Tuesday 25, March 2025
कृष्ण पक्ष एकादशी, चैत्र 2025
पंचांग 25/03/2025 • March 25, 2025
चैत्र कृष्ण पक्ष एकादशी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), फाल्गुन | एकादशी तिथि 03:45 AM तक उपरांत द्वादशी | नक्षत्र श्रवण 03:49 AM तक उपरांत धनिष्ठा | शिव योग 02:53 PM तक, उसके बाद सिद्ध योग | करण बव 04:31 PM तक, बाद बालव 03:45 AM तक, बाद कौलव |
मार्च 25 मंगलवार को राहु 03:25 PM से 04:56 PM तक है | चन्द्रमा मकर राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:19 AM सूर्यास्त 6:27 PM चन्द्रोदय 3:33 AM चन्द्रास्त 2:04 PM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वसंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - चैत्र
- अमांत - फाल्गुन
तिथि
- कृष्ण पक्ष एकादशी
- Mar 25 05:05 AM – Mar 26 03:45 AM
- कृष्ण पक्ष द्वादशी
- Mar 26 03:45 AM – Mar 27 01:43 AM
नक्षत्र
- श्रवण - Mar 25 04:26 AM – Mar 26 03:49 AM
- धनिष्ठा - Mar 26 03:49 AM – Mar 27 02:29 AM

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गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







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आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! आज के दिव्य दर्शन 25 March 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
एक था मेरे पास दक्षिणावर्ती शंख, शंख का वह दाहिने ओर घूमा रहता है, न मुंह ऐसा। कोई दे गया था, कहीं से आ गया था, कोई दे गया था, मुझे दे गया था। महाराज जी, असली वह है शंख है। अच्छा, शंख राजा जो मेरे पास है, यहां के अलवर स्टेट में, अलवर राज्य में एक जावनी सेट है, राजा प्रह्लाद सिंह हैं। वहां आए, वह आते हैं, यूं कहते हैं, "महाराज जी, हां, यह जो है, यह दक्षिणावर्त शंख जो होता है, यह लक्ष्मी का वाहन है। जब कभी किसी के पास दक्षिणावर्त शंख होगा, लक्ष्मी जी आ जाएंगी, उसके पास आ जाएंगी।" "बेटा, अच्छा बता रहे हो।" "तो महाराज जी, हमारे वहां में चमचम सब जगह अफवाह है, सारे अलवर में, गुरु जी को असली दक्षिणावर्त शंख मिला है और साढ़े तीन फेरे का है। भीतर किसी के में फेरा होता है, ढाई, किसी के में होता है पौने तीन, किसी के में होता है चार, साढ़े तीन का नहीं होता, साढ़े तीन का असली रुद्राक्ष का साढ़े तीन फेरे का दक्षिणावर्त शंख आपके पास है और किसी के पास नहीं है। हमको यह बता दिया, लोगों ने। आपको तो उसी से सारी सिद्धि मिली होगी।" मैंने कहा, "शायद मिली होंगी, बेटा, मुझे उसी से मिली होगी।" "महाराज जी, एक शंख हमारे लिए मंगा देना।" तो एक बार आया, फिर दोबारा, फिर से आया। "महाराज जी, वह शंख आपको अच्छा मिल गया, कहीं से। एक शंख जरूर मंगा दीजिए हमारे घर में, हमारे ऊपर कर्जा भी हो गया है, और हमारी पैसे की हालत बहुत है। एक शंख मिल जाए, तो बड़ा अच्छा है।"
तो बेटा, मैं समझ गया इसका क्या मतलब है। "तू बेटा इसी को ले जा।"
"नहीं महाराज जी, इसे ले जाएंगे तो आपकी लक्ष्मी हमारे घर चली आएगी।"
"तो बेटा, चली जाने दे, फिर मैं कहीं और से बुला लाऊंगा। तू ले जा।" लक्ष्मी, इसे दे दिया, उसके हाथ में दक्षिणावर्ती शंख ले गया। वह शंख फिर आया, एक साल भर पीछे।
"क्यों भाई, कुछ कर्जा-वर्जा चुका कि नहीं चुका, कुछ कैसे हाल-चाल है?"
"महाराज जी, कुछ ऐसे ही थोड़ा बहुत ही कर्ज चुकाया, लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ।"
"तो बेटा, तू उसी को रख, उससे कुछ फायदा नहीं हो सकता। क्यों? लोगों का यह ख्याल है काहे से कि वस्तुओं से, क्रियाओं से, कर्मकांडों से इनसे हम चीजों को उठा सकते हैं, इनसे भगवान की शक्तियां जो कि मैं आपसे वर्णन कर रहा था, इसके चमत्कार आपको उस दिन बता रहा था। किन से मिल सकती हैं? नहीं बेटे, उनसे नहीं मिल सकती है।"
"तो किस चीज से मिल सकती है?" "वह बेटे, उससे मिल सकती हैं, जिसको हम कहते हैं श्रद्धा और विश्वास। श्रद्धा और विश्वास हमको पैदा करना पड़ेगा भगवान के प्रति, मंत्र के प्रति, उपासना के प्रति, हर एक के प्रति। अगर हम श्रद्धा विश्वास पैदा करने में समर्थ हो सकें, तब, तब बेटे, चमत्कार आएंगे हमारे जीवन में।"
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
बहुत-से व्यक्ति थे जो पहले सिद्धान्तवाद की राह पर चले और भटक कर कहाँ से कहाँ पहुँचे? भस्मासुर का पुराना नाम बताऊँ आपको! मारीचि का पुराना नाम बताऊँ आपको। ये सभी योग्य तपस्वी थे। पहले जब उन्होंने उपासना-साधना शुरू की थी, तब अपने घर से तप करने के लिए हिमालय पर गए थे। तप और पूजा-उपासना के साथ-साथ में कड़े नियम और व्रतों का पालन किया था। तब वे बहुत मेधावी थे, लेकिन समय और परिस्थितियों के भटकाव में वे कहीं के मारे कहीं चले गए। भस्मासुर का क्या हो गया? जिसको प्रलोभन सताते हैं वे भटक जाते हैं और कहीं के मारे कहीं चले जाते हैं।
साधु-बाबाजी जिस दिन घर से निकलते हैं, उस दिन यह श्रद्धा लेकर निकलते हैं कि हमको संत बनना है, महात्मा बनना है, ऋषि बनना है, तपस्वी बनना है। लेकिन थोड़े दिनों बाद वह जो उमंग होती है, वह ढीली पड़ जाती है और ढीली पड़ने के बाद में संसार के प्रलोभन उनको खींचते हैं। किसी की बहिन-बेटी की ओर देखते हैं, किसी से पैसा लेते हैं। किसी को चेला-चेली बनाते हैं। किसी की हजामत बनाते हैं। फिर जाने क्या से क्या हो जाता है? पतन का मार्ग यहीं से आरम्भ होता है। ग्रेविटी-गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी की हर चीज को ऊपर से नीचे की ओर खींचती है।
संसार भी एक ग्रेविटी है। आप लोगों से सबसे मेरा यह कहना है कि आप ग्रैविटी से खिंचना मत। रोज सबेरे उठकर भगवान के नाम के साथ में यह विचार किया कीजिए कि हमने किन सिद्धान्तों के लिए समर्पण किया था? और पहला कदम जब उठाया था तो किन सिद्धान्तों के आधार पर उठाया था? उन सिद्धान्तों को रोज याद कर लिया कीजिए। रोज याद किया कीजिए कि हमारी उस श्रद्धा में और उस निष्ठा में, उस संकल्प और उस त्यागवृत्ति में कहीं फर्क तो नहीं आ गया। संसार में हमको खींच तो नहीं लिया। कहीं हम कमीने लोगों की नकल तो नहीं करने लगे। आप यह मत करना।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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