Thursday 12, December 2024
शुक्ल पक्ष द्वादशी, मार्गशीर्ष 2024
पंचांग 12/12/2024 • December 12, 2024
मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष द्वादशी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), मार्गशीर्ष | द्वादशी तिथि 10:26 PM तक उपरांत त्रयोदशी | नक्षत्र अश्विनी 09:52 AM तक उपरांत भरणी | परिघ योग 03:23 PM तक, उसके बाद शिव योग | करण बव 11:49 AM तक, बाद बालव 10:26 PM तक, बाद कौलव |
दिसम्बर 12 गुरुवार को राहु 01:26 PM से 02:42 PM तक है | चन्द्रमा मेष राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:08 AM सूर्यास्त 5:14 PM चन्द्रोदय 2:36 PM चन्द्रास्त 4:40 AM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - मार्गशीर्ष
- अमांत - मार्गशीर्ष
तिथि
- शुक्ल पक्ष द्वादशी
- Dec 12 01:09 AM – Dec 12 10:26 PM
- शुक्ल पक्ष त्रयोदशी
- Dec 12 10:26 PM – Dec 13 07:40 PM
नक्षत्र
- अश्विनी - Dec 11 11:48 AM – Dec 12 09:52 AM
- भरणी - Dec 12 09:52 AM – Dec 13 07:50 AM
![ईश्वर से मिलना है तो क्या करना चाहिए?](https://i.ytimg.com/vi/FhQ-qk9PpJE/hqdefault.jpg)
ईश्वर से मिलना है तो क्या करना चाहिए?
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सच्चे शिष्य बनने के लिए गुरु कृपा का अनमोल सूत्र है सबसे बेहतर विकल्प?
![Book: 04, EP: 01, धन का सदुपयोग | Dhan Ka Sadupyog](https://i.ytimg.com/vi/g0fUiBaWh1s/hqdefault.jpg)
Book: 04, EP: 01, धन का सदुपयोग | Dhan Ka Sadupyog
गोपाल्लव हजार गायों का स्वामी नगर-सेठ। धन की अथाह राशि थी उसके पास। किन्तु तो भी गोपाल्लव के जीवन में कोई रस नहीं था, शान्ति नहीं थी, कभी उसने सन्तोष का अनुभव किया हो ऐसा कभी भी नहीं हुआ। वैभव विलास से परिपूर्ण जीवन का एक क्षण भी तो उसे ऐसा याद नहीं आ रहा था जब उसने निर्द्वंदता प्राप्त की हो।*
विषय-भोगी गोपाल्लव को यह सब भली प्रकार सोचने का अवसर तब मिला जब राजयक्ष्मा से पीड़ित होकर वह रोग शैया से जा लगा। गोपाल्लव सोच रहे- 'धन की आसक्ति, विषयों के सुख का आकर्षण कितना प्रबल है कि मनुष्य यह भी नहीं सोच पाता कि इस संसार से परे भी कुछ है क्या ? शरीर कृश और जराजीर्ण हो गया तब कहीं मृत्यु याद आती है और मनुष्य सोचता है कि जीवन व्यर्थ गया,पाया कुछ नहीं, गांठ में था सो भी खो दिया।'
गोपाल्लव पड़े यही सोच रहे थे तभी उसके कर्ण-कुहरों पर टकराई एक ध्वनि-बहुत मीठी, भक्ति की भावनाओं से ओत-प्रोत। ऐसा लगा द्वार पर ही बैठा हुआ कोई व्यक्ति भक्ति-गीत गा रहा है। मन को सच्चा सुख भावनाओं में मिलता है। जीवन भर के भूले भटके राही को परमपिता परमात्मा की क्षणिक अनुभूति भी कितना सुख कितना विश्राम देती है यह उस गोपाल्लव को देखता तो सहज ही पता चल जाता। भजन सुनने से ऐसा आराम मिला मानो जलते घावों पर किसी ने शीतल मरहम लगा दिया हो। गोपाल्लव को नींद आ गई आज वे पूर्ण-प्रगाढ़ नींद भर सोये।
नींद टूटी तो वह स्वर-अन्तर्धान हो चुका था। गोपाल्लव ने परिचारक से पूछा- "अभी थोड़ी देर पूर्व बाहर कौन गा रहा था उसे भीतर तो बुलाना, बड़ा ही कर्ण प्रिय स्वर था। उसने मुझे जो शान्ति प्रदान की वह अब तक कभी भी नहीं मिली।"*
परिचारक ने हंसकर कहा- "वह कोई संगीतज्ञ नहीं था आर्य! वह तो नगर का मोची है यहीं बैठकर जूते गांठता है और दिन भर के निर्वाह योग्य धन मिलते ही उठकर चला जाता है। सुना है वह अपने ही बनाये पद गाता है, बड़ा ईश्वर भक्त है। तभी तो उसके हर शब्द से रस टपकता है।"*
प्रातःकाल वही स्वर फिर सुनाई दिया। गोपाल्लव ने मोची को बुलाकर उसे एक स्वर्ण मुद्रा देते हुए कहा- "तात! यह लो स्वर्ण मुद्रा तुम्हारे कल के गीत ने मुझे अपूर्व शान्ति प्रदान की।"
स्वर्ण मुद्रा पाकर मोची बड़ा प्रसन्न हुआ। खुशी-खुशी घर लौट आया किन्तु उसके बाद कई दिन तक उसका स्वर सुनाई न दिया। सप्ताहान्त मोची आया और सीधे गोपाल्लव के पास जाकर बोला- ”अर्थ कामेष्वसक्तानाँ धर्म ज्ञानं विधीयते” तात! धन और इंद्रियों के वशवर्ती नहीं है जो वहीं धर्म और ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। आत्म-कल्याण के मार्ग में यह दोनों वस्तुयें बाधक हैं।"
यह कहकर उसने स्वर्ण मुद्रा लौटा दी। गोपाल्लव ने पूछा- "कई दिन से आये नहीं।" मोची ने उत्तर दिया- "आर्य! धन की तृष्णा बुरी होती है आपकी दी इस स्वर्ण मुद्रा की रक्षा और उसके उपयोग का चिन्तन करने के आगे मुझे अपना मार्ग ही भूल गया था इसीलिए तो इसे लौटाने आया हूँ।"
गोपाल्लव ने अनुभव किया धन का जीवनोपयोगी उपभोग ही पर्याप्त है परिग्रह से कभी शान्ति नहीं मिल सकती अपना धर्म धर्मार्थ व्यय कर उसने भी मोची की तरह परम शान्ति पाई।*
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति जून 1971*
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गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
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आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
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आज का सद्वाक्य
![Image हिंदी सद्वाक्य](https://files.awgp.org/public_data/gurukulam/release/121224/12_Dec_2024_1.jpg)
![Image हिंदी सद्वाक्य](https://files.awgp.org/public_data/gurukulam/release/121224/12_Dec_2024_2.jpg)
![Image अंग्रेजी सद्वाक्य](https://files.awgp.org/public_data/gurukulam/release/121224/12_Dec_2024_4.jpg)
![Image अंग्रेजी सद्वाक्य](https://files.awgp.org/public_data/gurukulam/release/121224/12_Dec_2024_3.jpg)
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
![](https://files.awgp.org/public_data/media/9659/thumb/LEiZS-T1nMKbk.jpg)
!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 12 December 2024 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
![](https://files.awgp.org/public_data/media/9657/thumb/C6XANvvd1PHT-3.jpg)
!! आज के दिव्य दर्शन 12 December 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
![](https://files.awgp.org/public_data/media/9658/thumb/2ICT8AQBMLKbk.jpg)
!! अखण्ड दीपक Akhand Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) एवं चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 12 December 2024 !!
![](https://files.awgp.org/public_data/media/9660/thumb/IUbI8cIURYHT-3.jpg)
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
नारद जी से भक्ति के संवाद सुनने के लिए उनकी कीर्तन सुनने के लिए जनता इकट्ठी नहीं होती थी नारद जी ढाई घड़ी ही एक जगह बैठते थे और ढाई घड़ी के बाद में फिर वह दूसरी जगह चले जाते थे तीसरी जगह चले जाते थे बराबर उनका घूमना फिरना ही बना रहता था नारद जी का कीर्तन सुनने के लिए कभी सभा नहीं हुई कभी कमेटिया नहीं हुई नारद जी स्वयं ही लोगों के पास गए और उन्होंने जाकर के लोगों से कहा आपको भी अब यही करना पड़ेगा तीर्थ तीर्थ यात्रा आपको करनी पड़ेगी पापों का प्रायश्चित करने के लिए तीर्थ यात्रा की जाती है और पुण्य कमाने के लिए भी तीर्थ यात्रा की जाती है दोनों ही कामों के लिए अगर आपने कोई जीवन में गलतियाँ की हो तो आप उसका प्रायश्चित कीजिए तीर्थ यात्रा कीजिए और अगर आपने पुण्य कमाना है तो भी आपके लिए सबसे सरल तरीका यह है कि आप तीर्थ यात्रा कीजिए |
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
चैतन्य महाप्रभु जब जगन्नाथपुरी से दक्षिण की यात्रा पर जा रहे थे तो उन्होंने एक सरोवर के किनारे कोई ब्राह्मण गीता पाठ करता हुआ देखा वह संस्कृत नहीं जानता था और श्लोक अशुद्ध बोलता था। चैतन्य महाप्रभु वहाँ ठहर गये कि उसकी अशुद्धि के लिये टोके। पर देखा कि भक्ति में विह्वल होने से उसकी आँखों से अश्रु बह रहे हैं। चैतन्य महाप्रभु ने आश्चर्य से पूछा-आप संस्कृत तो जानते नहीं, फिर श्लोकों का अर्थ क्या समझ में आता होगा और बिना अर्थ जाने आप इतने भाव विभोर कैसे हो पाते है। उस व्यक्ति ने उत्तर दिया आपको यह कथन सर्वथा सत्य है।
कि मैं न तो संस्कृत जानता हूँ और न श्लोकों का अर्थ समझता हूँ। फिर भी जब मैं पाठ करता हूँ तो लगता है मानों कुरुक्षेत्र में खड़े हुये भगवान अमृतमय वाणी बोल रहे हैं और मैं उस वाणी को दुहरा रहा है। इस भावना से मेरा आत्म आनन्द विभोर हो जाता है।
चैतन्य महाप्रभु उस भक्त के चरणों पर गिर पड़े और उनने कहा तुम हजार विद्वानों से बढ़कर हो, तुम्हारा गीता पाठ धन्य है।
भक्ति में भावना ही प्रधान हैं, कर्मकाण्ड तो उसका कलेवर मात्र हैं। जिसकी भावना श्रेष्ठ है उसका कर्मकाण्ड अशुद्ध होने पर भी वह ईश्वर को प्राप्त कर सकता है। केवल भावना हीन व्यक्ति शुद्ध कर्मकाण्ड होने पर भी कोई बड़ी सफलता प्राप्त नहीं कर सकता।
अखण्ड ज्योति जुलाई 1961
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