Saturday 28, December 2024
कृष्ण पक्ष त्रयोदशी, पौष 2024
पंचांग 28/12/2024 • December 28, 2024
पौष कृष्ण पक्ष त्रयोदशी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), मार्गशीर्ष | त्रयोदशी तिथि 03:32 AM तक उपरांत चतुर्दशी | नक्षत्र अनुराधा 10:13 PM तक उपरांत ज्येष्ठा | शूल योग 10:23 PM तक, उसके बाद गण्ड योग | करण गर 03:04 PM तक, बाद वणिज 03:33 AM तक, बाद विष्टि |
दिसम्बर 28 शनिवार को राहु 09:47 AM से 11:03 AM तक है | चन्द्रमा वृश्चिक राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:16 AM सूर्यास्त 5:21 PM चन्द्रोदय 4:46 AM चन्द्रास्त 3:00 PM अयनदक्षिणायन द्रिक ऋतु शिशिर
V. Ayana उत्तरायण
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - पौष
- अमांत - मार्गशीर्ष
तिथि
- कृष्ण पक्ष त्रयोदशी - Dec 28 02:26 AM – Dec 29 03:32 AM
- कृष्ण पक्ष चतुर्दशी - Dec 29 03:32 AM – Dec 30 04:01 AM
नक्षत्र
- अनुराधा - Dec 27 08:28 PM – Dec 28 10:13 PM
- ज्येष्ठा - Dec 28 10:13 PM – Dec 29 11:22 PM
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!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
घर के लिए पुस्तकालय रखिए आप अपने बच्चों के लिए अमानत छोड़कर जाइए जेवर नहीं है जेवर है आपके पास नहीं साहब जेवर तो नहीं है तो आप अपने बच्चों को क्या देंगे जेवर नहीं है तो खेत हैं आपके पास हां खेत हैं मत दीजिए खेत लेकिन आप हमारे साहित्य पढ़ाइए साहित्य अगर आपने पढ़ाया तो आपके बच्चे अब्राहिम लिंकन भी बन सकते हैं जार्ज वाशिंगटन भी बन सकते हैं और जाने कौन कौन बन सकते हैं इस तरीके से यह साहित्य जो पढ़ने के लायक है आज हमको आपको कहना था कि आपको क्या करना चाहिए अपने समय का एक हिस्सा और अपने श्रम का एक हिस्सा अपने समय का एक हिस्सा साधनों का एक हिस्सा हमको दीजिए हमारा भी कुछ हक हमारे गुरु का कुछ हक है हमारे ऊपर उसने कहा हमको चाहिए तेरा हमने कहा लीजिए हमने दिया हमको चाहिए आपका हमको समय चाहिए आपका हमको वक्त चाहिए आपका हमको पैसा चाहिए आपका हमको श्रम चाहिए आपका हमको पसीना चाहिए आपका हमको हमसे मतलब है समाज को ऋषियों को मानवीय गरिमा को इंसान के दुख और दर्दों को आपकी श्रम की जरूरत है
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
सधाने से सामान्य स्तर के प्राणी आश्चर्यजनक कार्य करके दिखाते हैं। बन गये मनुष्य को पास भी नहीं आने देतीं ओर खेतों को उजाड़ कर रख जाती हैं, पर जब वे पालतू हो जाती हैं तो दूध, बछड़े गोबर आदि बहुत कुछ देती हैं। स्वयं सुखी रहती है और उसके पालने वाले भी लाभान्वित होते हैं यही बात अन्य वन्य पशुओं के बारे में लागू होती है।
जंगली घोड़े, कुत्ते, सुअर, हाथी आदि स्वयं भूखे मरते, कष्ट उठाते और अनिश्चित जीवन जीते हैं। फालतू बन जाने पर वे स्वयं निश्चिन्ततापूर्वक रहते हैं और अपने पालने वालों को लाभ पहुँचाते हैं। अपने भीतर शरीर तथा मन− क्षेत्र में एक से एक बढ़कर शक्तिशाली धाराएँ प्रवाहित होती हैं।
वे निरुद्देश्य और अनियन्त्रित स्थिति में रहकर वन्य पशुओं जैसी असंगत बनी रहती हैं। फलतः विकृत होकर वे सड़ी दुर्गन्ध की तरह अपने समूचे प्रभाव क्षेत्र को विषैला बना देती हैं। आग जहाँ भी रहती है वहीं जलाती है, तेजाब की बोतल जहाँ भी फैलती है वहीं गलाती है। विकृत प्रवृत्तियाँ छितराई हुई आग और फूटी तेजाब की बोतल की तरह हैं, उनसे केवल विनाश ही सम्भव होता है। यह दोनों ही वस्तुएँ यदि सुनियोजित रखी जा सकें तो उनसे उपयोगी लाभ मिलते हैं और वे इतने बढ़े−बढ़े होते हैं कि सामान्य दीखने वाला मनुष्य पग−पग पर अपनी असामान्य स्थिति का परिचय देता है।
साधना जीवन के बहिरंग और अन्तरंग क्षेत्रों में सुसंस्कारित सुव्यवस्था उत्पन्न करने का नाम है। इसे समझ पाने और कर पाने का प्रतिफल, जंगली जानवरों को पकड़ कर पालतू बनाने की कला में प्रवीण व्यवसाइयों जैसा ही प्राप्त होता।
सरकस के जानवर कितने आश्चर्यजनक करतब दिखाते हैं। देखने वाले बाग−बाग हो उठते हैं। इन बंधे जानवरों को प्रशंसा मिलती है—प्रतिष्ठा होती है और अच्छी खुराक मिलती है। सधाने वाले और सिखाने वालों को अच्छा वेतन मिलता है और सरकस के मालिकों को उन्हीं जानवरों के सहारे धनवान बनने का अवसर मिलता है जो उच्छृंखल होने की स्थिति में स्वयं असन्तुष्ट रहते और दूसरों को रुष्ट करते थे।
.... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति जनवरी 1976 पृष्ठ 15
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