Wednesday 09, April 2025
शुक्ल पक्ष द्वादशी, चैत्र 2025
पंचांग 09/04/2025 • April 09, 2025
चैत्र शुक्ल पक्ष द्वादशी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), चैत्र | द्वादशी तिथि 10:55 PM तक उपरांत त्रयोदशी | नक्षत्र मघा 09:57 AM तक उपरांत पूर्व फाल्गुनी | गण्ड योग 06:25 PM तक, उसके बाद वृद्धि योग | करण बव 10:01 AM तक, बाद बालव 10:55 PM तक, बाद कौलव |
अप्रैल 09 बुधवार को राहु 12:18 PM से 01:53 PM तक है | चन्द्रमा सिंह राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:01 AM सूर्यास्त 6:36 PM चन्द्रोदय 3:34 PM चन्द्रास्त 4:30 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वसंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - चैत्र
- अमांत - चैत्र
तिथि
- शुक्ल पक्ष द्वादशी
- Apr 08 09:13 PM – Apr 09 10:55 PM
- शुक्ल पक्ष त्रयोदशी
- Apr 09 10:55 PM – Apr 11 01:00 AM
नक्षत्र
- मघा - Apr 08 07:55 AM – Apr 09 09:57 AM
- पूर्व फाल्गुनी - Apr 09 09:57 AM – Apr 10 12:24 PM
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! आज के दिव्य दर्शन 09 April 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
असल में भगवान नहीं है, बेटे। असल में भगवान होता तो तरह-तरह के देवी देवता अगर दुनिया में होते तो आपस में मारकाट फैल जाती, लड़ाई-झगड़ा हो जाता, मुकदमेबाजी खड़ी हो जाती और फौजदारी खड़ी हो जाती। ये संतोषी माता हैं, ये काली माता है, काली माता कहती, "अच्छा, हमारा चेला ले गई झपट के।" संतोषी माता कहती, "अच्छा, संतोषी माता के बाल उखाड़ूँगी।" और संतोषी माता कल तक शुक्र के दिन खाता था, वो चढ़ा दूँ, और खटाई-मिठाई नहीं खाता था, अब नवरात्रि में चंडी की पूजा करने लगा। ओ हो, चंडी गाल फुला के बैठ गई, तो हमारा चेला संतोषी माता का चेला चंडी के यहाँ चला गया, और चंडी का चेला संतोषी माता यहाँ। अब मारेगा! आपस में चंडी मरेंगी और वो मरेंगे, औरतों में लड़ाई होगी, और चेलों में लड़ाई होगी, और सबके कचूमर निकल पड़ेंगे। तो महाराज जी, ये क्या चक्कर है? कुछ भी चक्कर नहीं है, सबके कचूमर निकल पड़ेंगे। तो महाराज जी, ये क्या चक्कर है? कुछ भी चक्कर नहीं है, कल्पना है। कल्पना है, कल्पना! अगर न होती, तो इतने तरह के कैसे हो जाते? मैं ये पूछता हूँ तुझे, भगवान दुनिया में एक है या हजारों हैं? हजारों भगवान होंगे तो मुसीबत आ जाएगी। एक भगवान है दुनिया में, ये तरह-तरह की शक्ल है। मुसलमानों ने दाढ़ी वाला बना लिया है, हमने अपना मोर मुकुट वाला बना लिया है, अमुक ने अमुक तरह की बना लिया है, ये सब कल्पना है, कल्पना है। तो असली भगवान क्या है, बेटे? श्रेष्ठ विचारणा, श्रेष्ठ भगवान किसी के पास। जब कभी आता है भगवान, तो श्रेष्ठ विचारों के रूप में आता है, आदर्शों के रूप में, उत्कृष्ठता के रूप में आता है, उत्कृष्ठ चिंतन के रूप में आता है, शक्ल के रूप में नहीं आता। हमने रात को हनुमान देखा, देखा तो अच्छी बात है, बेटे। भगवान, भगवान रोजाना तुझे दिखाई पड़े, महाराज जी, हमको तो कल लक्ष्मी जी दिखाई पड़ी। तो भगवान करे, रोजाना तुझे लक्ष्मी जी दिखाई पड़े। लक्ष्मी जी तुझे दिखाई पड़ी थी, तो कुछ रुपया-पैसा दे गई कि नहीं दे गई? नहीं, महाराज जी, लक्ष्मी जी दिखाई पड़ी, कुछ पूरा तो नहीं कर गई, बेकार कर दिया तूने। अगर तुझे दिखाई देने लगी लक्ष्मी जी, किराया-भाड़ा खर्च कर तेरे घर आई होती, तो खाली हाथ क्यों चली गई, कुछ दे के जाती? नहीं साहब, दिया तो नहीं कुछ। ऐसे शक्ल दिखा कर भाग गई! नहीं, बेटे, तेरा मैं विश्वास नहीं करता। श्रेष्ठता के प्रति, आदर्शों के प्रति, उनको मैं भगवान मानता हूँ। उस भगवान का, श्रेष्ठता का, आदर्शों का, जिन्होंने पालन किया, जिन्होंने पालन किया, वे भगवान के भक्त कहलाए और भगवान के अनुग्रह के अधिकारी बन गए। श्रेष्ठता, देवपूजन के समय जो हमारे विचार हैं, वो होने चाहिए। हम अपना श्रम, श्रम पसीना अच्छे उद्देश्यों के लिए, श्रेष्ठ कामों के लिए निरंतर खर्च किया करेंगे।
अखण्ड-ज्योति से
संयमी व्यक्ति, सदाचारी व्यक्ति जो भी जप करते हैं, उपासना करते हैं उनकी प्रत्येक उपासना सफल हो जाती है। दुराचारी आदमी, दुष्ट आदमी, नीच पापी और पतित आदमी भगवान का नाम लेकर यदि चाहें तो पार नहीं हो सकते। भगवान का नाम लेने का परिणाम यह होना चाहिए कि आदमी का व्यक्तित्व सही हो और वह शुद्ध बने। अगर व्यक्ति को शुद्ध और समुन्नत बनाने में रामनाम सफल नहीं हुआ तो जानना चाहिए कि उपासना की विधि में बहुत भारी भूल रह गई और नाम के साथ में काम करने वाली बात को भुला दिया गया। परिष्कृत व्यक्तित्व उपासना का दूसरा वाला पहलू है, गायत्री उपासना के संबंध में अथवा अन्यान्य उपासनाओं के संबंध में। तीसरा, हमारा अब तक का अनुभव यह है कि उच्चस्तरीय जप और उपासनाएँ तब सफल होती हैं जबकि आदमी का दृष्टिकोण और महत्त्वाकांक्षाएँ भी ऊँची हों। घटिया उद्देश्य लेकर के, निकृष्ट कामनाएँ और वासनाएँ लेकर के अगर भगवान की उपासना की जाए और देवताओं का द्वार खटखटाया जाए, तो देवता सबसे पहले कर्मकाण्डों की विधि और विधानों को देखने की अपेक्षा यह मालूम करने की कोशिश करते हैं कि उसकी उपासना का उद्देश्य क्या है? किस काम के लिए करना चाहता है?
अगर उन्हीं कामों के लिए जिसमें कि आदमी को अपनी मेहनत और परिश्रम के द्वारा कमाई करनी चाहिए, उसको सरल और सस्ते तरीके से पूरा कराने के लिए देवताओं का पल्ला खटखटाता है तो वे उसके व्यक्तित्व के बारे में समझ जाते हैं कि यह कोई घटिया आदमी है और घटिया काम के लिए हमारी सहायता चाहता है। देवता भी बहुत व्यस्त हैं। देवता सहायता तो करना चाहते हैं, लेकिन सहायता करने से पहले यह तलाश करना चाहते हैं कि हमारा उपयोग कहाँ किया जाएगा? किस काम के लिए किया जाएगा? यदि घटिया काम के लिए उसका उपयोग किया जाने वाला है, तो वे कदाचित ही कभी किसी के साथ सहायता करने को तैयार होते हैं। ऊँचे उद्देश्यों के लिए देवताओं ने हमेशा सहायता की है।
मंत्रशक्ति और भगवान की शक्ति केवल उन्हीं लोगों के लिए सुरक्षित रही है जिनका दृष्टिकोण ऊँचा रहा है। जिन्होंने किसी अच्छे काम के लिए, ऊँचे काम के लिए भगवान की सेवा और सहायता चाही है, उनको बराबर सेवा और सहायता मिली है। इन तीनों बातों को हमने प्राणपण से प्रयत्न किया और हमारी गायत्री उपासना में प्राण संचार होता चला गया। प्राण संचार अगर होगा तो हर चीज प्राणवान और चमत्कारी होती चली जाती है और सफल होती जाती है। हमने अपने व्यक्तिगत जीवन में चौबीस लाख के चौबीस साल में चौबीस महापुरश्चरण किए। जप और अनुष्ठानों की विधियों को संपन्न किया। सभी के साथ जो नियमोपनियम थे, उनका पालन किया। यह भी सही है, लेकिन हर एक को यह ध्यान रहना चाहिए कि हमारी उपासना में कर्मकाण्डों का, विधि- विधानों का जितना ज्यादा स्थान ही उससे कहीं ज्यादा स्थान इस बात के ऊपर है कि हमने उन तीन बातों को जो आध्यात्मिकता की प्राण समझी जाती हैं, उन्हें पूरा करने की कोशिश की है।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
Newer Post | Home | Older Post |