Magazine - Year 1941 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
ईमानदारी-दिव्य गुण
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(मूल लेखक श्री स्वेट मार्डेन)
देह को फटे-टूटे कपड़ों से जैसे-तैसे ढके हुए एक दरिद्र बालक ने आगे बढ़ कर एक भद्र रास्तागीर से कहा—
“महोदय, दियासलाई खरीद लीजिये।”
“मुझे जरूरत नहीं है।”
“एक पैसे की ही तो है, ले लीजिए”, इन शब्दों के साथ लड़का उस रास्तागीर का मुँह ताकने लगा।
“नहीं मुझे नहीं चाहिए”, उस पुरुष ने फिर यही कहा।
‘अच्छा, एक पैसे में दो डिब्बी ले लीजिये’। लड़के ने फिर कहा।
उसने किसी तरह लड़के से अपना पीछा छुड़ाने के लिए एक डिब्बी ले ली। पर जेब टटोला तो देखा कि उसमें छूटा हुआ पैसा नहीं है। उन्होंने डब्बी वापिस कर दी और कहा—फिर कभी खरीद लूंगा। लड़के ने फिर विनय पूर्वक कहा- “आज ले लीजिये, पैसा भुना कर मैं ला दूँगा ।”
बालक की दीन दशा और उसका धेले की दियासलाई खरीदने के लिए इतना आग्रह देखकर उनका दिल पिघल गया। उन्होंने उसे एक अठन्नी भुना गाने के लिए दे दी।
लड़के के वापिस आने की प्रतीक्षा में बहुत देर खड़े रहे पर जब बहुत देर हो गई और वह न लौटा तो यह सोचते हुए कि अब वह न लौटेगा, कुछ देर और प्रतीक्षा करके वे घर चले गये।
वह भद्र पुरुष अपने घर पर बैठे हुए थे, नौकर ने आकर कहा कि एक फटे चिथड़े पहने हुए लड़का आपसे मिलने के लिये कहता है। उन्होंने उसे उत्सुकतापूर्वक अन्दर बुलवाया। यह लड़का उस दियासलाई वाले से भी अधिक दुर्बल था। एक-एक पसली चमक रही थी और चेहरा सूख रहा था। देखने से मालूम होता था वह बेचारा बहुत ही कठिनाई से अपनी गुजर करता है। लड़के ने सामने आकर उन से नम्रतापूर्वक पूछा—”मेरे भाई से क्या आपने ही दियासलाई खरीदी थी?”
“हाँ।”
“तब लीजिए, इतने पैसे बचे हैं। वह आ नहीं सकता, उसकी दशा अच्छी नहीं है। वह एक गाड़ी से टकरा गया और गाड़ी उसके ऊपर होकर निकल गई। उसकी टोपी, दियासलाइयाँ और आपका बाकी पैसा न जाने कहाँ गया। उसके दोनों पैर चूर-चूर हो गये हैं, डॉक्टर कहते हैं कि अब वह बच नहीं सकेगा। अपनी इस दुखदायी परिस्थिति में भी उसे सब से अधिक चिन्ता आपके पैसों की थी। मैं उस की सेवा में था कि उसने आग्रहपूर्वक आपका पास भेजा है, बड़ी कठिनाई से आपका पता लगा सका हूँ। यह कहते-कहते उस बालक का गला भर आया। भाई की विपत्ति का स्मरण करके उसकी आँखों में से आँसू छलक पड़े।
पैसे भेज पर रख कर बालक जब वापिस जाने लगा तो उन सज्जन से भी न रहा गया। वह उसे देखने के लिए चल दिये। उन्होंने जाकर देखा कि एक अनाथ बालक घायल दशा में फूस पर पड़ा हुआ है। लड़के ने देखते ही उन्हें पहचान लिया और एक क्षण के लिए अपनी पीड़ा को भूल कर विनयपूर्वक कहा—”महोदय! मैंने अठन्नी भुना ली थी और लौट रहा था कि घोड़े की टक्कर से मैं गिर पड़ा और मेरे दोनों पैर टूट गये। मैं मर रहा हूँ, पर मुझे बड़ा संतोष है कि आप का पैसा आपके पास पहुँच गया। अब मैं शान्ति पूर्वक मर सकूँगा।”
घायल बालक अपनी मृत्यु के बिलकुल निकट पहुँच चुका था। उसने पीड़ा से व्याकुल अवस्था में अपने छोटे भाई को बिलकुल असहाय देखते हुए कहा-प्यारे छोटे भाई! प्यारे ! मेरी मृत्यु आ रही है।
“भैया? तुम्हारा क्या होगा? तुम्हारी देख भाल कौन करेगा? हाय! अब तुम किस प्रकार निर्वाह करोगे?” यह कहते हुए उसने अपने छोटे भाई को गले लगा लिया, उसकी नेत्रों में से अविरल अश्रु धारा बह रही थी।
उन भद्रपुरुष से यह दृश्य न देखा गया। उन्होंने कहा “बेटा! चिन्ता मत करो, सुखपूर्वक परमात्मा की गोद में जाओ, मैं तुम्हारे भाई को आश्रय दूँगा।” घायल की जबान बन्द हो चुकी थी, पर उसने अपना बल समेट कर उनकी ओर देखा और फिर सदा के लिये सो गया। उसकी अंतिम चितवन में धन्यवाद और कृतज्ञता के भाव भरे हुए थे।
वह छोटा बालक गरीब था। जो पैसे कमाता था, उसमें दोनों भाई आधे पेट भोजन कर पाते और आपस में लिपट कर सो जाते। फिर भी उसका हृदय बड़े-बड़े धनपतियों की अपेक्षा अधिक ईमानदार है। वह दुखी था, फिर भी सचाई और ईमानदारी का मूल्य समझता था। ये ही सद़गुण हैं, जो मनुष्य को देवता बना देते हैं और इन्हीं के कारण मनुष्य इस लोक और परलोक में पूज्य माने जाते हैं