Monday 09, December 2024
शुक्ल पक्ष अष्टमी, मार्गशीर्ष 2024
पंचांग 09/12/2024 • December 09, 2024
मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष अष्टमी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), मार्गशीर्ष | अष्टमी तिथि 08:03 AM तक उपरांत नवमी तिथि 06:02 AM तक उपरांत दशमी | नक्षत्र पूर्वभाद्रपदा 02:56 PM तक उपरांत उत्तरभाद्रपदा | सिद्धि योग 01:05 AM तक, उसके बाद व्यातीपात योग | करण बव 08:03 AM तक, बाद बालव 07:05 PM तक, बाद कौलव 06:02 AM तक, बाद तैतिल |
दिसम्बर 09 सोमवार को राहु 08:22 AM से 09:38 AM तक है | 09:14 AM तक चन्द्रमा कुंभ उपरांत मीन राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:06 AM सूर्यास्त 5:13 PM चन्द्रोदय 12:56 PM चन्द्रास्त 1:17 AM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - मार्गशीर्ष
- अमांत - मार्गशीर्ष
तिथि
- शुक्ल पक्ष अष्टमी - Dec 08 09:44 AM – Dec 09 08:03 AM
- शुक्ल पक्ष नवमी [ क्षय तिथि ] - Dec 09 08:03 AM – Dec 10 06:02 AM
- शुक्ल पक्ष दशमी - Dec 10 06:02 AM – Dec 11 03:43 AM
नक्षत्र
- पूर्वभाद्रपदा - Dec 08 04:03 PM – Dec 09 02:56 PM
- उत्तरभाद्रपदा - Dec 09 02:56 PM – Dec 10 01:30 PM
हमारा अद्भुत विलक्षण अन्नमय कोश | Hamara Adbhut Vilkshan Annamaykosh
Sarv Samarth Gayatri Mata
युग परिवर्तन के महन क्षण में हमारा उत्तरदायित्व | Yug Parivartan Ke Mahan Kshan
*मनुष्य की बुद्धिमानी इसी में है कि वह इस सत्य को स्वीकार करे और इस बात के लिये सदैव तैयार रहना चाहिये कि परिवर्तन के नियम के अन्तर्गत उससे कोई भी चीज किसी भी समय ली जा सकती है। इस सत्य में विश्वास रखने वाले को व्यामोह का कोई दोष नहीं लगने पाता और वह सम्पत्ति तथा विपत्ति में सदा समभाव रहता है।*
इसी व्यामोह के जाल से बचने के लिए ही गीता में भगवान् ने अनासक्तिपूर्वक जीवन−चक्र चलाने का निर्देश किया है। *उत्साहपूर्वक अपना कर्तव्य करते हुए इस बात के लिए सदा तैयार रहना चाहिये कि इस परिवर्तनशील जगत् में कुछ भी अपना नहीं है।* सम्पन्नता अथवा विपन्नता जो भी प्राप्त हो रही है, किसी समय भी बदल सकती है। यह अनासक्त भाव मानव−जीवन में सुख−शाँति का बड़ा महत्वपूर्ण विधायक है। मानव−जीवन आनन्द रूप है। *दुःखों सन्तापों तथा आवेगों से इसे अशान्त करना अन्याय है।* ऊर्ध्व स्थिति से अधोस्थिति में आकर अथवा विपन्नता से सम्पन्नता में पहुँचकर किन्हीं अतिरिक्त अथवा अन्यथा भाव से आन्दोलित नहीं होना चाहिये। *सम्पन्नता की स्थिति में अभिभूत रहना और विपन्नता में दुखी होना, दोनों भाव ही जीवन में अशाँति का कारण हैं।
विगत वैभव के प्रति व्यामोह के कारण वर्तमान जीवन तो अशान्त रहता है, साथ ही मलीन चिन्तन के कारण भविष्य भी प्रभावित होता है। अनासक्त भाव से, परिवर्तन में विश्वास रखते हुए उत्साहपूर्वक अपना कर्तव्य करते हुए जो स्थिति प्राप्त हो, उसे मित्र की भाँति स्वीकार करने से जीवन में अशाँति और असुख की सम्भावना नहीं रहती।
... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति, जनवरी 1970
समय का औषधि रूप, Samay Ka Aushadhi Roop*
गंगा में डूबने से बचाया एक बालक ने | Ganga Mein Dubane Se Bachaya
Aap Miljul Kar Kam Karne Ki Aadat Banaeiye
Jap Prakriya Ka Vaigyanik Aadhar
ज्योति कलश रथयात्रा सम्मेलन (उ. प्र.) - Resp. Dr. Chinmay Pandya Pravachan |
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 09 December 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
रामदास के शिष्य सिक्खों के गुरु रामदास जी के शिष्य अर्जुन देव जी अर्जुन देव जी थाली बर्तन साफ करते थे उन्होंने अपने को आप को अनुशासन में डालने का प्रयत्न किया था और जब उनके गुरु यह तलाश करने लगे कि हमको कौन सा शिष्य को अपना उत्तराधिकारी बनाया जाए सारे विद्वानों की अपेक्षा सारे नेताओं और दूसरे गुणवानो की अपेक्षा उन्होंने अर्जुन देव को चुना उन्होंने यह कहा उनके गुरु रामदास जी ने की अर्जुन देव ने अपने आप को बनाया है और बाकी आदमी इस कोशिश में लगे रहे हम हम दूसरों से क्या कराये और स्वयं क्या करें जबकि होना यह चाहिए था अपने आपको बनाना चाहिए था अर्जुन देव ने न कुछ किया था ना कराया था केवल अपने आपको बना लिया था इसलिए उसके गुरु ने यह माना यह सबसे अच्छा है सप्त ऋषियों ने अपने आपको बनाया उनके अंदर तप की संपदा थी ज्ञान की संपदा थी फिर बस जो कोई भी जहाॅं कहीं भी रहते चले जो कुछ भी काम उन्होंने कर लिया वही महानतम श्रेणी का उच्च स्तरीय काम कहलाया |
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
उलझी केश राशि समेटी और उन्हें वेणी से गूँथते हुये परिचारिका बोली- भन्ते तुमने सुना नहीं गौतमी ने प्रव्रज्या ली है, उन्होंने अर्हव्स भी प्राप्त कर लिया और अब उन्होंने भिक्षुणी संघ स्थापित किया है। उनका विचार है कि पुरुषों के समान ही महिलायें भी साधनायें करें और स्वर्ग तथा मुक्ति का अधिकार प्राप्त करें। पूर्णा, धीरा उपशया, मुक्ता, तिष्या तथा भद्रा आदि ने तो प्रव्रज्यायें ग्रहण भी कर ली अब वे योग-साधनायें कर रही हैं।”
*फिर एक क्षण मौन रहकर परिचारिका ने पुनः कहना प्रारम्भ किया-भन्ते ! आपके भ्रातर कौशल राज प्रेसन जित् स्वयं भी गौतमी की योग-साधना से बहुत प्रभावित हैं वे कई बार वेलुवन में उनके दर्शन कर चुके हैं। मैंने उन्हें देव माता से कई बार गम्भीर एकान्त-वार्ता करते देखा है और यह भी सुना है कि गौतमी चाहती है कि राज घरानों की कन्यायें आगे आयें और धर्म को जीवन की मूल आवश्यकता प्रदर्शित करने का नेतृत्व करें। कहीं उनका संकेत आपकी ओर तो नहीं है।
वेणी बँध चुकी थी। सुमना ने खड़े होते हुये कहा-विद्या! आत्मोद्धार मनुष्य जीवन का प्रधान लक्ष्य और मूल आवश्यकता है फिर इन दिनों जब कि धर्म-तन्त्र विकृत हो चुका है, सामाजिक मर्यादायें टूट रही हैं, लोगों के जीवनों में कल्मष काषाय बढ़ते जा रहें हैं महिलायें भी इस महान् अभियान में हाथ बंटाती है तो यह अच्छी बात होगी किन्तु मैं यह नहीं चाहती कि कोई साँसारिक कर्त्तव्यों की उपेक्षा करके मुक्ति की प्राप्ति हो। ऐसी मुक्ति मेरी दृष्टि में बंधन से बढ़कर है। बौद्ध धर्म और भगवान् बुद्ध के प्रति मेरे अन्तःकरण में अपार आदर है। आवेश में ग्रहण की गर्ठ प्रव्रज्यायें किसी दिन भोग वृत्ति का दूषण न फैलाने लगें ऐसी मुझे पूरी आशंका है, इसलिये मैं चाहती हूँ कि साधना तो सभी करें पर ब्रह्मचर्य गृहस्थाश्रम और वानप्रस्थ के चरण पूरे करते हुए ही मुक्ति की ओर बढ़ा जाये। जो शक्ति प्रारम्भिक अवस्था की साधनाओं में मनोनिग्रह में खर्च होती है वह परिपक्व अवस्था में नहीं, उस समय इन्द्रियाँ भी अशक्त हो उठती है इसलिये मुक्ति के लिये वही उपयुक्त समय होता है।
सुमना यह कह ही रही थी कि वहाँ आ पहुँचे प्रसेनजित। उन्होंने कहा-तू ठीक कहती है सुमना! मैंने तेरी बातें सुनली हैं और उनकी यथार्थता भी समझ ली मेरी ओर से निश्चिन्त रह मैं तुझे अभी प्रव्रज्या के लिये प्रेरित नहीं करूंगा।
*सुमनो अपने माता-पिता की सेवा में लग गई। कौटुम्बिक उत्तरदायित्वों को ही साधना मानकर उसने अपने कर्तव्यों का पालन किया वृद्धावस्था आने पर उसने प्रव्रज्या ग्रहण की और दीर्घकालीन तप के बाद भी जो लाभ अन्य भिक्षु-भिक्षुणियाँ नहीं ले पाई थी वह उन्होंने थोड़े ही समय में प्राप्त कर लिया।
अखण्ड ज्योति, अगस्त 1971
Newer Post | Home | Older Post |