Sunday 20, April 2025
कृष्ण पक्ष सप्तमी, बैशाख 2025
पंचांग 20/04/2025 • April 20, 2025
बैशाख कृष्ण पक्ष सप्तमी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), चैत्र | सप्तमी तिथि 07:01 PM तक उपरांत अष्टमी | नक्षत्र पूर्वाषाढ़ा 11:48 AM तक उपरांत उत्तराषाढ़ा | सिद्ध योग 12:12 AM तक, उसके बाद साध्य योग | करण विष्टि 06:46 AM तक, बाद बव 07:01 PM तक, बाद बालव |
अप्रैल 20 रविवार को राहु 05:06 PM से 06:43 PM तक है | 06:04 PM तक चन्द्रमा धनु उपरांत मकर राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:49 AM सूर्यास्त 6:43 PM चन्द्रोदय 12:42 AM चन्द्रास्त 11:49 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु ग्रीष्म
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - बैशाख
- अमांत - चैत्र
तिथि
- कृष्ण पक्ष सप्तमी
- Apr 19 06:22 PM – Apr 20 07:01 PM
- कृष्ण पक्ष अष्टमी
- Apr 20 07:01 PM – Apr 21 06:58 PM
नक्षत्र
- पूर्वाषाढ़ा - Apr 19 10:21 AM – Apr 20 11:48 AM
- उत्तराषाढ़ा - Apr 20 11:48 AM – Apr 21 12:37 PM

!! आदरणीय डॉक्टर चिन्मय पंड्या जी का ब्रिसबेन में शुभागमन हुआ !!

मनुष्य जाति के गौरव | पं श्रीराम शर्मा आचार्य

आध्यात्मिक चिकित्सा | Adhyatmik Chikitsa

भारत भाग्य विधाता | Bharat Bhagya Vidhata

हम पुरुष से पुरुषोत्तम बनें | Ham Purush Se Purushottam Bane

दान देने की परम्परा बन्द न करो। गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी

प्रभु तुझमें मैं मिल जाऊँ | Prabhu Tujhme Mai Mil Jau

सच्चा यज्ञ क्या समाज को जागृत करने में मदद कर सकता है?
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन












आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! सप्त ऋषि मंदिर गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 20 April 2025

!! गायत्री माता मंदिर Gayatri Mata Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 20 April 2025

!! प्रज्ञेश्वर महादेव मंदिर Prageshwar Mahadev 20 April 2025

!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 20 April 2025 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! महाकाल महादेव मंदिर #Mahadev_Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 20 April 2025

!! आज के दिव्य दर्शन 20 April 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! अखण्ड दीपक Akhand Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) एवं चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 20 April 2025 !!

!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 20 April 2025 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! देवात्मा हिमालय मंदिर Devatma Himalaya Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 20 April 2025 !!

!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
भगवान जिस पर वह प्रसन्न होते हैं उसके अंदर भावनाएं उत्पन्न करते हैं यही एक कसौटी है सबसे बड़ी भगवान की कृपा और अनुग्रह कि लोगों का यह ख्याल है भगवान जिस पर प्रसन्न होते हैं उसको धन देते हैं संतान देते हैं वैभव देते हैं यश देते हैं मान देते हैं नहीं ऐसी बात नहीं हैं यह वस्तुएं तो उन लोगों को भी मिल जाती हैं जो भगवान के क्रोध के पात्र रहे हैं रावण के पास इन चीजों का अभाव था क्या संताने कुछ कम थी क्या उसके पास धन कुछ काम था क्या उसके पास बुद्धि कुछ कम थी क्या उसके पास वैभव कुछ कम था क्या उसके पास इससे यह साबित नहीं होता जिन लोगों के पास इतनी ज्यादा भौतिक विभूतियां हैं यह भगवान के कृपा पात्र हैं सही बात यह है भगवान जिन पर कृपा करते हैं उनके साधनों और सामानों को समेटते चले जाते हैं ताकि उनके विचार ताकि उनकी भावनाएं उस लोग और मुंह के जंजाल में से निकल कर के परमार्थ की ओर अग्रसर हों यही होता रहा है प्रह्लाद का यही हुआ धु्रव का यही हुआ हरिश्चंद्र का यही हुआ मकरध्वज का यही हुआ जितने भी संसार में महामानव हुए हैं उनके ऊपर से भगवान ने अनावश्यक बोझ और वजन हटाए हैं और उनका वजन कम किया है ताकि वह हल्के-फुल्के हो करके भगवान की राह पर तेजी के साथ में चल सके हम में से किसी व्यक्ति को इसलिए अपने आप को भगवान से दूर नहीं मानना चाहिए उनकी कृपा का पात्र ना होने पर संदेह नहीं करना चाहिए कि उनको बहुत सारा वैभव नहीं मिला हुआ है यदि उनके पास वैभव मिला हुआ होता तो वह बहुत काम करते यह बात गलत है वैभव वैभव अगर काम किया होता तो दुनिया में संपन्न आदमियों की कमी क्या है फैमिली कोर्ट हिंदुस्तान में कितने संपन्न आदमी हैं इनमें से एक टाटा जी का नाम लिया जा सकता है बिड़ला जी का नाम ले सकते हैं दूसरे लोगों का नाम ले सकते हैं कितने संपन्न आदमी हैं संपन्न आदमियों के द्वारा समाज का कोई नया निर्माण या समाज का उत्कर्ष हुआ होता तो अब तक कब का यह बात पूरी हो गई होती गवर्नमेंटों के पास धन की क्या कमी है नोट छापने में कितनी देर लगती है आजकल तो फॉरेन करेंसी का बोलबाला है गवर्नमेंट के कोष में जितना लूट का धन होता है उससे कई गुनी मुद्रा करेंसी छाप दी जाती है लोगों के विचारों और भावनाओं का परिवर्तन करना यह सारी सरकारें चाहती हैं यह संभव रहा होता अब तक धन के द्वारा कब तक पूरा हो गया होता किसी को अपने आप को इसलिए दुर्भाग्यवान नहीं मानना चाहिए और भगवान की कृपा से दूर नहीं मानना चाहिए कि उसके पास संपदा नहीं है विद्या नहीं है बुद्धि नहीं है सबसे बड़ी चीज जो भगवान की अनुग्रह वह यह है आदमी के अंदर भावनाएं पैदा होती है श्रेष्ठ काम करने की और श्रेष्ठ मार्ग पर चलने की भगवान की इच्छा के ऊपर चलने का साहस जिनके अंदर हो समझ लेना चाहिए यह भगवान के सबसे बड़े कृपा पात्र हैं यही एक कसौटी है जिसके ऊपर कसने के पश्चात किसी को भगवान का समीपतम या दूर व्यक्ति का मूल्यांकन किया जा सकता है
अखण्ड-ज्योति से
मन बड़ा शक्तिवान है परन्तु बड़ा चञ्चल । इसलिए उसकी समस्त शक्तियाँ छितरी रहती हैं और इसलिए मनुष्य सफलता को आसानी से नहीं पा लेता। सफलता के दर्शन उसी समय होते हैं, जब मन अपनी वृत्तियों को छोड़कर किसी एक वृत्ति पर केन्द्रित हो जाता है, उसके अलावा और कुछ उसके आमने-सामने और पास रहती ही नहीं, सब तरफ लक्ष्य ही लक्ष्य, उद्देश्य ही उद्देश्य रहता है।
मनुष्य अनन्त शक्तियों का घर है, जब मनुष्य तन्मय होता है तो जिस शक्ति के प्रति तन्मय होता है, वह शक्ति जागृत होती और उस व्यक्ति को वह सराबोर कर देती है। पर जो लोग तन्मयता के रहस्य को नहीं जानते अपने जीवन में जिन्हें कभी एकाग्रता की साधना का मौका नहीं मिला, वे हमेशा डाल डाल और पात पात पर डोलते रहे परन्तु सफलता देवी के वे दर्शन नहीं कर सके।
जिन्हें हम विघ्न कहते हैं, वे हमारे चित्त की विभिन्न वृत्तियाँ हैं जो अपने अनेक आकार प्रकार धारण करके सफल नहीं होने देतीं। यदि हम लक्ष्य सिद्ध करना चाहते हैं तो यह आवश्यक है कि लक्ष्य से विमुख करने वाली जितनी भी विचार धारायें उठें और पथ-भ्रष्ट करने का प्रयत्न करें हमें उनसे अपना सम्बन्ध विच्छेद करते जाना चाहिए। और यदि हम चाहें अपनी दृढ़ता को कायम रखें, अपने आप पर विश्वास रखें तो हम ऐसा कर सकते हैं, इसमें किसी प्रकार का कोई सन्देह नहीं है। एक ऐतिहासिक घटना इस सम्बन्ध में हमें विशेष प्रकाश दे सकती है।
मन की अपरिमित शक्ति को जो लक्ष्य की ओर लगा देते हैं और लक्ष्य भ्रष्ट करने वाली वृत्तियों पर अंकुश लगा लेते हैं अथवा उनसे अपना मुँह मोड़ देते हैं वे ही जीवन के क्षेत्र में विजयी होते हैं, सफल होते हैं।
धनुष से छूटा बाण अपनी सीध में ही चलता जाता है, वह आस-पास की किसी वस्तु के साथ अपना संपर्क न रख कर सीधा वहीं पहुँचता है जो कि उसके सामने होती है। अर्थात् सामने की तरफ ही उसकी आँख खुली रहती है और सब ओर से बन्द। इसलिये जो लोग लक्ष्य की तरफ आँख रखकर शेष सभी ओर से अपनी इन्द्रियों को मोड़ लेते है और लक्ष्य की ओर ही समस्त शक्ति लगा देते हैं वे ही सफल होते हैं। उस समय अर्जुन से पूछे गये द्रोण के प्रश्न-उत्तर में अर्जुन की तरह उनकी अन्तरात्मा में एक ही ध्वनि गूँजती है अतः अपना लक्ष्य ही दिखाई देता है।
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति फरवरी 1950 पृष्ठ 10
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