Wednesday 23, October 2024
कृष्ण पक्ष सप्तमी, कार्तिक 2081
पंचांग 23/10/2024 • October 23, 2024
कार्तिक कृष्ण पक्ष सप्तमी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), आश्विन | सप्तमी तिथि 01:19 AM तक उपरांत अष्टमी | नक्षत्र पुनर्वसु 06:15 AM तक उपरांत पुष्य | शिव योग 06:59 AM तक, उसके बाद सिद्ध योग 05:51 AM तक, उसके बाद साध्य योग | करण विष्टि 01:18 PM तक, बाद बव 01:19 AM तक, बाद बालव |
अक्टूबर 23 बुधवार को राहु 12:01 PM से 01:24 PM तक है | 12:02 AM तक चन्द्रमा मिथुन उपरांत कर्क राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:29 AM सूर्यास्त 5:34 PM चन्द्रोदय 10:46 PM चन्द्रास्त 12:38 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - कार्तिक
- अमांत - आश्विन
तिथि
- कृष्ण पक्ष सप्तमी - Oct 23 01:29 AM – Oct 24 01:19 AM
- कृष्ण पक्ष अष्टमी - Oct 24 01:19 AM – Oct 25 01:58 AM
नक्षत्र
- पुनर्वसु - Oct 23 05:38 AM – Oct 24 06:15 AM
- पुष्य - Oct 24 06:15 AM – Oct 25 07:40 AM
अपना भविष्य उज्जवल केसे बनाएं ?
कठिनाई का सामना करने को तेयार रहो
यद्यपि सम्पूर्ण भीतरी शत्रुओं- माया, मोह, ईर्ष्या, काम, लोभ, क्रोध इत्यादि का तजना कठिन है, तथापि अनुभव से ज्ञान होता है कि ‘अहंकार’ नामक आन्तरिक शत्रु को मिटाना और भी कष्ट साध्य है। यह वह शत्रु है जो छिप कर हम पर आक्रमण करता है। हमें ज्ञान तक नहीं होता कि हम ‘अहंकार’ के वशीभूत हैं।
अहंकार प्रत्येक मनुष्य में वर्तमान है। धनी मानी, वृद्ध, युवक, बालक विज्ञान किसी न किसी प्रकार के अहंकार में डूबे हैं। ‘अहं’ ही घमंड है। हमें किसी न किसी बात का मिथ्या गर्व बना है। विद्वान को अपनी विद्वत्ता का, धनी को अपने धन का, स्त्री को अपने रूप, यौवन, सौंदर्य का अहंकार है, राजा और जागीरदार अपने ऐश्वर्य के अहंकार में किसी दूसरे की नहीं सोचते, पूँजीपति अपनी पूँजी के गर्व में गरीब मजदूरों के अधिकारों को नहीं देना चाहते। संसार के अनेक संघर्षों का कारण यही है कि किसी के ‘अहं’ को चोट पहुँचती है। अभिमान मनुष्य के पतन का मूल है।
‘अहंकार’ को सूर हाथी मानते हैं। उन्होंने इसे ‘दिग्विजयी गज’ कहकर सम्बोधित किया है। अर्थात् संसार में बहुत कम इस दुर्बलता से मुक्त हैं। आदि काल से मनुष्य इस प्रयत्न में है कि वह अभिमान से मुक्त हो जाये और इसी के लिए प्रयत्न करता रहा है। किंतु शोक! महाशोक!! जीवन पर्यंत हम वृथा के अभिमान में फँसे रहते हैं। अपने बराबर किसी को नहीं मानते। अपनी बुद्धि को सबसे अधिक महत्व प्रदान करते हैं। अपनी चीज, बाल बच्चे, विचार, दृष्टिकोण, घर बार सच पर अभिमान करते हैं। इसी वृथा के अहंकार के कारण हम जीवन में और बड़ी बातें सम्पन्न नहीं कर पाते। जहाँ के तहाँ ही पड़े रह जाते हैं। हमारी उन्नति में रोक पहुँचाने वाला शत्रु अहंकार ही तो है।
मनुष्य अभिमान कर विषयों में फंसा रहता है, विवेक भूलता है। और फिर आयु पर्यन्त पछताता है। सम्पत्ति आती है और एक मामूली से झटके से निकल जाती है। शारीरिक शक्ति बीमारी के एक आक्रमण से नष्ट हो जाती है। पग जरा सी गलती से छूट जाना है और मनुष्य पदच्युत हो जाता है फिर कोई उसे टके को भी नहीं पूछता। धन, सम्पदा, ऐश्वर्य, शक्ति सब निस्सार पदार्थ हैं। मनुष्य इनके अभिमान में अपनी आध्यात्मिक उन्नति को भूल जाता है और पतनोन्मुख होता है।
अहंकार का अर्थ संकुचितता है। इससे मनुष्य अपने आपको एक संकुचित परिधि में बाँधे रखता है। वह दूसरों से उन्मुक्त भ्रातृभाव से मिल नहीं पाता, अपना हृदय उनके सामने नहीं खोल सकता। मिथ्या गर्व में वह यह सोचा करता है कि दूसरे आये और आकर उसकी मिथ्या प्रशंसा करे। प्रशंसा से वह फूल उठता है। उसकी शठता, मद, अभिमान द्विगुणित हो उठते हैं। धीरे-धीरे उसे दूसरों से तारीफ कराने की आदत बन जाती है। वह अपनी तनिक सी बुराई सुनते ही विह्वल हो उठता है और क्रोध में कुछ का कुछ कर बैठता है। बन्धन ही मृत्यु है, अहंकार का बन्धन सर्वथा त्याज्य है। अहंकार को चोट पहुँचते ही मनुष्य को हजारों बिच्छुओं के काटने के समान दुःख होता है।
आप जन्म से दूसरों के समान हैं। दूसरे भी आप जैसे ही हैं। सब में समानता है। फिर किस बात का वृथा अहंकार आप करते हैं। मिथ्या अभिमान में फँसकर क्यों आप एक नए आन्तरिक दुःख की सृष्टि कर रहे हैं। यदि आप अभिमानी नहीं हैं तो आपका अन्तस्थल शुद्ध निर्मल रहेगा, मानसिक वृत्तियाँ शाँत बनी रहेगी, मधुर निद्रा आवेगी, जनता में प्रत्येक जगह आपका सम्मान होगा। आपके पड़ौसी आपको भली प्रकार समझ सकेंगे। आन्तरिक दृष्टि से सफाई, स्वास्थ्य और सौभाग्य की जननी है। इस मनोविकार के मोहजाल में मुक्त हो जाइये।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति-मार्च 1949 पृष्ठ 19
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 23 October 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
भगवान ने हम को विशेष काम के लिए भेजा है |
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
युग निर्माण परिवार के हर व्यक्ति को अपने बारे में ऐसी मान्यता बनानी चाहिए कि हम को भगवान ने विशेष काम के लिए भेजा है यह कोई विशेष समय है और हम में से हर आदमी को यह अनुभव करना चाहिए कि हम कोई विशेष उत्तरदायित्व लेकर के आए हैं समय को बदलने का उत्तरदायित्व युग की आवश्यकताओं को पूरा करने का उत्तरदायित्व हमारे कंधे पर है अगर यह तीन बात आप विश्वास कर सके तो आपकी प्रगति का द्वार खुल सकता है और आप महामानवों के रास्ते पर जो कि इस अपने परिवार के निर्माण का उद्देश्य है आप सफलतापूर्वक चल सकते है आपका विशिष्ट व्यक्तित्व सामान्य मनुष्यों जैसा नर पामरों जैसा नहीं यह विशेष समय सामान्य जैसे शांति के समय होते हैं वैसा नहीं यह आपत्तिकाल जैसा समय है और आपत्तिकाल में आपातकालीन उत्तरदायित्व होते हैं हमारे ऊपर जिम्मेदारियां हैं सामान्य जिम्मेदारियां नहीं है पेट भरने मात्र की जिम्मेदारियां नहीं है बल्कि युग की भी जिम्मेदारियां हैं यह मान के हमको चलना चाहिए |
पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
अखण्ड-ज्योति से
आज की परिस्थितियों में सभी परिवर्तन चाहते हैं। अभावों के स्थान पर संपन्नता, अनिश्चितता के स्थान पर स्थिरता, आशांकाओं के स्थान पर आश्वासन अभीष्ट है। द्वेष का स्थान श्रद्धा को मिले – अविश्वास की जड़ ही कट जाय । ऐसी मुखर परिस्थितियों की कल्पना करने भर से आँखें चमकने लगती हैं।
सुविधा-साधन की दृष्टि से हम पूर्वजों की तुलना में कहीं आगे हैं। विज्ञान और बुद्धिवाद की संयुक्त प्रगति ने अनेकानेक साधन ऐसे प्रस्तुत किए हैं, जिनकी सहायता से अधिक सुखी जीवन जी सकते हैं। पूर्वजों की शिक्षा, चिकित्सा, परिवहन, संचार, यातायात, बिजली, तार, डाक, जहाज आदि अनेकों ऐसे सुविधा-साधन उपलब्ध नहीं थे, जैसे आज हैं। इन उपलब्धियों के आधार पर हमें अधिक सुखी होना चाहिए था, पर देखते है कि स्थिति और भी गई गुजरी हो गई है। चिकित्सा और पौष्टिक खाद्यों की सुविधा वाले दिन-दिन और भी रुग्ण बनते जा रहे हैं। उच्च शिक्षित व्यक्ति भी संतुलन और विवेक से रहित चिंतन करते और विक्षुब्ध रहते देखे जाते हैं। गरीबों का उठाईगीरी करना समझ में आ सकता है, पर जो संपन्न हैं वे क्यों अन्याय-अपहरण की नीति अपनाते हैं, यह समझ सकना कठिन है।
शिष्टाचार और आडम्बर तो बढ़ा, पर आत्मीयता और शालीनता की जड़ें खोखली होती जा रही हैं। चिन्तन और चरित्र के अवमूल्यन ने व्यक्ति और समाज के सामने असंख्य समस्याएं उत्पन्न कर दी हैं। उपलब्ध क्षमताओं का एवं साधनों के एक बड़े भाग का, उपयोग करने तथा उससे बचने की योजना पर ही खर्च होता रहता है। रचनात्मक कार्यों में लग सकने वाले साधन समस्याओं के कारण उत्पन्न उद्विग्नता में ही खप जाते हैं, फिर भी कोई समाधान दीखता नहीं। एक उलझन सुलझने नहीं पाती कि दूसरी नई उठकर खड़ी हो जाती है।. . . आदमी अपनी ही दृष्टि में घिनौना बनता जा रहा है तो फिर दूसरों से श्रद्धा, सम्मान, सद्भाव एवं सहयोग की अपेक्षा कैसे की जाए?
वर्तमान की अवांछनीयताओं से निपटने और भविष्य को उज्जवल बनाने के दोनो ही उद्देश्य विचार क्रान्ति अभियान से संभव होंगे। लाल मशाल ने इसी का प्रकाश फैलाने, वातावरण बनाने और भ्रान्तिओं की लंका को जलाने में हनुमान् की जलती पूँछ बनने का निश्चय किया है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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