Tuesday 12, November 2024
शुक्ल पक्ष एकादशी, कार्तिक 2024
पंचांग 12/11/2024 • November 12, 2024
कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), कार्तिक | एकादशी तिथि 04:05 PM तक उपरांत द्वादशी | नक्षत्र पूर्वभाद्रपदा 07:52 AM तक उपरांत उत्तरभाद्रपदा 05:40 AM तक उपरांत रेवती | हर्षण योग 07:09 PM तक, उसके बाद वज्र योग | करण विष्टि 04:05 PM तक, बाद बव 02:35 AM तक, बाद बालव |
नवम्बर 12 मंगलवार को राहु 02:39 PM से 03:59 PM तक है | चन्द्रमा मीन राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:44 AM सूर्यास्त 5:18 PM चन्द्रोदय 2:56 PM चन्द्रास्त 3:30 AM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - कार्तिक
- अमांत - कार्तिक
तिथि
- शुक्ल पक्ष एकादशी - Nov 11 06:46 PM – Nov 12 04:05 PM
- शुक्ल पक्ष द्वादशी - Nov 12 04:05 PM – Nov 13 01:01 PM
नक्षत्र
- पूर्वभाद्रपदा - Nov 11 09:40 AM – Nov 12 07:52 AM
- उत्तरभाद्रपदा - Nov 12 07:52 AM – Nov 13 05:40 AM
- रेवती - Nov 13 05:40 AM – Nov 14 03:11 AM
परमात्मा पर्याप्त है |
पाप और पतन को प्रश्रय न दे
प्रतिस्पर्द्धा की भावना से हानि |
Book: 05, EP: 08, आपत्तियों से चिंतित न हों |
आत्मा को देखें, खोजें और समझें |
हर दिन नया जन्म हर दिन नई मौत |
साहित्य के मूल्य को समझिये |
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 12 November 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
आरती में सबको मालूम है कि शंख घड़ियाल और मंजीरे और थाप वगैरह बजाये जाते है ये संगीत का समावेश हुआ ये सब कोई जानता है कि जब मंदिरों में आरती होती है तब कोई ना कोई भजन गाए जाते हैं कोई ना कोई कीर्तन गाए जाते हैं आरती गाई जाती है इसका अर्थ ये हुआ कि उस वाद्य ग्रंथों के साथ-साथ में और कोई शिक्षा और प्रेरणा उत्साह भगवान की भक्ति का उल्लास की मिशाल दी जाए मंदिरों में जो कार्य प्रातःकाल की आरती के समय होता है उस कार्य को हमको और भी सुविधाजनक बनाना चाहिए और उस स्वभाव को केवल मंदिरों की चारदीवारी में अथवा उसके समीपवर्ती लोगों तक सीमित ना रहने के लिए बाहर भी फैलाना चाहिए वही कीर्तन और वही घड़ियाल और वही शंख यदि हमने यदि हम मशीनों के माध्यम से घर घर पहुंचा सकते है तो और सुविधाजनक होगा |
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
अवसर की तलाश में मत रहो। बुद्धिमानों के लिए हर समय अवसर है। न वे मुहूर्त निकालते हैं, न साथ ढूँढ़ते हैं और न सहारा तकते हैं। सृष्टा ने समय को ऐसी धातु से गढ़ा है कि उसका प्रत्येक क्षण शुभ है। अशुभ तो मनुष्य का संशय है, जो पल में आशा बाँधता और पल में निराश होता है।
बुराई के अवसर दिन में सौ बार आते हैं। पतन और प्रलोभनों की सर्वत्र भरमार है। धरती पर गुरुत्वाकर्षण हर किसी को- हर घड़ी गिरने के लिए बुलाता और घसीटता है। अच्छाई का अवसर तो मनुष्य को स्वयं विनिर्मित करना पड़ता है। वह बिना बुलाये किसी के पास नहीं आता है। आदर्शों के प्रति निष्ठा और अपने भरोसे पर हिम्मत जिस घड़ी उठ पड़े, समझना चाहिए कि ऊँचे उठने आगे बढ़ने की शुभ घड़ी आ पहुँची।
राह मिले तो ठीक, नहीं तो उसे बुलाना चाहिए। अवसर आये तो ठीक, नहीं तो उसे आग्रहपूर्वक बुलाना चाहिए। जो अवसर का उपयोग जानते हैं वे उसे पैदा भी कर सकते हैं। आज का दिन हर भले काम के लिए उपयुक्त है। जो शुभ है उसे शीघ्र ही किया जाना चाहिए। देर तो उनमें करनी चाहिए जो अशुभ है। जिसे करते हुए अन्तःकरण में भय संकोच का संसार होता है।
मनस्वी लोगों ने कभी अवसर की शिकायत नहीं की, हमें अवसर मिलता तो यह कर दिखाने की डींग हाँकने वाले थोथे चने की तरह हैं जो सिर्फ बज सकते हैं, उग नहीं सकते। अवसर आगे बढ़कर हाथ में लिया जाता है और अपनी प्राणाणिकता के आधार पर उसे सार्थक कर दिखाया जाता है। काम चाहे छोटा ही क्यों न हो, यदि सही तरीके से कर दिखाया जायगा तो उससे अच्छा परिणाण अनायास ही दौड़ता आयेगा और कहेगा कि हमें भी कर दिखाया जाय। यही उन्नति की सीढ़ी है। एक-एक कदम आगे बढ़ने और ऊँचे उठने का तरीका यही रहा है कि एक काम सही तरीके से किया नहीं गया कि उससे अच्छा, तत्काल आगे आ उपस्थित हुआ।
आशावादी हर कठिनाई में से उपयोगी अवसर ढूँढ़ निकालता है जबकि निराशावादी हर उपस्थिति अवसर में कोई न कोई कठिनाई देखता है और उसे करने से जी चुराने का कोई बहाना खोजता है। हर दिन, हर सप्ताह, हर मास, हर वर्ष हमारे लिए उज्ज्वल भविष्य के उपहार लिए हुए आता है, हम हैं जो न तो उसे पहचानते हैं और न उसका स्वागत करते हैं फलतः वह वापस चला जाता है और फिर कभी वापस लौटकर नहीं आता।
शेक्सपियर कहते हैं- ‘समय को मैंने बर्बाद किया और वही बर्बादी मेरी परेशानी और बर्बादी का कारण बनी हुई है।’ फ्रेकलिन कहते थे “एक ‘आज’ दो ‘कल’ के बराबर है। इसलिए कल की प्रतीक्षा में न बैठो, जो करना है उसके लिए आज ही कमर कसनी और तैयारी करनी चाहिए। जिसने समय का मूल्य नहीं समझा समझना चाहिए कि वह छोटे काम करने और छोटे स्तर का बने रहने के लिए ही पैदा हुआ है।”
भूतकाल की चर्चा न करें। जो गया वह लौटने वाला नहीं। सोचा इतना ही जाना चाहिए कि जो शेष है वह कम महत्वपूर्ण नहीं। यदि भूत की शिकायत करने की अपेक्षा भविष्य की योजना बनाने में विचारों को केन्द्रित किया जाय और परिवर्तन का क्रम आज के दिन से ही आरम्भ किया जाय तो समझना चाहिए कि महत्वपूर्ण समझदारी का आरम्भ हुआ। ऐसी समझदारी जिसे कुछ समय कार्यान्वित कर लेने पर भी एक समूची जिन्दगी का लाभ मिल सकता है।
अखण्ड ज्योति, जून 1983
शरीर और आत्मा का गठबन्धन कुछ ऐसा ही है, जिसमें जरा अधिक ध्यान देखने पर वास्तविकता झलक जाती है। शरीर भौतिक स्थूल पदार्थों से बना हुआ है, किन्तु आत्मा सूक्ष्म है। पानी में तेल डालने पर वह ऊपर को ही आने का प्रयत्न करेगा क्योंकि तेल के परमाणु पानी की अपेक्षा अधिक सूक्ष्म हैं। अग्नि की लपटें ऊपर को ही उठेंगी। पृथ्वी की आकर्षक शक्ति और वायु का दबाव उसे रोक नहीं सकता है। आत्मा शरीर की अपेक्षा सूक्ष्म है, इसलिए वह इसमें बंधी हुई होते हुए भी इसमें पूरी तरह घुल मिल जाने की अपेक्षा ऊपर उठने की कोशिश करती रहती है। लोग कहते हैं कि इन्द्रियों के भोग हमें अपनी ओर खींचे रहते हैं, पर यह बात सत्य नहीं है।
सत्य के दर्शन कर सकने के योग्य सुविधा और शिक्षा प्राप्त न होने पर मन मानकर अपनी आन्तरिक प्यास को बुझाने के लिए मनुष्य विषय भोगों की कीचड़ पीता है। हम जानते हैं कि इन पंक्तियों को पढ़ते समय तुम्हारा चित्त वैसी ही उत्सुकता और प्रसन्नता का अनुभव कर रहा है, जैसी बहुत दिनों से बिछुड़ा हुआ परदेशी अपने घर कुटुम्ब के समाचार सुनने के लिए आतुर होता है। यह एक मजबूत प्रमाण है, जिससे सिद्ध होता है कि मनुष्य की आन्तरिक इच्छा आत्म-स्वरूप देखने की बनी रहती है। शरीर में रहता हुआ भी वह उसमें घुलमिल नहीं सकता, वरन् उचक-उचक कर अपनी खोई हुई किसी चीज को तलाश करता है। बस, वह स्थान जहाँ भटकता है, यही है।
उसे यह याद नहीं आता कि मैं क्या चीज ढूँढ रहा हूँ? मेरा कुछ खो गया है, इसका अनुभव करता है। खोई हुई वस्तु के अभाव में दु:ख पाता है, किन्तु माया-जाल के पर्दे से छिपी हुई चीज को नहीं जान पाता। चित्त बड़ा चंचल है, घड़ी भर भी एक जगह नहीं ठहरता। इसकी सब लोग शिकायत करते हैं, परन्तु कारण नहीं जानते कि मन इतना चंचल क्यों हो रहा है? कस्तूरी मृग कोई अद्भुत गन्ध पाता है और उसके पास पहँचने के लिए दिन-रात चारों ओर दौड़ता रहता है । क्षण भर भी उसे विश्राम नहीं मिलता। यही हाल मन का है। यदि वह समझ जाय कि कस्तूरी मेरी नाभि में रखी हुई है, तो वह कितना आनन्द प्राप्त कर सके और सारी चंचलता भूल जाय।
आत्मा के पास तक पहुँचने के साधन जो हमारे पास मौजूद हैं, वह चित्त, अन्त:करण मन, बुद्घि आदि ही हैं। आत्म दर्शन की साधना इन्हीं के द्वारा हो सकती है। शरीर में सर्वत्र आत्मा व्याप्त है। कोई विशेष स्थान इसके लिए नियुक्त नहीं है, जिस पर किसी साधन विशेष का उपयोग किया जाय। जिस प्रकार आत्मा की आराधना करने में मन, बुद्घि आदि ही समर्थ हो सकते हैं, उसी प्रकार उसके स्थान और स्वरूप का दर्शन मानस लोक में प्रवेश करने से हो सकता है। मानसिक लोक भी स्थूल लोक की तरह ही है। उसमें इसी बाहरी दुनिया की ही अधिकांश छाया है।
अभी हम कलकत्ते का विचार कर रहे हैं, अभी हिमालय पहाड़ की सैर करने लगे। अभी जिनका विचार किया था, वह स्थूल कलकत्ता और हिमालय नहीं थे, वरन् मानस लोक में स्थित उनकी छाया थी, यह छाया असत्य नहीं होती। पदार्थों का सच्चा अस्तित्व हुए बिना कोई कल्पना नहीं हो सकती। इस मानस लोक को भ्रम नहीं समझना चाहिए। यही वह सूक्ष्म चेतना है, जिसकी सहायता से दुनियाँ के सारे काम चल रहे हैं। आध्यात्मिक चेतनाएँ मानसलोक से आती हैं। किसी के मन में क्या भाव उपज रहे हैं, कौन हमारे प्रति क्या सोचता है, कौन सम्बन्धी कैसे दशा में है आदि बातों को मानसलोक में प्रवेश करके हम अस्सी फीसदी ठीक-ठीक जान लेते हैं।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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