परिव्राजक प्रशिक्षण एवं समयदान हेतु आमंत्रण
हमारे ऋषियों ने अपने कठोर त्याग एवं उत्सर्ग से भारतीय संस्कृति को ‘सप्तद्वीपा वसुंधरा’ बनाया है। परम पूज्य गुरूदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा वर्तमान समय में आरंभ की गई परिव्राजक परम्परा उसी महान पुण्यदायी ऋषि परम्परा का अभिनव संस्करण है। गायत्री परिवार के हजारों परिजन इस सेवा-साधना को अपनाकर आत्मकल्याण और लोकमंगल का अक्षय पुण्य लाभ प्राप्त कर रहे हैं, लेकिन सतयुग की वापसी और युग परिवर्तन जैसे महान लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अभी ऐसे लाखों परिव्राजकों की आवश्यकता है।
जिनके पास परिवार की जिम्मेदारियाँ सीमित हैं और वे समयदान करने में समर्थ हैं, ऐसे तेजस्वी, प्रखर एवं भावनाशील परिजनों को युगतीर्थ शान्तिकुञ्ज का भावभरा आमंत्रण है। जो लोग सेवा निवृत्ति हो चुके हैं, ऐसे लोगों को तो देश के विभिन्न प्रज्ञा संस्थानों में अपना कुछ समय देने के लिए आगे आकर अपना युगधर्म निभाना ही चाहिए। इससे उनकी योग्यता और कार्यदक्षता में भी निखार आएगा, गुरूकार्यों को करने से आत्मसंतोष बढ़ जाएगा। परम वंदनीया माताजी ने कहा था, ‘‘देव संस्कृति के विस्तार के लिए भावनाशीलों की आवश्यकता है। बेटा! आपके ब्राह्मणोचित निर्वाह में कभी कमी नहीं आएगी, इच्छाएँ एवं कामनाएँ तो रावण और सिकंदर की भी पूरी नहीं हुई।’’
जिनके पास न्यूनतम चार माह का समय हो और पूर्व में शान्तिकुञ्ज में 9 दिवसीय संजीवनी साधना सत्र एवं एक मासीय युगशिल्पी सत्र कर चुके हों, वे पूर्वानुमति लेकर किसी भी माह की 28 या 29 तारीख में शान्तिकुञ्ज पधारें। अगले माह की एक तारीख से उनका एक मासीय प्रशिक्षण आरंभ होगा। प्रशिक्षण के उपरांत शेष 3 माह या उससे अधिक समय के लिए उनकी विभिन्न प्रज्ञा संस्थानों में नियुक्ति की जाएगी। अनुरोध है कि समाज और संस्कृति की सेवा के लिए साहसी कदम बढ़ायें। पूर्वानुमति प्राप्त करने अथवा किसी भी प्रकार की पूछताछ के लिए संपर्क कीजिए-
शिविर विभाग, शान्तिकुञ्ज, हरिद्वार
मो. 9258369747, 7498962656