Books - संसार चक्र की गति प्रगति
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Language: HINDI
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जीवन के इस विस्तार में मनुष्य कहां?
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न्यू हैम्पशायर का इक्सेटर पुलिस स्टेशन—बात 3 सितम्बर सन् 1965 की है, में नारमैन मसकेरीलो नामक व्यक्ति ने प्रवेश किया। पुलिस स्टेशनों में यों घबराहट से भरे अनेक व्यक्ति पहुंचते और रिपोर्ट दर्ज कराते हैं, पर मसकेरीलो की मुखमुद्रा में व्याप्त भय बहुत गहरा था। आप बीती सुनाते समय उसका मुंह पूरी तरह सूख रहा था।
कांपते स्वर में उसने बताया—वह वस्तु गोल थाली की तरह चमकती हुई थी। उसका रंग सफेद था, पर किरणें सी फूट रही थीं, वह लाल या नारंगी थी। प्रकाश का वह गोला कांप रहा था। उसमें मक्खी के भिनभिनाने की सी आवाज थी......।
पर वह कौन था? पुलिस इन्सपेक्टर ने प्रश्न किया और साथ ही साथ सान्त्वना भी दिलाई, तब मसकेरीलो ने आगे बताना शुरू किया—मैं अपने घर जा रहा था, समय पता न चलने के कारण जल्दी ही चल पड़ा था। कोई सवारी नहीं मिली सो पैदल ही आ रहा था। जब मैं कंसिंग्टन के एक खुले स्थान से गुजर रहा था तभी आकाश में वह गोल-सी वस्तु, जिसका व्यास 80 से 90 फीट तक रहा होगा, कांपती हुई मेरी ओर झपटी। सड़क छोड़कर मैं नीचे की ओर भागा तब वह पीछे लौट गई और हवा में उड़ती हुई मकानों की छतों पर घूमी। इसके आगे मुझे पता नहीं। मैं सीधा पुलिस स्टेशन भागकर आया हूं। मुझे डर लग रहा है, घर तक पहुंचने का प्रबन्ध कर दें।
इन्सपैक्टर के लिये यह सर्वथा अनहोनी घटना थी। कहते हैं साइबेरिया में कोई एक व्यक्ति ऐसा है जो शुक्र ग्रह से उतरा है। कहते हैं बेल्जियम में कोई एक ऐसा स्थान है जहां आकाश से प्रायः उड़न तश्तरियां आती रहती हैं। भूत-प्रेतों की कहनी-अनकहनी तो घर-घर सुनी जा सकती है पर जो कुछ मसकेरीलो बता रहा था, वह सत्य तो वैज्ञानिक कहानियों से भी आश्चर्यजनक था। उस पर सहसा विश्वास करना कठिन था। इन्सपैक्टर से हंसकर कहा भी—महोदय! आपको, लगता है, धोखा हो गया। किन्तु अभी वह कुछ व्यवस्था करे, इससे पूर्व ही रात्रि में गश्त (पेट्रोल) के लिये गई पुलिस की गाड़ी वापिस लौटी। उसके इंचार्ज वेरट्रेन्ड ने भी बताया कि थाने से 2 मील दूर कार में आ रहे एक दंपत्ति ने भी ठीक ऐसी ही घटना सुनाई जैसी मसकेरीलो ने। उन्हें यों उस वस्तु ने 9 मील तक—ईपिंग से न्यूहैम्पशायर के उस स्थान तक पीछा किया जहां वह वस्तु मसकेरीलो को मिली थी।
आखिर सत्यता की जांच के लिए वरट्रेन्ड तैयार हो गया। उसने मसकेरीलो को भी साथ लिया और उसी स्थान पर जा पहुंचा। टार्च से बड़ी देर तक इधर-उधर देखते रहे पर वहां कुछ दिखाई न दिया। वरट्रेन्ड ने व्यंग्य से कहा—आपने कोई पास से गुजरता हैलिकॉप्टर देखा होगा। ‘पर मुझे हवाई जहाजों की पूर्ण पहचान है’-मसकेरीलो ने उत्तर दिया और तभी वह घटना फिर घटी। वहां से कुछ 100 गज की दूरी पर ही एक ‘कृषि भवन’ था। उसके ऊपर वह प्रकाश-पुंज फिर प्रकट हुआ। वहां की प्रत्येक वस्तु, पेड़-पौधे और जमीन तक उसी रंग से नहा गये। कृषि-भवन तो रक्त के रंग में रंगा लगने लगा। वरट्रेन्ड सहित सभी पेट्रोल-कार की ओर भागे।
उस प्रकाश पुंज की कहानी यहीं से समाप्त हो गई। दूसरे दिन वह घटना अखबारों में छपी। तब जान फुलर नामक लेखक ने अनेक व्यक्तियों से पूछताछ कर लिखा कि यह घटना विलक्षण सत्य थी और विज्ञान के लिए चुनौती भी। 73 लोगों ने उसे देखा और सबके बयान एक ही थे जो 200 पृष्ठों में टाइप किये गये थे। इस तरह की घटनाओं का संकलन करने वाली संस्था ‘नेशनल इन्वेस्टीगेशन कमेटी’ एयरियल फेलामेना वाशिंगटन ने भी उसकी पुष्टि की। श्रीमती विरजिनिआ, जो हैम्पटन में पत्रकार हैं, ने भी उसे देखा था और उसकी पुष्टि भी की। पर क्या यह प्रकाश पुंज कोई आत्मा थी, भूत या कोई सूक्ष्म शरीर? यह अब तक निश्चित नहीं हो सका।
अब तक कई ऐसे यान अपने आकाश में उड़ते और पृथ्वी तल पर उतरते देखे—पाये गये हैं। परीक्षण के बाद इन्हें सचाई के रूप में स्वीकार किया गया है। इन अन्तरिक्ष यानों को उड़न तश्तरी ही कहा जाता है।
सन् 1930 में ‘प्लूटो’ ग्रह की खोज करने वाले अन्तरिक्ष विज्ञानी क्लाइड डब्ल्यू टाम्वा ने भी पिछले दिनों कहा था—‘‘मैंने व मेरी पत्नी ने उड़न तश्तरियां आकाश में उड़ती देखी हैं। इंग्लैण्ड के अन्तरिक्ष वैज्ञानिक एच. पर्सी विल्किस ने 50 फुट व्यास की उड़न तश्तरियां देखने का विवरण दिया था। वैज्ञानिक सिल्योर हेस ने एरिजोना क्षेत्र में धातु निर्मित और ईंधन चालित एक उड़न तश्तरी देखने की बात कही। जर्मनी के राकेट-विशेषज्ञ हरमन ओवर्थ ने भी उड़न तश्तरियों की बावत महत्वपूर्ण जानकारियों के संचित होने की घोषणा की थी।
ब्राजील की वायुसेना द्वारा 1955 में सार्वजनिक रूप से प्रकाशित प्रतिवेदन के अनुसार भी उड़न तश्तरियों को देखा, परखा गया था। कनाडा सरकार की ओटावा स्थित अनुसंधानशाला के निर्देशक विल्वर्ट स्मिथ में उड़न तश्तरियों के ठोस प्रमाण होने की बात कही थी।
अर्जेन्टीना के वैज्ञानिक मार्क्स ग्युएकी तथा कई अफसरों ने कारडोवा विमानतल के पास दो उड़न तश्तरियां देखीं। दो रूसी वैज्ञानिक कैजेन्त्सेव तथा एग्रेस्त भी उनके अस्तित्व की घोषणा कर चुके हैं। स्वीडन के अनेक लोगों ने उड़न तश्तरियां देखीं, जिनका विवरण 11 जुलाई 1946 के अंक में ‘रेजिस्तेन्स’ नामक फ्रेंच अखबार ने छापा था और स्टाक होम के ‘ल-मांद’ अखबार ने भी इसके विवरण छापे थे। प्रख्यात ब्रिटिश पत्र ‘डेलीमेल’ के प्रतिनिधि ने स्वीडन व डेन्मार्क का दौरा कर, पाया कि—इन देशों में अनेक संभ्रांत नागरिकों ने उड़न तश्तरियां प्रत्यक्ष देखी हैं तथा यहां के फौजी अफसर भी इस बात को लेकर चिन्तित थे कि कहीं इन उड़न तश्तरियों से कोई खतरा पैदा न हो।
अमरीकी कमाण्डर मैक्लाफलिन के प्रतिवेदन के अनुसार उड़न तश्तरियां किसी अन्य ग्रह के बुद्धिमान प्राणियों द्वारा प्रेषित विमान हैं। इनका औसत आकार 40 फुट चौड़ा और 100 फुट लम्बा पाया गया है, गति 25 हजार मील प्रति घण्टा तथा उड़ने की ऊंचाई 2 लाख फुट देखी गई। अमरीकी वैज्ञानिकों के एतद् विषयक सम्मेलन में जनरल ममफोर्ड ने इन उड़न तश्तरियों को अत्यन्त शक्तिशाली निरूपित किया।
1961 में केपकेनेडी अन्तरिक्ष केन्द्र से पोलारिस नामक राकेट उड़ने के तुरन्त बाद उस पर एक ‘‘अज्ञात वस्तु’’ ने भयंकर झपट्टा मारा। यह प्रहार राडार ने नोट किया। राकेट का वैज्ञानिकों से सम्पर्क ही इस प्रहार के कारण टूट गया। बहुत प्रयास के बाद 14 मिनट पश्चात् उसे खोज, देखा जा सका। इसी तरह का एक झपट्टा ब्यूनस आयर्स के एजेजिया विमान अड्डे के पास ‘पैनिग्रा डी.सी. 8’ नामक जेट वायुयान पर मारा गया। सरकारी विज्ञप्ति में इन घटनाओं पर पर्दा डालने के प्रयास किये गये, पर प्रत्यक्षदर्शी तथ्य जानते ही थे। न्यू मैक्सिको के प्रक्षेपणास्त्र अधिकारी श्री स्टोक्स ने ऊलामागोर्दो के पास एक भीमकाय यन्त्र अपनी कार के पास से उड़ते हुए देखा। 18 जून 1963 को कैलीफोर्निया में जेट विमानों का एक उड़न तश्तरी ने पीछा किया। केनवरा (आस्ट्रेलिया) में अनेक लोगों ने एक लड़खड़ाता-सा लाल रंग का प्रकाश पिण्ड देखा। लिस्वन की वेधशाला ने एक बार उड़न तश्तरियों का आक्रमण नोट किया। ऐसे ही अनेक प्रामाणिक विवरण उड़न तश्तरियों की वास्तविकता पर प्रकाश डालते हैं।
अखबारों में समय-समय पर छपने वाले ये विवरण भी महत्वपूर्ण हैं—
(1) 4 अक्टूबर 1967 को हजारों लोगों ने कनाडा के समुद्री तट ‘शाका हार्वर’ पर एक विशालकाय अग्नि पिण्ड को आकाश से उतरते देखा। यह पिण्ड समुद्र में प्रविष्ट हो गया।
(2) ब्रिटेन के विक्टोरिया जलयान के नाविकों द्वारा माल्टा के पास तीन चमकदार उड़न तश्तरियां समुद्र से निकल कर अन्तरिक्ष में उड़ती, जाती देखी गईं।
(3) पादरी विर्कर लीरिया ने आकाश से प्रकाश विमान द्वारा एक देवदूत आता देखा। कैथोलिक चर्च ने इस तथ्य की पुष्टि की।
(4) पेरिस के पास एक अंधेरी रात में पौन घण्टे तक एक नीली रोशनी वाला प्रकाश-पिण्ड घुमड़ता रहा। अनेक लोगों ने इसे स्पष्ट देखा।
(5) लिस्वन के निकट फातिमा में और न्यूगिनी में 6 बार बच्चों ने देव मानवों के साथ भेंट की। इसके विवरण छपे।
(6) क्वारोवल के पास एक उड़न तश्तरी उतरी और समुद्री पोशाक जैसे वस्त्रों वाले दो व्यक्ति उसमें से निकले। हजारों लोगों ने उन्हें देखा।
(7) कोइम्क्रा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक अलमीदा गैरत के इस विवरण का 7 हजार दर्शकों ने समर्थन करते हुए साक्षी दी कि एक भयंकर अन्तरिक्षयान वहां से गुजरा।
(8) अमेरिकी जलयान अलास्का पर सवार वैज्ञानिक राबर्ट एस. क्राफर्ड ने सेतल के समीप समुद्र से 250 फुट व्यास का एक पिण्ड निकल कर अन्तरिक्ष में उड़ते देखा। इस पिण्ड पर तोपें दागने की भी सतर्क नाविकों ने तैयारी कर ली थी।
(9) अन्तरिक्ष शोधक एन्ड्रयू ब्लाजम की प्रकाशित डायरी में अनेकों प्रकाश पिण्डों के धरती पर आवागमन के विवरणों का संग्रह।
(10) रेवरेन्उ विलियम वूथ मिल, डा. के. हाउस्टन मेजर डोनाल्ड की हो, जैसे प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा उड़न तश्तरियों की आंखों देखी गतिविधियों का वर्णन।
इनके साथ ही विश्व भर में हजारों लोगों ने उड़न तश्तरियों से सम्बद्ध प्रत्यक्ष दर्शन पर आधारित विवरण दिये हैं, जो उड़न तश्तरियों के आकार-प्रकार एवं गतिविधियों पर प्रकाश डालते हैं।
‘फेट’ नामक प्रतिष्ठित पत्रिका में मार्शल ने वर्जीनिया व मैलबोरो नामक स्थान में एक ऐसे ही आकाशयान के अपने पास से गुजरने का विवरण लिखा है।
‘उड़न तश्तरियों की खोज’ नामक पुस्तक में लेखक एम.के. जेसप ने ऐसी अनेक घटनाएं साक्षियों के साथ प्रस्तुत की हैं—
(1) लेनिनगार्ड के जंगली नाले के पास ही तीन प्रकाश पिंडों का देखा जाना।
(2) चीन सागर में ब्रिटिश जलपोत कैरोलीन के कप्तान नारकाक द्वारा दो प्रकाश नौकाएं दो घण्टे तक देखा जाना।
(3) स्काटलेण्ड में इववनिस नगर में घनी अंधेरी रात में दो प्रकाश-गोलकों की धमा-चौकड़ी।
(4) चेल्सड्रीप में तीव्र वेग से दो आलोक-प्रवाहों की परिक्रमा।
(5) वेनिस नगर में रात्रि में एक घण्टे तक बादलों के बीच दो प्रकाश पुंजों की लगातार भाग दौड़।
(6) जान फिलिप बेसर द्वारा देखी गई उड़न तश्तरियों का वर्णन।
(7) ब्रिटिश जलपोत लिएन्डर के नाविकों द्वारा सात घण्टे तक समुद्री सतह पर एक प्रकाश पिण्ड का परिभ्रमण देखना।
पहले तो इन उड़न तश्तरियों के विवरण उपेक्षित ही रहे। पर जब ‘डेली मिरर’ तथा ‘न्यूयार्क टाइम्स’ जैसे प्रख्यात पत्रों ने इनके विवरण विस्तार से छापे, तो दुनिया भर में हलचल मच गई। विश्व भर में उड़न तश्तरियों के अस्तित्व के सम्बन्ध में विभिन्न पहलुओं की सत्यता की परख के लिए एक संस्था वाशिंगटन में गठित की गई—‘निकैप’ (नेशनल इन्वेस्टिगेशन कमेटी आन एरियल फिनामिना)। इसमें इस विषय से सम्बन्धित विशिष्ट जानकारी रखने वाले दुनिया के 5 हजार व्यक्ति सदस्य हैं। इस कमेटी ने विशाल सामग्री सम्बद्ध विषयों पर एकत्रित की है। ये प्रामाणिक विवरण हैं और हजारों प्रतिष्ठित व्यक्तियों की साक्षियां हैं। इनमें से मुख्य ये हैं—
(1) कप्तान विलियम ने अमरीकी पत्रकारों को जानकारी दी कि 24 फरवरी 1959 की रात्रि जब डी.जी. 6 विमान पेन्सिलवेनिया से डिट्राएट की ओर उड़ता जा रहा था, तीन उड़न तश्तरियां सहसा उसके सामने आई और देर तक विमान के चारों ओर चक्कर काटती रहीं। मानो अध्ययन कर रही हों। सहसा एक तीव्र झटके के साथ वे विलीन हो गईं उसी अनन्त आकाश में जहां से आती दिखी थीं। कई अन्य हवा बाजों ने भी यह घटना देखी।
(2) अमरीका में मेडिसन बिल केन्टुकी की पुलिस को जुलाई 1948 में एक दिन खबर मिली कि गाडमैन विमान तल के आस-पास एक विशालकाय उड़न तश्तरी उड़ रही है। कप्तान थामस मेन्टल के नेतृत्व में तीन एफ. 51 लड़ाकू विमान उड़न तश्तरी का पीछा करने भेजे गये। कप्तान रेडियो सम्पर्क द्वारा लगातार सूचना देते रहे कि उड़न तश्तरी दिख रही है। वह हमें पीछा करते जान गई हैं और तेजी से भाग रही हैं। हम उनका पीछा 360 मील की गति से कर रहे हैं। यदि 20 हजार फुट की ऊंचाई तक भी वे पकड़ में न आईं तो हम लौट पड़ेंगे।
पीछे के दो विमान तो लौट आये, पर कप्तान मेन्टल का विमान जो आगे थे, नहीं आया। दो साथी विमान चालकों ने लौटकर यही खबर दी कि कप्तान का विमान भी उड़न तश्तरियों के साथ ही गायब हो गया। इस घटना पर अमरीकी सरकार ने दो वर्ष तक कोई टिप्पणी नहीं की। फिर मौन तोड़ा और मात्र यह कहा—‘मेन्टल सन्तुलन खो बैठे और उनका विमान नष्ट हो गया।’
(3) 23 नवम्बर 1956 सुपीरियर लेक के ऊपर एक विशाल उड़न तश्तरी के उड़ने की राडार से जानकारी मिली। किनरास हवाईअड्डे से मौन्कला किल्सन एफ. 89 जेट के साथ उसका पीछा करने उड़ा। राडार पर दिखता रहा कि जेट तेजी से उड़न तश्तरी का पीछा कर रहा है और उसके पास पहुंच रहा है। फिर सहसा दृश्यांकन बन्द हो गया। न उड़न तश्तरी दिख रही थी, न जेट। खोजी दल गये, जेट का मलबा तलाशने की कोशिश की, पर कहीं भी कोई सुराग नहीं मिला। इस रहस्य पर पर्दा ही पड़ा रहने दिया गया। (4) मई 1967 में कालरैडो हवाई अड्डे के राडार ने भी एक उड़न तश्तरी की उड़ान की सूचना दी।
अमरीका सरकार द्वारा स्थापित अनुसन्धान समिति के एक सदस्य ने इन यानों की सम्भावना के समर्थन में एक पुस्तक लिखी है—‘उड़न तश्तरियां? हां’। ‘नेचर’ पत्रिका में अमरीकी रेडियो खगोलवेत्ता प्रो. कानाल्ड ब्रेस वैल का एक लेख छपा है, जिसमें यह सम्भावना व्यक्त की गई है कि उड़न तश्तरियां किसी विकसित सभ्यता वाले तारे से सूचना यान के रूप में आई हों और यहां के विवरण अपने केन्द्रों को भेज रही हों।
अन्तरिक्ष भौतिकी के वैज्ञानिक श्री वै वैलेस सलीवान ने एक पुस्तक लिखी है—‘ह्वी आर नाट एलोन’—‘हम अकेले नहीं’। इसमें ब्रह्माण्ड-व्यापी संचार साधन पर बल देते हुए एक नई ‘वेवलेंथ’ प्रस्तुत की है, जो प्रकाश गति से कई गुनी तीव्र होगी। यह ‘वेवलेंथ’ पद्धति 21 से.मी. अथवा 1420 मेगासाइकिल वेवलेंथ के रेडियो कम्पनों पर आधारित है। अणु-विकिरण की यह स्वाभाविक कम्पन गति है। उनके अनुसार अन्तरिक्ष संचार व्यवस्था में इसी गति को अपनाने से अन्य लोकों के प्राणियों से सम्पर्क साधा जा सकता है। हमारे लिए जो दूरी पार करनी कठिन या असम्भव लगती है, सम्भव है अन्य लोकवासी विकसित पद्धति के कारण वह दूरी सरलता से पार कर लेते हों, ऐसा भी सलवान का अनुमान है।
इस धरती पर उल्लेखनीय प्रगति तो विगत तीन वर्षों में ही हुई है। उसके पूर्व तो हमारे यहां भौतिक पिछड़ापन अत्यधिक था। विचार, आदर्श और समाज व्यवस्था की दृष्टि से तो अभी भी व्यापक पिछड़ापन ही है। ऐसी स्थिति में अन्य लोकों के वे निवासी जो सचमुच प्रगतिशील होंगे, हमारी दयनीय दशा के प्रति आकर्षित क्योंकर होंगे? यहां से सम्पर्क साधने का प्रयास वे क्योंकर करेंगे?
यह तो सम्भव है कि वे अनेक अन्य लोकों का अध्ययन करने के साथ ही इस पृथ्वी लोक की भी छान-बीन करते हों, किन्तु यहां के लोक-जीवन से उनके आकर्षित होने और सम्पर्क साधने की—इच्छा करने की सम्भावना अत्यल्प ही है।
उधर ‘साइन्स’ और ‘दि न्यू साइन्टिस्ट’ पत्रों के स्तम्भ लेखकों का कहना है कि ये उड़न तश्तरियां निश्चय ही अन्य ग्रहों से आने वाले सन्देश वाहक हैं। अन्य लोकों के प्राणी भी ब्रह्माण्ड में प्रगतिशीलता के सम्वर्धन की दृष्टि से सम्पर्क के लिए उत्सुक हो सकते हैं।
डा. एस. मिलर और डा. विलीले की मान्यता है कि इस विशाल ब्रह्माण्ड में एक लाख से अधिक ग्रह पिण्डों पर प्राणियों के अस्तित्व की सम्भावना है। इनमें से सैकड़ों हम पृथ्वीवासियों से अधिक विकसित हो सकते हैं।
अन्तरिक्ष विज्ञानी डा. फानवन का कथन है कि इस विशाल ब्रह्माण्ड में ऐसे प्राणियों का अस्तित्व निश्चित रूप से विद्यमान है, जो मनुष्यों से बहुत अधिक समुन्नत हैं। अन्य ग्रहों के निवासी मनुष्यों जैसी आकृति-प्रकृति के ही हों, यह भी कतई जरूरी नहीं। वे वनस्पति, कृमिकीटक, झाग, धुंआ जैसे भी हो सकते हैं और विशाल दैत्यों जैसे भी। हमारे पास जो इन्द्रियां हैं, उनसे सर्वथा भिन्न प्रकार के ज्ञान तथा कर्म साधन उनके पास हो सकते हैं।
कैलीफोर्निया के रेडियो एस्ट्रानामी इन्स्टीच्यूट के निदेशक डा. रोनाल्ड एन. ब्रेस्वेल ने विभिन्न आधारों द्वारा अन्य ग्रह तारकों में समुन्नत सभ्यताओं का अस्तित्व सिद्ध किया है और कहा है वे पृथ्वी से सम्पर्क स्थापित करने का सतत प्रयास कर रहे हैं एवं इस हेतु संचार उपग्रह भेज रहे हैं। उनके अनुसार फुटबाल जैसे इन उपग्रहों में अनेक रेडियो यन्त्र एवं कम्प्यूटर लगे रहते हैं और इनमें सचेतन जीवसत्ता भी उपस्थित रहती है। इन उपग्रहों द्वारा हमारे लिए विशेष रेडियो सन्देश भी भेजे जाते हैं। इन्हें अभी तक सुना तो गया है, पर समझ पाना सम्भव नहीं हो सका है। बहरहाल उड़न तश्तरियों के संचालकों ने पृथ्वी वासियों की छेड़छाड़ को पसन्द नहीं किया है। दस वर्षों में 137 उड़न तश्तरी-वैज्ञानिकों को प्राण गंवाने पड़े हैं। कभी किसी विज्ञान क्षेत्र के शोधकर्त्ताओं की मृत्यु दर इतनी नहीं रही।
. अन्तरिक्ष में लेसर व क्वासर यन्त्रों की स्थापना द्वारा लोकान्तरों के संकेतों का ग्रहण-विश्लेषण तथा उन तक संकेत सम्प्रेषण का कार्य सहज हो सकता है। तब अन्तरिक्ष में विकसित सभ्यताओं का पता लगने की सम्भावना बढ़ जायेगी।
ऐसी स्थिति में विश्व ब्रह्माण्ड के सुविकसित प्राणियों में पारस्परिक एकता एवं आत्मीयतापूर्ण आदान-प्रदान विकसित होने की सम्भावना है। तब क्षुद्र संकीर्णताओं की आपा-धापी का घटियापन स्पष्ट हो जायेगा और मात्र इसी शरीर को जीवन का रूप, सर्वत्र मानकर भौतिक सुखों के संचय एवं उपयोग की उन्मत्त दौड़ लज्जास्पद प्रतीत होगी। विश्व-बन्धुत्व का विकास होगा और विज्ञान अध्यात्मवाद से प्रभावित होगा। मनुष्य-मनुष्य के बीच स्नेह-सौहार्द सुदृढ़ होंगे।
अन्यत्र भी है जीवन
मनुष्य की अदम्य जिज्ञासा इस प्रयत्न में संलग्न है कि वह धरती की परिधि में ही कूप-मण्डूक की तरह सीमाबद्ध न रहकर यह जाने कि अनन्त आकाश में कहां क्या है? खगोल विद्या का विकास-विस्तार इसी आधार पर सम्भव हुआ है। चन्द्रमा तक मनुष्य पहुंच चुका। उसकी भूमि पर झण्डा पहुंच चुका। वहां क्या है और क्या नहीं? यह जान चुका। इस प्रयास से उसे भार हीनता में रहने—गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में प्रवेश प्राप्त करने एवं उससे निकलने अन्तरिक्षीय परिस्थितियां जानने जैसी अगणित ऐसी जानकारियां प्राप्त हुई हैं जो धरती पर रहते हुए उपलब्ध नहीं हो सकती हैं। इस प्रयास का अभी प्रत्यक्ष लाभ कुछ बहुत बड़ा प्रतीत न होता हो पर जो ज्ञान संचय किया गया है वह भावी मानवी प्रगति के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध होगा यह निश्चित है।
इस सुविस्तृत ब्रह्माण्ड में हम पृथ्वी निवासी ही बुद्धिमान प्राणी हों, ऐसी बात नहीं है। असंख्य ग्रह-पिण्डों में अवश्य ही ऐसे लोग होंगे जहां मनुष्य से भी अधिक बुद्धिमान प्राणी निवास करते हों। हम जिस प्रकार अन्य ग्रहों की खोज-खबर लेने के लिए अपने मानव सहित और मानव रहित यान आये दिन भेजते रहते हैं, उसी प्रकार यह भी स्वाभाविक है कि उन विकसित ग्रह तारकों के निवासी पृथ्वी की परिस्थितियों का पता लगाने के लिए अपने यान भेजते हों।
कभी-कभी ऐसे यान अपने आकाश में उड़ते और उतरते देखे भी गये हैं जिन्हें पृथ्वी निवासियों ने नहीं भेजा है। वे दृष्टि भ्रम भी नहीं थे। जांच-पड़ताल के उपरान्त उन्हें सचाई के रूप में स्वीकार किया गया है। इन यानों की उपस्थिति और उनकी हलचलों से इस विश्वास को बहुत बल मिला है कि अन्य लोकों में भी बुद्धिमान प्राणी मौजूद हैं और वे भी हमारी ही तरह ब्रह्माण्डव्यापी परिस्थितियों को जानने एवं जहां बुद्धिमान प्राणी मिलें वहां सम्पर्क स्थापित करने के लिए उत्सुक हैं। समय-समय पर देखे गये ऐसे अन्तरिक्षीय यान जिन्हें ‘उड़न तश्तरी’ कहा जाता है—इस तथ्य को साक्षी रूप में परिपुष्ट करते हैं।
जर्मनी के राकेट विशेषज्ञ हरमन ओवर्थ उन दिनों अमेरिका सरकार के अत्यन्त गोपनीय प्रक्षेपणास्त्र शोध कार्य में संलग्न थे। उन्होंने एक भरी सभा में उड़न तश्तरियों के अस्तित्व का समर्थन ही नहीं किया वरन् यहां तक कह डाला कि इस सम्बन्ध में कितनी ही महत्वपूर्ण जानकारियां सरकार के पास हैं। उन्होंने इसके सम्बन्ध में विस्तृत प्रकाश डाला और बताया कि वे ‘एप्सिलोन एरिडैनी’ और ‘ताओ सेटि’ तारकों के किसी ग्रह से आती हैं।
जिन्होंने सन् 30 में ‘प्लूटो’ ग्रह खोज निकाला था वे अन्तरिक्ष विज्ञानी क्लाइड डबल्यू टाम्वा पिछले दिनों अमेरिका में प्राकृतिक उपग्रहों की खोज में संलग्न थे। उन्होंने भी अपनी सार्वजनिक साक्षी देते हुए कहा था—मैंने ही नहीं मेरी पत्नी ने भी इन्हीं आंखों से उड़न तश्तरियां आकाश में उड़ते देखीं। इंग्लैंड के अन्तरिक्ष विज्ञानी एच. पर्सी विल्किस ने 50 फुट व्यास की उड़न तश्तरियों को अपनी आंखों देखा था विज्ञान वेत्ता सिल्योर हेस ने कहा था उन्होंने एरिजोना क्षेत्र में एक ऐसी उड़न तश्तरी देखी जो धातु की बनी और ईंधन से चलती दिखाई देती थी।
ब्राजील की वायु सेना ने तो एक ऐसा प्रतिवेदन सन् 1955 में सार्वजनिक रूप से प्रकाशित कराया था जिसमें उस देश के वैज्ञानिकों द्वारा उड़न तश्तरियों के विवरण सम्बन्धी विचार निष्कर्षों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया गया था। कनाडा की सरकार ने ओटावा के समीप अवस्थित एक अनुसन्धान शाला द्वारा सन् 1953 में उड़न तश्तरियों सम्बन्धी खोज कराई थी। उसके निर्देशक विल्वर्ट स्मिथ ने घोषित किया था उड़न तश्तरियों के अस्तित्व सम्बन्धी ठोस प्रमाण मौजूद हैं। वे किसी अन्य ग्रह से आती हैं। अर्जेण्टाइन के विज्ञानी मार्कस ग्युएकि तथा अन्य कई अफसरों ने दो उड़न तश्तरियां कारडोवा हवाई अड्डे के पास देखी थीं। यह वहां की सरकार द्वारा प्रकाशित एक विज्ञप्ति द्वारा स्पष्ट है। रूस के दो वैज्ञानिक कैजेन्त्सेव और एग्रेस्त उनका अस्तित्व सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर चुके हैं।
फ्रान्स के ‘‘रैसिस्तैन्स’’ पत्र में स्वीडन में अनेक लोगों द्वारा देखी गई उड़न तश्तरियों का विस्तृत विवरण अपने 11 जुलाई 1946 के अंक में विस्तारपूर्वक प्रकाशित किया था। स्टाक होम में ऐसी ही ज्योतियां देखी गईं उनका विवरण ‘लामोन्द’ समाचार ने ‘रहस्यमय ज्योति बम’ नाम देकर प्रकाशित किया था। ब्रिटेन के ‘डेली मेल’ ने अपना प्रतिनिधि इन समाचारों का पता लगाने भेजा उसने स्वीडन तथा डेनमार्क के फौजी अफसरों तक को इस चिन्ता से ग्रसित पाया कि कहीं उड़न तश्तरियां कोई खतरा तो उत्पन्न नहीं करने वाली हैं इन देशों के अनेक सम्भ्रान्त नागरिक आंखों देखे विवरण को साक्षी रूप से प्रस्तुत करते हुए उड़न तश्तरियों के स्वरूप की बात स्पष्ट कर रहे थे। केनेथ आरनल्ड का वह विवरण अनेक पत्रों में छपा था जो उसने अपने वायुयान के निकट नौ उड़न तश्तरियों का एक जत्था आंखों से देखने के पश्चात् प्रकाशित कराया था।
अमेरिकी सरकार द्वारा इस सम्बन्ध में जो अनुसन्धान कराया था उसका विवरण कमाण्डर मैक्लाफलिन ने एक प्रतिवेदन के रूप में छपाया है। उसमें उन्होंने उड़न तश्तरियों को किसी अन्य ग्रह के बुद्धिमान प्राणियों द्वारा भेजा गया बताया है और उनका आकार औसत 40 फुट चौड़ा 100 फुट लम्बा बताया है तथा उनकी चाल 25 हजार मील प्रति घण्टा एवं उड़ने की ऊंचाई कोई 2 लाख फुट निर्धारित की।
इस सन्दर्भ में वैज्ञानिकों का एक सम्मेलन बुलाया गया था। उसमें जनरल सैमफोर्ड ने न केवल उड़न तश्तरियों के अस्तित्व को स्वीकार किया वरन् उनकी शक्ति का उल्लेख करते हुए यह भी माना कि उनमें इतनी शक्ति है जिसको हम न तो समझ पाते हैं और न नाप सकते हैं।
सन् 1961 में जब केप केनेडी से पोलरिस नामक राकेट उड़ाया गया तो राडार ने नोट किया कि उसके ऊपर किसी ‘अज्ञात वस्तु’ ने भयंकर झपट्टा मारा और फिर वह गायब हो गई। इस आघात ने राकेट के साथ वैज्ञानिकों का सम्पर्क ही तोड़ दिया। बहुत प्रयत्न करने पर 14 मिनट बाद फिर कहीं उसे ढूंढ़ा देखा जा सका। ऐसा ही एक झपट्टा इस ‘अज्ञात वस्तु’ ने व्यूनस आयर्स के एजेजिया हवाई अड्डे के समीप उड़ते हुए ‘पैनिग्रा डी.सी. 8’ नामक जेट विमान पर मारा और उसे नियत समय पर उतरने से रोक दिया। यों सरकारी विज्ञप्ति ने इस समाचारों पर पर्दा डालने की कोशिश की पर जिन्होंने इन दृश्यों को आंखों से देखा वे उन, विज्ञप्तियों को कैसे स्वीकार करते?
ऐसे ही और भी कई प्रामाणिक विवरण उपलब्ध हैं। यथा—न्यू मैक्सिको के प्रक्षेपणास्त अधिकारी स्टोक्स द्वारा ऊलामागोदों के निकट अपनी कार के समीप से एक भीमकाय यन्त्र को उड़ते हुए देखा जाना—8 जून 1963 में कैलीफोर्निया में जेट विमानों द्वारा एक उड़न तश्तरी का पीछा किया जाना—केनेवरा (आस्ट्रेलिया में एक लड़खड़ाते लाल प्रकाश पिण्ड को नेकों द्वारा देखा जाना—लिस्बन की वेधशाला द्वारा उड़न तश्तरियों का आक्रमण नोट किया जाना, आदि-आदि।
जन साधारण द्वारा अनेकों बार खुले आकाश में विचरण करती हुईं उड़न तश्तरियां देखी गई हैं। एक दो ने नहीं वरन् असंख्यों ने उन्हें इन्हीं आंखों से देखा है। इनके समाचार समय-समय पर अखबारों में छपते रहे हैं।
उड़न तश्तरियों के अस्तित्व सम्बन्धी पक्ष-विपक्ष के प्रमाण एकत्रित करने के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था वाशिंगटन में गठित हुई, जिसका नाम है—नेशनल एन्वेस्टिगेशन कमेटी आन एरियल फिनामिना’ इसका संक्षिप्तीकारण है—‘‘किकैप’’ इससे सम्बन्धित विषय में दखल रखने वाले विशेषज्ञों को ही सदस्य बनाया गया है संसार भर में उनकी संख्या पांच हजार के लगभग है। उसने जो प्रमाण सामग्री एकत्रित की है वह एक महापुराण जितनी हैं। इनमें से जो अधिक महत्वपूर्ण था उसका प्रकाशन भी हुआ है। जो नहीं छापे जा सके वे घटना क्रम भी अपने ढंग के अनोखे हैं और उन्हें प्रस्तुत करने वाले ऐसे नहीं हैं जिन्हें सिर फिरे अथवा गपबाज कहकर झुठलाया जा सके। जो साक्षियां इन प्रकाश पुंज आकाशीय पिण्डों के सम्बन्ध में प्राप्त हुई हैं उनमें से एक चौथाई वायुसेना के ऐसे प्रतिष्ठित पदाधिकारियों की हैं। जिन्हें गपबाजी फैलाने का दोषी कदाचित् ही कोई ठहरा सके। कुछ घटनाएं तो ऐसी हैं जिनमें उन्हीं पर मुसीबत टूटी।
जुलाई 1948 की बात है अमेरिका में मेडिसन विल केन्टुकी की पुलिस को सूचना मिली कि गाडमैन हवाई अड्डे के इर्द-गिर्द एक विशालकाय उड़न तश्तरी चक्कर काट रही है। उसका पीछा करने के लिए ‘एफ. 51’ किस्म के तीन लड़ाकू विमान कप्तान थामस मेन्टल के नेतृत्व में उड़ाये गये। कप्तान ने आकाश में पहुंच कर रेडियो से सूचना दी हमें उड़न तश्तरी प्रत्यक्ष दीख रही है। उसे हमारे पीछा करने का पता चल गया है। इसलिए वह तेजी से भागने लगी है। हम भी 360 मील की चाल से उसका पीछा कर रहे हैं। 27 हजार फुट की ऊंचाई तक उसका पीछा करेंगे यदि पकड़ में न आई तो इसके बाद लौट पड़ेंगे। बाद में कप्तान के दो साथियों ने बताया कि मेन्टल का जहाज भी उड़न तश्तरी के साथ गायब हो गया। सरकार ने दो वर्ष तक इस विषय पर चुप्पी साधे रहने के पश्चात् इतना ही कहा—‘मेन्टल अपना सन्तुलन खो बैठा और उसका जहाज नष्ट हो गया।’
इसी से मिलती-जुलती 23 नवम्बर 1953 की वह घटना है। लेक सुपीरियर आकाश में राडार यन्त्र ने एक विशालकाय उड़न तश्तरी के चक्कर काटने की खबर दी। उसका पीछा करने किनरास हवाई अड्डे से एक एफ. 89 जेट उड़ाया गया। संचालक था—मौन्कला विल्सन। राडार पर अंकित होता रहा कि जेट तेजी से उड़ता हुआ तश्तरी के निकट जा पहुंचा है। इसके बाद दृश्यांकन यकायक बन्द हो गया। दोनों ही गायब हो गये। जेट का मलबा उस पूरे क्षेत्र में तलाश किया गया पर कहीं कोई सुराग न मिला। उस रहस्य पर पर्दा डाल देने के अतिरिक्त और कोई रास्ता न था।
कप्तान विलियम ने अमेरिकी पत्रकारों के सामने बताया 24 फरवरी 1959 की रात को उन्होंने बताया डी.सी. 5 यान जब पेन्सिल वेनिया से डिट्राएट की ओर उड़ता जा रहा था उसके सामने तीन उड़न तश्तरियां एकाकी और देर तक चक्कर काटती रहीं मानो वे जहाज को गम्भीर झटका देकर उसी अंधेरे आकाश में खो गईं जिसमें से कि प्रकट हुई थीं। इस घटना को उस क्षेत्र में उड़ते हुए अन्य हवाबाजों ने भी देखा था।
6 नवम्बर 1957 को ओटावा के आकाश में वासकाटांग झील के ऊपर रात्रि के 9 बजे एक उड़न तश्तरी देखी गई। उसने उस क्षेत्र का रेडियो संचार नष्ट करके रख दिया। शार्ट वेव और मीडियम वेव दोनों ही बेकार हो गये। केवल कीट-कीट की आवाज रिसीवरों पर सुनी जाती रही। जो सम्भवतः उस उड़न तश्तरी की हरकतों की हो रही होगी। शायद वह अपने लोक को कोई सन्देश भेज रही हों।
अन्तरिक्षीय यानों के धरती पर आवागमन की इन साक्षियों से हम इस निष्कर्ष पर सहज ही पहुंच सकते हैं कि इस ब्रह्माण्ड में हम मनुष्यों की अपेक्षा कहीं विकसित सम्पदाएं मौजूद हैं। हमारे उड्डयन ज्ञान एवं साधनों की अपेक्षा वे कहीं आगे हैं। यदि ब्रह्माण्ड-व्यापी चेतन सत्ता पारस्परिक सहयोग के आधार पर आदान-प्रदान का द्वार खोल सके तो दूरवर्ती ग्रह तारकों के भी निकटवर्ती पड़ोसी बनकर रहने की सुखद परिस्थितियां प्राप्त हो सकती हैं। विज्ञान ने इस पृथ्वी पर रहने वाले सुदूरवर्ती लोगों को यातायात साधनों के आधार पर एक गली, मुहल्ले में रहने वालों की तरह बना दिया अब अन्तर्ग्रही सहयोग एवं आदान-प्रदान का द्वार खुलने की बारी है।
एक ओर अन्तर्ग्रही सहयोग के प्रयास और दूसरी ओर मनुष्य का अधिकाधिक संकीर्णतावादी स्वार्थपरायण बनते जाना—कैसी है यह विधि की विचित्र विडम्बना।
उड़न तश्तरियों के कतिपय प्रश्न
क्या इस निखिल ब्रह्माण्ड में एक मात्र पृथ्वी ही मनुष्य जैसे बुद्धिमान प्राणियों की क्रीड़ा स्थली है अथवा किसी अन्य ग्रह नक्षत्र में ऐसे ही जीवधारियों का अस्तित्व है? यदि है तो क्या उनका परस्पर मिलन एवं सहयोग सम्भव है? इस प्रश्न पर जितना अधिक विचार किया गया है उतना ही इस निष्कर्ष पर अधिक विश्वास पूर्वक पहुंचा गया है कि इस असीम ब्रह्माण्ड में पृथ्वी जैसे अनेक लोग विद्यमान हैं उनमें मनुष्य जैसे ही नहीं वरन् उससे भी कहीं अधिक विकसित स्तर के जीवधारी मौजूद हैं। जिस प्रकार पृथ्वी निवासी चन्द्रमा पर पहुंच चुके और सौर मण्डल के अन्यान्य ग्रहों की खोज में तत्पर हैं उसी प्रकार उन बुद्धिमान प्राणियों का भी यह प्रयास है कि वे विकसित जीवधारियों की दुनिया से सम्पर्क स्थापित करें और परस्पर आदान-प्रदान के अनेक उपाय एवं मार्ग ढूंढ़ निकालें।
पृथ्वी पर कई प्रकार के ऐसे संकेत, समय-समय पर मिलते रहते हैं जिनसे प्रतीत होता है कि अन्य लोकों के बुद्धिमान प्राणियों को पृथ्वी की सुविकसित स्थिति का भी ज्ञान है और वे मनुष्य जाति के साथ अपने सम्बन्ध स्थापित करने के लिये लालायित एवं प्रयत्नशील हैं। प्रकाश पुंजों के अवतरण के रूप में यह अनुभव पृथ्वी निवासियों को होते भी रहते हैं। पाश्चात्य जगत में इन्हें उड़न तश्तरियां नाम दिया जाता है।
कैलीफोर्निया के कार्निग शहर में बैठे हुए लोगों ने आकाश में एक चमकदार अनोखी चीज देखी जो काफी नीचे उड़ रही थी और उसमें से चमकदार प्रकाश किरणें निकल रही थीं, वह एक विशाल धातु निर्मित सिगार जैसी थी जो 300 से 500 फीट की ऊंचाई पर उड़ रही थी। इसके सिर में से चमकदार प्रकाश किरणें निकल रही थीं और पैंदे में से हलकी नीली रोशनी फूट रही थी। फिर उसकी चाल बढ़ी और तेजी से आकाश में विलीन हो गई। इन दर्शकों में से कितनों ने ही कहा—उड़न तश्तरियों की बात वे गप्प समझते थे पर आज उनने आंखों से देखकर यह विश्वास कर लिया कि वह वस्तुतः एक सचाई है।’
रूसी वैज्ञानिकों ने कुछ समय पूर्व यह घोषणा की थी कि उनने ब्रह्माण्ड के किन्हीं अन्य तारकों द्वारा भेजे गये संकेत सुने हैं यह एक क्रमबद्ध टिमटिमाहट के साथ जुड़े हुए ज्योति संकेतों के रूप में हैं। वे कहते हैं कि ऐसा कर सकना किसी प्रबुद्ध स्तर के प्राणधारियों के लिये सम्भव हो सकता है।
आरम्भ में उनकी बात को ज्यादा महत्व नहीं मिला पर अब उसे एक तथ्य माना गया है। एक ‘क्वासर’ तारा—जिसे खगोल विद्या की भाषा में सी.टी.ए.—102 कहा जाता है निस्सन्देह पृथ्वी पर ऐसी टिमटिमाहट और रेडियो धाराएं भेज रहा है जिसे कर सकना किन्हीं विचारवान् प्राणियों के लिये ही सम्भव है।
ब्रिटेन के विज्ञानी लार्डस्नो ने वैज्ञानिक सम्मेलन में आशा प्रकट की थी कि अन्तरिक्ष से किसी प्रबुद्ध जाति के सन्देश प्राप्त करने का सुअवसर मनुष्य में ही मिलेगा। यह आशा अकारण ही नहीं थी। अन्तरिक्ष सम्पर्क के लिये बढ़ते हुए मनुष्य के चरण क्रमशः इस आशा बिन्दु की समीपता का ही आभास देते हैं।
अमेरिका के रेडियो खगोल शास्त्री प्रो. कोनाल्ड ब्रस वैल ने ‘नेचर’ पत्रिका में एक लेख छपाकर सम्भावना व्यक्त की है कि हो सकता है उड़न तश्तरियां किसी विकसित सभ्यता वाले तारे से सूचना यान के रूप में आई और रह रही हों। सम्भव है वे यहां की स्थिति की जानकारी अपने उद्गम स्थान को रेडियो सन्देशों एवं टेलीविजन चित्रों के रूप में भेज रही हों।
अन्तरिक्ष भौतिकी के शोधकर्त्ता श्री वै वैलेस सलीवान ने अपनी पुस्तक—वी आर नॉट अलोन हम अकेले नहीं हैं—पुस्तक में ब्रह्माण्डव्यापी संचार साधन के लिये एक नई पद्धति ‘वेव लेंग्थ’ की प्रस्तुत की है जिसके अनुसार प्रकाश की चाल इतनी ही पीछे रह जाती है जितनी हवाई जहाज की तुलना में पतंग की। तरीका ठीक 21 सेन्टी मीटर अथवा 1420 मेगा साइकिल वेव लेंग्थ के रेडियो कम्पनी पर आधारित है। अणु विकरण की यह स्वाभाविक कम्पन गति है। अन्तरिक्ष संचार व्यवस्था में इसी गति को अपनाने से ही अन्य लोकों के प्राणियों के साथ सम्पर्क साधा जा सकता है। यह पद्धति अन्य लोकवासी विकसित कर चुके हैं और जितनी दूरी पार करना हमें कठिन या असम्भव लगता है उनके लिए वह सरल हो गई हो।
एक फ्रान्सीसी खगोल विद्या विशारद ने खोजकर बताया कि यह उड़न तश्तरियां इन्हीं दिनों आने लगी हों ऐसी बात नहीं है, इनका आवागमन बहुत समय से चल रहा है। रोग में ईसा से 212 वर्ष पूर्व उड़न तश्तरी देखी गई थीं। शेक्सपियर के ग्रन्थों में ही नहीं बाइबिल में भी उनका उल्लेख है। अमेरिका में उड़न तश्तरी अनुसन्धान कार्य 1947 से ही चल रहा है जबकि प्रथम बार वायुयान चालक ‘केनिथ आर्नोल्ड’ ने माउण्ट रेनियर के निकट अपने विमान से उड़न तश्तरी देखी थी।
हिन्दी के प्रख्यात लेखक श्री इलाचन्द जोशी ने 23 जून 1963 के ‘धर्म युग’ में अपनी निज की एक अनुभूति छपाई थी। वे नैनीताल जिले के ताकुला गांव के एक बंगले में ठहरे थे। रात्रि को उन्हें पास ही कहीं जाना था कि उस घोर अन्धकार में उनने देखा कि—‘सहसा दक्षिण पश्चिम की ओर का पहाड़ी क्षतिज तीव्र प्रकाश से उद्भाषित हो उठा। क्षण भर के लिये अभ्यास वश मैंने समझा कि बिजली क्रोध उठी है पर जब प्रकाश पूरे साठ सैकिण्ड तक स्थिर रहा और बिजली तरह एक ही सैकिण्ड के बाद विलीन नहीं हुआ तब मैं चौंका और उसके बाद ही मैंने आश्चर्य से देखा कि जलते हुए बड़े बल्ले की तरह की कोई चीज बिना तनिक भी शब्द किये क्षतिज को लांघती हुई सीधे मेरे शिर के ऊपर से आकाश की ओर बड़ी तेजी से उड़ी जा रही है। उसकी पूंछ से तीव्रतम शुभ्र और श्वेत प्रकाश एक सर्च लाइट की तरह पीछे की ओर बिखर रहा था—और उसका धड़ पूरे का पूरा एक बहुत बड़ी चिता की सी पीली लपटों सा दहक रहा था। कुछ क्षणों के लिए मुझे लगा कि कोई भटका हुआ विमान जल गया है और क्षण भर में कहीं गिरना ही चाहता है। पर वह बड़ी तेज रफ्तार से बिना तनिक भी शब्द किये मेरे शिर के ऊपर से होता हुआ सीधा आगे की ओर निकलकर कुछ ही क्षणों बाद आंखों से ओझल हो गया। तब मैं हक्का-बक्का रह गया।’’
इस सम्बन्ध में वैज्ञानिकों की अटकलें तरह तरह की हैं—‘साइन्स’ और ‘दी न्यू साइंटिस्ट’ पत्रों के स्तम्भ लेखकों ने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि यह उड़न तश्तरियां अन्य ग्रहों से आने वाले सन्देश वाहक हैं। वे पृथ्वी की खोज खबर लेने आते हैं। अन्य देशों में मनुष्य से भी विकसित किस्म के प्राणी हो सकते हैं और वे भी इस बात के इच्छुक हो सकते हैं कि प्रगतिशील प्राणियों के साथ सम्पर्क बढ़ाकर ब्रह्माण्ड में जहां सम्भव हो प्रगतिशीलता का अधिक संवर्धन किया जाय।
रूसी खगोल वेत्ता आई.एस. श्कलोव्स्सकी ने अपने ग्रन्थ ‘इन्टेलिजेन्ट लाइफ इन द युनिवर्स’ में विस्तारपूर्वक प्रतिपादित किया है कि—‘पृथ्वी पर से सबसे पहली ऐसी शब्द ध्वनि अब से बीस वर्ष पूर्व अन्तरिक्ष में फेंकी गई थी जो अन्य ग्रहों के प्रगतिशील प्राणियों द्वारा सुनी या समझी जा सके। यदि वह ध्वनि बिना कोई व्यवधान पड़े बढ़ती चली जा रही होगी तो सौर मण्डल से बाहर के सबसे निकटवर्ती तारे तक पहुंचने में अभी सफल नहीं हुई होगी। शब्द की गति 11 हजार मील प्रति घण्टा है। पृथ्वी से निकटतम तारा ‘प्राक्सियां सेन्टरी’ हैं। इसकी दूरी 4.3 प्रकाश वर्ष है। प्रकाश वर्ष का अर्थ है छह की संख्या के आगे 18 शून्य रख देने पर जो संख्या बती है—अर्थात् छह पद्म मील—इतनी दूर तक बीस वर्ष पूर्व फेंकी गई आवाज को पहुंचने में अभी मुद्दतों लगेंगे। वह आवाज सुनी जा सकी तो वे लोग पृथ्वी की उपयोगिता समझेंगे और यहां तक पहुंचने का रास्ता निकालेंगे। उनकी यात्रा को भी बहुत समय लगेगा तब कहीं उनका पृथ्वी से सम्बन्ध हो सकता है। इस धरती के निवासियों को कुछ कहने लायक वैज्ञानिक प्रगति में अभी मुश्किल से तीन वर्ष हुए हैं। इससे पहले तो भौतिक समृद्धि की दृष्टि से भी पृथ्वी के लिए बहुत पिछड़े हुए थे और विचार आदर्श एवं व्यवस्था की दृष्टि से तो हजार के पीछे 999 व्यक्ति अभी भी कूहड़ जिन्दगी ही जी रहे हैं ऐसी दशा में अन्य ग्रह निवासियों को यदि वे सचमुच प्रगतिशील होंगे तो उन्हें कुछ भी आकर्षण न होगा हम लोग गये-गुजरे ही दीखेंगे। ऐसी दशा में वे क्यों इतना श्रम करेंगे। फिर यह कहना भी कठिन है कि सबसे निकटवर्ती तारे पर ही सभ्यता का विकास हो गया हो। यदि विकसित तारे और भी आगे हुए तो उनका आवागमन और भी अधिक समय साध्य होगा। ऐसी दशा में यदि यह भी मान लिया जाय कि किन्हीं तारों पर प्रगतिशीलता है तो उसके साथ सम्पर्क बनना इतना सरल नहीं है। सौर मण्डल के ग्रहों और उपग्रहों की इतनी खोज तो पहले हो चुकी है कि उनमें से किसी पर भी विकसित प्राणधारी के होने की सम्भावना नहीं है। जीवन का आरम्भिक चिन्ह भले ही उनमें से किसी पर मिल जाय। अस्तु उड़न तश्तरियों की संगति अन्य लोक वासी प्राणियों के साथ नहीं मिलाई जानी चाहिए।
इन घटनाओं से समय समय पर पृथ्वी के विभिन्न क्षेत्रों में देखी जाने वाली उड़न तश्तरियों से यह तो सिद्ध हो ही जाता है कि पृथ्वी पर ही उन्नत सभ्यता नहीं है। वरन् अन्य ग्रहों में और भी उन्नत सभ्यतायें हैं। जीवन के इस विस्तार में जिसके कभी कहीं से कोई संकेत मिलते रहते हैं, मनुष्य का महत्व पहाड़ की तुलना में राई के बराबर है।
पर वह कौन था? पुलिस इन्सपेक्टर ने प्रश्न किया और साथ ही साथ सान्त्वना भी दिलाई, तब मसकेरीलो ने आगे बताना शुरू किया—मैं अपने घर जा रहा था, समय पता न चलने के कारण जल्दी ही चल पड़ा था। कोई सवारी नहीं मिली सो पैदल ही आ रहा था। जब मैं कंसिंग्टन के एक खुले स्थान से गुजर रहा था तभी आकाश में वह गोल-सी वस्तु, जिसका व्यास 80 से 90 फीट तक रहा होगा, कांपती हुई मेरी ओर झपटी। सड़क छोड़कर मैं नीचे की ओर भागा तब वह पीछे लौट गई और हवा में उड़ती हुई मकानों की छतों पर घूमी। इसके आगे मुझे पता नहीं। मैं सीधा पुलिस स्टेशन भागकर आया हूं। मुझे डर लग रहा है, घर तक पहुंचने का प्रबन्ध कर दें।
इन्सपैक्टर के लिये यह सर्वथा अनहोनी घटना थी। कहते हैं साइबेरिया में कोई एक व्यक्ति ऐसा है जो शुक्र ग्रह से उतरा है। कहते हैं बेल्जियम में कोई एक ऐसा स्थान है जहां आकाश से प्रायः उड़न तश्तरियां आती रहती हैं। भूत-प्रेतों की कहनी-अनकहनी तो घर-घर सुनी जा सकती है पर जो कुछ मसकेरीलो बता रहा था, वह सत्य तो वैज्ञानिक कहानियों से भी आश्चर्यजनक था। उस पर सहसा विश्वास करना कठिन था। इन्सपैक्टर से हंसकर कहा भी—महोदय! आपको, लगता है, धोखा हो गया। किन्तु अभी वह कुछ व्यवस्था करे, इससे पूर्व ही रात्रि में गश्त (पेट्रोल) के लिये गई पुलिस की गाड़ी वापिस लौटी। उसके इंचार्ज वेरट्रेन्ड ने भी बताया कि थाने से 2 मील दूर कार में आ रहे एक दंपत्ति ने भी ठीक ऐसी ही घटना सुनाई जैसी मसकेरीलो ने। उन्हें यों उस वस्तु ने 9 मील तक—ईपिंग से न्यूहैम्पशायर के उस स्थान तक पीछा किया जहां वह वस्तु मसकेरीलो को मिली थी।
आखिर सत्यता की जांच के लिए वरट्रेन्ड तैयार हो गया। उसने मसकेरीलो को भी साथ लिया और उसी स्थान पर जा पहुंचा। टार्च से बड़ी देर तक इधर-उधर देखते रहे पर वहां कुछ दिखाई न दिया। वरट्रेन्ड ने व्यंग्य से कहा—आपने कोई पास से गुजरता हैलिकॉप्टर देखा होगा। ‘पर मुझे हवाई जहाजों की पूर्ण पहचान है’-मसकेरीलो ने उत्तर दिया और तभी वह घटना फिर घटी। वहां से कुछ 100 गज की दूरी पर ही एक ‘कृषि भवन’ था। उसके ऊपर वह प्रकाश-पुंज फिर प्रकट हुआ। वहां की प्रत्येक वस्तु, पेड़-पौधे और जमीन तक उसी रंग से नहा गये। कृषि-भवन तो रक्त के रंग में रंगा लगने लगा। वरट्रेन्ड सहित सभी पेट्रोल-कार की ओर भागे।
उस प्रकाश पुंज की कहानी यहीं से समाप्त हो गई। दूसरे दिन वह घटना अखबारों में छपी। तब जान फुलर नामक लेखक ने अनेक व्यक्तियों से पूछताछ कर लिखा कि यह घटना विलक्षण सत्य थी और विज्ञान के लिए चुनौती भी। 73 लोगों ने उसे देखा और सबके बयान एक ही थे जो 200 पृष्ठों में टाइप किये गये थे। इस तरह की घटनाओं का संकलन करने वाली संस्था ‘नेशनल इन्वेस्टीगेशन कमेटी’ एयरियल फेलामेना वाशिंगटन ने भी उसकी पुष्टि की। श्रीमती विरजिनिआ, जो हैम्पटन में पत्रकार हैं, ने भी उसे देखा था और उसकी पुष्टि भी की। पर क्या यह प्रकाश पुंज कोई आत्मा थी, भूत या कोई सूक्ष्म शरीर? यह अब तक निश्चित नहीं हो सका।
अब तक कई ऐसे यान अपने आकाश में उड़ते और पृथ्वी तल पर उतरते देखे—पाये गये हैं। परीक्षण के बाद इन्हें सचाई के रूप में स्वीकार किया गया है। इन अन्तरिक्ष यानों को उड़न तश्तरी ही कहा जाता है।
सन् 1930 में ‘प्लूटो’ ग्रह की खोज करने वाले अन्तरिक्ष विज्ञानी क्लाइड डब्ल्यू टाम्वा ने भी पिछले दिनों कहा था—‘‘मैंने व मेरी पत्नी ने उड़न तश्तरियां आकाश में उड़ती देखी हैं। इंग्लैण्ड के अन्तरिक्ष वैज्ञानिक एच. पर्सी विल्किस ने 50 फुट व्यास की उड़न तश्तरियां देखने का विवरण दिया था। वैज्ञानिक सिल्योर हेस ने एरिजोना क्षेत्र में धातु निर्मित और ईंधन चालित एक उड़न तश्तरी देखने की बात कही। जर्मनी के राकेट-विशेषज्ञ हरमन ओवर्थ ने भी उड़न तश्तरियों की बावत महत्वपूर्ण जानकारियों के संचित होने की घोषणा की थी।
ब्राजील की वायुसेना द्वारा 1955 में सार्वजनिक रूप से प्रकाशित प्रतिवेदन के अनुसार भी उड़न तश्तरियों को देखा, परखा गया था। कनाडा सरकार की ओटावा स्थित अनुसंधानशाला के निर्देशक विल्वर्ट स्मिथ में उड़न तश्तरियों के ठोस प्रमाण होने की बात कही थी।
अर्जेन्टीना के वैज्ञानिक मार्क्स ग्युएकी तथा कई अफसरों ने कारडोवा विमानतल के पास दो उड़न तश्तरियां देखीं। दो रूसी वैज्ञानिक कैजेन्त्सेव तथा एग्रेस्त भी उनके अस्तित्व की घोषणा कर चुके हैं। स्वीडन के अनेक लोगों ने उड़न तश्तरियां देखीं, जिनका विवरण 11 जुलाई 1946 के अंक में ‘रेजिस्तेन्स’ नामक फ्रेंच अखबार ने छापा था और स्टाक होम के ‘ल-मांद’ अखबार ने भी इसके विवरण छापे थे। प्रख्यात ब्रिटिश पत्र ‘डेलीमेल’ के प्रतिनिधि ने स्वीडन व डेन्मार्क का दौरा कर, पाया कि—इन देशों में अनेक संभ्रांत नागरिकों ने उड़न तश्तरियां प्रत्यक्ष देखी हैं तथा यहां के फौजी अफसर भी इस बात को लेकर चिन्तित थे कि कहीं इन उड़न तश्तरियों से कोई खतरा पैदा न हो।
अमरीकी कमाण्डर मैक्लाफलिन के प्रतिवेदन के अनुसार उड़न तश्तरियां किसी अन्य ग्रह के बुद्धिमान प्राणियों द्वारा प्रेषित विमान हैं। इनका औसत आकार 40 फुट चौड़ा और 100 फुट लम्बा पाया गया है, गति 25 हजार मील प्रति घण्टा तथा उड़ने की ऊंचाई 2 लाख फुट देखी गई। अमरीकी वैज्ञानिकों के एतद् विषयक सम्मेलन में जनरल ममफोर्ड ने इन उड़न तश्तरियों को अत्यन्त शक्तिशाली निरूपित किया।
1961 में केपकेनेडी अन्तरिक्ष केन्द्र से पोलारिस नामक राकेट उड़ने के तुरन्त बाद उस पर एक ‘‘अज्ञात वस्तु’’ ने भयंकर झपट्टा मारा। यह प्रहार राडार ने नोट किया। राकेट का वैज्ञानिकों से सम्पर्क ही इस प्रहार के कारण टूट गया। बहुत प्रयास के बाद 14 मिनट पश्चात् उसे खोज, देखा जा सका। इसी तरह का एक झपट्टा ब्यूनस आयर्स के एजेजिया विमान अड्डे के पास ‘पैनिग्रा डी.सी. 8’ नामक जेट वायुयान पर मारा गया। सरकारी विज्ञप्ति में इन घटनाओं पर पर्दा डालने के प्रयास किये गये, पर प्रत्यक्षदर्शी तथ्य जानते ही थे। न्यू मैक्सिको के प्रक्षेपणास्त्र अधिकारी श्री स्टोक्स ने ऊलामागोर्दो के पास एक भीमकाय यन्त्र अपनी कार के पास से उड़ते हुए देखा। 18 जून 1963 को कैलीफोर्निया में जेट विमानों का एक उड़न तश्तरी ने पीछा किया। केनवरा (आस्ट्रेलिया) में अनेक लोगों ने एक लड़खड़ाता-सा लाल रंग का प्रकाश पिण्ड देखा। लिस्वन की वेधशाला ने एक बार उड़न तश्तरियों का आक्रमण नोट किया। ऐसे ही अनेक प्रामाणिक विवरण उड़न तश्तरियों की वास्तविकता पर प्रकाश डालते हैं।
अखबारों में समय-समय पर छपने वाले ये विवरण भी महत्वपूर्ण हैं—
(1) 4 अक्टूबर 1967 को हजारों लोगों ने कनाडा के समुद्री तट ‘शाका हार्वर’ पर एक विशालकाय अग्नि पिण्ड को आकाश से उतरते देखा। यह पिण्ड समुद्र में प्रविष्ट हो गया।
(2) ब्रिटेन के विक्टोरिया जलयान के नाविकों द्वारा माल्टा के पास तीन चमकदार उड़न तश्तरियां समुद्र से निकल कर अन्तरिक्ष में उड़ती, जाती देखी गईं।
(3) पादरी विर्कर लीरिया ने आकाश से प्रकाश विमान द्वारा एक देवदूत आता देखा। कैथोलिक चर्च ने इस तथ्य की पुष्टि की।
(4) पेरिस के पास एक अंधेरी रात में पौन घण्टे तक एक नीली रोशनी वाला प्रकाश-पिण्ड घुमड़ता रहा। अनेक लोगों ने इसे स्पष्ट देखा।
(5) लिस्वन के निकट फातिमा में और न्यूगिनी में 6 बार बच्चों ने देव मानवों के साथ भेंट की। इसके विवरण छपे।
(6) क्वारोवल के पास एक उड़न तश्तरी उतरी और समुद्री पोशाक जैसे वस्त्रों वाले दो व्यक्ति उसमें से निकले। हजारों लोगों ने उन्हें देखा।
(7) कोइम्क्रा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक अलमीदा गैरत के इस विवरण का 7 हजार दर्शकों ने समर्थन करते हुए साक्षी दी कि एक भयंकर अन्तरिक्षयान वहां से गुजरा।
(8) अमेरिकी जलयान अलास्का पर सवार वैज्ञानिक राबर्ट एस. क्राफर्ड ने सेतल के समीप समुद्र से 250 फुट व्यास का एक पिण्ड निकल कर अन्तरिक्ष में उड़ते देखा। इस पिण्ड पर तोपें दागने की भी सतर्क नाविकों ने तैयारी कर ली थी।
(9) अन्तरिक्ष शोधक एन्ड्रयू ब्लाजम की प्रकाशित डायरी में अनेकों प्रकाश पिण्डों के धरती पर आवागमन के विवरणों का संग्रह।
(10) रेवरेन्उ विलियम वूथ मिल, डा. के. हाउस्टन मेजर डोनाल्ड की हो, जैसे प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा उड़न तश्तरियों की आंखों देखी गतिविधियों का वर्णन।
इनके साथ ही विश्व भर में हजारों लोगों ने उड़न तश्तरियों से सम्बद्ध प्रत्यक्ष दर्शन पर आधारित विवरण दिये हैं, जो उड़न तश्तरियों के आकार-प्रकार एवं गतिविधियों पर प्रकाश डालते हैं।
‘फेट’ नामक प्रतिष्ठित पत्रिका में मार्शल ने वर्जीनिया व मैलबोरो नामक स्थान में एक ऐसे ही आकाशयान के अपने पास से गुजरने का विवरण लिखा है।
‘उड़न तश्तरियों की खोज’ नामक पुस्तक में लेखक एम.के. जेसप ने ऐसी अनेक घटनाएं साक्षियों के साथ प्रस्तुत की हैं—
(1) लेनिनगार्ड के जंगली नाले के पास ही तीन प्रकाश पिंडों का देखा जाना।
(2) चीन सागर में ब्रिटिश जलपोत कैरोलीन के कप्तान नारकाक द्वारा दो प्रकाश नौकाएं दो घण्टे तक देखा जाना।
(3) स्काटलेण्ड में इववनिस नगर में घनी अंधेरी रात में दो प्रकाश-गोलकों की धमा-चौकड़ी।
(4) चेल्सड्रीप में तीव्र वेग से दो आलोक-प्रवाहों की परिक्रमा।
(5) वेनिस नगर में रात्रि में एक घण्टे तक बादलों के बीच दो प्रकाश पुंजों की लगातार भाग दौड़।
(6) जान फिलिप बेसर द्वारा देखी गई उड़न तश्तरियों का वर्णन।
(7) ब्रिटिश जलपोत लिएन्डर के नाविकों द्वारा सात घण्टे तक समुद्री सतह पर एक प्रकाश पिण्ड का परिभ्रमण देखना।
पहले तो इन उड़न तश्तरियों के विवरण उपेक्षित ही रहे। पर जब ‘डेली मिरर’ तथा ‘न्यूयार्क टाइम्स’ जैसे प्रख्यात पत्रों ने इनके विवरण विस्तार से छापे, तो दुनिया भर में हलचल मच गई। विश्व भर में उड़न तश्तरियों के अस्तित्व के सम्बन्ध में विभिन्न पहलुओं की सत्यता की परख के लिए एक संस्था वाशिंगटन में गठित की गई—‘निकैप’ (नेशनल इन्वेस्टिगेशन कमेटी आन एरियल फिनामिना)। इसमें इस विषय से सम्बन्धित विशिष्ट जानकारी रखने वाले दुनिया के 5 हजार व्यक्ति सदस्य हैं। इस कमेटी ने विशाल सामग्री सम्बद्ध विषयों पर एकत्रित की है। ये प्रामाणिक विवरण हैं और हजारों प्रतिष्ठित व्यक्तियों की साक्षियां हैं। इनमें से मुख्य ये हैं—
(1) कप्तान विलियम ने अमरीकी पत्रकारों को जानकारी दी कि 24 फरवरी 1959 की रात्रि जब डी.जी. 6 विमान पेन्सिलवेनिया से डिट्राएट की ओर उड़ता जा रहा था, तीन उड़न तश्तरियां सहसा उसके सामने आई और देर तक विमान के चारों ओर चक्कर काटती रहीं। मानो अध्ययन कर रही हों। सहसा एक तीव्र झटके के साथ वे विलीन हो गईं उसी अनन्त आकाश में जहां से आती दिखी थीं। कई अन्य हवा बाजों ने भी यह घटना देखी।
(2) अमरीका में मेडिसन बिल केन्टुकी की पुलिस को जुलाई 1948 में एक दिन खबर मिली कि गाडमैन विमान तल के आस-पास एक विशालकाय उड़न तश्तरी उड़ रही है। कप्तान थामस मेन्टल के नेतृत्व में तीन एफ. 51 लड़ाकू विमान उड़न तश्तरी का पीछा करने भेजे गये। कप्तान रेडियो सम्पर्क द्वारा लगातार सूचना देते रहे कि उड़न तश्तरी दिख रही है। वह हमें पीछा करते जान गई हैं और तेजी से भाग रही हैं। हम उनका पीछा 360 मील की गति से कर रहे हैं। यदि 20 हजार फुट की ऊंचाई तक भी वे पकड़ में न आईं तो हम लौट पड़ेंगे।
पीछे के दो विमान तो लौट आये, पर कप्तान मेन्टल का विमान जो आगे थे, नहीं आया। दो साथी विमान चालकों ने लौटकर यही खबर दी कि कप्तान का विमान भी उड़न तश्तरियों के साथ ही गायब हो गया। इस घटना पर अमरीकी सरकार ने दो वर्ष तक कोई टिप्पणी नहीं की। फिर मौन तोड़ा और मात्र यह कहा—‘मेन्टल सन्तुलन खो बैठे और उनका विमान नष्ट हो गया।’
(3) 23 नवम्बर 1956 सुपीरियर लेक के ऊपर एक विशाल उड़न तश्तरी के उड़ने की राडार से जानकारी मिली। किनरास हवाईअड्डे से मौन्कला किल्सन एफ. 89 जेट के साथ उसका पीछा करने उड़ा। राडार पर दिखता रहा कि जेट तेजी से उड़न तश्तरी का पीछा कर रहा है और उसके पास पहुंच रहा है। फिर सहसा दृश्यांकन बन्द हो गया। न उड़न तश्तरी दिख रही थी, न जेट। खोजी दल गये, जेट का मलबा तलाशने की कोशिश की, पर कहीं भी कोई सुराग नहीं मिला। इस रहस्य पर पर्दा ही पड़ा रहने दिया गया। (4) मई 1967 में कालरैडो हवाई अड्डे के राडार ने भी एक उड़न तश्तरी की उड़ान की सूचना दी।
अमरीका सरकार द्वारा स्थापित अनुसन्धान समिति के एक सदस्य ने इन यानों की सम्भावना के समर्थन में एक पुस्तक लिखी है—‘उड़न तश्तरियां? हां’। ‘नेचर’ पत्रिका में अमरीकी रेडियो खगोलवेत्ता प्रो. कानाल्ड ब्रेस वैल का एक लेख छपा है, जिसमें यह सम्भावना व्यक्त की गई है कि उड़न तश्तरियां किसी विकसित सभ्यता वाले तारे से सूचना यान के रूप में आई हों और यहां के विवरण अपने केन्द्रों को भेज रही हों।
अन्तरिक्ष भौतिकी के वैज्ञानिक श्री वै वैलेस सलीवान ने एक पुस्तक लिखी है—‘ह्वी आर नाट एलोन’—‘हम अकेले नहीं’। इसमें ब्रह्माण्ड-व्यापी संचार साधन पर बल देते हुए एक नई ‘वेवलेंथ’ प्रस्तुत की है, जो प्रकाश गति से कई गुनी तीव्र होगी। यह ‘वेवलेंथ’ पद्धति 21 से.मी. अथवा 1420 मेगासाइकिल वेवलेंथ के रेडियो कम्पनों पर आधारित है। अणु-विकिरण की यह स्वाभाविक कम्पन गति है। उनके अनुसार अन्तरिक्ष संचार व्यवस्था में इसी गति को अपनाने से अन्य लोकों के प्राणियों से सम्पर्क साधा जा सकता है। हमारे लिए जो दूरी पार करनी कठिन या असम्भव लगती है, सम्भव है अन्य लोकवासी विकसित पद्धति के कारण वह दूरी सरलता से पार कर लेते हों, ऐसा भी सलवान का अनुमान है।
इस धरती पर उल्लेखनीय प्रगति तो विगत तीन वर्षों में ही हुई है। उसके पूर्व तो हमारे यहां भौतिक पिछड़ापन अत्यधिक था। विचार, आदर्श और समाज व्यवस्था की दृष्टि से तो अभी भी व्यापक पिछड़ापन ही है। ऐसी स्थिति में अन्य लोकों के वे निवासी जो सचमुच प्रगतिशील होंगे, हमारी दयनीय दशा के प्रति आकर्षित क्योंकर होंगे? यहां से सम्पर्क साधने का प्रयास वे क्योंकर करेंगे?
यह तो सम्भव है कि वे अनेक अन्य लोकों का अध्ययन करने के साथ ही इस पृथ्वी लोक की भी छान-बीन करते हों, किन्तु यहां के लोक-जीवन से उनके आकर्षित होने और सम्पर्क साधने की—इच्छा करने की सम्भावना अत्यल्प ही है।
उधर ‘साइन्स’ और ‘दि न्यू साइन्टिस्ट’ पत्रों के स्तम्भ लेखकों का कहना है कि ये उड़न तश्तरियां निश्चय ही अन्य ग्रहों से आने वाले सन्देश वाहक हैं। अन्य लोकों के प्राणी भी ब्रह्माण्ड में प्रगतिशीलता के सम्वर्धन की दृष्टि से सम्पर्क के लिए उत्सुक हो सकते हैं।
डा. एस. मिलर और डा. विलीले की मान्यता है कि इस विशाल ब्रह्माण्ड में एक लाख से अधिक ग्रह पिण्डों पर प्राणियों के अस्तित्व की सम्भावना है। इनमें से सैकड़ों हम पृथ्वीवासियों से अधिक विकसित हो सकते हैं।
अन्तरिक्ष विज्ञानी डा. फानवन का कथन है कि इस विशाल ब्रह्माण्ड में ऐसे प्राणियों का अस्तित्व निश्चित रूप से विद्यमान है, जो मनुष्यों से बहुत अधिक समुन्नत हैं। अन्य ग्रहों के निवासी मनुष्यों जैसी आकृति-प्रकृति के ही हों, यह भी कतई जरूरी नहीं। वे वनस्पति, कृमिकीटक, झाग, धुंआ जैसे भी हो सकते हैं और विशाल दैत्यों जैसे भी। हमारे पास जो इन्द्रियां हैं, उनसे सर्वथा भिन्न प्रकार के ज्ञान तथा कर्म साधन उनके पास हो सकते हैं।
कैलीफोर्निया के रेडियो एस्ट्रानामी इन्स्टीच्यूट के निदेशक डा. रोनाल्ड एन. ब्रेस्वेल ने विभिन्न आधारों द्वारा अन्य ग्रह तारकों में समुन्नत सभ्यताओं का अस्तित्व सिद्ध किया है और कहा है वे पृथ्वी से सम्पर्क स्थापित करने का सतत प्रयास कर रहे हैं एवं इस हेतु संचार उपग्रह भेज रहे हैं। उनके अनुसार फुटबाल जैसे इन उपग्रहों में अनेक रेडियो यन्त्र एवं कम्प्यूटर लगे रहते हैं और इनमें सचेतन जीवसत्ता भी उपस्थित रहती है। इन उपग्रहों द्वारा हमारे लिए विशेष रेडियो सन्देश भी भेजे जाते हैं। इन्हें अभी तक सुना तो गया है, पर समझ पाना सम्भव नहीं हो सका है। बहरहाल उड़न तश्तरियों के संचालकों ने पृथ्वी वासियों की छेड़छाड़ को पसन्द नहीं किया है। दस वर्षों में 137 उड़न तश्तरी-वैज्ञानिकों को प्राण गंवाने पड़े हैं। कभी किसी विज्ञान क्षेत्र के शोधकर्त्ताओं की मृत्यु दर इतनी नहीं रही।
. अन्तरिक्ष में लेसर व क्वासर यन्त्रों की स्थापना द्वारा लोकान्तरों के संकेतों का ग्रहण-विश्लेषण तथा उन तक संकेत सम्प्रेषण का कार्य सहज हो सकता है। तब अन्तरिक्ष में विकसित सभ्यताओं का पता लगने की सम्भावना बढ़ जायेगी।
ऐसी स्थिति में विश्व ब्रह्माण्ड के सुविकसित प्राणियों में पारस्परिक एकता एवं आत्मीयतापूर्ण आदान-प्रदान विकसित होने की सम्भावना है। तब क्षुद्र संकीर्णताओं की आपा-धापी का घटियापन स्पष्ट हो जायेगा और मात्र इसी शरीर को जीवन का रूप, सर्वत्र मानकर भौतिक सुखों के संचय एवं उपयोग की उन्मत्त दौड़ लज्जास्पद प्रतीत होगी। विश्व-बन्धुत्व का विकास होगा और विज्ञान अध्यात्मवाद से प्रभावित होगा। मनुष्य-मनुष्य के बीच स्नेह-सौहार्द सुदृढ़ होंगे।
अन्यत्र भी है जीवन
मनुष्य की अदम्य जिज्ञासा इस प्रयत्न में संलग्न है कि वह धरती की परिधि में ही कूप-मण्डूक की तरह सीमाबद्ध न रहकर यह जाने कि अनन्त आकाश में कहां क्या है? खगोल विद्या का विकास-विस्तार इसी आधार पर सम्भव हुआ है। चन्द्रमा तक मनुष्य पहुंच चुका। उसकी भूमि पर झण्डा पहुंच चुका। वहां क्या है और क्या नहीं? यह जान चुका। इस प्रयास से उसे भार हीनता में रहने—गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में प्रवेश प्राप्त करने एवं उससे निकलने अन्तरिक्षीय परिस्थितियां जानने जैसी अगणित ऐसी जानकारियां प्राप्त हुई हैं जो धरती पर रहते हुए उपलब्ध नहीं हो सकती हैं। इस प्रयास का अभी प्रत्यक्ष लाभ कुछ बहुत बड़ा प्रतीत न होता हो पर जो ज्ञान संचय किया गया है वह भावी मानवी प्रगति के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध होगा यह निश्चित है।
इस सुविस्तृत ब्रह्माण्ड में हम पृथ्वी निवासी ही बुद्धिमान प्राणी हों, ऐसी बात नहीं है। असंख्य ग्रह-पिण्डों में अवश्य ही ऐसे लोग होंगे जहां मनुष्य से भी अधिक बुद्धिमान प्राणी निवास करते हों। हम जिस प्रकार अन्य ग्रहों की खोज-खबर लेने के लिए अपने मानव सहित और मानव रहित यान आये दिन भेजते रहते हैं, उसी प्रकार यह भी स्वाभाविक है कि उन विकसित ग्रह तारकों के निवासी पृथ्वी की परिस्थितियों का पता लगाने के लिए अपने यान भेजते हों।
कभी-कभी ऐसे यान अपने आकाश में उड़ते और उतरते देखे भी गये हैं जिन्हें पृथ्वी निवासियों ने नहीं भेजा है। वे दृष्टि भ्रम भी नहीं थे। जांच-पड़ताल के उपरान्त उन्हें सचाई के रूप में स्वीकार किया गया है। इन यानों की उपस्थिति और उनकी हलचलों से इस विश्वास को बहुत बल मिला है कि अन्य लोकों में भी बुद्धिमान प्राणी मौजूद हैं और वे भी हमारी ही तरह ब्रह्माण्डव्यापी परिस्थितियों को जानने एवं जहां बुद्धिमान प्राणी मिलें वहां सम्पर्क स्थापित करने के लिए उत्सुक हैं। समय-समय पर देखे गये ऐसे अन्तरिक्षीय यान जिन्हें ‘उड़न तश्तरी’ कहा जाता है—इस तथ्य को साक्षी रूप में परिपुष्ट करते हैं।
जर्मनी के राकेट विशेषज्ञ हरमन ओवर्थ उन दिनों अमेरिका सरकार के अत्यन्त गोपनीय प्रक्षेपणास्त्र शोध कार्य में संलग्न थे। उन्होंने एक भरी सभा में उड़न तश्तरियों के अस्तित्व का समर्थन ही नहीं किया वरन् यहां तक कह डाला कि इस सम्बन्ध में कितनी ही महत्वपूर्ण जानकारियां सरकार के पास हैं। उन्होंने इसके सम्बन्ध में विस्तृत प्रकाश डाला और बताया कि वे ‘एप्सिलोन एरिडैनी’ और ‘ताओ सेटि’ तारकों के किसी ग्रह से आती हैं।
जिन्होंने सन् 30 में ‘प्लूटो’ ग्रह खोज निकाला था वे अन्तरिक्ष विज्ञानी क्लाइड डबल्यू टाम्वा पिछले दिनों अमेरिका में प्राकृतिक उपग्रहों की खोज में संलग्न थे। उन्होंने भी अपनी सार्वजनिक साक्षी देते हुए कहा था—मैंने ही नहीं मेरी पत्नी ने भी इन्हीं आंखों से उड़न तश्तरियां आकाश में उड़ते देखीं। इंग्लैंड के अन्तरिक्ष विज्ञानी एच. पर्सी विल्किस ने 50 फुट व्यास की उड़न तश्तरियों को अपनी आंखों देखा था विज्ञान वेत्ता सिल्योर हेस ने कहा था उन्होंने एरिजोना क्षेत्र में एक ऐसी उड़न तश्तरी देखी जो धातु की बनी और ईंधन से चलती दिखाई देती थी।
ब्राजील की वायु सेना ने तो एक ऐसा प्रतिवेदन सन् 1955 में सार्वजनिक रूप से प्रकाशित कराया था जिसमें उस देश के वैज्ञानिकों द्वारा उड़न तश्तरियों के विवरण सम्बन्धी विचार निष्कर्षों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया गया था। कनाडा की सरकार ने ओटावा के समीप अवस्थित एक अनुसन्धान शाला द्वारा सन् 1953 में उड़न तश्तरियों सम्बन्धी खोज कराई थी। उसके निर्देशक विल्वर्ट स्मिथ ने घोषित किया था उड़न तश्तरियों के अस्तित्व सम्बन्धी ठोस प्रमाण मौजूद हैं। वे किसी अन्य ग्रह से आती हैं। अर्जेण्टाइन के विज्ञानी मार्कस ग्युएकि तथा अन्य कई अफसरों ने दो उड़न तश्तरियां कारडोवा हवाई अड्डे के पास देखी थीं। यह वहां की सरकार द्वारा प्रकाशित एक विज्ञप्ति द्वारा स्पष्ट है। रूस के दो वैज्ञानिक कैजेन्त्सेव और एग्रेस्त उनका अस्तित्व सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर चुके हैं।
फ्रान्स के ‘‘रैसिस्तैन्स’’ पत्र में स्वीडन में अनेक लोगों द्वारा देखी गई उड़न तश्तरियों का विस्तृत विवरण अपने 11 जुलाई 1946 के अंक में विस्तारपूर्वक प्रकाशित किया था। स्टाक होम में ऐसी ही ज्योतियां देखी गईं उनका विवरण ‘लामोन्द’ समाचार ने ‘रहस्यमय ज्योति बम’ नाम देकर प्रकाशित किया था। ब्रिटेन के ‘डेली मेल’ ने अपना प्रतिनिधि इन समाचारों का पता लगाने भेजा उसने स्वीडन तथा डेनमार्क के फौजी अफसरों तक को इस चिन्ता से ग्रसित पाया कि कहीं उड़न तश्तरियां कोई खतरा तो उत्पन्न नहीं करने वाली हैं इन देशों के अनेक सम्भ्रान्त नागरिक आंखों देखे विवरण को साक्षी रूप से प्रस्तुत करते हुए उड़न तश्तरियों के स्वरूप की बात स्पष्ट कर रहे थे। केनेथ आरनल्ड का वह विवरण अनेक पत्रों में छपा था जो उसने अपने वायुयान के निकट नौ उड़न तश्तरियों का एक जत्था आंखों से देखने के पश्चात् प्रकाशित कराया था।
अमेरिकी सरकार द्वारा इस सम्बन्ध में जो अनुसन्धान कराया था उसका विवरण कमाण्डर मैक्लाफलिन ने एक प्रतिवेदन के रूप में छपाया है। उसमें उन्होंने उड़न तश्तरियों को किसी अन्य ग्रह के बुद्धिमान प्राणियों द्वारा भेजा गया बताया है और उनका आकार औसत 40 फुट चौड़ा 100 फुट लम्बा बताया है तथा उनकी चाल 25 हजार मील प्रति घण्टा एवं उड़ने की ऊंचाई कोई 2 लाख फुट निर्धारित की।
इस सन्दर्भ में वैज्ञानिकों का एक सम्मेलन बुलाया गया था। उसमें जनरल सैमफोर्ड ने न केवल उड़न तश्तरियों के अस्तित्व को स्वीकार किया वरन् उनकी शक्ति का उल्लेख करते हुए यह भी माना कि उनमें इतनी शक्ति है जिसको हम न तो समझ पाते हैं और न नाप सकते हैं।
सन् 1961 में जब केप केनेडी से पोलरिस नामक राकेट उड़ाया गया तो राडार ने नोट किया कि उसके ऊपर किसी ‘अज्ञात वस्तु’ ने भयंकर झपट्टा मारा और फिर वह गायब हो गई। इस आघात ने राकेट के साथ वैज्ञानिकों का सम्पर्क ही तोड़ दिया। बहुत प्रयत्न करने पर 14 मिनट बाद फिर कहीं उसे ढूंढ़ा देखा जा सका। ऐसा ही एक झपट्टा इस ‘अज्ञात वस्तु’ ने व्यूनस आयर्स के एजेजिया हवाई अड्डे के समीप उड़ते हुए ‘पैनिग्रा डी.सी. 8’ नामक जेट विमान पर मारा और उसे नियत समय पर उतरने से रोक दिया। यों सरकारी विज्ञप्ति ने इस समाचारों पर पर्दा डालने की कोशिश की पर जिन्होंने इन दृश्यों को आंखों से देखा वे उन, विज्ञप्तियों को कैसे स्वीकार करते?
ऐसे ही और भी कई प्रामाणिक विवरण उपलब्ध हैं। यथा—न्यू मैक्सिको के प्रक्षेपणास्त अधिकारी स्टोक्स द्वारा ऊलामागोदों के निकट अपनी कार के समीप से एक भीमकाय यन्त्र को उड़ते हुए देखा जाना—8 जून 1963 में कैलीफोर्निया में जेट विमानों द्वारा एक उड़न तश्तरी का पीछा किया जाना—केनेवरा (आस्ट्रेलिया में एक लड़खड़ाते लाल प्रकाश पिण्ड को नेकों द्वारा देखा जाना—लिस्बन की वेधशाला द्वारा उड़न तश्तरियों का आक्रमण नोट किया जाना, आदि-आदि।
जन साधारण द्वारा अनेकों बार खुले आकाश में विचरण करती हुईं उड़न तश्तरियां देखी गई हैं। एक दो ने नहीं वरन् असंख्यों ने उन्हें इन्हीं आंखों से देखा है। इनके समाचार समय-समय पर अखबारों में छपते रहे हैं।
उड़न तश्तरियों के अस्तित्व सम्बन्धी पक्ष-विपक्ष के प्रमाण एकत्रित करने के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था वाशिंगटन में गठित हुई, जिसका नाम है—नेशनल एन्वेस्टिगेशन कमेटी आन एरियल फिनामिना’ इसका संक्षिप्तीकारण है—‘‘किकैप’’ इससे सम्बन्धित विषय में दखल रखने वाले विशेषज्ञों को ही सदस्य बनाया गया है संसार भर में उनकी संख्या पांच हजार के लगभग है। उसने जो प्रमाण सामग्री एकत्रित की है वह एक महापुराण जितनी हैं। इनमें से जो अधिक महत्वपूर्ण था उसका प्रकाशन भी हुआ है। जो नहीं छापे जा सके वे घटना क्रम भी अपने ढंग के अनोखे हैं और उन्हें प्रस्तुत करने वाले ऐसे नहीं हैं जिन्हें सिर फिरे अथवा गपबाज कहकर झुठलाया जा सके। जो साक्षियां इन प्रकाश पुंज आकाशीय पिण्डों के सम्बन्ध में प्राप्त हुई हैं उनमें से एक चौथाई वायुसेना के ऐसे प्रतिष्ठित पदाधिकारियों की हैं। जिन्हें गपबाजी फैलाने का दोषी कदाचित् ही कोई ठहरा सके। कुछ घटनाएं तो ऐसी हैं जिनमें उन्हीं पर मुसीबत टूटी।
जुलाई 1948 की बात है अमेरिका में मेडिसन विल केन्टुकी की पुलिस को सूचना मिली कि गाडमैन हवाई अड्डे के इर्द-गिर्द एक विशालकाय उड़न तश्तरी चक्कर काट रही है। उसका पीछा करने के लिए ‘एफ. 51’ किस्म के तीन लड़ाकू विमान कप्तान थामस मेन्टल के नेतृत्व में उड़ाये गये। कप्तान ने आकाश में पहुंच कर रेडियो से सूचना दी हमें उड़न तश्तरी प्रत्यक्ष दीख रही है। उसे हमारे पीछा करने का पता चल गया है। इसलिए वह तेजी से भागने लगी है। हम भी 360 मील की चाल से उसका पीछा कर रहे हैं। 27 हजार फुट की ऊंचाई तक उसका पीछा करेंगे यदि पकड़ में न आई तो इसके बाद लौट पड़ेंगे। बाद में कप्तान के दो साथियों ने बताया कि मेन्टल का जहाज भी उड़न तश्तरी के साथ गायब हो गया। सरकार ने दो वर्ष तक इस विषय पर चुप्पी साधे रहने के पश्चात् इतना ही कहा—‘मेन्टल अपना सन्तुलन खो बैठा और उसका जहाज नष्ट हो गया।’
इसी से मिलती-जुलती 23 नवम्बर 1953 की वह घटना है। लेक सुपीरियर आकाश में राडार यन्त्र ने एक विशालकाय उड़न तश्तरी के चक्कर काटने की खबर दी। उसका पीछा करने किनरास हवाई अड्डे से एक एफ. 89 जेट उड़ाया गया। संचालक था—मौन्कला विल्सन। राडार पर अंकित होता रहा कि जेट तेजी से उड़ता हुआ तश्तरी के निकट जा पहुंचा है। इसके बाद दृश्यांकन यकायक बन्द हो गया। दोनों ही गायब हो गये। जेट का मलबा उस पूरे क्षेत्र में तलाश किया गया पर कहीं कोई सुराग न मिला। उस रहस्य पर पर्दा डाल देने के अतिरिक्त और कोई रास्ता न था।
कप्तान विलियम ने अमेरिकी पत्रकारों के सामने बताया 24 फरवरी 1959 की रात को उन्होंने बताया डी.सी. 5 यान जब पेन्सिल वेनिया से डिट्राएट की ओर उड़ता जा रहा था उसके सामने तीन उड़न तश्तरियां एकाकी और देर तक चक्कर काटती रहीं मानो वे जहाज को गम्भीर झटका देकर उसी अंधेरे आकाश में खो गईं जिसमें से कि प्रकट हुई थीं। इस घटना को उस क्षेत्र में उड़ते हुए अन्य हवाबाजों ने भी देखा था।
6 नवम्बर 1957 को ओटावा के आकाश में वासकाटांग झील के ऊपर रात्रि के 9 बजे एक उड़न तश्तरी देखी गई। उसने उस क्षेत्र का रेडियो संचार नष्ट करके रख दिया। शार्ट वेव और मीडियम वेव दोनों ही बेकार हो गये। केवल कीट-कीट की आवाज रिसीवरों पर सुनी जाती रही। जो सम्भवतः उस उड़न तश्तरी की हरकतों की हो रही होगी। शायद वह अपने लोक को कोई सन्देश भेज रही हों।
अन्तरिक्षीय यानों के धरती पर आवागमन की इन साक्षियों से हम इस निष्कर्ष पर सहज ही पहुंच सकते हैं कि इस ब्रह्माण्ड में हम मनुष्यों की अपेक्षा कहीं विकसित सम्पदाएं मौजूद हैं। हमारे उड्डयन ज्ञान एवं साधनों की अपेक्षा वे कहीं आगे हैं। यदि ब्रह्माण्ड-व्यापी चेतन सत्ता पारस्परिक सहयोग के आधार पर आदान-प्रदान का द्वार खोल सके तो दूरवर्ती ग्रह तारकों के भी निकटवर्ती पड़ोसी बनकर रहने की सुखद परिस्थितियां प्राप्त हो सकती हैं। विज्ञान ने इस पृथ्वी पर रहने वाले सुदूरवर्ती लोगों को यातायात साधनों के आधार पर एक गली, मुहल्ले में रहने वालों की तरह बना दिया अब अन्तर्ग्रही सहयोग एवं आदान-प्रदान का द्वार खुलने की बारी है।
एक ओर अन्तर्ग्रही सहयोग के प्रयास और दूसरी ओर मनुष्य का अधिकाधिक संकीर्णतावादी स्वार्थपरायण बनते जाना—कैसी है यह विधि की विचित्र विडम्बना।
उड़न तश्तरियों के कतिपय प्रश्न
क्या इस निखिल ब्रह्माण्ड में एक मात्र पृथ्वी ही मनुष्य जैसे बुद्धिमान प्राणियों की क्रीड़ा स्थली है अथवा किसी अन्य ग्रह नक्षत्र में ऐसे ही जीवधारियों का अस्तित्व है? यदि है तो क्या उनका परस्पर मिलन एवं सहयोग सम्भव है? इस प्रश्न पर जितना अधिक विचार किया गया है उतना ही इस निष्कर्ष पर अधिक विश्वास पूर्वक पहुंचा गया है कि इस असीम ब्रह्माण्ड में पृथ्वी जैसे अनेक लोग विद्यमान हैं उनमें मनुष्य जैसे ही नहीं वरन् उससे भी कहीं अधिक विकसित स्तर के जीवधारी मौजूद हैं। जिस प्रकार पृथ्वी निवासी चन्द्रमा पर पहुंच चुके और सौर मण्डल के अन्यान्य ग्रहों की खोज में तत्पर हैं उसी प्रकार उन बुद्धिमान प्राणियों का भी यह प्रयास है कि वे विकसित जीवधारियों की दुनिया से सम्पर्क स्थापित करें और परस्पर आदान-प्रदान के अनेक उपाय एवं मार्ग ढूंढ़ निकालें।
पृथ्वी पर कई प्रकार के ऐसे संकेत, समय-समय पर मिलते रहते हैं जिनसे प्रतीत होता है कि अन्य लोकों के बुद्धिमान प्राणियों को पृथ्वी की सुविकसित स्थिति का भी ज्ञान है और वे मनुष्य जाति के साथ अपने सम्बन्ध स्थापित करने के लिये लालायित एवं प्रयत्नशील हैं। प्रकाश पुंजों के अवतरण के रूप में यह अनुभव पृथ्वी निवासियों को होते भी रहते हैं। पाश्चात्य जगत में इन्हें उड़न तश्तरियां नाम दिया जाता है।
कैलीफोर्निया के कार्निग शहर में बैठे हुए लोगों ने आकाश में एक चमकदार अनोखी चीज देखी जो काफी नीचे उड़ रही थी और उसमें से चमकदार प्रकाश किरणें निकल रही थीं, वह एक विशाल धातु निर्मित सिगार जैसी थी जो 300 से 500 फीट की ऊंचाई पर उड़ रही थी। इसके सिर में से चमकदार प्रकाश किरणें निकल रही थीं और पैंदे में से हलकी नीली रोशनी फूट रही थी। फिर उसकी चाल बढ़ी और तेजी से आकाश में विलीन हो गई। इन दर्शकों में से कितनों ने ही कहा—उड़न तश्तरियों की बात वे गप्प समझते थे पर आज उनने आंखों से देखकर यह विश्वास कर लिया कि वह वस्तुतः एक सचाई है।’
रूसी वैज्ञानिकों ने कुछ समय पूर्व यह घोषणा की थी कि उनने ब्रह्माण्ड के किन्हीं अन्य तारकों द्वारा भेजे गये संकेत सुने हैं यह एक क्रमबद्ध टिमटिमाहट के साथ जुड़े हुए ज्योति संकेतों के रूप में हैं। वे कहते हैं कि ऐसा कर सकना किसी प्रबुद्ध स्तर के प्राणधारियों के लिये सम्भव हो सकता है।
आरम्भ में उनकी बात को ज्यादा महत्व नहीं मिला पर अब उसे एक तथ्य माना गया है। एक ‘क्वासर’ तारा—जिसे खगोल विद्या की भाषा में सी.टी.ए.—102 कहा जाता है निस्सन्देह पृथ्वी पर ऐसी टिमटिमाहट और रेडियो धाराएं भेज रहा है जिसे कर सकना किन्हीं विचारवान् प्राणियों के लिये ही सम्भव है।
ब्रिटेन के विज्ञानी लार्डस्नो ने वैज्ञानिक सम्मेलन में आशा प्रकट की थी कि अन्तरिक्ष से किसी प्रबुद्ध जाति के सन्देश प्राप्त करने का सुअवसर मनुष्य में ही मिलेगा। यह आशा अकारण ही नहीं थी। अन्तरिक्ष सम्पर्क के लिये बढ़ते हुए मनुष्य के चरण क्रमशः इस आशा बिन्दु की समीपता का ही आभास देते हैं।
अमेरिका के रेडियो खगोल शास्त्री प्रो. कोनाल्ड ब्रस वैल ने ‘नेचर’ पत्रिका में एक लेख छपाकर सम्भावना व्यक्त की है कि हो सकता है उड़न तश्तरियां किसी विकसित सभ्यता वाले तारे से सूचना यान के रूप में आई और रह रही हों। सम्भव है वे यहां की स्थिति की जानकारी अपने उद्गम स्थान को रेडियो सन्देशों एवं टेलीविजन चित्रों के रूप में भेज रही हों।
अन्तरिक्ष भौतिकी के शोधकर्त्ता श्री वै वैलेस सलीवान ने अपनी पुस्तक—वी आर नॉट अलोन हम अकेले नहीं हैं—पुस्तक में ब्रह्माण्डव्यापी संचार साधन के लिये एक नई पद्धति ‘वेव लेंग्थ’ की प्रस्तुत की है जिसके अनुसार प्रकाश की चाल इतनी ही पीछे रह जाती है जितनी हवाई जहाज की तुलना में पतंग की। तरीका ठीक 21 सेन्टी मीटर अथवा 1420 मेगा साइकिल वेव लेंग्थ के रेडियो कम्पनी पर आधारित है। अणु विकरण की यह स्वाभाविक कम्पन गति है। अन्तरिक्ष संचार व्यवस्था में इसी गति को अपनाने से ही अन्य लोकों के प्राणियों के साथ सम्पर्क साधा जा सकता है। यह पद्धति अन्य लोकवासी विकसित कर चुके हैं और जितनी दूरी पार करना हमें कठिन या असम्भव लगता है उनके लिए वह सरल हो गई हो।
एक फ्रान्सीसी खगोल विद्या विशारद ने खोजकर बताया कि यह उड़न तश्तरियां इन्हीं दिनों आने लगी हों ऐसी बात नहीं है, इनका आवागमन बहुत समय से चल रहा है। रोग में ईसा से 212 वर्ष पूर्व उड़न तश्तरी देखी गई थीं। शेक्सपियर के ग्रन्थों में ही नहीं बाइबिल में भी उनका उल्लेख है। अमेरिका में उड़न तश्तरी अनुसन्धान कार्य 1947 से ही चल रहा है जबकि प्रथम बार वायुयान चालक ‘केनिथ आर्नोल्ड’ ने माउण्ट रेनियर के निकट अपने विमान से उड़न तश्तरी देखी थी।
हिन्दी के प्रख्यात लेखक श्री इलाचन्द जोशी ने 23 जून 1963 के ‘धर्म युग’ में अपनी निज की एक अनुभूति छपाई थी। वे नैनीताल जिले के ताकुला गांव के एक बंगले में ठहरे थे। रात्रि को उन्हें पास ही कहीं जाना था कि उस घोर अन्धकार में उनने देखा कि—‘सहसा दक्षिण पश्चिम की ओर का पहाड़ी क्षतिज तीव्र प्रकाश से उद्भाषित हो उठा। क्षण भर के लिये अभ्यास वश मैंने समझा कि बिजली क्रोध उठी है पर जब प्रकाश पूरे साठ सैकिण्ड तक स्थिर रहा और बिजली तरह एक ही सैकिण्ड के बाद विलीन नहीं हुआ तब मैं चौंका और उसके बाद ही मैंने आश्चर्य से देखा कि जलते हुए बड़े बल्ले की तरह की कोई चीज बिना तनिक भी शब्द किये क्षतिज को लांघती हुई सीधे मेरे शिर के ऊपर से आकाश की ओर बड़ी तेजी से उड़ी जा रही है। उसकी पूंछ से तीव्रतम शुभ्र और श्वेत प्रकाश एक सर्च लाइट की तरह पीछे की ओर बिखर रहा था—और उसका धड़ पूरे का पूरा एक बहुत बड़ी चिता की सी पीली लपटों सा दहक रहा था। कुछ क्षणों के लिए मुझे लगा कि कोई भटका हुआ विमान जल गया है और क्षण भर में कहीं गिरना ही चाहता है। पर वह बड़ी तेज रफ्तार से बिना तनिक भी शब्द किये मेरे शिर के ऊपर से होता हुआ सीधा आगे की ओर निकलकर कुछ ही क्षणों बाद आंखों से ओझल हो गया। तब मैं हक्का-बक्का रह गया।’’
इस सम्बन्ध में वैज्ञानिकों की अटकलें तरह तरह की हैं—‘साइन्स’ और ‘दी न्यू साइंटिस्ट’ पत्रों के स्तम्भ लेखकों ने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि यह उड़न तश्तरियां अन्य ग्रहों से आने वाले सन्देश वाहक हैं। वे पृथ्वी की खोज खबर लेने आते हैं। अन्य देशों में मनुष्य से भी विकसित किस्म के प्राणी हो सकते हैं और वे भी इस बात के इच्छुक हो सकते हैं कि प्रगतिशील प्राणियों के साथ सम्पर्क बढ़ाकर ब्रह्माण्ड में जहां सम्भव हो प्रगतिशीलता का अधिक संवर्धन किया जाय।
रूसी खगोल वेत्ता आई.एस. श्कलोव्स्सकी ने अपने ग्रन्थ ‘इन्टेलिजेन्ट लाइफ इन द युनिवर्स’ में विस्तारपूर्वक प्रतिपादित किया है कि—‘पृथ्वी पर से सबसे पहली ऐसी शब्द ध्वनि अब से बीस वर्ष पूर्व अन्तरिक्ष में फेंकी गई थी जो अन्य ग्रहों के प्रगतिशील प्राणियों द्वारा सुनी या समझी जा सके। यदि वह ध्वनि बिना कोई व्यवधान पड़े बढ़ती चली जा रही होगी तो सौर मण्डल से बाहर के सबसे निकटवर्ती तारे तक पहुंचने में अभी सफल नहीं हुई होगी। शब्द की गति 11 हजार मील प्रति घण्टा है। पृथ्वी से निकटतम तारा ‘प्राक्सियां सेन्टरी’ हैं। इसकी दूरी 4.3 प्रकाश वर्ष है। प्रकाश वर्ष का अर्थ है छह की संख्या के आगे 18 शून्य रख देने पर जो संख्या बती है—अर्थात् छह पद्म मील—इतनी दूर तक बीस वर्ष पूर्व फेंकी गई आवाज को पहुंचने में अभी मुद्दतों लगेंगे। वह आवाज सुनी जा सकी तो वे लोग पृथ्वी की उपयोगिता समझेंगे और यहां तक पहुंचने का रास्ता निकालेंगे। उनकी यात्रा को भी बहुत समय लगेगा तब कहीं उनका पृथ्वी से सम्बन्ध हो सकता है। इस धरती के निवासियों को कुछ कहने लायक वैज्ञानिक प्रगति में अभी मुश्किल से तीन वर्ष हुए हैं। इससे पहले तो भौतिक समृद्धि की दृष्टि से भी पृथ्वी के लिए बहुत पिछड़े हुए थे और विचार आदर्श एवं व्यवस्था की दृष्टि से तो हजार के पीछे 999 व्यक्ति अभी भी कूहड़ जिन्दगी ही जी रहे हैं ऐसी दशा में अन्य ग्रह निवासियों को यदि वे सचमुच प्रगतिशील होंगे तो उन्हें कुछ भी आकर्षण न होगा हम लोग गये-गुजरे ही दीखेंगे। ऐसी दशा में वे क्यों इतना श्रम करेंगे। फिर यह कहना भी कठिन है कि सबसे निकटवर्ती तारे पर ही सभ्यता का विकास हो गया हो। यदि विकसित तारे और भी आगे हुए तो उनका आवागमन और भी अधिक समय साध्य होगा। ऐसी दशा में यदि यह भी मान लिया जाय कि किन्हीं तारों पर प्रगतिशीलता है तो उसके साथ सम्पर्क बनना इतना सरल नहीं है। सौर मण्डल के ग्रहों और उपग्रहों की इतनी खोज तो पहले हो चुकी है कि उनमें से किसी पर भी विकसित प्राणधारी के होने की सम्भावना नहीं है। जीवन का आरम्भिक चिन्ह भले ही उनमें से किसी पर मिल जाय। अस्तु उड़न तश्तरियों की संगति अन्य लोक वासी प्राणियों के साथ नहीं मिलाई जानी चाहिए।
इन घटनाओं से समय समय पर पृथ्वी के विभिन्न क्षेत्रों में देखी जाने वाली उड़न तश्तरियों से यह तो सिद्ध हो ही जाता है कि पृथ्वी पर ही उन्नत सभ्यता नहीं है। वरन् अन्य ग्रहों में और भी उन्नत सभ्यतायें हैं। जीवन के इस विस्तार में जिसके कभी कहीं से कोई संकेत मिलते रहते हैं, मनुष्य का महत्व पहाड़ की तुलना में राई के बराबर है।