Thursday 02, January 2025
शुक्ल पक्ष तृतीया, पौष 2025
पंचांग 02/01/2025 • January 02, 2025
पौष शुक्ल पक्ष तृतीया, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), पौष | तृतीया तिथि 01:08 AM तक उपरांत चतुर्थी | नक्षत्र श्रवण 11:10 PM तक उपरांत धनिष्ठा | हर्षण योग 02:57 PM तक, उसके बाद वज्र योग | करण तैतिल 01:48 PM तक, बाद गर 01:08 AM तक, बाद वणिज |
जनवरी 02 गुरुवार को राहु 01:37 PM से 02:53 PM तक है | चन्द्रमा मकर राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:17 AM सूर्यास्त 5:24 PM चन्द्रोदय 9:15 AM चन्द्रास्त 7:56 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु शिशिर
V. Ayana उत्तरायण
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - पौष
- अमांत - पौष
तिथि
- शुक्ल पक्ष तृतीया - Jan 02 02:24 AM – Jan 03 01:08 AM
- शुक्ल पक्ष चतुर्थी - Jan 03 01:08 AM – Jan 03 11:39 PM
नक्षत्र
- श्रवण - Jan 01 11:46 PM – Jan 02 11:10 PM
- धनिष्ठा - Jan 02 11:10 PM – Jan 03 10:21 PM
इसी प्रकार चिड़चिड़ेपन का प्रतिद्वन्द्वी मनोभाव धैर्य और सहिष्णुता को अपना लेने से भी मानसिक प्रहारों की रक्षा की जा सकती है। प्रत्येक अशुभ संस्कार से बचने का यही सीधा-सच्चा व सरल उपाय है।*
दूसरों को उजड्ड दुर्बुद्धि या विद्वेषी बताने की अपेक्षा यह अच्छा है कि आप स्वयं अपने आपको ही मिलनसार बनायें। औरों में दोष देखने का श्रम न करें। साथ ही अपनी उदारता, दूर-दर्शिता, सहनशीलता जैसे सामाजिक सद्गुणों का विकास करते रहें। इस बुद्धिमत्तापूर्ण मार्ग पर चलने से ही यह सम्भव है कि दूसरे लोग आपका सम्मान करें, आपकी बात मानें, सहयोग और सहानुभूति का व्यवहार करें। प्रायः कोई व्यक्ति स्वेच्छा से बुरा नहीं बनता अतः मनुष्य को यह सोचने की भूल कदापि नहीं करनी चाहिए कि हमारे विचारों के अनुसार जो लोग गलती करते हैं वे हमें परेशान करने के उद्देश्य से ऐसा करते
*इस प्रकार की कल्पनाओं से सावधान रहें ताकि किसी के साथ अन्याय न हो आप इसका कारण अपने स्वभाव की छोटी-छोटी त्रुटियाँ भी हो सकती हैं जिन्हें आप नगण्य मानते हैं। इसलिए दूसरों से सामंजस्य सौहार्द, सौजन्यता और आत्मीयता बनाये रखने के लिये यही उचित है कि जब कभी कोई अशुभ परिस्थिति उठती दिखाई दे तब अपने दोषों को भी देख लिया करें। ऐसा दृष्टिकोण अपनाने से आये दिन दूसरों के साथ होते रहने वाले झंझटों में से अधिकांश तो स्वयं ही निर्मूल हो सकते हैं।*
....क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति जुलाई 1964 पृष्ठ 41
ज्योति कलश यात्रा सम्मेलन का भव्य आयोजन
*जीवन में निर्भीकता आवश्यक है
बच्चों को प्यार देने के साथ सही मार्गदर्शन | Baccho Ko Pyar Dene Ke Sath Sahi Margdarshan
अमृतवाणी:- श्रद्धा और विश्वास : भाग 1 | Pujay Gurudev Pt Shriram Sharma Acharya
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
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!! आज के दिव्य दर्शन 02 January 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! अखण्ड दीपक Akhand Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) एवं चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 02 January 2025 !!
!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 02 January 2025 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
आप तो अपने काम के लिए आते हैं हमारी नौकरी में तरक्की करा दीजिए हमको यह करा दीजिए हमको एमएलए का टिकट दिलावा दीजिए हमको फलाना काम करा दीजिए सौ काम ले करके आते हैं भिखारी के तरीके से दानी के तरीके से आई है ना दानी के तरीके से आइए ना देखिए हम आपको कैसा उठा करके रखेंगे आप भामाशाह के तरीके से आई है ना देखिए राणा प्रताप ने उनको छाती से लगा लिया था और आंखों में आंसू टपक आते हुए कहा था आप है जिसने कि हमारी शर्म रखी और आप भामाशाह बनकर आइए ना भामाशाह नहीं बन सकते आप भामाशाह नहीं हो सकते आप जरूर हो सकते हैं आपके पास समय है सारे के सारा 24 घंटे का समय आप 8 घंटे अपने काम के लिए कमाने को रख लीजिए 6 घंटे उसके लिए अपने घर गृहस्थी के काम के लिए रख लीजिए और 6 घंटे 4 घंटे आप अपने नित्यक्रम के लिए रख लीजिए तो भी तो आपके पास 4 घंटे बचते हैं 4 घंटे ना सही तो आप 2 घंटे इसमें लगाइए मुझे उम्मीद है कि आप यहां से जाने के पीछे अब वह काम करेंगे जो कि हमने आपसे उम्मीद रखी है |
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
प्रज्ञा परिजनों को मूर्धन्य भूमिका निभाने के लिए आत्मशक्ति की प्राण ऊर्जा का बड़ी मात्रा में संचय करना होगा। यह परमात्मा से ही उसे मिलेगी। अस्तु उसे उपासना के लिए सच्चे मन से साहस जुटाना और प्रयास करना चाहिए। जीवन चर्या में उसे निष्ठापूर्वक सुनिश्चित एवं मूर्धन्य स्थान देना चाहिए। कर्मकाण्ड के लिए जितना भी समय निकाला जाय, उसे नियमित और निश्चित होना चाहिए।
व्यायाम, औषधि सेवन, अध्ययन आदि के लिए समय भी निर्धारित किए जाते हैं और उसकी मात्रा का सीमा बन्धन भी रखा जाता है। यदि इन प्रसंगों में मन की मौज बरती जाय, समय और मात्रा ही उपेक्षा करके जैसा मन वैसा करने की स्वेच्छाचारिता अपनाई जाय तो पहलवान, विद्वान बनने और निरोग होने की इच्छा पूरी हो ही नहीं सकेगी। हर महत्त्वपूर्ण कार्य में नियमितता को प्रमुखता दी जाती है। जो किया जाता है उसमें समूचे मनोयोग का नियोजन किया जाता है, उपासना के सन्दर्भ में भी वही किया जाना चाहिए। अस्त- व्यस्तता बनी रहेगी तो अभीष्ट उद्देश्य की प्राप्ति अति कठिन हो जाएगी।
युग सन्धि की अवधि में सभी प्रज्ञा परिजनों को न्यूनतम तीन माला गायत्री जप प्रातःकाल नित्य कर्म से निवृत्त होकर करने के लिए कहा गया है। जप के साथ प्रभात कालीन सूर्य का दर्शन और उस सविता देवता की स्वर्णिम किरणों का स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीरों में प्रवेश कराने का ध्यान भी करते चलना चाहिए। शरीर, स्थान और उपकरणों की स्वच्छता के अतिरिक्त, मन, बुद्धि, चित्त की स्वच्छता के लिए आचमन, प्राणायाम और न्यास कृत्य करने का विधान है। सामान्य प्राणायाम तो रेचक, कुम्भक, पूरक द्वारा ही सम्पन्न हो जाता है, पर उसमें विशेषता लानी हो तो उसे प्राणाकर्षण स्तर का विकसित कर लेना चाहिए।
इन पंक्तियों में उसे संक्षिप्त ही लिखा जा रहा है क्योंकि अधिकांश परिजन उसे पहले से ही जानते हैं। जो नहीं जानते उनके लिए थोड़ी सी पंक्तियों के निर्देशन से काम नहीं चलेगा। उन्हें किसी समीपवर्ती निष्णात से, गायत्री महाविज्ञान से जानना होगा या शान्तिकुञ्ज पत्र व्यवहार करके अपनी वर्तमान स्थिति के अनुरूप साधना क्रम का निर्धारण करना होगा। स्पष्ट है कि साधक के स्तर और प्रवाह को ध्यान में रखते हुए साधना क्रम भी चिकित्सा उपचार की तरह आवश्यकतानुसार समय- समय पर बदलने होते हैं। शान्तिकुञ्ज को गायत्री तीर्थ के रूप में इन्हीं दिनों इसी प्रयोजन के लिए विकसित किया गया है। ताकि हर साधक की स्थिति एवं आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए उसके लिए विशेष निर्धारण किए जा सकें और जो बताया गया है उसका प्रारम्भिक अभ्यास प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में ही सही कर लेना सम्भव हो सके।
.... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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