Tuesday 22, October 2024
कृष्ण पक्ष षष्ठी, कार्तिक 2081
पंचांग 22/10/2024 • October 22, 2024
कार्तिक कृष्ण पक्ष षष्ठी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), आश्विन | षष्ठी तिथि 01:29 AM तक उपरांत सप्तमी | नक्षत्र आद्रा 05:38 AM तक उपरांत पुनर्वसु | परिघ योग 08:46 AM तक, उसके बाद शिव योग | करण गर 01:53 PM तक, बाद वणिज 01:29 AM तक, बाद विष्टि |
अक्टूबर 22 मंगलवार को राहु 02:48 PM से 04:11 PM तक है | चन्द्रमा मिथुन राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:28 AM सूर्यास्त 5:35 PM चन्द्रोदय 9:43 PM चन्द्रास्त 12:38 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु शरद
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - कार्तिक
- अमांत - आश्विन
तिथि
- कृष्ण पक्ष षष्ठी - Oct 22 02:29 AM – Oct 23 01:29 AM
- कृष्ण पक्ष सप्तमी - Oct 23 01:29 AM – Oct 24 01:19 AM
नक्षत्र
- आद्रा - Oct 22 05:51 AM – Oct 23 05:38 AM
- पुनर्वसु - Oct 23 05:38 AM – Oct 24 06:15 AM
कायरता, पाप्, और दुर्बलता तुममें नहीं रहनी चाहिए
श्रम का फल | Shram Ka Phal
उद्विग्न मत होइए | Udvign Mat Hoiye
आज की परिस्थितियों में सभी परिवर्तन चाहते हैं। अभावों के स्थान पर संपन्नता, अनिश्चितता के स्थान पर स्थिरता, आशांकाओं के स्थान पर आश्वासन अभीष्ट है। द्वेष का स्थान श्रद्धा को मिले – अविश्वास की जड़ ही कट जाय । ऐसी मुखर परिस्थितियों की कल्पना करने भर से आँखें चमकने लगती हैं।
सुविधा-साधन की दृष्टि से हम पूर्वजों की तुलना में कहीं आगे हैं। विज्ञान और बुद्धिवाद की संयुक्त प्रगति ने अनेकानेक साधन ऐसे प्रस्तुत किए हैं, जिनकी सहायता से अधिक सुखी जीवन जी सकते हैं। पूर्वजों की शिक्षा, चिकित्सा, परिवहन, संचार, यातायात, बिजली, तार, डाक, जहाज आदि अनेकों ऐसे सुविधा-साधन उपलब्ध नहीं थे, जैसे आज हैं। इन उपलब्धियों के आधार पर हमें अधिक सुखी होना चाहिए था, पर देखते है कि स्थिति और भी गई गुजरी हो गई है। चिकित्सा और पौष्टिक खाद्यों की सुविधा वाले दिन-दिन और भी रुग्ण बनते जा रहे हैं। उच्च शिक्षित व्यक्ति भी संतुलन और विवेक से रहित चिंतन करते और विक्षुब्ध रहते देखे जाते हैं। गरीबों का उठाईगीरी करना समझ में आ सकता है, पर जो संपन्न हैं वे क्यों अन्याय-अपहरण की नीति अपनाते हैं, यह समझ सकना कठिन है।
शिष्टाचार और आडम्बर तो बढ़ा, पर आत्मीयता और शालीनता की जड़ें खोखली होती जा रही हैं। चिन्तन और चरित्र के अवमूल्यन ने व्यक्ति और समाज के सामने असंख्य समस्याएं उत्पन्न कर दी हैं। उपलब्ध क्षमताओं का एवं साधनों के एक बड़े भाग का, उपयोग करने तथा उससे बचने की योजना पर ही खर्च होता रहता है। रचनात्मक कार्यों में लग सकने वाले साधन समस्याओं के कारण उत्पन्न उद्विग्नता में ही खप जाते हैं, फिर भी कोई समाधान दीखता नहीं। एक उलझन सुलझने नहीं पाती कि दूसरी नई उठकर खड़ी हो जाती है।. . . आदमी अपनी ही दृष्टि में घिनौना बनता जा रहा है तो फिर दूसरों से श्रद्धा, सम्मान, सद्भाव एवं सहयोग की अपेक्षा कैसे की जाए?
वर्तमान की अवांछनीयताओं से निपटने और भविष्य को उज्जवल बनाने के दोनो ही उद्देश्य विचार क्रान्ति अभियान से संभव होंगे। लाल मशाल ने इसी का प्रकाश फैलाने, वातावरण बनाने और भ्रान्तिओं की लंका को जलाने में हनुमान् की जलती पूँछ बनने का निश्चय किया है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 22 October 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
आपको अध्यात्म का बच्चा होना चाहिए |
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
गायत्री माता का हम जप करेंगे, तो गायत्री माता अनुग्रह करेंगी आप को जरूर अनुग्रह करेंगी, गायत्री माता का स्वभाव है वो जरूर सहायता करती हैं और गुरुजी का आशीर्वाद मिलेगा, वो अपने पुण्य का एक अंश देंगे। बिल्कुल यकीन रखिए, हमने सारी जिंदगी भर अपने पुण्य के अंश बाँटे हैं। बांटें हैं और हमको बाँटने में बड़ी खुशी होती है। लोगों को खाने में खुशी होती है, हमको खिलाने में खुशी होती है और एक और शक्ति है, जो हमारे ऊपर छायी हुई है, जिसकी वजह से ये ब्रह्मवर्चस बना है, और ये शान्तिकुन्ज बना है ये तीनों शक्तियाँ ऐसी हैं जो बराबर आपकी सहायता करने के लिए आमादा हैं और सच्चे मन से चाहती हैं कि आपको दें गाय सच्चे मन से चाहती है अपने बच्चे को हम सारा का सारा दूध पिला दें। जब घास खाकर के गाय आती है, दूध लेके आती है और ये चाहती है हम अपने बच्चे को पूरा का पूरा दूध पिला देंगे, लेकिन बच्चा तो उसका होना चाहिए, बच्चा किसी और का हुआ तब आपको गाय का ही बच्चा होना चाहिए। आपको संत का बच्चा होना चाहिए, आपको ऋषियों का बच्चा होना चाहिए, आपको अध्यात्म का बच्चा होना चाहिए |
गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
अखण्ड-ज्योति से
उपदेश किस प्रकार दिया जाता है, शिक्षा पैसे की जाती है? क्या मंच पर से श्रोताओं को व्याख्यान पर व्याख्यान सुनाकर उन्हें ज्ञान दिया जा सकता है? उपदेश का अर्थ है ज्ञान का सामाजिक विवरण। वास्तव में यह तो केवल एकान्त में ही हो सकता है। जो मनुष्य घंटे तक व्याख्यान सुनता है, पर जिसे उसके द्वारा अपने दैनिक जीवन को बदलने की कोई प्रेरणा नहीं मिलती उसके लिए सचमुच व्याख्यान का क्या मूल्य है?
इसकी उस मनुष्य से तुलना करो जो घड़ी भर के लिए ही किसी महात्मा की शरण में बैठता है, किन्तु इतने ही से उसके जीवन का सारा दृष्टिकोण बदल जाता है। कौन सी शिक्षा उत्तम है? प्रभावहीन होकर जोर से व्याख्यान देना या चुपचाप शान्तिपूर्वक आध्यात्म ज्ञान का प्रसार करना।
अच्छा, भाषण का उद्गम क्या है? मूल, सब का मूल है शुद्ध ज्ञान। उससे अहंकार ही उत्पत्ति होती है, फिर अहंकार से विचार प्रकट होते है और अन्त में ये शब्दों का रूप धारण करते हैं। इस प्रकार शब्द उस आदि स्रोत के प्रपोत्र के भी पुत्र हैं। यदि शब्दों का कोई मूल्य हो सकता है तो स्वयं निर्णय करो कि मौन उपदेश का प्रभाव कितना शक्तिशाली न होता होगा।
श्री रमन महर्षि,
अखण्ड ज्योति अप्रैल 1942
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