Thursday 20, March 2025
कृष्ण पक्ष षष्ठी, चैत्र 2025
पंचांग 20/03/2025 • March 20, 2025
चैत्र कृष्ण पक्ष षष्ठी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), फाल्गुन | षष्ठी तिथि 02:45 AM तक उपरांत सप्तमी | नक्षत्र अनुराधा 11:31 PM तक उपरांत ज्येष्ठा | वज्र योग 06:19 PM तक, उसके बाद सिद्धि योग | करण गर 01:44 PM तक, बाद वणिज 02:45 AM तक, बाद विष्टि |
मार्च 20 गुरुवार को राहु 01:54 PM से 03:24 PM तक है | चन्द्रमा वृश्चिक राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:25 AM सूर्यास्त 6:24 PM चन्द्रोदय 12:07 AM चन्द्रास्त 10:08 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वसंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - चैत्र
- अमांत - फाल्गुन
तिथि
- कृष्ण पक्ष षष्ठी
- Mar 20 12:37 AM – Mar 21 02:45 AM
- कृष्ण पक्ष सप्तमी
- Mar 21 02:45 AM – Mar 22 04:24 AM
नक्षत्र
- अनुराधा - Mar 19 08:50 PM – Mar 20 11:31 PM
- ज्येष्ठा - Mar 20 11:31 PM – Mar 22 01:45 AM

बुद्धि की देवी गायत्री है | Buddhi Ki Devi Gayatri Hai

नारी जागरण से समाज परिवर्तन, नारी जागरण और वर्तमान सामाजिक स्थिति | Book: 06, EP: 06
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन









आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! अखण्ड दीपक Akhand Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) एवं चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 20 March 2025 !!

!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 20 March 2025 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! आज के दिव्य दर्शन 20 March 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
गुरु जी, हम तो बड़ी चिंता में मरे जाते हैं। चिंता में मरा जाता है, तो बेटे, मैं दूर कर दूंगा। तू काहे की चिंता? पहले काहे की बता, तू चिंता, मुझे चिंता। महाराज जी, हमारे बाल-बच्चे नहीं होते हैं। तो बाल-बच्चे न होने से तेरा बड़ा कष्ट होता होगा। क्या-क्या कष्ट है, मुझे बताना। तो तेरे पेट में दर्द हो गया है, नहीं? तो तुझे गठिया हो गई है, बच्चा ना होने से? नहीं महाराज जी, बच्चा ना होने से गठिया तो नहीं है। तो फिर क्या आफत है तेरे ऊपर? नहीं महाराज जी, बच्चा नहीं होता, बड़ा कष्ट है। मुझे काहे कष्ट है, तुझे बता तो सही। बड़ा कष्ट है, पगला कहीं का। कष्ट है काहे का? तुझे तीन जरूरतें हैं आदमी की - रोटी, कपड़ा और मकान। सिनेमा वाले से तो पूछ लीजिए, कोई और चौथी हो तो कहो मुझसे। रोटी तुझे नहीं मिलती? मैं खिला दूंगा, तू मेरे पास आ जा। कपड़ा तुझे नहीं मिलता है? चल, कपड़े का मैं इंतजाम करूंगा। काम तो करना पड़ेगा, बिना काम के तो कपड़ा नहीं दूंगा। पर काम करता जा, रोटी कपड़ा दिला दूंगा। तेरे पास मकान है कि नहीं? नहीं, किराए का है। तो किराए के में क्या हर्ज है? किराए का तो मकान, ये भी किराए का ही है। किराया नहीं देंगे, आजकल ही बेदखल हो जाएंगे। नहीं साहब, किराए का मकान है। किराए के मकान से क्या आफत है? मित्रों, आदमी की अकल और आदमी की समझ इतनी ऊँची हो जाती है, इतनी ऊँची हो जाती है कि आदमी को नए सिरे से प्रत्येक समस्या पर विचार करता है। आध्यात्मिक जीवन में, आध्यात्मिक जीवन में चिंतन के तरीके, सोचने के ढंग, प्रत्येक बदल जाते हैं। और विचार करके ऐसे देखता है, मैं जो अब तक विचार करता रहा, उससे वह गलत है कि सही है। मित्रों, भगवान की भक्ति जब मनुष्य के भीतर आती है, तो वह नशे के रूप में आती है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
हमारा व्यक्तिगत और राष्ट्रीय भविष्य इस बात पर निर्भर है कि भावी पीढ़ियाँ सुसंस्कृत हों। स्कूली शिक्षा से आजीविका उपार्जन करने तथा विविध क्षेत्रों की साधारण जानकारी मिलने की बात पूरी हो सकती है, पर वे सद्गुण जो मानव की प्रधान सम्पत्ति हैं और जिनके ऊपर व्यक्ति तथा राष्ट्र की श्रेष्ठता निर्भर करती है, स्कूलों में नहीं सीखे जा सकते। उनके शिक्षण का सही स्थान है- घर का वातावरण और उसका निर्माण करती है- गृहिणी व्यक्ति और राष्ट्र की उन्नति के लिए हो रहे अनेकों प्रयत्नों में सुगृहिणी निर्माण कार्य अत्यधिक आवश्यक है। उपेक्षा करने पर बड़ी से बड़ी प्रगति भी व्यर्थ सिद्ध होगी। क्योंकि जब आगामी पीढ़ियों का व्यक्तित्व ही विकसित न हो सका तो बढ़ी हुई समृद्धि का भी कुछ लाभ न उठाया जा सकेगा वरन् बन्दर के हाथ में पड़ी हुई तलवार की तरह उसका दुरुपयोग एवं दुष्परिणाम ही हाथ लगेगा।
56 लाख साधुओं एवं भिखारियों का प्रश्न राष्ट्रीय प्रश्न है। इतने लोगों की उपार्जन क्षमता कुण्ठित पड़ी रहे और उनका निर्वाह भार जनता को वहन करना पड़े तो यह अर्थ संतुलन को बिगाड़ने वाली बात है। उससे भी बढ़कर चिंता की बात यह है कि हमारी आधी आबादी-नारी, कैदियों की भाँति घरों की चार-दीवारी में कलंकियों की तरह मुँह पर पर्दा डाले, घर वालों के लिए एक भार बनी बैठी रहे। इससे भी हमारा पारिवारिक एवं राष्ट्रीय अर्थ तंत्र असंतुलित ही होगा। यदि उनकी सामर्थ्य को विकसित किया जाए तो राष्ट्र के अर्थ तंत्र को समुन्नत बनाने में इतना योग मिल सकता है जितना कितनी ही विशालकाय योजनाएं भी नहीं दे सकती। इस समस्या के सामने भिखारियों की समस्या तुच्छ है। यदि हम नारी के विकास की समस्या को हल कर लें तो भिखारियों से भी अनेकों गुनी समस्या का हल हुआ समझना चाहिए।
जिन नारियों को हम माता, पत्नी, बहिन या पुत्री के रूप में प्यार करते हैं, जिन्हें सुखी बनाने की कुछ चिन्ता करते हैं उनके लिये रूढ़िवादी मान्यताओं द्वारा हम अपकार भी पूरा-पूरा करते है। किसी स्त्री का जब सूर्य अस्त हो जाता है और घर की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं होती तो उस बेचारी पर कैसी बीतती है इसे हममें से हर कोई जानता है। पर्दा प्रथा के कारण जो नारी बाजार से साग खरीदकर लाना भी नहीं सीख सकी, किसी के बात करना भी जिसे नहीं आता वह मुसीबत के समय पति या बच्चों के लिये दवा खरीदने या चिकित्सक को बुलाकर लाने में भी समर्थ नहीं हो सकती।
ऐसी स्त्रियों को जब अपने और अपने बच्चों के गुजारे की समस्या सामने आती है तब आगे केवल अंधकार ही दीखता है। किसी के दरवाजे पर भिखारी की तरह अपमान पूर्वक टुकड़ों से पेट भरते हुए उन्हें जिस व्यथा का सामना करना पड़ता है उसकी कल्पना यदि नारी को बन्धन में रखने वाले करें तो उनकी छाती पसीजे बिना न रहेगी। मानवता का दृष्टिकोण अपनाया जाए तो यही निष्कर्ष निकलेगा कि नारी का भविष्य अंधेरे में लटकता हुआ छोड़ना अभीष्ट न हो तो उसे स्वावलंबी, अपने पैरों पर खड़ी होने योग्य बनाना ही चाहिये।
.... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति -दिसंबर 1960 पृष्ठ 28
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