Monday 30, December 2024
कृष्ण पक्ष अमावस्या, पौष 2024
पंचांग 30/12/2024 • December 30, 2024
पौष कृष्ण पक्ष अमावस्या, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), मार्गशीर्ष | अमावस्या तिथि 03:56 AM तक उपरांत प्रतिपदा | नक्षत्र मूल 11:57 PM तक उपरांत पूर्वाषाढ़ा | वृद्धि योग 08:32 PM तक, उसके बाद ध्रुव योग | करण चतुष्पद 04:03 PM तक, बाद नाग 03:56 AM तक, बाद किस्तुघन |
दिसम्बर 30 सोमवार को राहु 08:32 AM से 09:48 AM तक है | चन्द्रमा धनु राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:17 AM सूर्यास्त 5:22 PM चन्द्रोदय 6:46 AM चन्द्रास्त 4:43 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु शिशिर
V. Ayana उत्तरायण
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - पौष
- अमांत - मार्गशीर्ष
तिथि
- कृष्ण पक्ष अमावस्या - Dec 30 04:01 AM – Dec 31 03:56 AM
- शुक्ल पक्ष प्रतिपदा - Dec 31 03:56 AM – Jan 01 03:22 AM
नक्षत्र
- मूल - Dec 29 11:22 PM – Dec 30 11:57 PM
- पूर्वाषाढ़ा - Dec 30 11:57 PM – Jan 01 12:03 AM
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अमृतवाणी - उपासना, साधना, आराधना | Upasna, Sadhna, Aradhna
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 30 December 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
अगर आप हमारे साहित्य को स्वयं पढेंगे और दूसरे लोगो को पढ़ाने के लिए समय निकालेंगे तो अप यह मान के चलिए आप हमको कंधे पर लेकर चलते हैं हमारी इच्छा है हमारा साहित्य भारतवर्ष का एक भी व्यक्ति ऐसा ना हो जिसके पास ना गया हो और जिसने पढ़ा ना हो आप पढ़ाने के लिए स्वयं जाइए स्वयं जाइए नौकर को मत भेजिए यह मत कीजिए शाखा वाले जाएंगे शाखा वालों को जहांनुम में डालिए अगर आपके भीतर हमारे प्रति कोई सहानुभूति है अगर आपको हमारे प्रति कोई कोई निष्ठा है अगर आप हमको अपना मानते हैं बुजुर्ग मानते हैं और यह मानते हैं कोई भला आदमी है कोई संत है सिद्ध पुरुष को मरने दीजिए तो आप फिर कुछ कीजिए हमारे लिए हम चाहते है आप करें हमारे लिए हमने अपने गुरु के लिए किया है और उसने हमारे लिए किया है आप हमारे लिए कीजिए हम आपके लिए करेंगे |
अखण्ड-ज्योति से
आत्मोत्कर्ष के लिए उस महाशक्ति के साथ घनिष्ठता बनाने की आवश्यकता है जिसमें अनन्त शक्तियों और विभूतियों के भण्डार भरे पड़े हैं। बिजली घर के साथ घर के बल्ब, पंखों का सम्बन्ध जोड़ने वाले तारों का फिटिंग सही होते ही वे ठीक तरह अपना काम कर पाते हैं। परमात्मा के साथ आत्मा का सम्बन्ध जितना निकटवर्ती एवं सुचारु होगा, उसी अनुपात से पारस्परिक आदान- प्रदान का सिलसिला चलेगा और उससे छोटे पक्ष को विशेष लाभ होगा।
दो तालाबों के बीच में नाली खोदकर उनका सम्बन्ध बना दिया जाय तो निचले तालाब में ऊँचे तालाब का पानी दौड़ने लगेगा। और देखते- देखते दोनों की ऊपरी सतह समान हो जाएगी, पेड़ से लिपटकर बेल कितनी ऊँची चढ़ जाती है इसे सभी जानते हैं। यदि उसे वैसा सुयोग न मिला होता अथवा वैसा साहस न किया होता तो वह अपनी पतली कमर के कारण मात्र जमीन पर फैल भले ही जाती, पर ऊपर चढ़ नहीं सकती थी।
पोले बाँस का निरर्थक समझा जाने वाला टुकड़ा जब वादक के हाथों के साथ तादात्म्य स्थापित करता है तो बाँसुरी वादन का ऐसा आनन्द आता है जिसे सुनकर सांप लहराने और हिरन मन्त्र मुग्ध होने लगते हैं। पतले कागज के टुकड़े से बनी पतंग आकाश को चूमती है, जब उसकी डोर का सिरा किसी उड़ाने वाले के हाथ में रहता है। यह सम्बन्ध शिथिल पड़ने या टूटने पर सारा खेल खतम हो जाता है और पतंग जमीन पर आ गिरती है। यह उदाहरण यह बताते है कि यदि आत्मा को परमात्मा के साथ सघनतापूर्वक जुड़ जाने का अवसर मिल सके, तो उसकी स्थिति सामान्य नहीं रहती। तब उसे नर पामरों जैसा जीवन व्यतीत नहीं करना पड़ता। वरन् ऐसे मानव देखते- देखते कहीं से कहीं जा पहुँचते हैं। इतिहास पुराण ऐसे देव मानवों की चर्चा से भरे पड़े हैं जिनने अपने अन्तराल को निकृष्टता से विरत करके ईश्वरीय महानता के साथ जोड़ा और देखते- देखते कुछ से कुछ बन गए।
उपासना को आध्यात्मिक प्रगति का आवश्यक एवं अनिवार्य अंग माना गया है। उसके बिना वह सम्बन्ध जुड़ता ही नहीं है, जिसके कारण छोटे- छोटे उपकरण बिजली घरों के साथ तार जोड़ लेने पर अपनी महत्त्वपूर्ण हलचलें दिखा सकने में समर्थ होते हैं। घर में हीटर, कूलर, रेफ्रिजरेटर, रेडियो, टेलीविजन, टेलीफोन आदि कितने ही सुविधाजनक उपकरण क्यों न लगे हो, पर उनका महत्त्व तभी है जब उनके तार बिजलीघर के साथ जुड़कर शक्ति भण्डार से अपने लिए उपयुक्त क्षमता प्राप्त करते रहने का सुयोग बिठा लेते हो। उपासना का तत्त्वज्ञान यही है। उसका शब्दार्थ है- उप+आसन, अर्थात् अति निकट बैठना। परमात्मा और आत्मा को निकटतम लाने के लिए ही उपासना की जाती है। विशिष्ट शक्ति के आदान- प्रदान का सिलसिला इसी प्रकार चलता है।
.... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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