Monday 14, April 2025
कृष्ण पक्ष प्रथमा, बैशाख 2025
पंचांग 14/04/2025 • April 14, 2025
बैशाख कृष्ण पक्ष प्रतिपदा, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), चैत्र | प्रतिपदा तिथि 08:25 AM तक उपरांत द्वितीया | नक्षत्र स्वाति 12:13 AM तक उपरांत विशाखा | वज्र योग 10:38 PM तक, उसके बाद सिद्धि योग | करण कौलव 08:25 AM तक, बाद तैतिल 09:41 PM तक, बाद गर |
अप्रैल 14 सोमवार को राहु 07:31 AM से 09:06 AM तक है | चन्द्रमा तुला राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:55 AM सूर्यास्त 6:39 PM चन्द्रोदय 8:05 PM चन्द्रास्त 6:47 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वसंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - बैशाख
- अमांत - चैत्र
तिथि
- कृष्ण पक्ष प्रतिपदा
- Apr 13 05:52 AM – Apr 14 08:25 AM
- कृष्ण पक्ष द्वितीया
- Apr 14 08:25 AM – Apr 15 10:55 AM
नक्षत्र
- स्वाति - Apr 13 09:10 PM – Apr 15 12:13 AM
- विशाखा - Apr 15 12:13 AM – Apr 16 03:10 AM

शिष्टाचार अपनाएँ सम्मान पाएँ भाग 01 | सफल जीवन की दिशा धारा | Shantikunj Rishi Chintan

"क्या आपके जीवन में छाया का प्रभाव हो सकता है ? : छाया" | Motivational Story

योग- आत्मज्ञान का मार्ग | Yog Aatamgya Ka Marg | आद डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी

आपको कार्यक्रम में हमारी बहुत सहायता मिलेगी | गुरुदेव के पत्र स्नेह | Shantikunj Rishi Chintan

हमारा जीवन लक्ष्य-आत्म दर्शन, Hamara Jeevan Lakshya Aatma Darshan

Humara Jeevan Lakshya Aatmadarshan

यज्ञ के साथ साक्षरता का संकल्प | Yagya Ke Sath Saksharta Ka Sankalp

Bhagwan Se Kya Mange | भगवान से क्या मांगे | Dr Chinmay Pandya
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! आज के दिव्य दर्शन 14 April 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

Reel_8 भगवान की कृपा के बिना खाना हजम नहीं हो सकता 1.mp4

यज्ञ के साथ साक्षरता का संकल्प | Yagya Ke Sath Saksharta Ka Sankalp
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
बाजीगर से हमने कई बार पूछा, "क्यों भाई साहब, एक बात बताओ, यह जो है आम, जो आपने अभी, जिसमें से आम के पेड़ पर से आपने तोड़े और डिब्बे में से आपने मिठाई निकाली, और मिठाई निकाल करके आपने सबको चखाई। देखिए साहब, झूटी मिठाई है कि सच्ची मिठाई है?" "सच्ची मिठाई है, आप तो रोजाना मिठाई बनाते होंगे और अपने बाल-बच्चों को रोज खिला देते होंगे।" "नहीं साहब, इसको हम नहीं खा सकते, यह किसी और को खिला सकते हैं।" "क्यों, आप भी खा लिया करो।" "नहीं, हम नहीं खा सकते, और को खिला सकते हैं। भगवान की दी हुई दया में और कृपा में शाप लगा हुआ है कि आप खाने की कोशिश करेंगे, तो अभी बस आपके प्राण ले लेंगे। आप नहीं खा सकते, आप नहीं खा सकते, खिला सकते हैं।" "संत खा नहीं सकते, संत ने जब खाना खर्च शुरू कर दिया, संत का संत पन उसी में खत्म हो गया। संत ने जिस दिन खाना शुरू किया, हमको दीजिए, भगवान हमको दीजिए। भगवान की कृपा के बगैर हजम नहीं हो सकता। भगवान की कृपा पारे की तरीके से पारे को आप देख लीजिए और दिखा दीजिए। खाइए मत, भगवान की कृपा को खाना मत।" "संत खाते नहीं हैं, ऋषि कभी खाते नहीं हैं, तपस्वी कभी खाते नहीं हैं। जब वह खाना शुरू करेंगे, बस, उसे दिन आप खत्म हो जाएंगे। खा लीजिए, पर किसी को दे नहीं सकते। किसी की सहायता आप नहीं कर सकते।" "आप चाहे कि हम अध्यात्म से किसी का फायदा कर दें, फिर आप नहीं कर सकते। पैसा लेकर के अनुष्ठान करना शुरू कीजिए। ठीक है, आपकी जीव काट ली जाएगी, उसके बाद थोड़ा बहुत होता होगा, लेकिन फिर आपकी वाणी के अंदर जो शक्ति है, कि आप किसी का भला कर दें, फिर नहीं हो सकता।
अखण्ड-ज्योति से
उपासना के लिए एक अनिवार्य शर्त यह है सच्चे भाव से चित लगाकर कि जाय। आजकल जिस जिस प्रकार बहुसंख्यक कहलाने वाले व्यक्ति दुनिया का दिखाने के लिए अथवा एक रस्म पूरी करने के लिए मंदिर में जाकर पूरी कर लेते हैं और नियम को पुरा करने के लिए एकाध माला भी जप लेते हैं उससे किसी बड़े सुफल कि आशा नहीं की जा सकती उपासना और साधन तो तभी सच्ची मानी जा सकती है जब कि मनुष्य उस समय समस्त सांसारिक विषयों और आस पास की बातों को भूलकर प्रभु को के ध्यान में निमग्न हो जाए जब मनुष्य इस प्रकार की संलग्नता और एकाग्रता में अपने इष्टदेव की उपासना करता है तभी वह अध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर हो सकता है और तभी वह दैवी कृपा का लाभ प्राप्त कर सकता है इसी तथ्य को समझने के लिए वेदों में बतलाया गया है की जब मनुष्य हृदय और आत्मा से सोम का अभिसव (परमात्मा की उपासना) करता है तव उसे स्वयमेव ईश्वरीय तेज के दर्शन होने लगते हैं और परमात्मा की कृपा अपने चारों तरफ से मेह की तरह बरसती जान पड़ती है।
संसार में जीवन निर्वाह करते हुए एक साधारण मनुष्य को अनेक विघ्न बाधाओं का सामना करना पड़ता है विपरीत परिस्थितियों से होकर गुजरना पड़ता है विरोधियों के साथ संघर्ष करना पड़ता है और लोगों की भली बुरी सब प्रकार की आलोचना को सहन करना पड़ता है इससे उसके जीवन में स्वभावतः उद्वेग अशाँति भय क्रोध आदि के अवसर आते हैं ऐसा मनुष्य अपने कष्टों के निवारणार्थ और मन और आत्मा की शाँति के लिए परमात्मा का आश्रय ग्रहण करता है। मन, वचन और कर्म से उसकी उपासना में संलग्न रहता है। तो उसकी अनास्था में परिवर्तन होने लगता है।
जब साधनों में अग्रसर होकर वह अपने चारों आरे परमात्मा शक्ति की क्रीड़ा अनुभव करता है और वह समझने लगता है कि संसार में जो कुछ हो रहा हैं वह उस प्रभू की प्रेरणा और इच्छा का फल हैं तथा वह जो कुछ करता है उसका अंतिम परिणाम जीव के लिए शुभ होता है, चाहे वह तत्काल उसे न समझ सके, तब उसकी व्याकुलता और अशाँति दूर होने लगती हैं और उसे ऐसा अनुभव होता है मानो ग्रीष्म ऋतु में व्यथित श्राँत क्लाँत व्यक्ति को शीतल और शाँति दायक वर्षा ऋतु प्राप्त हो गयी। मनुष्यों को अपनी भिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए तरह तरह की साधनाएँ निकाली हैं।
धन, संतान, वैभव, सम्मान, प्रभाव, विद्या, बुद्धि आदि की प्राप्ति के लिए लोग भाँति भाँति के उपायों का सहारा लेते हैं, जिससे उनकी योग्यतानुसार कम या अधिक परिणाम में सफलता भी प्राप्त होती है। पर आध्यात्मिक शाँति प्राप्त करने, साँसारिक तापों से छुटकारा पाने का एक मात्र उपाय यही है कि मनुष्य भिन्न भिन्न कामनाओं का मोह त्यागकर सच्चे हृदय से परमात्मा का आश्रय ले और शुद्ध भाव से उसकी स्तुति और प्रार्थना करें। हमें स्मरण रखना चाहिए कि सब प्रकार की कामनाओं को वास्तव में पूरा करने वाला भगवान ही हैं। इसलिए अगर हम उसकी पूजा करके आत्मिक शाँति प्राप्त कर लेंगे तो हमारी अन्य उचित कामनायें और आवश्यकतायें अपने आप पूरी हो जायेंगी।
कितने ही मनुष्य इस विवेचना से यह निष्कर्ष निकालेंगे कि परमात्मा के ध्यान में लीन होने से मनुष्य की कामनायें शाँत हो जायेंगी, उसमें संसार के प्रति विरक्तता के भाव का उदय हो जायेगा। इस प्रकार वह आत्मा संतोष का भाव प्राप्त कर लेगा। इस विचार में कुछ सच्चाई होने पर भी यह ख्याल करना कि परमात्मा की उपासना का साँसारिक कामनाओं से कोई संबंध नहीं, ठीक नहीं है। वेद में कहा गया हैं कि
“अपमिव प्रवणो यस्य “ दुँर्धरं राधो विश्वायु शवसे अपावतम्। “
भगवान का धन कभी न रुकने वाला है। वह उसके उपासकों को इस प्रकार प्राप्त होता है जिस प्रकार नीचे की ओर बहता हुआ जल। वस्तुमान समय में भी अनेकों ऐसे व्यक्ति हो चुके हैं जो बहुत साधारण विद्या बुद्धि के होते हुए भी परमात्मा के भरोसे सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं और जो अपने और दूसरों के बड़े बड़े कार्यों को सहज ही पूरा कर देते हैं। हम अपने प्राचीन ग्रंथों में संतों, तपस्वियों ओर भक्तों के जिन चमत्कारों का वर्णन पढ़ते हैं उनसे तो यह बात स्पष्ट दिखलायी पड़ती है। कि ईश्वर की सच्चे हृदय से उपासना करने वालों को किसी साँसारिक संपदा का अभाव नहीं रहता।
मंत्र में यह भी कहा है कि परमात्मा के उपासक को उसके तेज के भी दर्शन होते हैं। विचार किया जाये तो वास्तव में यही उपासना के सत्य होने की कसौटी है। जो कोई भी एकाग्र चित्त से और तल्लीन होकर परमात्मा का ध्यान करेगा उसे कुछ समय उपराँत उसके तेज का अनुभव होना अवश्यम्भावी है। यह तेज ही साधक अंतर को प्रकाशित करके उसकी भ्रान्तियों को दूर कर देता है और उसे जीवन के सच्चे मार्ग को दिखलाता है। इसी प्रकार मनुष्य सच्चे ज्ञान का अधिकारी बनता है और सब प्रकार की भव बाधाओं को सहज में पार करने की सामर्थ्य प्राप्त करता हैं
अखण्ड ज्योति अगस्त 1993 पृष्ठ 2
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
Newer Post | Home | Older Post |