्मेलन नहीं कर सकते, तो खण्डों में उस सम्मेलन को आप अवश्य करिए, जिससे कि सभी जन सम्मिलित हो सकें। उसके माध्यम से आप बता सकते हैं कि आप न केवल मिलजुलकर रहेंगे और न केवल एक दूसरे की सहायता करेंगे, भारतीय परम्पराओं को अपने में समाविष्ट करेंगे, बल्कि नवयुग के आगमन के बारे में लोगों को जानकारी देंगे। इस कार्य के लिए एक सम्मेलन होना जरूरी है, मीटिंग होना जरूरी है। आपको मालूम होगा कि आज से बीस साल पहले गायत्री तपोभूमि में एक हजार कुण्डीय यज्ञ हुआ था, जिसमें सभी धर्मप्रेमी व समझदार लोगों ने सहयोग किया था। उनके सहयोग से यह यज्ञ अभियान चलाया गया, जिसकी ओर से हम आपको बार- बार संदेश देते हैं। आपको अपने- अपने क्षेत्र में, अपने- अपने मुल्क में एक सम्मेलन अवश्य कराना चाहिए। उससे आपसी प्यार बढ़ेगा, एक दूसरे से मिलने पर जानकारी बढ़ेगी। इससे आपस का प्यार बढ़ेगा, एक दूसरे का सहयोग मिलेगा। इसलिए भावनात्मक एकता की दृष्टि से एक सम्मेलन अवश्य करना चाहिए। इसलिए आप सभी को मिलजुलकर कार्य करना चाहिए, क्योंकि अकेले आप कोई भी कार्य नहीं कर सकते। भगवान् राम ने भी रीछ- वानरों को एकत्रित किया था। श्रीकृष्ण भगवान् ने भी ग्वाल- बालों का सहयोग लिया था। गाँधीजी ने भी सत्याग्रहियों का साथ लिया था। अगर आप भी मिल- जुलकर कार्य नहीं करेंगे, तो आप सब में प्रेम कैसे बढ़ेगा? इसलिए आप सभी लोगों को मिलजुलकर सम्मेलन करना चाहिए।
दूसरा काम यह है कि आप प्रज्ञा मिशन, जिसको प्रज्ञावतार- मिशन कह सकते हैं, निष्कलंक अवतार- मिशन भी कह सकते हैं, नवयुग के संदेश भी कह सकते हैं, इसके सम्बन्ध में जानकारी देने के लिए आप छोटी- छोटी किताबें छाप सकते हैं। आप बहुत- सी जानकारी अच्छे साहित्य के माध्यम से लोगों तक पहुँचा सकते हैं। इस मिशन का क्या उद्देश्य है? हम अब तक क्या कर चुके हैं? इस सभी के लिए भगवान् की क्या प्रेरणा जुड़ी हुई है? इसके लिए स्मारिका छापनी चाहिए। स्मारिका से क्या होगा? स्मारिका से विज्ञापन मिलते हैं, जिससे विज्ञापन देने वालों का लाभ होता है। स्मारिका के माध्यम से हर छोटे- बड़े लोगों को बिना पैसे की जानकारी मिलती है। एक फिजा बन जाती है, एक माहौल बन जाता है। हर एक को इस माध्यम से आसानी से मालूम पड़ेगा कि यह सँस्था क्या है? इस मिशन का उद्देश्य क्या है? यह संस्था कितनी शानदार है और यह कितने महत्त्वपूर्ण कार्य कर चुकी है और आगे क्या- क्या कार्य करने वाली है? यह बात अगर बताएँगे नहीं, तो आपके समर्थक कहाँ से आएँगे? आपको सहयोग कहाँ से मिलेगा? आप स्मारिका कहाँ से छापेंगे। इसलिए स्मारिका आप जरूर छापें।
इसके अलावा और भी बहुत से काम हैं, जो आपको करने हैं, जिसके बिना हमारा काम नहीं चल सकता। आप भारतीय संस्कृति का, नवयुग का संदेश सभी को दें, इसका प्रकाश सब जगह फैलाएँ। विनाश से उत्पन्न विभीषिकाओं के बारे में लोगों को बताएँ और आगाह करें। आप लोगों को बताएँ कि नयी दुनिया बनाने के लिए, अच्छे दिन लाने के लिए अच्छे लोगों को क्या करना चाहिए। यह सब काम तभी हो सकता है, जब आप लोगों को इकट्ठा करके एक बड़ा सम्मेलन करें, संगठन खड़ा करें। संगठन में स्थायित्व लाने के लिए कुछ न कुछ गतिविधियाँ निरन्तर चलनी चाहिए, जिससे लोगों का उत्साह ठंडा न हो पाए। मुझे उम्मीद है कि भारतीय संस्कृति जो कि पूर्व से नये सिरे से उदय हो रही है, उसे आप अपने तरीके से त्यागपूर्वक, उत्साहपूर्वक और हिम्मत से फैलाने में हमारी मदद करेंगे। प्रज्ञा- अभियान गायत्री परिवार- शाखा संगठनों को मजबूत करेंगे और उसके विचारों को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने में मदद करेंगे। यदि आप यह कर सकें, तो आप स्वयं देखेंगे कि जो हम लोग आप से उम्मीद करते थे, वह आपने कितनी सरलता के साथ किया, अगर आप यह काम करेंगे, तो मजा आ जाएगा। आप लोगों से प्रारम्भिक कदम उठाने के रूप में यह प्रार्थना करते हुए आज की अपनी बात समाप्त करते हैं। आप लोगों को बहुत- बहुत प्यार, आशीर्वाद। आप लोग चाहे जितनी दूर रहते हों, पर हृदय के हिसाब से, भावना के हिसाब से, विचारणा के हिसाब से आप हमारे बहुत नजदीक हैं। आप बहुत प्यारे हैं, मित्र हैं, सहयोगी हैं, कुटुम्बी हैं। आप सभी सुखी रहें, समुन्नत रहें और अपने नजदीक वालों को भी ऊँचा उठाने का प्रयास करें, ऐसी भगवान् से प्रार्थना है।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखमाप्रुयात्॥
ॐ शान्तिः
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो, भाइयो!
आप सभी जानते हैं कि जब रात्रि समाप्त होती है, तो सूरज पूर्व दिशा से ही निकलता है। सूरज के निकलने की और कोई दिशा है ही नहीं। जब चारों ओर अंधकार छाया रहता है, तब हर एक आदमी ठोकर खाता हुआ फिरता है। उसे न तो दिशा का ज्ञान रहता है और न ही वस्तु का ज्ञान रहता है। सब जगह घोर अंधकार छाया हुआ रहता है। उस समय उलूक, साँप, बिच्छू, चोर, भूत- पलीत और निशाचरों का साम्राज्य छाया रहता है। भले आदमी खर्राटे भरकर सोये हुए रहते हैं। ऐसे अंधकार के समय में जब चारों ओर निस्तब्धता छायी रहती है, हलचलों का नामोनिशान तक नहीं दिखाई देता, नींद की खुमारी सब पर छायी रहती है। घोर अंधकार के समय में सब जगह सुनसान हो जाता है। उस अंधकार को दूर करने के लिए जब कभी सूरज निकलता है, जब कभी ब्रह्ममुहूर्त आता है- ऊषाकाल आता है, तब हमें उसके लिए सूरज को ही देखना पड़ता है। प्राची अपने साथ ऊषाकाल लाती है। प्रातःकाल में ही सूरज की लालिमा चमकती है और वह घोर अंधकार, जो किसी तरह समाप्त नहीं हो सकता, इसको मिटाने के लिए भी कोई समर्थ नहीं हो सकता, वह केवल प्राची से उदय होने वाले सूरज के द्वारा ही हो सकता है।
मित्रो, लेकिन एक बात ऐसी भी है, जो आपको कभी- कभी ही देखने को मिलती है। कभी- कभी समय ऐसे बदल जाता है और चहुँओर ऐसी परिस्थितियाँ बन जाती हैं, जो मनुष्य के मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव डालती हैं। उसे न ही सामाजिक उत्तरदायित्वों का ध्यान रहता है, न अपने निजी कर्तव्यों का ध्यान रहता है। ऐसी भटकाव की स्थिति में, ऐसी मुसीबतें आकर खड़ी हो जाती हैं, जैसे कि आज के दौर में आप चारों ओर मुसीबतों का माहौल, भयानक आशंकाओं- आतंकों से भरा वातावरण छाया हुआ देखते हैं ।। आज किस तरह भयंकर एटम बमों की विभीषिका छायी हुई है। इसके बारे में आप रोज अखबारों में पढ़ते हैं। हवा के जहरीले हो जाने की, संसार का तापमान बढ़ने की बात आप रोज पढ़ते हैं। यह सब बातें आप लोगों की जानकारी के बाहर थोड़े ही हैं। आपको इन सबकी जानकारी है। क्या आपको मालूम नहीं है कि एटम बमों की वजह से जो विकिरण हवा में भर गया है, उसके कारण कैसी विनाशकारी काली छाया चहुँओर व्याप्त हो गयी है।
उससे कैसे हमारी पीढ़ियाँ कमजोर व अपंग होने वाली हैं? कितनी महामारियों, बीमारियों का दौर आने वाला है? इस विकिरण की वजह से- वायु प्रदूषण की वजह से, जो आज के भटकाव ने पैदा कर दिया है। जनसंख्या की बढ़ती हुई स्थिति के बारे में आप सभी को मालूम है। यदि स्थिति यही रही, तो थोड़े ही दिनों में इस पृथ्वी पर चलने- फिरने की जगह तक नहीं रहेगी। आप सभी जानते हैं कि बकरे के कटने का समय जैसे- जैसे करीब आता है, वह कुछ- कुछ सेकण्डों में थोड़ा- सा चारा खाता है। कुछ- कुछ सेकण्डों में उसमें बदलाव होता रहता है।
यही स्थिति प्रायः आज मनुष्य की हो चली है। एक अज्ञान भय से वह सदा सशंकित बना रहता है। आज मनुष्य का चिन्तन, चरित्र और व्यवहार कितना घटिया हो गया है कि इससे प्रकृति- नेचर भी नाखुश हो गयी है। रोज ही कोई न कोई प्रकृति- प्रकोप की घटना देखने व पढ़ने को मिलती है। प्रकृति का प्रकोप होता है, तो आये दिन महामारियाँ देखने को मिलती हैं। अदृश्य जगत में भयावह वातावरण उत्पन्न हो गया है। प्रकृति के प्रकोप की वजह से आये दिन भूकम्प आते हैं। आये दिन दूसरी मुसीबतें आती हैं। मुसीबतों का अंबार हमारे चारों ओर छाया रहता है। कल के बारे में कोई नहीं जानता कि बढ़ी हुई जनसंख्या का कल क्या परिणाम होगा? आज की आपाधापी जिस तरीके से मनुष्य को हैरान और परेशान करने पर तुली हुई है, उसके परिणाम क्या होंगे? आज ही कौन- सी अच्छी परिस्थितियाँ हैं, लेकिन कल के दिन हमारे और भी खराब आने वाले हैं।
अपराध बेतरीके से बढ़ते जा रहे हैं। आदमी का स्वभाव बहुत उच्छृंखल और अपराधी होता जा रहा है। आज कितनी दुर्घटनाएँ, वर्जनाएँ हो रही हैं। वर्जनाएँ जिसके अन्तर्गत आदमी को कहा जाता था कि उसे मर्यादा में रहना चाहिए। सृष्टि का नियम बिगड़ता जा रहा है। सृष्टि का यह नियम है कि करने वाले को भरना पड़ता है। करने के भरने वाले परिणाम को कोई नहीं रोक सकता। जहर खाने के बाद में बचाव करने की आशा कौन करेगा? आज ठीक इसी तरह की परिस्थितियाँ हैं, जिसमें सभी लोग- सम्पन्न अमीर, गरीब, भारतीय, विदेशी और प्रवासी एवं अन्य लोग भी शामिल हैं।
तो गुरुजी! क्या इस दुनिया का विनाश होगा? नहीं, बेटे, जिस स्रष्टा ने इस बेहतरीन, खूबसूरत दुनिया को बनाया है, जिसके समान अब तक ऐसी खूबसूरत दुनिया कहीं और नहीं है। क्या भगवान् अपनी उस खूबसूरत दुनिया को खत्म कर देगा? नहीं, उसे जब यह मालूम हुआ कि लोग इस बेहतरीन दुनिया को तबाह करने का प्रयत्न कर रहे हैं और इस दुनिया को रसातल में ले जाने की तैयारी हो गयी है, तब भगवान् ने राष्ट्रपति शासन की तरह से इसकी लगाम अपने हाथों में सँभाल ली है और सँभालने के बाद में इस संसार को फिर से सुव्यवस्थित बनाया है। अवतार भी इसी तरह से हुए हैं। अवतार कहाँ से होते हैं तथा किस तरह से होते हैं? यह आप सभी जानते हैं। चाहे उसे दसवाँ अवतार कहिए या चौबीसवाँ अवतार कहिए, यह सब भारतभूमि से उत्पन्न हुए हैं। सूरज के निकलने की एक ही दिशा- पूरब दिशा होती है। विनाश चाहे किसी भी प्रकार से हुआ हो, लेकिन इन सबके उपाय की एक ही जगह है, जहाँ से इन सबको सँभाला जा सकता है। आज फिर वही समय आ गया है कि विनाश की दुनिया जिन लोगों ने पैदा की है, इन सबको ठीक करने का काम एक बार फिर भारत भूमि करने वाली है, जो किसी जमाने में उसने की थी। सतयुग की बातें आपने पढ़ी व सुनी जरूर होंगी कि इस जमीन पर स्वर्ग किस तरह से बिखरा हुआ था। आपने भारतभूमि के इतिहास पढ़े होंगे, जैसे रामायण, महाभारत, वेद, गीता, पुराण आदि। आपको इसके विषय में थोड़ी- बहुत जानकारी होनी चाहिए। प्राचीनकाल में बहुत लम्बे समय तक एक ऐसा लम्बा समय रहा, जिसको कि सतयुग कहा जा सकता है। उस सतयुग की वापसी फिर होने वाली है।
मुसीबतों के दिन क्या ऐसे ही बने रहेंगे? क्या विनाश की तबाही इसी तरीके से ही होती रहेगी? क्या इस सुन्दर दुनिया की बरबादी इसी तरह से होती रहेगी? क्या यह समय ऐसा ही बना रहेगा? नहीं, जिस कलाकार ने इस दुनिया को अपनी सारी कला झोंक करके बनाया है, वह इस दुनिया की तबाही नहीं होने दे सकता। इसलिए अब उसका अन्तिम अवतार होने वाला है। फिर समझदारी, जिम्मेदारी और ईमानदारी का माहौल बनने वाला है। एक ऐसा ही भगवान् आने वाला है, जिसके द्वारा ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ का सिद्धान्त लागू होने वाला है। आज के बिखराव फिर से दूर हो सकें ,, अब वह समय ज्यादा दूर नहीं। अब सारी दुनिया को एक दुनिया बनकर रहना पड़ेगा। वसुधैव कुटुम्बकम् के सिद्धान्त के ऊपर चलना होगा। दुनिया को एक राष्ट्र के रूप में, एक भाषा- भाषी के रूप में, एक धर्म- संस्कृति के अनुयायी के रूप में रहना पड़ेगा। दुनिया को एक व्यवस्था के अन्तर्गत, एक कानून और नियम के अंतर्गत चलना पड़ेगा। अगले दिनों ऐसी व्यवस्था लागू करनी होगा। ऐसी व्यवस्था कहाँ से आएगी? आप जानते है क्या? ऐसी व्यवस्था सिर्फ भारतीय संस्कृति में है। अगले दिनों एक ऐसी व्यवस्था कायम करनी होगी, जो कि बहुत शानदार होगी, जिसमें सभी ओर से सुख और शान्ति होगी। ऐसी व्यवस्था सिर्फ भारतीय संस्कृति में है, जिसको हम देव संस्कृति कहते हैं। देवसंस्कृति की यह विशेषता है कि इनसान की मनःस्थिति को व उसके व्यवहार को ऐसा बनाया जाए कि सारी दुनिया में सुख और शान्ति आये, क्योंकि मनःस्थिति ही सुख और शान्ति प्रदान करती है।
अच्छी परिस्थितियाँ लाने के लिए मनःस्थिति का ठीक होना जरूरी है। यह कार्य धर्म, अध्यात्म और संस्कृति का है। इसको कौन- सी संस्कृति कहेंगे? इसे चाहे इनसानी कहिए, मानवीय कहिए, इसी को पुराने लोग भारतीय संस्कृति कहते हैं। वास्तव में यह मानवीय संस्कृति है, किसी एक देश की संस्कृति नहीं है। इसके विस्तृत होने का समय आ गया है। अगले दिनों भारतीय संस्कृति हर जगह फैलेगी। यह संस्कृति भारतीयों के माध्यम से लोगों को स्नेह देकर के सारी दुनिया के लोगों को एक रास्ते पर चलने के लिए मजबूर कर देगी। वह दिन अब दूर नहीं है, वरन् नजदीक आ गया है। हुआ क्या है? भारत भूमि पर पहले से ही यह प्रकाश फैल रहा है। मानो किसी ने पहले से ही स्कीम बनाकर रख दी हो। जब ऊषाकाल आता है, तो कोई तैयारी करता है क्या? पूरब में से लाल रंग के बादलों में से सूर्य निकलता है। ये सब सूर्य भगवान् के निकलने के लिए तैयारियाँ हैं। भगवान् की तैयारी के परिणामस्वरूप यह होता है कि थोड़े समय में अंधकार का पता नहीं चलता, उलूकों का पता नहीं चलता, चोरों का कहीं पता नहीं चलता, चमगादड़ों का पता नहीं चलता। सोने वालों की खुमारी का कहीं पता नहीं चलता, हर जगह जाग्रति की लहर फैल जाती है।
ठीक इसी तरीके की जाग्रति की लहर भारतभूमि से चल पड़ी है। क्या यह भारतवर्ष तक सीमित रहेगी? सूरज सीमित कहाँ रहता है। सूरज पूरब से निकलता है अवश्य, परंतु थोड़े ही समय में ऊपर चला जाता है। सारी दुनिया को थोड़े ही समय में अँधेरे से निकालकर उजाले का मजा चखा देता है। भारतीय संस्कृति के उदय होने का समय आ गया है। देवसंस्कृति के उत्थान होने का समय नजदीक आ गया है। देवसंस्कृति के द्वारा सतयुग को वापस लाने का समय निकट आ गया है। उन लोगों को चुनौती है, जिन्होंने ऐसी परिस्थितियों को जन्म दिया, जिससे कि इनसान की बरबादी होकर रहे। जिनने विनाशकारी एटम बम बनाए, जिन्होंने असमानताएँ फैलायीं, जिन्होंने ‘क्राइम’ को प्रोत्साहन दिया, जिन्होंने आपाधापी को प्रोत्साहन दिया, जिन्होंने गन्दी फिल्में बनायीं, जिन्होंने इस तरह की रिवाजें चलायी, जिससे इन्सान तबाह होने जा रहा हो, अब इन लोगों को चुनौती है। किसकी ओर से? भगवान् की ओर से, प्रज्ञावतार की ओर से, नये युग की ओर से, जो कि अब बिलकुल नजदीक आ गया है।
इसकी जिम्मेदारी किसकी है? भारतवर्ष की। इसकी जिम्मेदारी फिर से भारतवर्ष ने सँभाली है। पौर्वात्य संस्कृति ने सँभाली है और उस पौर्वात्य संस्कृति की हम और आप संतान हैं। इन सबकी जिम्मेदारी हमारी नहीं होगी, तो किसकी होगी? पूर्व की दिशा से जब सूर्य निकलता है, तो उसकी जिम्मेदारी कौन उठाएगा? किरणें ही तो उठाएँगी। किरणों को ही तो फैलना है। वही तो गर्मी फैलाएँगी। सूर्य की किरणों को हर चीज में प्रकाश और उल्लास भरना है। आप और हम उसकी किरणें हैं। किसकी? प्राची की? प्राची कौन है? प्राची भारतीय संस्कृति है। भारतीय संस्कृति की किरणें हैं- आप आप हिन्दुस्तान में हो तो क्या, हिन्दुस्तान से बाहर हो तो क्या। इससे क्या लेना- देना आप सभी भारतीय संस्कृति के अनुयायी हैं। आप नागरिक कहीं के हों, देश की स्थिति से ‘सिटीजन’ कहीं के हों, मैं क्या कहूँ आप से? आप तो भारतीय संस्कृति के पुत्र हैं और आप वही रहेंगे। आपकी नसों में ऋषियों का खून है, जो कि ज्यों का त्यों बना रहेगा। आप किसी भी मुल्क में रहिए, किसी भी जगह रहिए, कहीं की नागरिकता स्वीकार करिए, कोई भी काम करिए- आपके ऊपर बड़ी जिम्मेदारी है। उस जिम्मेदारी की आगाही करने के लिए ही हम आपकी सेवा में हाजिर हुए हैं। हम आपके पास इसीलिए बार- बार आते हैं और अपने कार्यकर्ताओं को आपके पास भारतीय संस्कृति के संदेशवाहक के रूप में, सतयुग के संदेशवाहक के रूप में, इनसानी उज्ज्वल भविष्य के संदेशवाहक के रूप में भेजते हैं, यह बताने के लिए कि आप महान हैं, आपकी संस्कृति महान है। आपकी परम्परा महान है। आपको अपनी महान परम्परा को जिन्दा रखना है।
इस महान परम्परा को इसलिए जिन्दा रखना है कि इसकी हवा न केवल हिन्दुस्तान में, बल्कि सारी दुनिया में पैदा की जानी है। यह आप लोगों के द्वारा ही की जाएगी। आप ही इस जिम्मेदारी को सँभालेंगे। जो लोग अमेरिका, हालैण्ड, इंग्लैण्ड, जर्मनी आदि देशों में रहते हैं, उन सबकी जिम्मेदारी आप लोगों को सँभालनी है। जो लोग अफ्रीका के किसी भी भाग जैसे- युगाण्डा केन्या या यूरोप में रहते हैं अर्थात् प्रवासी भारतीय हैं, वह सभी हमारे राजदूत के रूप में इस कार्य को करेंगे। जो भी भारतीय संस्कृति के पक्षधर हैं, उनको चाहें, तो हम राजदूत कह सकते हैं। स्वामी विवेकानन्द भारतीय राजदूत थे। किसके? भारतीय संस्कृति के। भारत सरकार के नहीं। आप कहीं भी रहते, चाहे अफ्रीका, अमेरिका, जापान, इंग्लैण्ड या अन्य किसी भी जगह रहते हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हमारे प्रवासी भारतीय चौहत्तर मुल्कों में रहते हैं। आपको भारतीय संस्कृति के बारे में, नवयुग की वापसी के बारे में लोगों को बताना है। इसकी सिर्फ जानकारी ही नहीं देना, बल्कि हर आदमी को इस कार्य के लिए प्रोत्साहित भी करना है। यह काम आपको ही करना है। अगर आप इस काम को नहीं करेंगे, तो आपकी अन्तरात्मा इसके लिए मजबूर करेगी।
साथियो, आपकी नयी पीढ़ियाँ आपसे यही अपेक्षा करेंगी कि आप ठीक समय पर ठीक कार्य करें। आप ठीक समय पर ठीक कार्य करने के लिए कमर कसकर तैयार रहिए। आप कहीं भी, किसी भी देश में रहते हैं, बड़े शानदार ढंग से रहिए। आपकी हर आदमी प्रशंसा करता है। भारतवासियों को आपके ऊपर गर्व है। प्रवासी भारतीयों ने अपने- अपने मुल्कों में रहकर जो काम किया है, वह प्रशंसनीय और सराहनीय है। आप हमसे रहते बहुत दूर हैं, आपसे हमको, भारतमाता को बड़ी आशाएँ हैं। आपकी भी अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारियाँ हैं, बच्चों की, उनकी पढ़ाई की, माता- पिता की, इनको भी पूरा करिए। पर इन जिम्मेदारियों के साथ- साथ भारतीय परम्परा, भारतीय संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए भी उतनी ही मेहनत करनी चाहिए। आप यह काम करेंगे, हमें पूरा- पूरा विश्वास है कि आप हँसी- खुशी के साथ इसे करेंगे। हम अपने कार्यकर्ताओं के मार्फत आपके पास आते हैं। आपको जगाते हैं, समझाते हैं, झकझोरते हैं। आपको कभी खुश करते हैं, कभी नाराज करते हैं, कभी आपको मनाते हैं कि आप इस अमूल्य समय को समझिए। अपनी जिम्मेदारी को समझिए। आपको अभी बहुत सारे काम करने हैं। इसके लिए हमने आपके पास बहुत- सा साहित्य व किताबें भेजी हैं, जिसमें आपको, प्रवासी भारतीयों को क्या करना है, वह सब लिखा है। आपको, स्वयं को भारतीय इकाई के रूप में रहना है। न केवल संतति इकाई के रूप में, बल्कि भारतीय संस्कृति की नुमाइन्दगी करते हुए उस मुल्क में जो भी रहते हैं, उन सबको वह संदेश देना है, जिसको इनसानियत का संदेश कह सकते हैं, भारतमाता का संदेश कह सकते हैं, वसुधैव कुटुम्बकम् का संदेश कह सकते हैं, भारतीय संस्कृति का संदेश कह सकते हैं। यह सब काम आपको करना है।
मित्रो, हमने आपको बहुत सारी बातें बतायी हैं, फिलहाल उनमें से कुछ काम ऐसे हैं, जो आपको जरूर करना है। वह कौन- से काम हैं? पहला काम- जो भारतीय मूल के निवासी हैं, उन सबका सम्मेलन अपने- अपने क्षेत्र में जरूर से करना है। ‘युग निर्माण सम्मेलन’ उसका नाम रखें- प्रज्ञा अभियान सम्मेलन’ नाम रखें। नाम से कुछ नहीं होता है। कुछ भी आप अपने मन से नाम रख सकते हैं। अगर आप वृहद सम्मेलन नहीं कर सकते, तो खण्डों में उस सम्मेलन को आप अवश्य करिए, जिससे कि सभी जन सम्मिलित हो सकें। उसके माध्यम से आप बता सकते हैं कि आप न केवल मिलजुलकर रहेंगे और न केवल एक दूसरे की सहायता करेंगे, भारतीय परम्पराओं को अपने में समाविष्ट करेंगे, बल्कि नवयुग के आगमन के बारे में लोगों को जानकारी देंगे। इस कार्य के लिए एक सम्मेलन होना जरूरी है, मीटिंग होना जरूरी है। आपको मालूम होगा कि आज से बीस साल पहले गायत्री तपोभूमि में एक हजार कुण्डीय यज्ञ हुआ था, जिसमें सभी धर्मप्रेमी व समझदार लोगों ने सहयोग किया था। उनके सहयोग से यह यज्ञ अभियान चलाया गया, जिसकी ओर से हम आपको बार- बार संदेश देते हैं। आपको अपने- अपने क्षेत्र में, अपने- अपने मुल्क में एक सम्मेलन अवश्य कराना चाहिए। उससे आपसी प्यार बढ़ेगा, एक दूसरे से मिलने पर जानकारी बढ़ेगी। इससे आपस का प्यार बढ़ेगा, एक दूसरे का सहयोग मिलेगा। इसलिए भावनात्मक एकता की दृष्टि से एक सम्मेलन अवश्य करना चाहिए। इसलिए आप सभी को मिलजुलकर कार्य करना चाहिए, क्योंकि अकेले आप कोई भी कार्य नहीं कर सकते। भगवान् राम ने भी रीछ- वानरों को एकत्रित किया था। श्रीकृष्ण भगवान् ने भी ग्वाल- बालों का सहयोग लिया था। गाँधीजी ने भी सत्याग्रहियों का साथ लिया था। अगर आप भी मिल- जुलकर कार्य नहीं करेंगे, तो आप सब में प्रेम कैसे बढ़ेगा? इसलिए आप सभी लोगों को मिलजुलकर सम्मेलन करना चाहिए।
दूसरा काम यह है कि आप प्रज्ञा मिशन, जिसको प्रज्ञावतार- मिशन कह सकते हैं, निष्कलंक अवतार- मिशन भी कह सकते हैं, नवयुग के संदेश भी कह सकते हैं, इसके सम्बन्ध में जानकारी देने के लिए आप छोटी- छोटी किताबें छाप सकते हैं। आप बहुत- सी जानकारी अच्छे साहित्य के माध्यम से लोगों तक पहुँचा सकते हैं। इस मिशन का क्या उद्देश्य है? हम अब तक क्या कर चुके हैं? इस सभी के लिए भगवान् की क्या प्रेरणा जुड़ी हुई है? इसके लिए स्मारिका छापनी चाहिए। स्मारिका से क्या होगा? स्मारिका से विज्ञापन मिलते हैं, जिससे विज्ञापन देने वालों का लाभ होता है। स्मारिका के माध्यम से हर छोटे- बड़े लोगों को बिना पैसे की जानकारी मिलती है। एक फिजा बन जाती है, एक माहौल बन जाता है। हर एक को इस माध्यम से आसानी से मालूम पड़ेगा कि यह सँस्था क्या है? इस मिशन का उद्देश्य क्या है? यह संस्था कितनी शानदार है और यह कितने महत्त्वपूर्ण कार्य कर चुकी है और आगे क्या- क्या कार्य करने वाली है? यह बात अगर बताएँगे नहीं, तो आपके समर्थक कहाँ से आएँगे? आपको सहयोग कहाँ से मिलेगा? आप स्मारिका कहाँ से छापेंगे। इसलिए स्मारिका आप जरूर छापें।
इसके अलावा और भी बहुत से काम हैं, जो आपको करने हैं, जिसके बिना हमारा काम नहीं चल सकता। आप भारतीय संस्कृति का, नवयुग का संदेश सभी को दें, इसका प्रकाश सब जगह फैलाएँ। विनाश से उत्पन्न विभीषिकाओं के बारे में लोगों को बताएँ और आगाह करें। आप लोगों को बताएँ कि नयी दुनिया बनाने के लिए, अच्छे दिन लाने के लिए अच्छे लोगों को क्या करना चाहिए। यह सब काम तभी हो सकता है, जब आप लोगों को इकट्ठा करके एक बड़ा सम्मेलन करें, संगठन खड़ा करें। संगठन में स्थायित्व लाने के लिए कुछ न कुछ गतिविधियाँ निरन्तर चलनी चाहिए, जिससे लोगों का उत्साह ठंडा न हो पाए। मुझे उम्मीद है कि भारतीय संस्कृति जो कि पूर्व से नये सिरे से उदय हो रही है, उसे आप अपने तरीके से त्यागपूर्वक, उत्साहपूर्वक और हिम्मत से फैलाने में हमारी मदद करेंगे। प्रज्ञा- अभियान गायत्री परिवार- शाखा संगठनों को मजबूत करेंगे और उसके विचारों को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने में मदद करेंगे। यदि आप यह कर सकें, तो आप स्वयं देखेंगे कि जो हम लोग आप से उम्मीद करते थे, वह आपने कितनी सरलता के साथ किया, अगर आप यह काम करेंगे, तो मजा आ जाएगा। आप लोगों से प्रारम्भिक कदम उठाने के रूप में यह प्रार्थना करते हुए आज की अपनी बात समाप्त करते हैं। आप लोगों को बहुत- बहुत प्यार, आशीर्वाद। आप लोग चाहे जितनी दूर रहते हों, पर हृदय के हिसाब से, भावना के हिसाब से, विचारणा के हिसाब से आप हमारे बहुत नजदीक हैं। आप बहुत प्यारे हैं, मित्र हैं, सहयोगी हैं, कुटुम्बी हैं। आप सभी सुखी रहें, समुन्नत रहें और अपने नजदीक वालों को भी ऊँचा उठाने का प्रयास करें, ऐसी भगवान् से प्रार्थना है।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखमाप्रुयात्॥
ॐ शान्तिः