Friday 13, December 2024
शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, मार्गशीर्ष 2024
पंचांग 13/12/2024 • December 13, 2024
मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), मार्गशीर्ष | त्रयोदशी तिथि 07:40 PM तक उपरांत चतुर्दशी | नक्षत्र भरणी 07:50 AM तक उपरांत कृत्तिका 05:47 AM तक उपरांत रोहिणी | शिव योग 11:54 AM तक, उसके बाद सिद्ध योग | करण कौलव 09:03 AM तक, बाद तैतिल 07:40 PM तक, बाद गर 06:18 AM तक, बाद वणिज |
दिसम्बर 13 शुक्रवार को राहु 10:55 AM से 12:11 PM तक है | 01:19 PM तक चन्द्रमा मेष उपरांत वृषभ राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:08 AM सूर्यास्त 5:14 PM चन्द्रोदय 3:19 PM चन्द्रास्त 5:52 AM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतुहेमंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - मार्गशीर्ष
- अमांत - मार्गशीर्ष
तिथि
- शुक्ल पक्ष त्रयोदशी - Dec 12 10:26 PM – Dec 13 07:40 PM
- शुक्ल पक्ष चतुर्दशी - Dec 13 07:40 PM – Dec 14 04:58 PM
नक्षत्र
- भरणी - Dec 12 09:52 AM – Dec 13 07:50 AM
- कृत्तिका - Dec 13 07:50 AM – Dec 14 05:47 AM
- रोहिणी - Dec 14 05:47 AM – Dec 15 03:54 AM
EP:- 09, विचार शक्ति को कैसे परिष्कृत करें | Vichar Shakti Ko Kaise Pariskrit Kare
मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है। | Manushay Apne Bhagya Ka Nirmata Aap Hai
प्रेम एक महान शक्ति | Love, a Great Power
Sodhan
सत्य व्यवहार की अपार शक्ति, Satya Vyavhar Ki Apar Shakti*
हे प्रभो! मेरी केवल एक ही कामना है कि मैं संकटों से डर कर भागूं नहीं, उनका सामना करूं। इसलिए मेरी यह प्रार्थना नहीं है कि संकट के समय तुम मेरी रक्षा करो बल्कि मैं तो इतना ही चाहता हूँ कि तुम उनसे जूझने का बल दो। मैं यह भी नहीं चाहता कि जब दुःख सन्ताप से मेरा चित्त व्यथित हो जाय तब तुम मुझे सान्त्वना दो। मैं अपनी अञ्जलि के भाव सुमन तुम्हारे चरणों में अर्पित करते हुए इतना ही माँगता हूँ कि तुम मुझे अपने दुःखों पर विजय प्राप्त करने की शक्ति दो।*
जब किसी कष्टप्रद और संकट की घड़ी में मुझे कहीं से कोई सहायता न मिले तो मैं हिम्मत न हारूं। किसी और स्रोत से सहायता की याचना न करूँ, न उन घड़ियों में मेरा मनोबल क्षीण होने पाये। हे प्रभो! मुझे ऐसी दृढ़ता और शक्ति देना जिससे कि मैं कठिन से कठिन घड़ियों में भी−संकटों और समस्याओं के सामने भी दृढ़ रह सकूँ और तुम्हें हर घड़ी अपने साथ देखते हुए उन्हें हँसी खेल समझ कर अपने चित्त को हल्का रखूँ। मैं बस यही चाहता हूँ।
चाहे जैसी ही प्रतिकूलताएँ हों, व्यवहार में मुझे कितनी ही हानि क्यों न उठानी पड़े इसकी मुझे जरा भी परवाह नहीं है। लेकिन प्रभु मुझे इतना कमजोर मत होने देना कि मैं आसन्न संकटों को देखकर हिम्मत हार बैठूँ और यह रोने बैठ जाऊँ कि अब क्या करूँ मेरा सर्वस्व छिन गया।*
प्रभु तुम्हारा और केवल तुम्हारा विश्वास ग्रहण कर लोगों ने अकिंचन अवस्था में रहते हुए भी इतिहास की श्रेष्ठ उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं। मैं इतना ही चाहता हूँ कि तुम्हारा विश्वास मेरे लिए शक्ति बने याचना नहीं, सम्बल बने−क्षीणता नहीं। बस इतनी ही कृपा करना।
रवींद्रनाथ टैगोर
अखण्ड ज्योति मार्च 1978 पृष्ठ 1
यज्ञ की 6 शिक्षाएं | Yagya Ki 6 Shikshayen
Balakpan Ki Samvedansheelta Aur Dharam Ki Gehri Samajh
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 13 December 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
हमने जो ज्ञान की पृष्ठभूमि बनाई है वह इतनी जबरदस्त है इतनी जबरदस्त है, आप उसको उसको बांटने का ही काम अपने जिम्मे ले ले और हम बना नहीं सकते ठीक है, आपके पास नहीं है बनाने को कोई हर्ज की बात नहीं है | आप बांटना ही काम शुरू कर दें, तो यह ही कम महत्व का नहीं है बनाया हमने है लिखा हमने है हमको प्रेरणायें किसी ने हमको दी हैं | किसी ने युग की समस्याओं के समाधान हमको बताए हैं और आप ऐसा कर दीजिए कि उसको बांटने के लिए तैयारी कर दीजिए, बांटे कैसे ? बांटने को आपको मालूम नहीं है हमने सौ बार तो कहा है, हजार बार कहा है आपसे आपको हमने ज्ञान रथ की बात कही है हमने आपको झोला पुस्तकालय की बात कही है आप अकेले हैं कोई आप सामथ्र्यवान नहीं है तो एक झोला कंधे पर डालिए ले कर के जाइए |
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
भारत की प्रसुप्त अंतरात्मा को जगाने के लिए ज्ञान और विज्ञान की प्रतिष्ठापना करना सर्वप्रथम कार्य है। इन दोनों के बल पर ही कोई व्यक्ति या राष्ट्र उन्नति कर सकता है। जब इनमें से एक की भी कमी हो जाती है, तो अधःपतन आरंभ हो जाता है। ज्ञान का अर्थ है-विद्या बुद्धिमत्ता, विवेक दूरदर्शिता, सद्भावना, उदारता, न्याय प्रियता। विज्ञान का अर्थ है- योग्यता, साधन, शक्ति, सम्पन्नता, शीघ्र सफलता प्राप्त करने की सामर्थ्य आत्मिक और भौतिक दोनों ही क्षेत्रों में जब संतुलित उन्नति होती है, तभी उसे वास्तविक विकास माना जाता है। भारत प्राचीन काल में बुद्धिमान बनने के लिए ज्ञान की और बलवान बनने के लिए विज्ञान की उपासना करने में सदैव संलग्न रहता था। योगी लोग जहाँ भक्ति भावना द्वारा भगवान में संलग्न होते थे वहाँ कष्ट साध्य साधनाओं तथा तपश्चर्याओं द्वारा अपने में अनेक प्रकार की सामर्थ्य भी उत्पन्न करते थे। भावना से भगवान और साधना से शक्ति प्राप्त होती है, यह निर्विवाद है।
आज का ज्ञान प्रत्यक्ष दृश्यों, अनुभवों तथा विज्ञान मशीनों पर अवलंबित है। भौतिक जानकारी तथा शक्तियाँ प्राप्त करने के लिए भौतिक उपकरणों का ही आज के वैज्ञानिक प्रयोग कर रहे हैं यह तरीका बहुत खर्चीला, श्रमसाध्य, स्वल्पफलदायक एवं अचिर-अस्थायी है जो ज्ञान बड़े-बड़े विद्वानों, प्रोफेसरों, द्वारा उत्पन्न किया जा रहा है, वह भौतिक जानकारी तो काफी बढ़ा देता है, पर उससे अंतःकरण में आत्मिक महानता, उदार दृष्टि तथा लोकसेवा के लिए आत्म त्याग करने की भावना पैदा नहीं होती। आज का तथाकथित ज्ञान मनुष्य को अधिक स्वार्थी, खर्चीला एवं बनावट पसंद बनाता जा रहा है। दूसरी ओर जो वैज्ञानिक उन्नति हो रही है, उससे एक ओर जहाँ थोड़ा-सा लाभ होता है, दूसरी ओर उससे अधिक हानि हो जाती है।
प्राचीनकाल में ज्ञान और विज्ञान के आधार आज से भिन्न थे। आज जिस प्रकार हर वस्तुतः जड़ जगत् में से, भौतिक परमाणुओं में से खोजी जाती और उपलब्ध की जाती है, उसी प्रकार प्राचीन काल में प्रत्येक बात, प्रत्येक वस्तु, प्रत्येक शक्ति आत्मिक जगत् में से ढूँढ़ी जाती थी। आज का आधार भौतिकता है, प्राचीनकाल का आधार आध्यात्मिकता था।
ज्ञान और विज्ञान की हमारी प्राचीन शोध गायत्री और यज्ञ के आधार पर होती थी, क्योंकि यही दोनों अध्यात्म विद्या के माता-पिता हैं। गायत्री ज्ञान रुपिणी है, यज्ञ विज्ञान प्रतीक है। गायत्री मंत्र के ख्ब् अक्षरों में मनुष्य जाति का ठीक प्रकार प्रदर्शन करने वाली शिक्षाएँ भरी हुई हैं। इसके अतिरिक्त इन अक्षरों का गुंथन रहस्यमय विद्या के रहस्यमय आधार पर भी है। इन अक्षरों के नियमित उपासना से अलौकिक शक्तियाँ एवं आध्यात्मिक गुणों की तेजी से अभिवृद्धि होती है, बुद्धि तीव्र होती है, जिसके आधार पर जीवन की समस्या की अनेक गुत्थियों को सरल किया जा सकता है।
यज्ञ का विज्ञान अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण है। वेदमंत्रों की शब्द शक्ति को विशिष्ट कुण्डों, समिधाओं, हवियों चरुओं के साथ उत्पन्न की हुई विशेष सामर्थ्यवान अग्नि में सम्मिश्रित कर देने पर रेडियो सक्रिय शक्ति तरंगों का आविर्भाव होता है। यह शक्ति तरंगें रैडार यंत्र की तरह संसार के किसी भी भाग में भेजी जा सकती है, किसी व्यक्ति विशेष प्रयोजन के शरीर में भरी जा सकती है, प्रकृति के गुह्य गह्वर में किसी विशेष प्रयोजन के लिए प्रविष्ट कराई जा सकती है।
सांस्कृतिक पुनरुत्थान ज्ञान और विज्ञान के बिना असंभव है। भारतीय संस्कृति का बीज मंत्र गायत्री है। उसकी शिक्षाओं तथा शक्तियों के आधार पर हमारा सारा ढाँचा खड़ा हुआ है। भौतिक माता-पिता हमें शरीर संपत्ति, शिक्षा सुविधा, आश्रय, सहयोग, स्नेह आदि बहुत कुछ देते हैं। गायत्री माता और यज्ञ पिता की यदि हम प्रतिष्ठा और उपासना करें, तो इसके द्वारा हम और भी उत्तम एवं महत्त्वपूर्ण वस्तुएँ प्राप्त कर सकते हैं।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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