Books - सद्विचारों की सृजनात्मक शक्ति
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Language: HINDI
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विकास और शोध का श्रेय विचार को
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मनुष्य विचार शक्ति को जिस दिशा में प्रयुक्त करता है उधर ही आशाजनक सफलता उपलब्ध होने लगती है। चिन्तन की शोध द्वारा अनेकों प्रकार की रहस्यमय प्राकृतिक शक्तियों को जानने और उनको वशवर्ती बनाने में सफलता प्राप्त की गई है, इस शोध कार्य में सारा श्रेय मानव विचार शक्ति का ही है। ये प्राकृतिक शक्तियाँ तो अनादि काल से इस सृष्टि में मौजूद थीं पर उनको उपलब्ध कर सकना तभी सम्भव हुआ जब विचार- शक्ति की दौड़ उनके शोध तक पहुँची।विचार- शक्ति के विशाल क्षेत्र के द्वारा ही वाणी, भाषा, लिपि, संगीत, अग्नि का उपयोग, कृषि, पशुपालन, जलतरण, वस्त्र निर्माण, धातु प्रयोग, मकान बनाने, संगठित रहने, सामूहिक सुविधा की धर्म- संहिता पर चलने, रोगों की चिकित्सा करने जैसे अनेकों महत्त्वपूर्ण आविष्कार मनुष्य ने जब- तब किए और उनके द्वारा अपनी स्थिति को देवोपम बनाया। मनुष्य अन्य प्राणियों की तुलना में अत्यधिक विभूतिवान है। हम देवताओं के सुखों के बारे में सोचते हैं कि मनुष्य की अपेक्षा उन्हें असंख्य गुने सुध- साधन प्राप्त हैं। धरती के प्राणी भी यदि यह सोच सकें कि उनमें और मनुष्य की सुविधाओं में कितना अन्तर है तो हम उनसे कहीं अधिक सुख- सुविधा से सम्पन्न होंगे जितना कि हम अपनी तुलना में देवताओं को मानते हैं। यह देवोपम स्थिति हमने विचारशील की विशेषता के कारण उसके विकास और प्रयोग के कारण ही उपलब्ध की है।
पुष्ट विचार- शक्ति को जीवन की जिस दिशा में जितनी मात्रा में लगाना प्रारम्भ कर दिया है, हमें उस दिशा में उतनी ही सफलता मिलने लगती है। विज्ञान की शोध अस्त्र- शस्त्र की सुसज्जा, उत्पादन, राजनीति, शिक्षा, चिकित्सा आदि जिन कार्यों में भी हमारा ध्यान लगा हुआ है उनमें तीव्र गति से प्रगति दृष्टिगोचर हो रही है और यदि ध्यान इन काल में केन्द्रीभूत हो इसी प्रकार लगा रहा हो तो भविष्य में उस ओर उन्नति भी आशाजनक होगी निश्चित है। पिछले दिनों में अपनी आकांक्षा को सुव्यवस्थित रूप में केन्द्रीभूत करके रूस और अमेरिका बहुत कुछ कर चुके हैं। हमारी आकांक्षा एवम् विचार- धारा अपने लक्ष्य पर जहाँ भी तन्मयता से संलग्न रहेगी वहाँ सफलता की उपलब्धि असंदिग्ध है। विचार शक्ति को एक जीवित जादू कहा जा सकता है। उसके स्पष्ट होने से निर्जीव मिट्टी नयनाभिराम खिलौने के रूप में और प्राणघातक विष जीवनदायी रसायन के रूप से बदल जाता है।
हम दिन भर सोचते हैं नाना प्रकार की समस्याओं को समझने और हल करने में अपनी विचार शक्ति को लगाते हैं। ईश्वर ने मस्तिष्क रूपी ऐसा देवता इस शरीर में टिका दिया है जो हमारी आकांक्षा की पूर्ति में निरन्तर सहायता करता रहता है। इस देवता से जो हम माँगते हैं वह उसे करने की व्यवस्था कर देता है। विचार शक्ति इस जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है। इसे कामधेनु और कल्पलता कह सकते हैं। प्रगति के पथ पर महान सम्बल के आधार पर ही मनुष्य आगे बढ़ सकता है। यह शक्ति यदि जीवन में उपस्थित उलझनों का स्वरूप समझने और उसका निराकरण करने में लगे तो निःसन्देह उसका भी हल निकल सकता हैं। विक्षोभ की परिस्थिति को बदलने का मार्ग रचनात्मक विचारों से ही मिलता है।
विचारों की रचना प्रचण्ड शक्ति है। जो कुछ मन सोचता है, बुद्धि उसे प्राप्त करने में, उसके जुटाने में लग जाती हैं। धीर- धीरे वैसी ही परिस्थिति सामने आने लगती है, दूसरे लोगों का वैसा ही सहयोग भी मिलने लगता है और धीरे- धीरे वैसा ही वातावरण बन जाता है, जैसा कि मन में विचार प्रवाह उठा करता है। भय, चिन्ता और निराशा में डूबे रहने वाले मनुष्य के सामने ठीक वैसी ही परिस्थितियाँ आ जाती हैं जैसी कि वे सोचते रहते हैं। चिन्ता एक प्रकार का मानसिक रोग है जिससे लाभ कुछ नहीं, हानि की ही सम्भावना रहती है। चिन्तित और विक्षुब्ध मनुष्य अपनी मानसिक क्षमता खो बैठता है। जो वह सोचता है, जो करना चाहता है, वह प्रयत्न गलत हो जाता है। उसके निर्णय अदूरदर्शिता पूर्ण और अव्यावहारिक सिद्ध होते हैं। उलझनों को सुलझाने के लिए सही मार्ग तभी निकलता है जबकि सोचने वाले का मानसिक स्तर सही और शान्त हो। उत्तेजित अथवा शिथिल मस्तिष्क तो ऐसे ही उपाय सोच सकता है जो उल्टे मुसीबत बढ़ाने वाले परिणाम उत्पन्न करें।
अतः सदैव विचारों को आशान्वित रखना चाहिए और उन्हें सदा रचनात्मक दिशा में लगाये रहना चाहिए। आज जो साधन और सुविधाएँ प्राप्त हैं उन्हीं के सहारे कल प्रगति के लिए क्या किया जा सकता है, इतना सोचना पर्याप्त है। बड़े साधन इकट्ठे होने पर बड़े कार्य करने की कल्पनाएँ निरर्थक हैं। जो कार्य आज हम नहीं कर सकते उनके लिए माथापच्ची क्यों की जाय? उद्देश्य ऊँचे रखने चाहिए, लक्ष्य बड़े से बड़ा रखा जा सकता है पर यह न भूला दिया कि आज हम कहाँ हैं? आज की परिस्थिति को समझना और उसी आधार पर आगे बढ़ने की बात सोचना ही व्यावहारिक बुद्धिमत्ता है। भविष्य के सम्बन्ध में आशा करते ही रहना चाहिये। जो आपत्तियों और असफलता की बात ही सोचेगा उसे कभी सुअवसर प्राप्त नहीं हो सकते। प्रगतिशील जीवन बना सकना उन्हीं के लिए सम्भव होता है जो प्रगतिशील ढंग से सोचते हैं और अपनी मानसिक शक्ति को रचनात्मक दिशा में संलग्न किये रहते हैं।
पुष्ट विचार- शक्ति को जीवन की जिस दिशा में जितनी मात्रा में लगाना प्रारम्भ कर दिया है, हमें उस दिशा में उतनी ही सफलता मिलने लगती है। विज्ञान की शोध अस्त्र- शस्त्र की सुसज्जा, उत्पादन, राजनीति, शिक्षा, चिकित्सा आदि जिन कार्यों में भी हमारा ध्यान लगा हुआ है उनमें तीव्र गति से प्रगति दृष्टिगोचर हो रही है और यदि ध्यान इन काल में केन्द्रीभूत हो इसी प्रकार लगा रहा हो तो भविष्य में उस ओर उन्नति भी आशाजनक होगी निश्चित है। पिछले दिनों में अपनी आकांक्षा को सुव्यवस्थित रूप में केन्द्रीभूत करके रूस और अमेरिका बहुत कुछ कर चुके हैं। हमारी आकांक्षा एवम् विचार- धारा अपने लक्ष्य पर जहाँ भी तन्मयता से संलग्न रहेगी वहाँ सफलता की उपलब्धि असंदिग्ध है। विचार शक्ति को एक जीवित जादू कहा जा सकता है। उसके स्पष्ट होने से निर्जीव मिट्टी नयनाभिराम खिलौने के रूप में और प्राणघातक विष जीवनदायी रसायन के रूप से बदल जाता है।
हम दिन भर सोचते हैं नाना प्रकार की समस्याओं को समझने और हल करने में अपनी विचार शक्ति को लगाते हैं। ईश्वर ने मस्तिष्क रूपी ऐसा देवता इस शरीर में टिका दिया है जो हमारी आकांक्षा की पूर्ति में निरन्तर सहायता करता रहता है। इस देवता से जो हम माँगते हैं वह उसे करने की व्यवस्था कर देता है। विचार शक्ति इस जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है। इसे कामधेनु और कल्पलता कह सकते हैं। प्रगति के पथ पर महान सम्बल के आधार पर ही मनुष्य आगे बढ़ सकता है। यह शक्ति यदि जीवन में उपस्थित उलझनों का स्वरूप समझने और उसका निराकरण करने में लगे तो निःसन्देह उसका भी हल निकल सकता हैं। विक्षोभ की परिस्थिति को बदलने का मार्ग रचनात्मक विचारों से ही मिलता है।
विचारों की रचना प्रचण्ड शक्ति है। जो कुछ मन सोचता है, बुद्धि उसे प्राप्त करने में, उसके जुटाने में लग जाती हैं। धीर- धीरे वैसी ही परिस्थिति सामने आने लगती है, दूसरे लोगों का वैसा ही सहयोग भी मिलने लगता है और धीरे- धीरे वैसा ही वातावरण बन जाता है, जैसा कि मन में विचार प्रवाह उठा करता है। भय, चिन्ता और निराशा में डूबे रहने वाले मनुष्य के सामने ठीक वैसी ही परिस्थितियाँ आ जाती हैं जैसी कि वे सोचते रहते हैं। चिन्ता एक प्रकार का मानसिक रोग है जिससे लाभ कुछ नहीं, हानि की ही सम्भावना रहती है। चिन्तित और विक्षुब्ध मनुष्य अपनी मानसिक क्षमता खो बैठता है। जो वह सोचता है, जो करना चाहता है, वह प्रयत्न गलत हो जाता है। उसके निर्णय अदूरदर्शिता पूर्ण और अव्यावहारिक सिद्ध होते हैं। उलझनों को सुलझाने के लिए सही मार्ग तभी निकलता है जबकि सोचने वाले का मानसिक स्तर सही और शान्त हो। उत्तेजित अथवा शिथिल मस्तिष्क तो ऐसे ही उपाय सोच सकता है जो उल्टे मुसीबत बढ़ाने वाले परिणाम उत्पन्न करें।
अतः सदैव विचारों को आशान्वित रखना चाहिए और उन्हें सदा रचनात्मक दिशा में लगाये रहना चाहिए। आज जो साधन और सुविधाएँ प्राप्त हैं उन्हीं के सहारे कल प्रगति के लिए क्या किया जा सकता है, इतना सोचना पर्याप्त है। बड़े साधन इकट्ठे होने पर बड़े कार्य करने की कल्पनाएँ निरर्थक हैं। जो कार्य आज हम नहीं कर सकते उनके लिए माथापच्ची क्यों की जाय? उद्देश्य ऊँचे रखने चाहिए, लक्ष्य बड़े से बड़ा रखा जा सकता है पर यह न भूला दिया कि आज हम कहाँ हैं? आज की परिस्थिति को समझना और उसी आधार पर आगे बढ़ने की बात सोचना ही व्यावहारिक बुद्धिमत्ता है। भविष्य के सम्बन्ध में आशा करते ही रहना चाहिये। जो आपत्तियों और असफलता की बात ही सोचेगा उसे कभी सुअवसर प्राप्त नहीं हो सकते। प्रगतिशील जीवन बना सकना उन्हीं के लिए सम्भव होता है जो प्रगतिशील ढंग से सोचते हैं और अपनी मानसिक शक्ति को रचनात्मक दिशा में संलग्न किये रहते हैं।