Sunday 29, December 2024
कृष्ण पक्ष चतुर्दशी, पौष 2024
पंचांग 29/12/2024 • December 29, 2024
पौष कृष्ण पक्ष चतुर्दशी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), मार्गशीर्ष | चतुर्दशी तिथि 04:01 AM तक उपरांत अमावस्या | नक्षत्र ज्येष्ठा 11:22 PM तक उपरांत मूल | गण्ड योग 09:41 PM तक, उसके बाद वृद्धि योग | करण विष्टि 03:52 PM तक, बाद शकुनि 04:02 AM तक, बाद चतुष्पद |
दिसम्बर 29 रविवार को राहु 04:06 PM से 05:22 PM तक है | 11:22 PM तक चन्द्रमा वृश्चिक उपरांत धनु राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:16 AM सूर्यास्त 5:22 PM चन्द्रोदय 5:47 AM चन्द्रास्त 3:47 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु शिशिर
V. Ayana उत्तरायण
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - पौष
- अमांत - मार्गशीर्ष
तिथि
- कृष्ण पक्ष चतुर्दशी - Dec 29 03:32 AM – Dec 30 04:01 AM
- कृष्ण पक्ष अमावस्या - Dec 30 04:01 AM – Dec 31 03:56 AM
नक्षत्र
- ज्येष्ठा - Dec 28 10:13 PM – Dec 29 11:22 PM
- मूल - Dec 29 11:22 PM – Dec 30 11:57 PM
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!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
हमने किताब में लिखी नहीं है रद्दी लिखी नहीं है हम अखबार छापने वाले नहीं हैं हम सिनेमा की तस्वीरें छापने वाले नहीं हैं हम वह हैं जो युग को पलट देते हैं वह आदमी होते हैं कुछ आदमी जो दुनिया में युग को पलट देते हैं भगवान बुद्ध ने युग को पलट दिया था अपने व्यक्तित्व से उन्होंने लाखो आदमी प्रचारक बनाएं जो यह साहित्य है इसको आप ज्ञान रथो के माध्यम से ज्ञान रथो के माध्यम से अब आप यही मान लीजिए कि हम को चाकू लग गया था छुरा लग गया था सो आप अस्पताल ले जा रहे हैं हमको ले जाइए ज्ञान रथ में गुरु जी आए हैं गुरु जी का रथ हम ले जाएंगे आप हम को लेकर घुमा दीजिए अपने गांव में अपने कंधे पर लेकर घुमा दीजिए श्रवण कुमार ने श्रवण कुमार ने अपने अंधे मां बाप को कंधे पर बिठाया था कंधे और पर बिठाकर के सारे तीर्थ यात्रा कराई थी आप अपने गांव की तीर्थ यात्रा नहीं कराएंगे हमको अपने मोहल्ले वालों की नहीं कराएंगे अपने मित्रों की नहीं कराएंगे अपनी जान पहचान वालों की यात्रा के घर में हमको ले नहीं जाएंगे हमको ले जाइए |
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
घरेलू उपयोग में आने वाले जानवर भी बिना सिखाये, सधाये अपना काम ठीक तरह कहाँ कर पाते हैं। बछड़ा युवा हो जाने पर भी अपनी मर्जी से हल, गाड़ी आदि में चल नहीं पाता। घोड़े की पीठ पर सवारी करना, उसे दुरकी चाल चलाना सहज ही संभव नहीं होता। ऊँटगाड़ी, ताँगा, बैलगाड़ी में जुतने वाले पशु अपने आप चलने नहीं लग जाते उन्हें कठिनाई से प्यार, फटकार के सहारे—धीरे−धीरे बहुत दिन में इस योग्य बनाया जाता है कि अपना काम ठीक तरह अंजाम देने लगें। साधना इसी का नाम है। इन्द्रियों के समूह को—मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार के अन्तःकरण चतुष्टय को वन्य पशुओं से समकक्ष गिना जा सकता है।
अपने स्वाभाविक रूप में यह सारा ही चेतना परिवार उच्छृंखल होता है। जन्म−जन्मान्तरों के पाशविक कुसंस्कारों की मोटी परत उस पर जमा होती है। उसे उतारने के लिए जिस खराद का उपयोग किया जाता है उसे साधना कह सकते हैं। पशुता को परिष्कृत करके उसे मनुष्यता के—देवत्व के रूप में विकसित करना, अनगढ़ पत्थर को कलात्मक प्रतिमा के रूप में गढ़ देने के सदृश एक विशिष्ट कौशल है। इस प्रवीणता में पारंगत होने का नाम ही आत्म−साधना है। पशुओं को प्रशिक्षित करने और पत्थर से मूर्तियाँ बनाने की तरह कार्य कुछ कठिन तो है—पर है ऐसा जिसमें लाभ ही लाभ भरा पड़ा है।
कठपुतली नचाने वाले, हाथ की सफाई से बाजीगरी के कौतुक दिखाने वाले, बन्दर और रीछ का तमाशा करने वाले, जादूगर जैसे लगते हैं और उन्हें चमत्कारी समझा जाता है। यह चमत्कार और कुछ नहीं किसी विशेष दिशा में तन्मयतापूर्वक धैर्य और उत्साह के साथ लगे रहने का प्रतिफल मात्र है। ऐसा चमत्कार कौतूहल प्रदर्शन से लेकर किसी भी साधारण असाधारण कार्य में आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त करने के रूप में कभी भी, कहीं भी देखा जा सकता है।
अपनी ईश्वर प्रदत्त विशेषताओं को उभारने और महत्वपूर्ण प्रयोजन में नियुक्त करने का नाम साधना है। साधना का परिणाम सिद्धि के रूप में सामने आता है। यह नितान्त स्वाभाविक और सुनिश्चित है। यदि अपने आपे को साधा जाय−व्यक्तित्व को खरादा जाय तो वह सब कुछ प्रचुर परिमाण में अपने ही घर पाया जा सकता है, जिसकी तलाश में जहाँ-तहाँ मारे−मारे फिरना और मृग−तृष्णा की तरह निराश भटकना पड़ता है।
.... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति जनवरी 1976 पृष्ठ 15
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