Monday 07, April 2025
शुक्ल पक्ष दशमी, चैत्र 2025
पंचांग 07/04/2025 • April 07, 2025
चैत्र शुक्ल पक्ष दशमी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), चैत्र | दशमी तिथि 08:00 PM तक उपरांत एकादशी | नक्षत्र पुष्य 06:24 AM तक उपरांत आश्लेषा | धृति योग 06:18 PM तक, उसके बाद शूल योग | करण तैतिल 07:37 AM तक, बाद गर 08:00 PM तक, बाद वणिज |
अप्रैल 07 सोमवार को राहु 07:37 AM से 09:11 AM तक है | चन्द्रमा कर्क राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:03 AM सूर्यास्त 6:35 PM चन्द्रोदय 1:39 PM चन्द्रास्त 3:33 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वसंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - चैत्र
- अमांत - चैत्र
तिथि
- शुक्ल पक्ष दशमी
- Apr 06 07:23 PM – Apr 07 08:00 PM
- शुक्ल पक्ष एकादशी
- Apr 07 08:00 PM – Apr 08 09:13 PM
नक्षत्र
- पुष्य - Apr 06 05:32 AM – Apr 07 06:24 AM
- आश्लेषा - Apr 07 06:24 AM – Apr 08 07:55 AM

रामनवमी के अवसर पर शांतिकुंज में निकली भव्य शोभायात्रा

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हमारे मन का भगवान कौन है ? | Hamare Man Ka Bhagwan Koun Hai
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! आज के दिव्य दर्शन 07 April 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
पाँच चीजें जो पंचोपचार की हैं, जब इनमें से एक चीज चढ़ाया करें तो अपने विचारों को वस्तुओं के साथ-साथ उसी तरीके से लगा दिया करें, जिस प्रकार शिक्षण के लिए उसका आधार बनाया गया है। क्या बनाया गया है? जल चढ़ाते हैं हम, सबसे पहले देवता का पूजन करते हैं जल चढ़ाने के लिए। जल चढ़ाते हैं हम, पाद्यम समर्पयामि, अघ्र्यम समर्पयामि, आचमनम समर्पयामि। तीन चमचों से, तीन बाल्टियों से कराता है, कि तीन चमचों से महाराज जी, मैंने तो तीन बाल्टियों से नहीं कराता, तीन चमचों से करता हूँ। तो पहले ये बता, कि स्नानं समर्पयामि। भगवान जी को स्नान कराता है, महाराज जी, कैसे कराता है? एक चम्मच से कैसे नहा लेगा? एक चम्मच से तू नहा ले या अपने बच्चे को नहला दे? तेरा बच्चा नहा ले, तो हम जानेंगे कि तू भगवान को स्नान करा सकता है। नहीं, महाराज जी, तो फिर मैं तो ऐसे ही कर देता हूँ। और आचमनम समर्पयामि, चल, तू ये बता कि कुल्ला करता है, तो कितना पानी खर्च करता है? कुल्ला में तो महाराज जी, मैं एक लोटा पानी ले जाता हूँ, मुंह भी धोता हूँ और साबुन से धोता हूँ। तो कितना पानी खर्च करता है? आचमनम जब करता है, कुल्ला करता है, तब कितना पानी? महाराज जी, कम से कम एक लोटा, इतना तो खर्च हो जाता है। और भगवान जी को एक चम्मच, एक चम्मच से, तो बेटा उनका ओंठ भी गीला नहीं होगा। आचमन क्या कराता है? तो महाराज जी, क्या करता हूँ? तू दिल्लगी बाजी करता है, भगवान से मखौल करता है। आपने ही तो बताया था कि ऐसे जल चढ़ाना, हाँ बेटे, मैंने जब बताया था, तो एक और बात बताई थी, तूने वो याद नहीं रखी। क्रिया याद रख ली, वह क्या बताया था? ये बताया था कि जल चढ़ाते समय, मनुष्य की ये वृत्ति रहनी चाहिए। क्या वृत्ति रहनी चाहिए? कि हम आपको समर्पण करेंगे। जब देवता से मांगना मत, आपको हम समर्पण करेंगे, आपको हम देंगे। देवता इसीलिए देवता हैं, क्योंकि उन्होंने भगवान को दिया है। और तुझे भी देवताओं की कृपा प्राप्त करने के लिए देने की वृत्ति सीखनी पड़ेगी। देने की वृत्ति जब तक तेरे अंदर नहीं आएगी, कोई देवता तेरे ऊपर कृपा नहीं कर सकता।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
मित्रो! हमारा सत्तर वर्ष का संपूर्ण जीवन सिर्फ एक काम में लगा है और वह है- भारतीय धर्म और संस्कृति की आत्मा की शोध। भारतीय धर्म और संस्कृति का बीज है- गायत्री मंत्र। इस छोटे से चौबीस अक्षरों के मंत्र में वह ज्ञान और विज्ञान भरा हुआ पड़ा है, जिसके विस्तार में भारतीय तत्त्वज्ञान और भारतीय नेतृत्व विज्ञान दोनों को खड़ा किया गया है। ब्रह्माजी ने चार मुखों से चार चरण गायत्री का व्याख्यान चार वेदों के रूप में किया। वेदों से अन्यान्य धर्मग्रंथ बने। जो कुछ भी हमारे पास है, इस सबका मूल जड़ हम चाहें तो गायत्री मंत्र के रूप में देख सकते हैं। इसलिए इसका नाम गुरुमंत्र रखा गया है, बीजमंत्र रखा गया है।
बीजमंत्र के नाम से, गायत्री मंत्र के नाम से इसी एक मंत्र को जाना जा सकता है और गुरुमंत्र इसे कहा जा सकता है। हमने प्रयत्न किया कि सारे भारतीय धर्म और विज्ञान को समझने की अपेक्षा यह अच्छा है कि इसके बीज को समझ लिया जाए, जैसे कि विश्वामित्र ने तप करके इसके रहस्य और बीज को जानने का प्रयत्न किया। हमारा पूरा जीवन इसी एक क्रिया- कलाप में लग गया। जो बचे हुए जीवन के दिन हैं, उसका भी हमारा प्रयत्न यही रहेगा कि हम इसी की शोध और इसी के अन्वेषण और परीक्षण में अपनी बची हुई जिंदगी को लगा दें।
बहुत सारा समय व्यतीत हो गया। अब लोग जानना चाहते हैं कि आपने इस विषय में जो शोध की जो जाना, उसका सार- निष्कर्ष हमें भी बता दिया जाए। बात ठीक है, अब हमारे महाप्रयाण का समय नजदीक चला आ रहा है तो लोगों का यह पूछताछ करना सही है कि हर आदमी इतनी शोध नहीं कर सकता। हर आदमी के लिए इतनी जानकारी प्राप्त करना तो संभव भी नहीं है। हमारा सार और निष्कर्ष हर आदमी चाहता है कि बताया जाए। क्या करें? क्या समझा आपने? क्या जाना? अब हम आपको यह बताना चाहेंगे कि गायत्री मंत्र के ज्ञान और विज्ञान में जिसकी कि व्याख्यास्वरूप ऋषियों ने सारे का सारा तत्त्वज्ञान खड़ा किया है, क्या है?
गायत्री को त्रिपदा कहते हैं। त्रिपदा का अर्थ है- तीन चरण वाली, तीन टाँगवाली। तीन टुकड़े इसके हैं, जिनको समझ करके हम गायत्री के ज्ञान और विज्ञान की आधारशिला को ठीक तरीके से जान सकते हैं। इसका एक भाग है विज्ञान वाला पहलू। विज्ञान वाले पहलू में आते हैं तत्त्वदर्शन, तप, साधना, योगाभ्यास, अनुष्ठान, जप, ध्यान आदि। यह विज्ञान वाला पक्ष है। इससे शक्ति पैदा होती है। गायत्री मंत्र का जप करने से, उपासना और ध्यान करने से उसके जो माहात्म्य बताए गए हैं कि इससे यह लाभ होता है, अमुक लाभ होते हैं, अमुक कामनाएँ पूरी होती हैं। अब यह देखा जाए कि यह कैसे पूरी होती हैं और कैसे पूरी नहीं होती? कब यह सफलता मिलती है और कब नहीं मिलती?
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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