अवधारणा
किशोरावस्था भले- बुरे व्यक्तित्व का निर्माण करने की दृष्टि से अतिशय महत्वपूर्ण है। अभिभावक और अध्यापक इस दिशा में बहुत काम कर सकते हैं। वह बचपन से ही नई पीढ़ी को ऐसे संस्कार दे सकते हैं जिनसे कुकर्मों के दुष्परिणामों और सत्कर्मों के सत्परिणामों को जान सकता संभव हो सके। इसके लिए परिवार का और पाठशाला का वातावरण ऐसा बनाना चाहिए जिसके संपर्क में आने पर नवोदित बालक मानवीय गरिमा और महत्ता के प्रति आकर्षित हो सकें और अपने को हर दृष्टि से समुन्नत सुसंस्कृत बनाने के लिए प्रयत्नरत हो सकें।
- पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य - ( पुस्तक: अनाचार से कैसे निपटें। )
परिचय
कोई भी राष्ट्र व समाज तभी सशक्त व समर्थ बनता है, जब वर्तमान पीढ़ी के साथ-साथ उसकी भावी पीढ़ियाँ भी समर्थ व सशक्त होती हैं। उच्च शिक्षा के साथ-साथ चरित्रवान, राष्ट्रनिष्ठ व अपने नैतिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति श्रद्धा व आस्था रखने वाली होती हैं।
किशोरावस्था जीवन का वह पड़ाव है, जब व्यक्ति अपने व्यक्तित्व की नींव को मजबूत करता है। जो मान्यताऐं, विश्वास और स्वभाव इस अवस्था में परिपक्व हो जाते हैं वह आजीवन उसके साथ चलते हैं। जीवन के इस संधिकाल में उत्सुकता, जिज्ञासा, उत्साह, साहस, जिजीविषा अपने चरम पर होती है। जीवन के किसी अन्य चरण की अपेक्षा यह अत्यंत संवेदनशील, अधिक विश्लेषणात्मक, समीक्षात्मक, मूल्यग्राही एवं अन्तर्दर्शी होती है। यही कारण है कि इसे नैतिक मूल्यों के विकास एवं चरित्र निर्माण की दृष्टि से सर्वोत्तम समय माना गया है। इस उम्र में प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक रूप से भी विलक्षण परिवर्तन होते हैं। यह भी सत्य है कि इस चरण में अच्छे-बुरे के दोराहे पर किशोर कब-किधर चल पड़ेंगे, कुछ भी भरोसा नहीं रहता। थोड़ी-सी असावधानी बालकपन की सारी उपलब्धियों को चौपट कर सकती है। इस समय विशेष में संगति, परिवेश या परिवार की छोटी-सी भूल पूरे जीवन की बर्बादी का कारण बन जाती है।
वर्तमान समय में जिस तेजी से भौतिकता की चकाचौंध में फंस कर हमारी भावी पीढ़ी मार्गभ्रमित होती जा रही है, उसे देखते हुए किशोर आयु में उनका उचित मार्गदर्शन करना आज की महती आवश्यकता बन गई है। ऐसी भावी पीढ़ी का निर्माण जो शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, भावनात्मक, चारित्रिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक रूप से पूर्ण विकसित होकर जीवन की हर चुनौति का साहस एवं समझदारी पूर्वक सामना करने में सक्षम हो और एक आदर्श एवं अनुकरणीय जीवन जी सके। इस हेतु कन्या/ किशोर कौशल अभिवर्धन सत्र अभियान को राष्ट्रीय स्तर पर सघन रूप से चलाए जाने की आवश्यकता है।
उदेश्य
- कन्याओं/ किशोरों के व्यक्तित्व को महामानव स्तर का बनाना।
- उनके अंदर आध्यात्मिक गुणों को विकसित कर जीवन लक्ष्य की दिशा में प्रेरित करना।
- उनमें आत्मविश्वास जगाकर आत्मरक्षा की कला एवं नेतृत्व क्षमता का विकास करना।
- उपासना, साधना, स्वाध्याय को जीवन क्रम में अपनाने हेतु प्रेरित करना, संस्कृति निष्ठ बनाना।
- कन्याओं/ किशोरों की आंतरिक शक्तियों को जागृत कर उनमें छिपी प्रतिभा, योग्यता एवं मौलिक गुणों को उभारना- विकसित करना।
- उनमें चरित्रनिष्ठा एवं राष्ट्रनिष्ठा के भाव जगाना/ बढ़ाना।
- अपनी प्रतिभा, कौशल एवं खाली समय का सदुपयोग रचनात्मक कार्यों में करने की कला विकसित करना।
- उन्हें स्वावलंबन की विभिन्न विधाओं से परिचित कराना।
- जीवन की गरिमा का बोध कराना व गरिमामय जीवन जीने हेतु प्रेरित करना।
- गृह प्रबंधन, परिवार प्रबंधन, दाम्पत्य प्रबंधन आदि में कुशल बनाना।
- संतति निर्माण हेतु आदर्श मातृत्व/ पितृत्व की समझ विकसित करना।
- नारी सशक्तिकरण की ओर एक कदम
- अपने सामाजिक एवं पारिवारिक उत्तरदायित्वों के प्रति प्रशिक्षित कर गृहस्थ जीवन में स्थिरता, सुख एवं प्रसन्नता की आधारशिला को मजबूत बनाना। सुघड़ गृहिणी के गुणों का विकास करना।
- उनमें समझदारी, बुद्धि-कौशल के साथ-साथ भाव संवेदनाओं को जगाना/ बढ़ाना। परिवार एवं समाज को एक सूत्र में बाँधने की कला विकसित करना।