Monday 21, April 2025
कृष्ण पक्ष अष्टमी, बैशाख 2025
पंचांग 21/04/2025 • April 21, 2025
बैशाख कृष्ण पक्ष अष्टमी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), चैत्र | अष्टमी तिथि 06:58 PM तक उपरांत नवमी | नक्षत्र उत्तराषाढ़ा 12:37 PM तक उपरांत श्रवण | साध्य योग 11:00 PM तक, उसके बाद शुभ योग | करण बालव 07:05 AM तक, बाद कौलव 06:59 PM तक, बाद तैतिल |
अप्रैल 21 सोमवार को राहु 07:25 AM से 09:02 AM तक है | चन्द्रमा मकर राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:48 AM सूर्यास्त 6:43 PM चन्द्रोदय 1:28 AM चन्द्रास्त 12:54 PMअयन उत्तरायण द्रिक ऋतु ग्रीष्म
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - बैशाख
- अमांत - चैत्र
तिथि
- कृष्ण पक्ष अष्टमी
- Apr 20 07:01 PM – Apr 21 06:58 PM
- कृष्ण पक्ष नवमी
- Apr 21 06:58 PM – Apr 22 06:13 PM
नक्षत्र
- उत्तराषाढ़ा - Apr 20 11:48 AM – Apr 21 12:37 PM
- श्रवण - Apr 21 12:37 PM – Apr 22 12:44 PM

कोई काम छोटा नहीं होता | पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

क्षमताओं का सदुपयोग-प्रगति का राजमार्ग | Kshamtaon Ka Sadupyog Pragati Ka Rajmarg

"महर्षि दयानन्द की ब्रह्मचर्य शक्ति का प्रदर्शन"

आध्यात्मिकता की मुस्कान | Aadhyatmakata Ki Muskan

आप और गुरुदेव एक हो जाए | Aap Aur Gurudev Ek Ho Jaye | आद डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी

!! ब्रिसबेन में श्रद्धा संवर्धन जनसंपर्क अभियान संपन्न हुआ !!

सादगी से ही समाज बदला जा सकता हैं | Sadgi Se Hi Samaj Badla Ja Sakta Hai

आत्मनिर्माण का साधन स्वाध्याय और सत्संग, Aatma Nirman Ka Sadhan Swadhyay Aur Satsang
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! आज के दिव्य दर्शन 21 April 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
युग निर्माण परिवार के हर व्यक्ति को अपने आप में यह अनुभव करना चाहिए जिस जमाने में सारा समाज सोया हुआ है उस जमाने में सारे के सारे लोग धन कमाने के लिए और अपना विलासिता और वासना की पूर्ति करने के लिए अमीर बनने के लिए या सुख सुविधाएं एकत्रित करने के लिए अपने कुटुंबी और परिवार वालों के लिए धन और दौलतें जमा करने के लिए लगे हुए हैं उस जमाने में हम लोग उस मछली की तरीके से हैं जो पानी की धार को चीर कर के आगे आगे बढ़ती चली जाती है मछली को ही यह श्रेय है पानी की धारा को प्रवाह को चीर करके उलटी भी बह सकती है यह बिम्मत बड़े-बड़े हाथियों में भी नहीं होती हाथी भी पानी के प्रवाह को चीर के चल नहीं पाते वह भी पानी के प्रवाह के साथ ही बहते चले जाते हैं उल्टा चलना चाहे उनकी हिम्मत नहीं होती मछली की ही हिम्मत है कि वो धारा को चीरे और उल्टी चल पड़े आज की धाराएं लोभ की ओर बह रही हैं मोह की ओर बह रही हैं विलासिता की ओर बह रही हैं यश इकट्ठा करने की ओर बह रही हैं हर मनुष्य का मन और हर मनुष्य की दिशाएं और आकांक्षाएॅं इसी दिशा में बह रही हैं जिन लोगों के मनों में इस तरह की भावनाएं उदय हों कि हम को भगवान के कार्य को करने के लिए त्याग के लिए आगे बढ़ना चाहिए और परमार्थ के लिए परोपकार के लिए आगे बढ़ना चाहिए उनको क्या कहा जाए उनको यही कहा जाएगा कि उनके अंदर अभूतपूर्व साहस और युग और समय को चीर कर के धारा को चीर कर के हिम्मतें पैदा हो रही हैं यह हिम्मत भगवान के प्रत्यक्ष अनुग्रह का चिन्ह है हममें से हर आदमी को यह अनुभव करना होगा की नव निर्माण की पहली पंक्ति में खड़ा होने का हमको गौरव और श्रेय दिया जा रहा है इस श्रेय के सौभाग्य से हमको इंकार नहीं करना चाहिए
अखण्ड-ज्योति से
इस संसार में अनेक प्रकार के पुण्य और परमार्थ हैं। दूसरों की सेवा-सहायता करना पुण्य कार्य है, इससे कीर्ति, आत्मसंतोष तथा सद्गति की प्राप्ति होती है। इन सबसे भी बढ़कर एक पुण्य-परमार्थ है और वह है-`आत्मनिर्माण’। अपने दुर्गुणों को, विचारों को, कुसंस्कारों को, ईर्ष्या, तृष्णा, क्रोध, द्रोह, चिंता, भय एवं वासनाओं को, विवेक की सहायता से आत्मज्ञान की अग्नि में जला देना इतना बड़ा धर्म है, जिसकी तुलना सहस्र अश्वमेधों से नहीं हो सकती।
अपने अज्ञान को दूर करके मन-मंदिर में ज्ञान का दीपक जलाना, भगवान की सच्ची पूजा है। अपनी मानसिक-तुच्छता, दीनता, हीनता, दासता को हटाकर निर्भयता, सत्यता, पवित्रता एवं प्रसन्नता की आत्मिक प्रवृत्तियाँ बढ़ाना, करोड़ मन सोना दान करने की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है।
हर मनुष्य अपना-अपना आत्मनिर्माण करे, तो यह पृथ्वी स्वर्ग बन सकती है। फिर मनुष्यों को स्वर्ग जाने की इच्छा करने की नहीं, वरन् देवताओं को पृथ्वी पर आने की आवश्यकता अनुभव होगी। दूसरों की सेवा-सहायता करना पुण्य है, पर अपनी सेवा-सहायता करना, इससे भी बड़ा पुण्य है। अपनी शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक नैतिक और आध्यात्मिक स्थिति को ऊँचा उठाना, अपने को एक आदर्श नागरिक बनाना, इतना बड़ा धर्म-कार्य है, जिसकी तुलना अन्य किसी भी पुण्य-परमार्थ से नहीं हो सकती।
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति फरवरी 1950 पृष्ठ 10
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