Magazine - Year 1941 - Version 2
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परलोक विद्या
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(परलोक विद्या के आचार्य श्री. वी. डी. ऋषि)
‘मरणोत्तर जीवन’ के सम्बन्ध में ज्ञान वृद्धि के लिए अनेक वर्षों से परिश्रम हो रहा है और इस में जनता ने काफी दिलचस्पी भी ली है, किन्तु उस की यह दिलचस्पी क्षणिक रही है। अब तक के अनुसंधान का श्रेय उन सच्चे जिज्ञासुओं को ही दिया जा सकता है, जिन्होंने तत्परतापूर्वक इधर अन्वेषण किये हैं।
विचारपूर्वक देखने से प्रतीत होगा कि यह ऐसा साधारण विषय नहीं है, कि किसी मनुष्य का थोड़ा सा फुरसत का वक्त ही इसके लिए पर्याप्त हो। जिन्होंने इस सम्बन्ध में घण्टा आध घण्टा नित्य कुछ काल तक अपना समय लगाया है, वे जानते हैं कि इतने से ही परिश्रम से उन्हें ‘माध्यम’ बनने की कितनी योग्यता प्राप्त हुई है। यदि लगातार इस सम्बन्ध में पूरी तत्परता के साथ खोजें तो सचमुच बहुत अधिक प्रगति होगी। यदि कुछ अन्वेषक इस विषय को अपना पेशा बना कर पूरी खोज करने पर जुट जावें तो अवश्यमेव इस विषय के गुह्य रहस्यों का उद्घाटन होने की संभावना है।
निपुण ‘माध्यमों’ का सहयोग भी इसके लिये आवश्यक है। हमारे देश में बहुत से व्यक्ति ‘स्वयं लेखन प्रणाली’ तथा अन्य प्रयोगों द्वारा अपने सम्बन्धियों से वार्तालाप करने में सहायता प्राप्त करते हैं, किन्तु वह दूसरों की अपने सम्बन्धियों से बात- चीत करने में सहयोग देते हुए हिचकिचाते हैं। आज देश में ऐसे माध्यमों की जरूरत है जो आत्मा के लौटने की सच्चाई साबित कर सकें। वास्तव में आत्माओं का मध्यस्थ बनने की योग्यता अनेक मनुष्यों में है और वह समुचित देख-भाल से बढ़ाई भी जा सकती हैं। विदेशों के अनेक ‘माध्यम’ ऐसे उपयोगी साबित हुए हैं जैसे खगोल विद्या के लिए दूरवीक्षण- यन्त्र। समुचित देख-भाल से भारत में भी ऐसे ‘माध्यम’ तैयार हो सकते हैं, जो अनेक वियोग से पीड़ित दुखी हृदयों में शान्ति की बूँदें छिड़क सकें। योरोप और अमेरिका में इस आध्यात्मिक मध्यस्थता द्वारा मृत आत्माओं की वाणी सुनी जाती है, उन्हें छुआ जाता है, फोटो लिये जाते हैं, और आँखों से देखा जाता है, तब क्या भारत में ऐसा नहीं हो सकता? इस देश में ‘इण्डियन स्प्रिचुअलिस्ट सोसाइटी’ तथा अन्य संस्थाओं, पत्रों एवं व्यक्तियों द्वारा प्रयत्न हो रहा है। मैं ऐसे अनेक मनुष्यों से मिला हूँ जो अपने प्रयोगों से मृतात्माओं के साथ निकटता स्थापित कर चुके हैं। कई कारणों से वे जनता में प्रसिद्ध नहीं होना चाहते, किन्तु वे मरणोत्तर जीवन के सम्बन्ध में कायल हैं।
सर ए॰ सी0 डायलेन ने कहा है कि हम मृत आत्माओं का पर्यवेक्षण नहीं करते वरन् वे हमारा करती हैं। यह सत्यता तब बिलकुल स्पष्ट हो जाती है, जब हम देखते हैं कि माध्यमों में मृतात्माओं द्वारा कितनी सहायता पहुँचाई जाती है। यह भी अनुभव किया जाता है कि हम मृत मनुष्य अपने सम्बन्धियों से अपना सम्बन्ध स्थापित करने के लिए कितने व्यग्र हैं, किन्तु जीवित सम्बन्धियों के सहयोग के अभाव में ऐसा करने में समर्थ नहीं होते। वे मनुष्यों की यथाशक्ति मदद करते हैं, और जीवित प्रियजनों के संसर्ग में आकर प्रसन्न होते हैं।
वर्तमान भौतिकवाद से उत्पन्न हुई अशान्ति को मिटाने के लिये परलोक विद्या बहुत ही उपयोगी सिद्ध हो सकती है। इसके द्वारा जीवन और मरण के बीच की भयानक खाई को पाटा जा सकता है मृतात्माओं के निकटत्व पर विश्वास करने वाले भारतवासियों का यह परम कर्तव्य है कि इस विद्या को अपने अध्यवसाय से इतनी उन्नत बना दें कि यह संसार को आध्यात्मिकता का एक नवीन संदेश दे सके।