Wednesday 19, March 2025
कृष्ण पक्ष पंचमी, चैत्र 2025
पंचांग 19/03/2025 • March 19, 2025
चैत्र कृष्ण पक्ष पंचमी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), फाल्गुन | पंचमी तिथि 12:37 AM तक उपरांत षष्ठी | नक्षत्र विशाखा 08:50 PM तक उपरांत अनुराधा | हर्षण योग 05:37 PM तक, उसके बाद वज्र योग | करण कौलव 11:25 AM तक, बाद तैतिल 12:37 AM तक, बाद गर |
मार्च 19 बुधवार को राहु 12:25 PM से 01:54 PM तक है | 02:06 PM तक चन्द्रमा तुला उपरांत वृश्चिक राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:26 AM सूर्यास्त 6:23 PM चन्द्रोदय 11:09 PM चन्द्रास्त 9:24 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वसंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - चैत्र
- अमांत - फाल्गुन
तिथि
- कृष्ण पक्ष पंचमी
- Mar 18 10:09 PM – Mar 20 12:37 AM
- कृष्ण पक्ष षष्ठी
- Mar 20 12:37 AM – Mar 21 02:45 AM
नक्षत्र
- विशाखा - Mar 18 05:51 PM – Mar 19 08:50 PM
- अनुराधा - Mar 19 08:50 PM – Mar 20 11:31 PM

भगवान की भक्ति का सिद्धांत क्या है | Bhagwan Ki Bhakti Ka Kya Siddhant Hai

स्वयं का स्वामी ही सच्चा स्वामी | Swayam Ka Swami Hi Saccha Swami | Shishya Sanjeevani
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! आज के दिव्य दर्शन 19 March 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
भगवान की यह परख बताता हूं, नहीं साहब, रात को सपने में दिखता है। चल, सपने में दिखता है। इसको नहीं, महाराज जी, रात को हमको हनुमान सपने में दिखते हैं। हां, तुझे दिखते हैं सपने में हनुमान? यह तो ख्वाब दिखता है। नहीं, हमको दिन में भी दिखे थे दो बार। हां, दिन में भी सपने दिखाई पड़ते हैं। तो आप हमको तो साक्षात्कार करा दीजिए भगवान का।साक्षात्कार करा दूंगा, तो तू मर जाएगा। तेरा फटकेगा पेट। महाराज जी, भगवान को साक्षात्कार? हां, साक्षात्कार कराएंगे, तेरी खोपड़ी फट जाएगी, और तेरा कलेजा फट जाएगा। हनुमान का साक्षात्कार हनुमान ने किया था। हनुमान ने किया था और साक्षात्कार करने के पश्चात फिर जीवन की सारी दिशाएं बदल गई थीं। तू क्या चाहता है? तू तो तमाशा देखना चाहता है न? हां, महाराज जी, भगवान ऐसे आवे, मोर मुकुट वाले भगवान आवे, और देवी नहार में बैठी हुई आवे। चले, ऐसा भगवान तो तुझे मैं ही दिखा दूंगा। ऐसा भगवान की तू पूजा काहे करता है? मैं तो ऐसे ही तमाशा दिखा दूंगा तुझे। ले, देख, कल्याण अखबार में छप रहा है, देख ले।नहीं, महाराज जी, मैं तो असली महादेव देखूंगा। तो जा, शिव पार्वती विवाह चल रहा है, नावेल्टी टाकीज में। वहां देख आ। नहीं, महाराज जी, मैं तो दर्शन करना चाहता हूं। तेरा मैं करा दूंगा दर्शन।आप कैसे करा देंगे? तू मेरे पास आ जाना, मैं करा दूंगा। किसका करा देंगे? तू जिसका कहेगा, उसी का करा दूंगा। महादेव के करा देंगे? हां, बेटे, महादेव का ही करा दूंगा।नहीं, मैं तो देवी का करूंगा। देवी का करा दूंगा। संतोषी माता का, मैं संतोषी माता का करा दूंगा। आप कैसे करा देंगे? बेटे, मैं तेरे ऊपर कहेगा, सोई दिखा दूंगा। जो भी तू कहे, भूत दिखा दूं, पलीत दिखा दूं, कुछ भी दिखा दूं। ऊपर एडवोकेट को जानता हूं, एडवोकेट को कह दूंगा, तो तुझे खट से दिखाई पड़ेगा। जो भी कहेगा, सोई दिखा दूंगा। जो भी तू कहेगा, सोई दिखा दूंगा।तो महाराज जी, फिर उसको देखने के बाद में मुझे देवी की कृपा मिल जाएगी? नहीं, बेटे, कृपा नहीं मिलेगी। यह तो ख्वाब है, ख्वाब देख लिया, रात में देख लिया तो क्या? और दिन में देख लिया तो क्या? भगवान के दर्शन करा दीजिए।नहीं, बेटे, भगवान के दर्शन तू आंख से देखना चाहता है, वह गलत है। आंख से किसी ने दुनिया में देखा नहीं है भगवान को। भगवान मिट्टी का नहीं है। भगवान एक संवेदना है, भगवान एक चेतना है, जो मनुष्य की अंतरात्मा में, अंतःकरण में श्रद्धा के रूप में, विश्वास के रूप में आती हैं, उत्साह के रूप में आती हैं। उससे पता चलता है कि आदमी के ऊपर भगवान आया कि नहीं।भगवान आया कि नहीं? भगवान जब मनुष्य के ऊपर आता है, तो कैसे आता है? दो उदाहरण मैंने दे दिए, नशे के रूप में, जिसमें आदमी के विचार करने के तरीके अलग हो जाते हैं दुनिया वालों से अलग, और आदमी के चिंतन के तरीके अलग हो जाते हैं दुनिया वालों से अलग। उनके जीवन के लक्ष्य, उनकी दिशा-धाराएं, उनके क्रियाकलाप, उनके सोचने के ढंग बहुत ऊंचे हो जाते हैं।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
शरीर के सुख साधन पैसे के बल पर खरीदे जा सकते हैं पर आत्मा को विकसित करने वाले सद्गुण धन के बदले में नहीं मिल सकते। परिजनों की भौतिक समृद्धि के सुखोपभोग के ऐशोआराम के साधन कोई धनी व्यक्ति आसानी से जुटा सकता है पर बालकों पर संस्कार डालने का काम धन खर्च करने मात्र से नहीं हो सकता। यदि इतने में ही परिवार की उन्नति हमने मान रखी हो तो बात दूसरी है पर यदि हमने विकसित व्यक्तित्व का मूल्याँकन किया हो और यह माना हो कि बात की बात में नष्ट हो जाने वाली दौलत की अपेक्षा व्यक्तित्व की प्रतिभा की महत्ता अधिक है तो निश्चय ही उसके लिए वे प्रयत्न करने होंगे जिनसे व्यक्तित्व विकसित होता है।
ऐसे प्रयत्नों में सबसे प्रधान, सब में आवश्यक यह है कि नारी के मानसिक संस्थान को प्रबुद्ध किया जाए। इसके लिए उसे एकदम घुटाने वाली पराधीनता से गुण करना होगा। इन बंधनों में रहते, किताबी ज्ञान करा देने जैसे उपायों से न उसे आगे बढ़ाया जा सकता है और न ऊंचा उठाया जा सकता है।
भविष्य की चिन्ता प्रत्येक व्यक्ति को रहती है। आने वाले कल की निश्चिन्तता के लिये जो कुछ बन पड़ता है सुरक्षात्मक प्रयत्न करते हैं। बीमा व्यवसाय इसी आधार पर टिका हुआ है। हमारा बुढ़ापा शान्तिमय बीते इसके लिये कुछ बचा लेना, जमा कर लेना ही पर्याप्त न होगा वरन् जिन लोगों के साथ जीवन के अंतिम दिन काटने हैं उन्हें सज्जन और सौम्य बना लेना ही वह कार्य होगा जिससे भावी जीवन की शाँति के संबंध में निश्चिन्तता हो सके।
आज हमारे बच्चे उद्दंडता, अवज्ञा, आलस्य एवं विलासिता की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। यह स्थिति अभिभावकों से लेकर अध्यापकों तक को चिन्तित बनाये हुए है। राष्ट्र का भविष्य जिस भावी पीढ़ी के हाथ में है वह यदि सद्गुणी न हुई तो समाज में बुराइयाँ ही बढ़ेंगी। जिस भ्रष्टाचार का, अनैतिकता का, विलासिता का, स्वार्थता का आज चारों ओर बोलबाला है उसके कारण अवाँछनीय कार्यों की संख्या दिन-दिन बढ़ती जा रही है। यदि यह अभिवृद्धि न रुकी तो उन्नति की अनेक योजनाओं के होते हुए भी भविष्य अन्धकारमय ही रहेगा।
.... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति -दिसंबर 1960 पृष्ठ 28
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