Tuesday 15, April 2025
कृष्ण पक्ष द्वितीया, बैशाख 2025
पंचांग 15/04/2025 • April 15, 2025
बैशाख कृष्ण पक्ष द्वितीया, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), चैत्र | द्वितीया तिथि 10:55 AM तक उपरांत तृतीया | नक्षत्र विशाखा 03:10 AM तक उपरांत अनुराधा | सिद्धि योग 11:32 PM तक, उसके बाद व्यातीपात योग | करण गर 10:55 AM तक, बाद वणिज 12:08 AM तक, बाद विष्टि |
अप्रैल 15 मंगलवार को राहु 03:28 PM से 05:04 PM तक है | 08:27 PM तक चन्द्रमा तुला उपरांत वृश्चिक राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:54 AM सूर्यास्त 6:40 PM चन्द्रोदय 9:02 PM चन्द्रास्त 7:23 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वसंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - बैशाख
- अमांत - चैत्र
तिथि
- कृष्ण पक्ष द्वितीया
- Apr 14 08:25 AM – Apr 15 10:55 AM
- कृष्ण पक्ष तृतीया
- Apr 15 10:55 AM – Apr 16 01:17 PM
नक्षत्र
- विशाखा - Apr 15 12:13 AM – Apr 16 03:10 AM
- अनुराधा - Apr 16 03:10 AM – Apr 17 05:55 AM

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युग निर्माण आंदोलन का उद्देश्य क्या है 1.mp4
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







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नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

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युग निर्माण आंदोलन का उद्देश्य क्या है 1.mp4
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
युग निर्माण आंदोलन से जिनका भी किसी प्रकार का संबंध और संपर्क है, उनको दो बातें निश्चित रूप से समझ लेनी चाहिए।
पहली बात यह कि यह अभियान, यह आंदोलन किसी व्यक्ति विशेष का चलाया हुआ नहीं है और यह किसी व्यक्ति विशेष की सनक नहीं है। इसके पीछे मात्र मनुष्यों का पुरुषार्थ और मनुष्यों का प्रयास काम नहीं कर रहा है।
यह युग निर्माण अभियान जहाँ से प्रारंभ होता है, वह भगवान की वह इच्छा है, जिसके अंतर्गत उन्होंने एक बार यह प्रतिज्ञा की थी कि जब संसार में पाप बढ़ जाएंगे और पुण्य की मात्रा घट जाएगी, साधुता गिर जाएगी और असाधुता बढ़ जाएगी, तब उसका संतुलन कायम करने के लिए मैं स्वयं अवतार लिया करूँगा।
यह अभियान उसी अवतार का एक स्वरूप है। इसका एक छोटा सा प्रमाण यह है कि जिन परिस्थितियों में इसे प्रारंभ किया गया, वे परिस्थितियाँ बहुत ही दयनीय थीं। एक छोटे से ₹15 महीने के मकान की, एक 9 फीट लंबी, 9 फीट चौड़ी, 9 फीट ऊँची कोठरी में बैठकर यह विचार किया गया।
और एकाकी, असहाय और अकेले व्यक्ति ने इसका पालन किया और कहा—युग बदला जाएगा, धरती पर स्वर्ग का अवतरण किया जाएगा, मनुष्य में देवत्व का उदय किया जाएगा।
लोगों ने केवल इसे पागलपन, सनक और मखौल समझा। लेकिन भगवान जिस चीज के पीछे होते हैं, वह कितनी तेजी से बढ़ती है, और एकाकी व्यक्ति भी कितनी सफलता को संग्रह कर सकता है, इसका एक मूर्तिमान स्वरूप लोगों ने देखा—युग निर्माण आंदोलन की गतिविधियों के रूप में।
यह छोटी-सी गतिविधियाँ किस तरीके से, किस तेजी से बढ़ती चली गईं, इसके बारे में कहना बेकार है। जो भी इस आंदोलन से संबंध रखते हैं, उनको सबको मालूम है कि पिछले 10 वर्षों में यह प्रयास कहाँ से कहाँ जा पहुँचा।
युग निर्माण आंदोलन से जिनका भी किसी प्रकार का संबंध और संपर्क है उनको दो बातें है निश्चित रूप से समझ लेनी चाहिए पहली बात यह कि यह अभियान आंदोलन किसी व्यक्ति विशेष का चलाया हुआ नहीं है और यह किसी व्यक्ति विशेष की सनक नहीं है इसके पीछे मात्र मनुष्यों का पुरुषार्थ और मनुष्यों का प्रयास काम नहीं कर रहा है यह युग निर्माण अभियान जहाँ से प्रारंभ होता है वो भगवान की वो इच्छा है जिसके की अंतर्गत उन्होंने एक बार यह प्रतिज्ञा की थी कि जब संसार में पाप बढ़ जाएंगे और पुण्य की मात्रा घट जाएगी साधुता गिर जाएगी और असाधुता बढ़ जाएगी तब उसका संतुलन कायम करने के लिए मैं स्वयं अवतार लिया करूँगा यह अभियान उसी अवतार का एक स्वरूप है इसका एक छोटा सा प्रमाण यह है कि जिन परिस्थितियों में इसे प्रारंभ किया गया वो परिस्थितियाँ बहुत ही दयनीय परिस्थितियाँ थी एक छोटे से ₹15 महीने के मकान की एक 9फीट लंबी 9 फीट चैड़ी 9 फीट ऊँची कोठरी में बैठ करके यह विचार किया गया और एकाकी असहाय और अकेले व्यक्ति ने इसका पालन किया और कहा युग बदला जाएगा धरती पर स्वर्ग का अवतरण किया जाएगा मनुष्य में देवत्व का उदय किया जाएगा लोगों ने केवल इसे पागलपन सनक और मखोल समझा लेकिन भगवान जिस चीज के पीछे होते हैं वो किस तेजी के साथ बढ़ती है और एकाकी व्यक्ति भी कितनी सफलता को संग्रह कर सकता है इसका एक मूर्तिमान स्वरूप लोगों ने देखा युग निर्माण आंदोलन की गतिविधियों के रूप में यह छोटी सी गतिविधियाँ किस तरीके से किस तेजी से बढ़ती चली गई इसके बारे में कहना बेकार है जो भी इस आंदोलन से संबंध रखते हैं उनको सबको मालूम है कि पिछले 10 वर्षों में यह प्रयास कहाँ से कहाँ जा पहुँचा युग निर्माण आंदोलन से जिनका भी किसी प्रकार का संबंध और संपर्क है उनको दो बातें है निश्चित रूप से समझ लेनी चाहिए पहली बात यह कि यह अभियान आंदोलन किसी व्यक्ति विशेष का चलाया हुआ नहीं है और यह किसी व्यक्ति विशेष की सनक नहीं है इसके पीछे मात्र मनुष्यों का पुरुषार्थ और मनुष्यों का प्रयास काम नहीं कर रहा है यह युग निर्माण अभियान जहाँ से प्रारंभ होता है वो भगवान की वो इच्छा है जिसके की अंतर्गत उन्होंने एक बार यह प्रतिज्ञा की थी कि जब संसार में पाप बढ़ जाएंगे और पुण्य की मात्रा घट जाएगी साधुता गिर जाएगी और असाधुता बढ़ जाएगी तब उसका संतुलन कायम करने के लिए मैं स्वयं अवतार लिया करूँगा यह अभियान उसी अवतार का एक स्वरूप है इसका एक छोटा सा प्रमाण यह है कि जिन परिस्थितियों में इसे प्रारंभ किया गया वो परिस्थितियाँ बहुत ही दयनीय परिस्थितियाँ थी एक छोटे से ₹15 महीने के मकान की एक 9फीट लंबी 9 फीट चैड़ी 9 फीट ऊँची कोठरी में बैठ करके यह विचार किया गया और एकाकी असहाय और अकेले व्यक्ति ने इसका पालन किया और कहा युग बदला जाएगा धरती पर स्वर्ग का अवतरण किया जाएगा मनुष्य में देवत्व का उदय किया जाएगा लोगों ने केवल इसे पागलपन सनक और मखोल समझा लेकिन भगवान जिस चीज के पीछे होते हैं वो किस तेजी के साथ बढ़ती है और एकाकी व्यक्ति भी कितनी सफलता को संग्रह कर सकता है इसका एक मूर्तिमान स्वरूप लोगों ने देखा युग निर्माण आंदोलन की गतिविधियों के रूप में यह छोटी सी गतिविधियाँ किस तरीके से किस तेजी से बढ़ती चली गई इसके बारे में कहना बेकार है जो भी इस आंदोलन से संबंध रखते हैं उनको सबको मालूम है कि पिछले 10 वर्षों में यह प्रयास कहाँ से कहाँ जा पहुँचा
अखण्ड-ज्योति से
दुनियाँ में जितने धर्म, सम्प्रदाय, देवता और भगवानों के प्रकार हैं उन्हें कुछ दिन मौन हो जाना चाहिये और एक नई उपासना पद्धति का प्रचलन करना चाहिए जिसमें केवल “माँ” की ही पूजा हो, माँ को ही भेंट चढ़ाई जाये?
माँ बच्चे को दूध ही नहीं पिलाती, पहले वह उसका रस, रक्त और हाड़-माँस से निर्माण भी करती है, पीछे उसके विकास, उसकी सुख-समृद्धि और समुन्नति के लिये अपना सब कुछ न्यौछावर कर देती है। उसकी एक ही कामना रहती है मेरे सब बच्चे परस्पर प्रेमपूर्वक रहें, मित्रता का आचरण करें, न्यायपूर्वक सम्पत्तियों का उपभोग करें, परस्पर ईर्ष्या-द्वेष का कारण न बनें। चिर शान्ति, विश्व-मैत्री और “सर्वे भवन्ति सुखिनः” वह आदर्श है, जिनके कारण माँ सब देवताओं से बड़ी है।
हमारी धरती ही हमारी माता है यह मानकर उसकी उपासना करें। अहंकारियों ने, दुष्ट-दुराचारियों स्वार्थी और इन्द्रिय लोलुप जनों ने मातृ-भू को कितना कलंकित किया है इस पर भावनापूर्वक विचार करते समय आंखें भर आती है। हमने अप्रत्यक्ष देवताओं को तो पूजा की पर प्रत्यक्ष देवी धरती माता के भजन का कभी ध्यान ही नहीं आया। आया होता तो आज हम अधिकार के प्रश्न पर रक्त न बहाते, स्वार्थ के लिये दूसरे भाई का खून न करते, तिजोरियाँ भरने के लिये मिलावट न करते, मिथ्या सम्मान के लिये अहंकार का प्रदर्शन न करते।
संसार भर के प्राणी उसकी सन्तान-हमारे भाई हैं। यदि हमने माँ की उपासना की होती तो छल-कपट ईर्ष्या-द्वेष दम्भ, हिंसा, पाशविकता, युद्ध को प्रश्रय न देते। स्वर्ग और है भी क्या, जहाँ यह बुराइयाँ न हों वहीं तो स्वर्ग है। माँ की उपासना से स्वर्गीय आनंद की अनुभूति इसीलिये यहीं प्रत्यक्ष रूप से अभी मिलती है। इसलिये मैं कहता हूँ कि कुछ दिन और सब उपासना पद्धति बंद कर केवल “माँ” की मातृ-भूमि की उपासना करनी चाहिये।
स्वामी विवेकानन्द
अखण्ड ज्योति फरवरी 1969 पृष्ठ 1
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