Sunday 23, March 2025
कृष्ण पक्ष नवमी, चैत्र 2025
पंचांग 23/03/2025 • March 23, 2025
चैत्र कृष्ण पक्ष नवमी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), फाल्गुन | नवमी तिथि 05:38 AM तक उपरांत दशमी | नक्षत्र पूर्वाषाढ़ा 04:18 AM तक उपरांत उत्तराषाढ़ा | वरीयान योग 05:58 PM तक, उसके बाद परिघ योग | करण तैतिल 05:37 PM तक, बाद गर 05:38 AM तक, बाद वणिज |
मार्च 23 रविवार को राहु 04:55 PM से 06:26 PM तक है | चन्द्रमा धनु राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:21 AM सूर्यास्त 6:26 PM चन्द्रोदय 1:59 AM चन्द्रास्त 12:58 PM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वसंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - चैत्र
- अमांत - फाल्गुन
तिथि
- कृष्ण पक्ष नवमी
- Mar 23 05:23 AM – Mar 24 05:38 AM
- कृष्ण पक्ष दशमी
- Mar 24 05:38 AM – Mar 25 05:05 AM
नक्षत्र
- पूर्वाषाढ़ा - Mar 23 03:23 AM – Mar 24 04:18 AM
- उत्तराषाढ़ा - Mar 24 04:18 AM – Mar 25 04:26 AM

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!! सप्त ऋषि मंदिर गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 23 March 2025 !!

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!! प्रज्ञेश्वर महादेव मंदिर Prageshwar Mahadev 23 March 2025 !!

!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 23 March 2025 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
आप अपनी श्रद्धा और भक्ति का विकास कर लें, इससे कम में काम चलेगा नहीं। नहीं महाराज जी, श्रद्धा और भक्ति के चक्कर में तो हम हैं नहीं। आप जो कहें, सो हम कर दें। क्या करेगा तू? नहीं महाराज जी, आप जितना कहें, जप कर दें, जितना कहें, पूजा कर दें, जितना कहें, देवी को प्रसाद चढ़ा दें। नहीं बेटे, चाहे तू देवी को प्रसाद चढ़ाए, चाहे मत चढ़ाए, देवी बिना प्रसाद के प्रसन्न हो जाएगी। हां बेटे, बिना प्रसाद के भी प्रसन्न हो जाएगी।
एक बार श्री कृष्ण भगवान विदुर के घर गए। विदुर के घर गए, विदुर की धर्मपत्नी केले के छिलके छील-छील के भगवान को खिलाती जा रही थी, और केले का गूदा जमीन पे डालती जा रही थी। आए विदुर, विदुर आए और विदुर ने पूछा, "अरे मूरख, यह क्या करती है? यह भगवान अपने घर में अतिथि आए हैं, इनको तू केले के छिलके खिलाती है और गूदा जमीन पे डालती है। यह क्या गलती करती है?" कृष्ण ने कहा, "विदुर तुम नहीं जानते, मैं भावनाएं खाता हूं और भावनाएं यह खिला रही हैं। केले का मुझे क्या करना और गूदे का मुझे क्या करना है? न मेरा गूदे से कोई ताल्लुक है, न केले से ताल्लुक है। केले से नहीं बेटे, भावनाओं से ताल्लुक है।"
लोगों ने क्या समझ के रखा है? लोगों ने विधि और विधानों को समझ के रखा है, कर्मकांडों को समझ के रखा है, वस्तुओं को समझ के रखा है। इस वस्तु से यह मिल जाएगा, असली रुद्राक्ष की माला मिल जाएगी तो शंकर भगवान मिल जाएंगे। अच्छा, असली रुद्राक्ष की माला मिलेगी? हां, असली रुद्राक्ष मिल जाए तो शंकर भगवान प्रसन्न हो जाएंगे। तूने यह समझा है? शंकर भगवान को वस्तुओं की जरूरत है। वस्तुओं से तेरे ईमान का वो पता लगाते हैं। वस्तुओं को देखकर के जानेंगे कि तू भगत है या नहीं।
हां महाराज जी, ये शंकर भगवान के बारे में तो हमने यही सुना है। अगर वह रुद्राक्ष की असली माला देख लें, किसी के पास तो बस लट्टू हो जाते हैं, "आ आ, असली रुद्राक्ष की माला, इसी पे ए ए, यही भगत है, यही भगत है, यही भगत है, असली रुद्राक्ष की माला वाला!" बेटे, असली रुद्राक्ष की माला वाला रहा होता, तो एक-एक लाख रुपये की बिकती एक रुद्राक्ष की माला। क्यों? रुद्राक्ष की माला बेचने को कोई तैयार नहीं होता। सब यों कहते, "असली रुद्राक्ष की माला हमारे पे है और शंकर हमारे पास आएंगे। जैसे ही शंकर भगवान आएंगे, पकड़ लेंगे। शंकर भगवान को ला, पैसा। फिर एक लाख रुपये की वह माला बिकती, अगर असली रुद्राक्ष की माला से शंकर भगवान आ जाते।"
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
शरीर अनेक सुख-सुविधाओं का माध्यम है, ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा रसास्वादन और कर्मेन्द्रियों के द्वारा उपार्जन करने वाला शरीर ही सांसारिक हर्षोल्लास प्राप्त करता है। इसलिए इसे स्वस्थ, सुन्दर, सुसज्जित एवं समुन्नत स्थिति में रखना चाहिए। इसी दृष्टिï से उत्तम आहार-विहार रखा जाता है, तनिक सा रोग-कष्टï होते ही उपचार कर ली जाती है। शरीर की ज्योति ही मस्तिष्क की उपयोगिता है। आत्मा की चेतना और शरीर की गतिशीलता का भौतिक व आत्मिक समन्वय का प्रतीक है, यह मन मस्तिष्क इसकी अपनी उपयोगिता है। मन की कल्पना, बुद्धि का निर्णय, चित्त की आकांक्षा और अहन्ता की प्रवृत्ति इन चारों से मिलकर अन्त:करण चतुष्टïय बना है।
सभ्यता, संस्कृति, शिक्षा, दीक्षा द्वारा मस्तिष्क को विकसित एवं परिष्कृत करने के लिए हमारी चेष्टïा निरन्तर रहती है क्योंकि भौतिक जगत में उच्चस्तरीय विकास एवं आनन्द उसी के माध्यम से सम्भव है। सभ्य, सुसंस्कृत , सुशिक्षित व्यक्ति ही नेता, कलाकार, शिक्षक, डॉक्टर, इंजीनिरय, वैज्ञानिक, साहित्यकार आदि ही पद प्राप्त कर सकते हैं।
शरीर को समुन्नत स्थिति में रखने के लिए पौष्टिïक आहार, व्यायाम, चिकित्सा, विनोद आनन्द आदि की अगणित व्यवस्थाएँ की गई हैं। मस्तिष्कीय उन्नति के लिए स्कूल, कॉलेज, प्रशिक्षण केन्द्र, गोष्ठिïयाँ, सभाएँ विद्यमान हैं। पुस्तिकाएँ, रेडियो, फिल्म आदि का सृजन किया गया है जिससे कि मस्तिष्कीय समर्थता बढ़े।
मनुष्य का स्थूल कलेवर शरीर और मन के रूप में ही जाना समझा जा सकता है। सो उन्हीं के लिए सुविधा साधन जुटाने में हर कोई जुटा है। यह उचित भी है। इस जगत के लिए जड़ साधनों और चेतन हलचलों को यदि मानवी सुविधा एवं सन्तोष के लिए नियोजित किया जाता है और उसके लिए उत्साहवर्धक प्रयास जुटाया जाता है तो इसमें अनुचित भी क्या हैै?
मनुष्य द्वारा जो कुछ किया जा रहा है, संसार में जो हो रहा है, उसे स्वाभाविक ही कहा जाना चाहिए। यहाँ उसकी निन्दा प्रशंसा नहीं की जा रही है। ध्यान उस तथ्य की ओर आकर्षित किया जा रहा है जो इस सबसे अधिक उत्कृष्टï एवं आवश्यक था उसे एक प्रकार से भुला ही दिया गया। समझ यह लिया गया है कि मनुष्य जो सब कुछ है, वह शरीर और मन तक की सीमित है। इससे आगे, इससे ऊपर और कोई हस्ती नहीं। यदि इससे आगे, इससे ऊपर भी कुछ समझा गया होता तो उसके लिए भी जीवन क्रम में वैसा ही स्थान मिलता, वैसा ही प्रयास होता, जैसा शरीर और मन के लिए होता है, पर हम देखते हैं वह तीसरी सत्ता जो इन दोनों से लाखों, करोड़ों गुनी अधिक महत्त्वपूर्ण है एक प्रकार से उपेक्षित विस्मृत ही पड़ी है और वह लाभ और आनन्द जो अत्यन्त सुखद एवं समर्थ है एक प्रकार से अनुपलब्ध ही रहा है।
रोज ही यह कहा और सुना जाता है कि हमारे शरीर और मन से ऊपर आत्मा है। सत्संग और स्वाध्याय के नाम पर यह शब्द प्रतिदिन आये दिन आँखों और कानों के पर्दों पर टकराते हैं, पर वह सब एक ऐसी विडम्बना बन कर रह जाता है जो मानो कहने-सुनने और पढऩे-लिखने के लिए ही खड़ी की गई हो। वास्तविकता से जिसका कोई सीधा सम्बन्ध न हो। यदि ऐसा न होता तो आत्मा को सचमुच ही महत्त्वपूर्ण माना गया होता। कम से कम शरीर, मन जितने स्तर का समझा गया होता, तो उसके लिए उतना श्रम एवं चिन्तन तो नियोजित किया ही गया होता, जितना कायिक, मानसिक उपलब्धियों के लिए किया जाता है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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