Wednesday 16, April 2025
कृष्ण पक्ष तृतीया, बैशाख 2025
पंचांग 16/04/2025 • April 16, 2025
बैशाख कृष्ण पक्ष तृतीया, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), चैत्र | तृतीया तिथि 01:17 PM तक उपरांत चतुर्थी | नक्षत्र अनुराधा | व्यातीपात योग 12:18 AM तक, उसके बाद वरीयान योग | करण विष्टि 01:17 PM तक, बाद बव 02:23 AM तक, बाद बालव |
अप्रैल 16 बुधवार को राहु 12:17 PM से 01:53 PM तक है | चन्द्रमा वृश्चिक राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:53 AM सूर्यास्त 6:40 PM चन्द्रोदय 10:00 PM चन्द्रास्त 8:05 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वसंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - बैशाख
- अमांत - चैत्र
तिथि
- कृष्ण पक्ष तृतीया
- Apr 15 10:55 AM – Apr 16 01:17 PM
- कृष्ण पक्ष चतुर्थी
- Apr 16 01:17 PM – Apr 17 03:23 PM
नक्षत्र
- अनुराधा - Apr 16 03:10 AM – Apr 17 05:55 AM

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गायत्री तपोभूमि और आंदोलन का विस्तार
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
कई बार मनुष्यों को यह यह भ्रम होता था कि इस आंदोलन का संचालक उनका अनुभव विद्या त्याग सेवा इत्यादि के कारण से ही आंदोलन चल रहा है वो व्यक्ति जब पीछे चला जाएगा पर्दे के पीछे हो जाएगा या मर जाएगा हट जाएगा तो यह आंदोलन समाप्त होगा ऐसा ही होना चाहिए था क्योंकि असंख्य संस्थाओं का यही हुआ है उसके संचालक जब तक प्रभावशाली व्यक्ति बने रहते हैं तब तक उसकी गतिविधियाँ बढ़ी रहती हैं लेकिन यदि वो आंदोलन या कोई क्रियाकलाप व्यक्ति मात्र तक सीमित है तो उसके मरने के बाद प्रायः वो चीजें शिथिल हो जाती हैं या समाप्त हो जाती हैं गायत्री तपोभूमि से उसका संचालक चला गया और चले जाने के पश्चात भी उसकी गतिविधियाँ अनेक गुनी बढ़ती हुई चली गईं यह इस बात का प्रतीक और प्रमाण है कि इसके पीछे मनुष्य नहीं बल्कि भगवान की प्रेरणायें काम कर रही हैं वस्तुतः युग का परिवर्तन असाधारण काम है वस्तुयें बदली भी जा सकती हैं धन के द्वारा विज्ञान के द्वारा भौतिक स्तर बदले भी जा सकते हैं भौतिक स्थितियों में सुधार भी हो सकता है लेकिन जहाँ तक मनुष्य की भावनाओं के परिवर्तन का संबंध है वहाँ तक वो कार्य भगवान की इच्छा के बिना संभव नहीं है चेतनाओं को प्रभावित करना हँसी खेल नहीं है केवल वस्तुयें इमारतें बन सकती हैं मशीनें बन सकती हैं कारखाने लग सकते हैं गवर्नमेंट हैं बदली जा सकती हैं युद्ध लड़े जा सकते हैं यह भौतिक साधनों के ऊपर निर्भर है लेकिन मनुष्य का अंतरंग जो निकृष्ट स्तर पर जा गिरा है उसको ऊँचा उठाना उसके अंदर सत्प्रवृत्तियों को पैदा करना साधारण मनुष्यों का काम नहीं है यह असाधारण सत्ता का ही काम है यह अभियान युग निर्माण अभियान जिस ढंग से चल रहा है और जिस उदे्दश्य को लेकर के चल रहा है वो ऐसा ही उद्देश्य है और वो उद्देश्य भगवान की सहायता से ही पूरा होगा अगर हम यह सब विश्वास करें और यह मानकर चलें कि सम्भावना सुनिश्चित है
अखण्ड-ज्योति से
परोक्ष देवता अगणित हैं और उनकी साधना उपासना के हमात्म्य तथा विधा भी बहुतेरे; किन्तु इतने पर भी यह निश्चित नहीं कि वे अभीष्ट अनुग्रह करेंगे ही- इच्छित वरदान देंगे ही। यह भी हो सकता है कि निराशा हाथ लगे। मान्यता को अघात पहुँचे और परिश्रम निरर्थक चला जाय।
इस बुद्धिवादी युग में देव मान्यता के सम्बन्ध में सन्देह भी प्रकट किया जाता है। यहाँ तक कि अविश्वास एवं उपहास भरी चर्चायें भी होती हैं। ऐसी दशा में हमें सार्वजनीन ऐसे देवता का आश्रय लेना चाहिए,जो साम्प्रदायिक अन्धविश्वासों से ऊपर उठा एवं सर्वमान्य हो। साथ ही जिसके अनुग्रह और वरदान के सम्बन्ध में भी अँगुली न उठे।
ऐसे देवता एक और हैं और वह हैं- आत्मदेव। अपना सुसंस्कृत आपा एवं परिष्कृत व्यक्तित्व। इसका आश्रय रहने पर कोई न अभावग्रस्त रह सकता है और न निराश तिरस्कृत।
अन्य सभी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए कष्टसाध्य साधनायें करनी पड़ती हैं। आत्मदेव की सत्ता सबके भीतर समान रूप से रहते हूए भी उसे उत्कृष्ट बनाने के लिए निरन्तर अभ्यास की आवश्यकता होती है। अपने चिन्तन, चरित्र और व्यवहार को ऊँचे स्तर का बनाने के लिए आत्म विकास का आश्रय लेना पड़ता है। यही है सुनिश्चित फलदायिनी आत्मदेव की साधना।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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