Sunday 13, April 2025
कृष्ण पक्ष प्रथमा, बैशाख 2025
पंचांग 13/04/2025 • April 13, 2025
बैशाख कृष्ण पक्ष प्रतिपदा, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), चैत्र | प्रतिपदा | नक्षत्र चित्रा 09:10 PM तक उपरांत स्वाति | हर्षण योग 09:39 PM तक, उसके बाद वज्र योग | करण बालव 07:08 PM तक, बाद कौलव |
अप्रैल 13 रविवार को राहु 05:03 PM से 06:38 PM तक है | 07:39 AM तक चन्द्रमा कन्या उपरांत तुला राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय5:56 AM सूर्यास्त 6:39 PM चन्द्रोदय 7:09 PM चन्द्रास्त 6:16 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वसंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - बैशाख
- अमांत - चैत्र
तिथि
- कृष्ण पक्ष प्रतिपदा [ वृद्धि तिथि ]
- Apr 13 05:52 AM – Apr 14 08:25 AM
नक्षत्र
- चित्रा - Apr 12 06:07 PM – Apr 13 09:10 PM
- स्वाति - Apr 13 09:10 PM – Apr 15 12:13 AM

परमात्मा की उपासना कैसे करते है | Parmatma Ki Upasana Kaise Karte Hai | Dr Chinmay Pandya

आज मानव कौन कौन सी मुसीबतों में फँसा है ? | Aaj Manav Koun Si Musibat Mei Fasa Hai

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गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! देवात्मा हिमालय मंदिर Devatma Himalaya Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 13 April 2025 !!

!! प्रज्ञेश्वर महादेव मंदिर Prageshwar Mahadev 13 April 2025 !!

!! महाकाल महादेव मंदिर #Mahadev_Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 13 April 2025

!! सप्त ऋषि मंदिर गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 13 April 2025 !!

!! अखण्ड दीपक Akhand Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) एवं चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 13 April 2025 !!

!! आज के दिव्य दर्शन 13 April 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! गायत्री माता मंदिर Gayatri Mata Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 13 April 2025 !!

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परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
हम सबेरे भी आपको ध्यान कराते हैं, छोटे-छोटे पीसों में कराते हैं, अलग-अलग तरह की वेरायटीज में कराते हैं, ताकि आपको एक ही विचार के ऊपर, एक क्रियापद्धति के ऊपर ध्यान को लगाना सीखने का मौका मिले। आपको यही करना चाहिए, आपको यही करना चाहिए। उपासना का जब समय आए, तो आपको अपनी उपासना के समय पर, जो क्रिया-कृत्य करते हैं, उसके पीछे जो शिक्षण दिए गए हैं, शिक्षण करने के साथ में अपने आपको मिलाइए। जब आप देवता के सामने फूल चढ़ाते हैं, तो इस चक्कर में पड़िए मत कि साहब, ये चमेली का फूल है, गुलाब का फूल है, गेंदा का फूल है, या बेला का फूल है। महादेव जी आक का फूल खाते हैं, गणेश जी उसका चमेली का फूल खाते हैं, और विष्णु भगवान जी गुलाब का। ये बेकार की बातें छोड़ दो, ये छोड़ दो। तो आदमी का जीवन फूल जैसा होना चाहिए। यदि फूल जैसा जीवन कोमल होगा, तो भगवान के चरणों में भी हमको स्थान मिल सकता है, गले में भी स्थान मिल सकता है, शरीर में भी स्थान मिल सकता है, हर जगह स्थान मिल सकता है। शर्त यह है कि हम फूल जैसा जीवन के हों। हँसता हुआ जीवन, कोमल जैसा जीवन, मुलायम जैसा जीवन, सुगंधित जैसा जीवन बनाने की कोशिश करें। इन विचारों को जब फूल चढ़ाया करें, यही विचार किया करें, हमारा फूल जैसा जीवन बनाएं। फूल जैसा जीवन बनना चाहिए, फूल जैसे जीवन का हमारा उद्देश्य होना चाहिए। फूल चढ़ाता रहे, यह विचार करता रहे, इस फूल की गुलदस्ता बनाऊं, की माला बनाऊं, यह करूं, यह करूं। बेकार की बातें, बेकार की बातों में समय खराब करता रहता है। यह नहीं सोचता है कि हमें अपना जीवन फूल जैसा बनाना है। दीपक जब हम चढ़ते हैं, दीपक के समय पर हमारा विचार होना चाहिए। भगवान को दीपक दिखाने की जरूरत नहीं है। भगवान के पास जो-जो ज्योति जलते रहते हैं, दिन भर तो सूरज जलता रहता है, रात भर को चंद्रमा जलता रहता है। आप भगवान को नहीं देंगे, जलाएंगे, तो भगवान का कोई हर्ज नहीं हो सकता। दीपक जलाना तो, "महाराज जी, क्यों पैसा खर्च करें, हम क्यों जलाएं बार-बार?" बेटे, उसका एक कारण है। एक ऐसा आदमी है, बेवकूफ, आँखों से अंधा, उसे कुछ दिखाई नहीं पड़ता। उसके सामने दीपक जलाकर दिखा दे, तो उसको रास्ता तो दिखाई पड़े। कौन है वह बेवकूफ और अंधा आदमी? वह है तू और हम, हम हैं जिनको कुबुद्धि कह सकते हैं। हमको पता ही नहीं है, कुछ, कुछ दिखता ही नहीं है। न अपना मरना दिखता है, न जीना दिखता है। एक ही चीज दिखती है, विलासिता। एक ही चीज दिखती है, तृष्णा। एक ही चीज दिखती है, वासना। एक ही चीज दिखता है, लोभ, और कुछ नहीं दिखता। हम हैं अंधे, हम हैं आँखों से खराब, हमको मोतियाबिंद की शिकायत है। इसीलिए अंधेरे में भटकने वालों को रोशनी की जरूरत है। इसलिए हम दीपक जलाते हैं, भगवान के सामने। भगवान के सामने, हां बेटे, भगवान के बहाने, अपने आपके सामने दीपक जलते हैं। हमारी जिंदगी का स्वरूप ऐसा होना चाहिए, जैसे कि इस दीपक का है, रोशनी। रोशनी से जीवन, रोशनी कैसी, जैसी बिजली की लगती है? अरे, तो महाराज जी, बिजली की बत्ती तो मैं रोज जलाता रहता हूँ। नहीं, बेटे, उससे मतलब नहीं है। रोशनी से मतलब, तमसो मा ज्योतिर्गमय। हमको अंधकार की ओर से लेकर के प्रकाश की ओर लेकर चलिए। इसका मतलब यह नहीं है कि टॉर्च आगे-आगे जलाते चलिए, और आप तो आगे, हमको अंधेरे में से ले चलिए। यह मतलब नहीं है, चमक की रोशनी से। मतलब नहीं है रोशनी से। रोशनी से मतलब होता है ज्ञान। दीपक जो हम जलाते हैं, इसका मतलब यह है कि हमारा मस्तिष्क ज्ञान से भरा हुआ हो, विचारणाओं से भरा हुआ हो, प्रज्ञा से भरा हुआ हो।
अखण्ड-ज्योति से
तीसरा वाला चरण गायत्री मंत्र का है धार्मिकता। धार्मिकता का अर्थ होता है - कर्तव्यपरायणता, कर्तव्यों का पालन। कर्तृत्व, कर्म और धर्म लगभग एक ही चीज हैं। मनुष्य में और पशु में सिर्फ इतना ही अंतर है कि पशु किसी मर्यादा से बँधा हुआ नहीं है। मनुष्य के ऊपर हजारों मर्यादाएँ और नैतिक नियम बाँधे गए हैं और जिम्मेदारियाँ लादी गई हैं। जिम्मेदारियों को और कर्तव्यों को पूरा करना मनुष्य का कर्तव्य है। शरीर के प्रति हमारा कर्तव्य है कि इसको हम नीरोग रखें।
मस्तिष्क के प्रति हमारा कर्तव्य है कि इसमें अवांछनीय विचारों को न आने दें। परिवार के प्रति हमारा कर्तव्य है कि उनको सद्गुणी बनाएँ। देश, धर्म, समाज और संस्कृति के प्रति हमारा कर्तव्य है कि उन्हें भी समुन्नत बनाने के लिए भरपूर ध्यान रखें। लोभ और मोह के पास से अपने आप को छुड़ा करके अपनी जीवात्मा का उद्धार करना, यह भी हमारा कर्तव्य है और भगवान ने जिस काम के लिए हमको इस संसार में भेजा है, जिस काम के लिए मनुष्य योनि में जन्म दिया है, उस काम को पूरा करना भी हमारा कर्तव्य है। इन सारे के सारे कर्तव्यों को अगर हम ठीक तरीके से पूरा न कर सके तो हम धार्मिक कैसे कहला सकेंगे?
धार्मिकता का अर्थ होता है -कर्तव्यों का पालना। हमने सारे जीवन में गायत्री मंत्र के बारे में जितना भी विचार किया, शास्त्रों को पढ़ा, सत्संग किया, चिंतन- मनन किया, उसका सारांश यह निकला कि बहुत सारा विस्तार ज्ञान का है, बहुत सारा विस्तार धर्म और अध्यात्म का है, लेकिन इसके सार में तीन चीजें समाई हुई हैं-
(1) आस्तिकता अर्थात ईश्वर का विश्वास,
(2) आध्यात्मिकता अर्थात स्वावलंबन, आत्मबोध और अपने आप को परिष्कृत करना, अपनी जिम्मेदारियों को स्वीकार करना और
(3) धार्मिकता अर्थात कर्तव्यपरायणता।
कर्तव्य परायण, स्वावलंबी और ईश्वरपरायण कोई भी व्यक्ति गायत्री मंत्र का उपासक कहा जा सकता है और गायत्री मंत्र के ज्ञानपक्ष के द्वारा जो शांति और सद्गति मिलनी चाहिए उसका अधिकारी बन सकता है। हमारे जीवन के यही निष्कर्ष हैं विज्ञान पक्ष में तीन धाराएँ और ज्ञानपक्ष में तीन धाराएँ, इनको जो कोई प्राप्त कर सकता हो, गायत्री मंत्र की कृपा से निहाल बन सकता है और ऊँची से ऊँची स्थिति प्राप्त करके इसी लोक में स्वर्ग और मुक्ति का अधिकारी बन सकता है। ऐसा हमारा अनुभव, ऐसा हमारा विचार और ऐसा हमारा विश्वास है।
ऊँ शांति:
समाप्त
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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