Tuesday 22, April 2025
कृष्ण पक्ष नवमी, बैशाख 2025
पंचांग 22/04/2025 • April 22, 2025
बैशाख कृष्ण पक्ष नवमी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), चैत्र | नवमी तिथि 06:13 PM तक उपरांत दशमी | नक्षत्र श्रवण 12:44 PM तक उपरांत धनिष्ठा | शुभ योग 09:13 PM तक, उसके बाद शुक्ल योग | करण तैतिल 06:41 AM तक, बाद गर 06:13 PM तक, बाद वणिज 05:34 AM तक, बाद विष्टि |
अप्रैल 22 मंगलवार को राहु 03:30 PM से 05:07 PM तक है | 12:31 AM तक चन्द्रमा मकर उपरांत कुंभ राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:47 AM सूर्यास्त 6:44 PM चन्द्रोदय 2:08 AM चन्द्रास्त 12:54 PM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु ग्रीष्म
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - बैशाख
- अमांत - चैत्र
तिथि
- कृष्ण पक्ष नवमी
- Apr 21 06:58 PM – Apr 22 06:13 PM
- कृष्ण पक्ष दशमी
- Apr 22 06:13 PM – Apr 23 04:43 PM
नक्षत्र
- श्रवण - Apr 21 12:37 PM – Apr 22 12:44 PM
- धनिष्ठा - Apr 22 12:44 PM – Apr 23 12:07 PM

कैनबरा में संपन्न हुआ दीपयज्ञ का भव्य आयोजन |

गायत्री का वैज्ञानिक आधार | Gyatri Mantra Ka Vaigyanik Aadhar

ॐ नमः नमोकार, ॐ नमः नमोकार।

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इन नन्हे जीवो के लिए भी दाना पानी रखना चाहिए |

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व्यक्ति जीवन में हमारी श्रद्धा | Vyaktigat Jeevan Me Hamari Shraddha
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! आज के दिव्य दर्शन 22 April 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
पुल बनाने के लिए बनाए पीछे, तो भगवान के भक्तों की संख्या कितनी बड़ी हो गई। भगवान को अयोध्या में कितने भक्त थे उनके, लेकिन उन्हें नल और नील का अपना अनोखा ही श्रेय था। उन्होंने जो पुल बनाया, सुग्रीव और अंगद का पहला ही श्रेय था, जिन्होंने कि लंका में छलांग लगाई और वहां संदेश लेकर के पहुंचे।
क्या रावण को परास्त करने में केवल हनुमान और अंगद का ही श्रेय था? नहीं। असंख्य रीछ वानरों का श्रेय था और लड़ाई में बहुत बड़ा तमाशा हुआ था। लेकिन पहली पंक्ति में खड़ा होने के कारण से श्रेय उन्हीं को मिला।
हम सबको सौभाग्य अपना अनुभव करना चाहिए कि हम पहली पंक्ति में खड़े हैं और हमको वह कार्य करने के लिए आगे वाले से श्रेय दिया गया है, कि हम इस आंदोलन को अगले दिनों जो सारे विश्व का आंदोलन बनने वाला है, यह सीमित भारतवर्ष में नहीं रहने वाला है।
हिंदुओं तक इसका शुरुआत हुआ है, पर यह हिंदुओं तक सीमित नहीं है। यह भारतवर्ष से शुरू हुआ है, पर भारतवर्ष तक सीमित नहीं है। यह धार्मिक क्षेत्र से प्रारंभ हुआ है, पर धार्मिक क्षेत्र तक सीमित नहीं है।
यह प्रत्येक क्षेत्र में फैलने वाला है, सारे विश्व में फैलने वाला है और इसकी परिधि अत्यधिक विशाल होने वाली है। चिंगारी छोटी होती है, लेकिन जब जंगल में वह चिंगारी किसी तरह से लग जाती है, तो दावानल का रूप धारण कर लेती है और पूरे जंगल को जला देती है।
यह युग निर्माण आंदोलन जिन परिस्थितियों में आज है, उसको चिंगारी का रूप कहा जा सके तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी। छोटे रूप में है आज कल, आप देखिएगा कि किस तरीके से विश्वव्यापी बनता है और किस तरीके से इसकी ज्वालाएं सारे संसार में प्रकाशवान होती हैं।
प्रत्येक मनुष्य, चाहे वह संसार के किसी कोने में रहता हो, इस आंदोलन से किस तेजी के साथ प्रभावित होता है। ऐसे महान आंदोलन का, जो कि विश्व के भाग्य का फैसला करने वाला है और मनुष्य जाति की भारी संभावनाओं को समुन्नत करने वाला है, ऐसे अत्यधिक विशालकाय आंदोलन में अग्रिम पंक्ति पर जिन लोगों को खड़ा होने के लिए शरीर दिया गया है, उनको अपने आप को सौभाग्यवान शाली मानना चाहिए।
यह मान्यता जब-जब हमारे मन में परिपक्व हो गई, तो ही हम अपने कार्य को निष्ठापूर्वक कर सकेंगे। अन्यथा ढीले मन से, उखड़े मन से हम काम करेंगे और काम करने का वह फल नहीं मिलना चाहिए, नहीं मिलेगा जो मिलना चाहिए।
अखण्ड-ज्योति से
पालतू पशुओं के बंधन में बँधकर रहना पड़ता है, पर मनुष्य को यह सुविधा प्राप्त है कि स्वतन्त्र जीवन जियें और इच्छित परिस्थितियों का वरण करें।
उत्थान और पतन के परस्पर विरोधी दो मार्गों में से हम जिसको भी चाहें अपना सकते हैं। पतन के गर्त में गिरने की छूट है। यहाँ तक कि आत्महत्या पर उतारू व्यक्ति को भी बलपूर्वक बहुत दिन तक रोके नहीं रखा जा सकता।
यही बात उत्थान के सम्बन्ध में भी है। वह जितना चाहे उतना ऊँ चा उठ सकता है। पक्षी उन्मुक्त आकाश में विचरण करते, लम्बी दूरी पार करते, सृष्टि के सैन्दर्य का दर्शन करते हैं। पतंग भी हवा के सहारे आकाश चूमती है। आँधी के सम्पर्क में धूलिकण और तिनके तक ऊँची उड़ानें भरते हैं। फिर मनुष्य को उत्कर्ष की दिशाधारा अपनाने से कौन रोक सकता है?
आश्चर्य है कि लोग अपनी क्षमता और बुद्धिमत्ता का उपयोग पतन के गर्त में गिरने लिए करते हैं। यह तो अनायास भी हो सकता है। ढेला फेंकने पर नीचे गिरता है और बहाया हुआ पानी नीचे की दिशा में बहाव पकड़ लेता है।
दूरदर्शिता इसमें है कि ऊँचा उठने की बात सोची और वैसी योजना बनाई जाय। जिनके कदम इस दिशा में बढ़ते हैं, वे नर पशु न रहकर महामानव बनते हैं।
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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