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माँ की संस्कार शाला

साप्ताहिक पाठ्यक्रम डाउनलोड करने के लिए यह क्लिक करें। 

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लक्ष्य

मनुष्य में देवत्व, धरती पर स्वर्ग

उद्देश्य

शिशुओं के नैतिक, बौद्धिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक विकास की घरेलू योजना "मां की संस्कारशाला"

अवधारणा

" जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात द्विज उच्चते । " अर्थात जन्म से तो सभी क्षुद्र प्रकृति के होते है, संस्कारो से उन्हे श्रेष्ठ बनाया जाता है। प्राचीन भारत में मनुष्य जीवन को विकसित करने हेतु संस्कार संवर्धन की क्रियाएँ दिनचर्या में समाहित की गयी थी। गरीब हो या अमीर, छोटा हो या बड़ा सभी के लिए विकसित होने के सभी सूत्र संस्कृति के रूप में उपस्थित थे। दैनिक जीवन क्रम, संयुक्त परिवारिक व्यवस्था, तीज- त्यौहार और पर्व- उत्सव के माध्यम से श्रेष्ठ व्यक्तित्वों के निर्माण का क्रम चलता रहता था। दैनिक जीवन क्रम में ही समस्त गुह्य ज्ञान विज्ञान का शिक्षण प्रशिक्षण हो जाता था। धन की तुलना में ज्ञान और जीवन जीने की कला पर विशेष ध्यान दिया जाता था। भारत में देवमानवों को विकसित करते थे। इन दिनो भोगवादी जीवन पद्यति ने अर्थ को अत्यधिक प्रधानता दी है फल स्वरूप व्यक्तित्व विकास का क्रम पिछड़ गया है। सन्तान उत्पादन तो पूर्ववत चल रहा हैं। परन्तु उन्हे सच्चे और अच्छे मनुष्य बनाने की प्रक्रिया बाधित हो गई है। यदि हम चाहते है कि परिवार, समाज और राष्ट्र- विश्व सुख शांतिपूर्वक रहे तो आवश्यकता महसूस होती है श्रेष्ठ नागरिकों की व्यक्ति निर्माण की । यह बड़ी कठिन और श्रमसाध्य प्रक्रिया है । गायत्री परिवार ने सदा ही व्यक्ति निर्माण को वरीयता दी है और अपने संस्थापक संरक्षक की प्रेरणा से "आओ गढ़े संस्कार वान पीढ़ी" का अभियान प्रारंभ किया है। इसके अन्तर्गत नवदम्पति शिविर, गर्भसंस्कार, माँ की संस्कार शाला, बाल संस्कार शाला, किशोर संस्कार शाला, कन्या कौशल और युवा जागृति अभियान के माध्यम से जन्म के पूर्व से लेकर युवावस्था तक एक पूरी पीढ़ी के निर्माण का दायित्व उठाया है। व्यक्ति निर्माण की इस प्रक्रिया मे तीसरा चरण है "माँ की संस्कार शाला" जिसके अन्तर्गत जन्म से लेकर 8 वर्ष की अवस्था, तक बालकों के शारीरिक मानसिक, भावनात्मक एवं सामाजिक विकास हेतु माता- पिता द्वारा किए जाने वाले प्रयासों संस्कारों को ध्यान में रखा गया है। गुरुदेव ने कहा है कि परिवार पाठशाला है और माता- पिता गुरु हैं। घर का वातावरण बच्चे के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। परिवार सांचा है और बच्चे गीली मिट्टी के समान हैं।

कार्यक्रम पाठ्यक्रम

मां की संस्कारशाला के माध्यम से संपूर्ण विश्व की उन माताओं को जिनके 1 वर्ष से 8 वर्ष तक के शिशु/बालक हों, को संस्कार संवर्धन की सामग्री उपलब्ध कराना। ताकि वह स्वयं अपने बच्चों को श्रेष्ठ नागरिक के रूप में विकसित कर सकें पाठ्यक्रम सामग्री -

  • प्रतिदिन रात्रि को माता-पिता द्वारा सुनाई जाने वाली 365 कहानियां वर्ष के 52 सप्ताह हेतु ।
  • प्रति सप्ताह 1 के हिसाब से 52 मानवीय गुणों के अभ्यास हेतु सामग्री प्रति सप्ताह बालकों के मनोवैज्ञानिक एवं व्यावहारिक समस्याओं के समाधान सुझाना । 
  • प्रतिदिन बच्चों को सुनाएं एवं अभ्यास कराए जाने वाले 365 सुभाषित (वेद वाक्य) उपलब्ध कराना बच्चों के बौद्धिक विकाश हेतु पहेलियाँ ।
  • रात्रि को शिशुओं को सुलाने हेतु प्रेरक लोरियाँ।
  • पिता पुत्र/पुत्री संवाद के ऑडियो-वीडियो के माध्यम से भारतीय संस्कृति से संबंधित प्रश्नोत्तरी एवं जिज्ञासा समाधान | (उदाहरण- बच्चों को अपने बड़ों का चरण स्पर्श क्यूँ करना चाहिए आदि )

प्रचार प्रसार कार्य योजना

  • पाठ्यक्रम प्रति सप्ताह शुक्रवार को प्रसारित किया जाएगा।
  • पाठ्यक्रम निम्नलिखित माध्यमों से प्रेषित किया जाएगा
  • व्हाट्सएप ग्रुप्स
  • वेबसाईट awgp.org, diya.net.in
  • Youtube- Shantikunj videos
  • सभी से निवेदन कृपया अपने परिचितों, मित्रों, रिश्तेदारों एवं आपसे जुड़े व्हाट्सप्प गुप्स के माध्यम से प्रसारित करें । 
  • माँ की संस्कार शाला व्हाट्सप्प ग्रुप में जुड़ने हेतु हमें व्हाट्सप्प न. 9258360962 पर "माँ की संस्कार शाला" लिखकर संदेश भेजें तत्पश्चात हम आपको ग्रुप से जुड़ने हेतु लिंक भेजेंगे जिसके माध्यम से आप हमसे जुड़कर पाठ्यक्रम प्राप्त कर सकेंगे ।

 

भावी कार्य योजना

  • महिला एवं बाल विकास विभाग के माध्यम से आगनबाड़ी से संबंधित माताओं को
  • पाठ्यक्रम पहुंचना • प्ले स्कूल में पाठ्यक्रम पहुंचाना।
  •  

पेज के अन्य लेख

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सम्बंधित लिंक्स

  • व्यक्तित्व निर्माण करने वाला विश्वविद्यालय
  • BSGP - सुसंस्कृत छात्र
  • बाल संस्कार शाला
  • ऑनलाइन अध्ययन ग्रुप - वेब स्वाध्याय
  • Kanya Kishor Kaushal
  • माँ की संस्कार शाला
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

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