Friday 18, April 2025
कृष्ण पक्ष पंचमी, बैशाख 2025
पंचांग 18/04/2025 • April 18, 2025
बैशाख कृष्ण पक्ष पंचमी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), चैत्र | पंचमी तिथि 05:07 PM तक उपरांत षष्ठी | नक्षत्र ज्येष्ठा 08:21 AM तक उपरांत मूल | परिघ योग 01:03 AM तक, उसके बाद शिव योग | करण तैतिल 05:07 PM तक, बाद गर 05:49 AM तक, बाद वणिज |
अप्रैल 18 शुक्रवार को राहु 10:40 AM से 12:16 PM तक है | 08:21 AM तक चन्द्रमा वृश्चिक उपरांत धनु राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:51 AM सूर्यास्त 6:42 PM चन्द्रोदय 11:52 PM चन्द्रास्त 9:47 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वसंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - बैशाख
- अमांत - चैत्र
तिथि
- कृष्ण पक्ष पंचमी
- Apr 17 03:23 PM – Apr 18 05:07 PM
- कृष्ण पक्ष षष्ठी
- Apr 18 05:07 PM – Apr 19 06:22 PM
नक्षत्र
- ज्येष्ठा - Apr 17 05:55 AM – Apr 18 08:21 AM
- मूल - Apr 18 08:21 AM – Apr 19 10:21 AM

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आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य





नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! आज के दिव्य दर्शन 18 April 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
भगवान श्री कृष्ण अकेले थे अकेले थे कई महत्वपूर्ण काम करना चाहते थे कंस को मारने और कंस के अत्याचार को दूर करने के लिए उन्होंने ही यह प्रयास किया कि मानवीय सहयोग मिल जाए पर कोई तैयार ना हुआ कंस का शासन और सत्ता को देख कर के किसी की हिम्मत यह नहीं पड़ी कि आगे आए और आगे बढ़े लेकिन क्या कंस का ध्वंस नहीं हुआ हां कंस का ध्वंस हुआ मुष्टिकासुर मुष्टिकासुर चारूण कोल्यापीठ इत्यादि इन संरक्षकों के होते हुए भी कंस इतना बलिष्ठ होते हुए भी मारा गया दो बालकों के द्वारा कृष्ण और बलराम भाला और मूसर लेकर के चले गए इतना शक्तिवान सत्तावान कंस समाप्त हो गया क्यों क्या कारण था उसका कारण एक ही है कि भगवान की शक्ति सबसे बड़ी शक्ति है वह जिस कार्य को अपने हाथ में लेती है वह सफल हो करके ही रहता है इसी प्रकार से गोवर्धन उठाने वाला कार्य उंगली पकड़ने वाला कार्य मालूम यह होता था कि यह बहुत ही विशाल कार्य है यह कैसे संपन्न हो सकेगा क्रेनें इतनी कहां से आएंगी इंजीनियर इतने कहां से आएंगे गोवर्धन पहाड़ को कैसे ऊंचा उठाया जा सकेगा थोड़े थोड़े थोड़े थोड़े वजन उठाने के लिए कितने प्रयास करने पड़ते हैं फिर एक पहाड़ को इतना ऊंचा उठाना कैसे संभव है हम मानवीय प्रयास उसको देख कर के थक गए चकित हो गए लेकिन मानवीय प्रयास चकित होते हुए भी चकित होते हुए भी क्या वह कार्य संपन्न नहीं हुआ हां गोवर्धन उठाया गया और गोवर्धन उठकर के गया युग निर्माण की संभावना इसी प्रकार की है जिसमें जिसके संबंध में से हम में से प्रत्येक को अपने मन में से यह संदेह निकाल देना चाहिए कि संदिग्ध है सफल होगा या नहीं यह कार्य पूरा पड़ेगा कि नहीं यह जो संकल्प लिए गए हैं यह जो घोषणाएं की गई हैं यह संपन्न होगी कि नहीं इसके बारे में किसी के मन में रखती भर भी संदेह हो तो उसको निकाल देना चाहिए जिस पर भगवान के ऊपर जिसको भगवान के ऊपर भगवान की सत्ता के ऊपर भगवान की इच्छा की प्रखरता के ऊपर और मानवीय भविष्य और भाग्य के ऊपर विश्वास हो उसको यह मानकर ही चलना चाहिए कि आज नहीं तो कल कल नहीं तो परसों नये युग निर्माण की किरणें पृथ्वी पर आने ही वाली है नया सूर्योदय होने वाला है नया प्रभात उगने ही वाला है यह संभावना सुनिश्चित है
अखण्ड-ज्योति से
ईश्वर की प्राप्ति सरल है क्योंकि वह हमारे निकटतम है। जो वस्तु समीप ही विद्यमान है, उसे उपलब्ध करने में कोई कठिनाई क्यों होनी चाहिए? ईश्वर इतना निष्ठुर भी नहीं है जिसे बहुत अनुनय विनय के पश्चात् ही मनाया या प्रसन्न किया जा सके। जिस करुणामय प्रभु ने अपनी महत्ती कृपा का अनुदान पग-पग पर दे रखा है, वह अपने किसी पुत्र को अपना साक्षात्कार एवं सान्निध्य प्राप्त करने में वंचित रखना चाहे, उसकी आकाँक्षा में विघ्न उत्पन्न करे वह हो ही नहीं सकता।
हमारे और ईश्वर के बीच में संकीर्णता एवं तुच्छता का एक छोटा-सा पर्दा है। जिसे माया का अज्ञान कहते हैं- प्रभु प्राप्ति में एक मात्र अड़चन यही है। इस अड़चन को दूर कर लेना ही विविध आध्यात्म साधनाओं का उद्देश्य है। तृष्णा और वासनाओं के तूफान में मनुष्य की आध्यात्मिक आकाँक्षाएं धूमिल हो जाती हैं। अस्तु वह जीवन-निर्माण एवं आत्म-विकास के लिए न तो ध्यान दे पाता है और न प्रयत्न कर पाता है। आज के तुच्छ स्वार्थों में निमग्न लोभी मनुष्य भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए तत्पर नहीं होता।
अहंकार और अदूरदर्शिता को यदि छोड़ा जा सके, अपने-पन का दायरा बड़ा बनाकर यदि लोक हित को अपना हित मानने का साहस किया जा सके तो इतने- से ही ईश्वर प्राप्ति हो सकती है। ओछी आकाँक्षाएँ और संकीर्ण कामनाओं से ऊँचे उठकर यदि इस विशाल विश्व में अपनी आत्मा का दर्शन किया जा सके- औरों को सुखी बनाने के लिये भी यदि आत्म-सुख की तरह प्रयत्नशील रहा जा सके तो ईश्वर की प्राप्ति किसी को भी हो सकती है कठिन आत्म-चिन्तन ही ईश्वर साक्षात्कार नहीं।
महर्षि रमण
अखण्ड ज्योति दिसंबर 1964 पृष्ठ 1
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