Monday 31, March 2025
शुक्ल पक्ष द्वितीया, चैत्र 2025
पंचांग 31/03/2025 • March 31, 2025
चैत्र शुक्ल पक्ष द्वितीया, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), चैत्र | द्वितीया तिथि 09:11 AM तक उपरांत तृतीया तिथि 05:42 AM तक उपरांत चतुर्थी | नक्षत्र अश्विनी 01:45 PM तक उपरांत भरणी | वैधृति योग 01:45 PM तक, उसके बाद विष्कुम्भ योग | करण कौलव 09:11 AM तक, बाद तैतिल 07:25 PM तक, बाद गर 05:42 AM तक, बाद वणिज |
मार्च 31 सोमवार को राहु 07:44 AM से 09:16 AM तक है | चन्द्रमा मेष राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:11 AM सूर्यास्त 6:31 PM चन्द्रोदय 7:06 AM चन्द्रास्त 8:59 PM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वसंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - चैत्र
- अमांत - चैत्र
तिथि
- शुक्ल पक्ष द्वितीया
- Mar 30 12:49 PM – Mar 31 09:11 AM
- शुक्ल पक्ष तृतीया [ क्षय तिथि ]
- Mar 31 09:11 AM – Apr 01 05:42 AM
- शुक्ल पक्ष चतुर्थी
- Apr 01 05:42 AM – Apr 02 02:32 AM
नक्षत्र
- अश्विनी - Mar 30 04:35 PM – Mar 31 01:45 PM
- भरणी - Mar 31 01:45 PM – Apr 01 11:06 AM

नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की हार्दिक शुभकामनाएं! 🌸🙏

Navratri Day 2 सुखी और शांतिपूर्ण जीवन की देवी माँ ब्रह्मचारिणी | Brahmacharini Mata

युग निर्माण परिवार को क्यों सौभाग्यवान मानना चाहिए ? Yug Nirman Pariwar Ko Kyun Saubhagyawan Manana Chahiye
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! आज के दिव्य दर्शन 31 March 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
आपका वास्तविक जो अस्तित्व है, जिसके द्वारा भजन किया जाना चाहिए, वो है आपका चिंतन चेतना। चिंतन से प्रारंभ होती है चेतना का स्वरूप है चिंतन। चिंतन आपका कहाँ लगा है, ये बताइए। सीधी बात ये बताइए, आपका चिंतन कहाँ लग रहा है? हाथ कहीं भी लग रहे हों, जीभ कहीं भी चल रही हो, वस्तुएं कहीं भी रखी हो, माला कहीं भी चल रही हो, मुझे तो आप ये बताइए, आपका चिंतन कहाँ लगा है? चिंतन तो भागता रहता है, बेटे, तो भागता रहता है। तो बेटे, भजन कहाँ हुआ? चिंतन को लगाने का उद्देश्य ये है कि जिस काम के लिए वह क्रियाएं कराई जा रही हैं, उसमें इशारे बनाए हुए हैं और उस इशारे के साथ में आपको क्या चिंतन करना चाहिए?
हम सबेरे आपको ध्यान कराते हैं और ध्यान कराने के साथ-साथ सजेशन देते हैं, निर्देश देते हैं। क्या मतलब है निर्देश से? मतलब ये है कि जिस समय हम जो बात कहें, वैसे ही आपका विचार चलना चाहिए। जो हम कहें, वैसे ही कल्पना कीजिए। हमने कहा सप्तऋषियों का तपस्थान, आप ध्यान कीजिए। चारों ओर यहाँ सात ऋषि बैठे हुए हैं, बड़ा घना जंगल बैठा हुआ है, और सातों ऋषि समाधिलगाए बैठे हुए हैं। ये पुनीत स्थान, जिसमें किस तरीके से चारों ओर बैठे हुए हैं, ऐसे आप कल्पना कीजिए। मन भाग जाएगा, बेटे, भाग जाए तो हमसे कहना। हम जो बता रहे हैं, उस पर ध्यान लगा, फिर देखते हैं कैसे भाग जाएगा।
कल्पना कीजिए, हम सबेरे आपको सजेशन देते हैं और ये बताते हैं, हम जो कह रहे हैं, उसके हिसाब से अपने चिंतन को और अपने विचार करने की शैली को आप उसी केंद्र में स्थापित कीजिए, जो हमने कहा था। आपसे प्रातःकाल विचार कीजिए, सबेरा हो गया, स्वर्णिम सूर्योदय, लाल रंग का सूरज, सबेरे निकलता हुआ, बड़ा वाला सूरज, पूरब से निकल रहा है। थोड़ा निकला अभी, और बढ़ा, अभी और बढ़ा। पूरा सूरज निकल आया। क्या मतलब है, बेटे? हम जो कहते थे, तेरे लिए अपने मन को हमारे कहे हुए बात पे लगा दे, फिर तेरा मन उस काम पर लग जाएगा। भागने का सवाल ही नहीं। एक काम पर लगा दिया, कैसे भागेगा? काम पर जो नहीं लगाया, भागेगा। इसलिए क्या करना चाहिए? प्रत्येक क्रिया, प्रत्येक क्रिया जो कर्मकाण्ड बनाए गए हैं, सिर्फ एक काम के लिए बनाए गए हैं। कर्मकाण्ड करते समय आपका ध्यान उस क्रियाओं पर जाए, जो उसमें से बोलकर तो नहीं बताई गई है, क्रिया के माध्यम से बता दी गई है। कल हमने बताया था आपको, हमारी वाणी का परिष्कार होता है।
अखण्ड-ज्योति से
साधना की गयी पर सिद्धि नहीं मिली। तप तो किया गया, पर तृप्ति नहीं मिली। अनेकों साधकों की विकलता यही है। लगातार सालों-साल साधना करने के बाद वे सोचने लगते हैं, क्या साधना का विज्ञान मिथ्या है? क्या इसकी तकनीकों में कोई त्रुटि है? ऐसे अनेकों प्रश्न कंटक उनके अन्तःकरण में हर पल चुभते रहते हैं। निरन्तर की चुभन से उनकी अन्तरात्मा में घाव हो जाता है। जिससे वेदना रिसती रहती है। बड़ी ही असह्य होती है चुभन और रिसन की यह पीड़ा। बड़ा ही दारुण होता है यह दर्द।
महायोगी गोरखनाथ का एक युवा शिष्य भी एक दिन ऐसी ही पीड़ा से ग्रसित था। वेदना की विकलता की स्पष्ट छाप उसके चेहरे पर थी। एक छोटे से नाले को पार करके वह एक खेत की मेड़ पर हताश बैठा था। रात प्रायः बीत गयी थी। खेतों पर सुबह का सूरज फैलने लगा था। पास से गुजरती बैलगाड़ी की आवाज सुनकर चाँदनी के फूलों-सी बगुलों की पात सूरज की ओर उड़ गयी। इनकी ओर उसने बड़ी ही निराश नजरों से देखा। तभी उसे पास के खेत से ही गोरखनाथ आते दिखाई दिये।
उनके चरणों पर सिर रखकर प्रणाम करते हुए उसने पूछा- गुरुदेव! मेरी वर्षों की साधना निष्फल क्यों हुई? भगवान् मुझसे इतना रूठे क्यों हैं? महायोगी हँसे और कहने लगे-पुत्र! कल मैं एक बगीचे में गया था। वहाँ कुछ दूसरे युवक भी थे। उनमें से एक को प्यास लगी थी। उसने बाल्टी कुएँ में डाली, कुआँ गहरा था। बाल्टी खींचने में भारी श्रम पड़ा। लेकिन जब बाल्टी लौटी तो खाली थी। उस युवक के सभी साथी हँसने लगे।
मैंने देखा-यह बाल्टी तो ठीक मनुष्य के अन्तःकरण जैसी है, इसमें छेद ही छेद हैं। बस यह कहने भर को बाल्टी थी, उसमें छेद ही छेद थे। बाल्टी कुएँ में गयी, पानी भी भरा, पर सब बह गया। वत्स! साधक के मन की यही दशा है। इस छेद वाले मन से कितनी ही साधना करो, पर छेदों के कारण सिद्धि नहीं मिलती। इससे कितना ही तप करो पर तृप्ति नहीं मिलती। सिद्धि और तृप्ति चाहिए तो पहले मन के छेदों को मिटाओ। अपने दोष, दुर्गुणों को दूर करो।
पहले संयम-तब साधना -फिर सिद्धि। यही साधना से सिद्धि का मर्म है। अपने मन की बाल्टी ठीक हो तो साधना सिद्धिदायी होती है। मन की बाल्टी में छेद हो तो तप तो खूब होता है, पर तृप्ति नहीं मिलती। भगवान् कभी भी किसी से रूठे नहीं रहते। बस साधक के मन की बाल्टी ठीक होनी चाहिए। कुआँ तो सदा ही पानी देने के लिए तैयार है। उसकी ओर से कभी भी इन्कार नहीं है।
डॉ. प्रणव पण्ड्या
जीवन पथ के प्रदीप से पृष्ठ ११९
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