Magazine - Year 1942 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
शान्ति की गुप्त कुँजी
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(पं. मन्नीश्याम द्विवेदी, कोर्रा सादान)
मेरे पिता जी व चाचा जी में बहुत दिनों से वैमनस्य रहा करता था। जब से मैंने सुध संभाली, दोनों भ्राताओं में कभी प्रेम न देखा। यह विरोध-भावनाएं एक बार बहुत जोर पकड़ गई। कारण यह था कि चाचा साहब हमारे सदर दरवाजे के सामने एक दीवार उठा रहे थे। इससे पिता जी के लिए बड़ी बाधा उपस्थित होती थी। वे इसके विरोधी थे। चाचा जी ने कई बार दीवार उठाई, पिताजी ने उसे फावड़ा लेकर गिरा गिरा दिया। मैं उन दिनों गुरुवर पं0 चन्द्रभूषण जी के यहाँ विद्याध्ययन कर रहा था। पिता जी का पत्र पाकर घर चला गया।
घर पर आकर देखा कि दोनों भाइयों में भारी कलह मचा हुआ है। मेरा हृदय नहीं चाहता था कि इस लड़ाई में मुझे भी भाग लेना पड़े। चाचा जी के पूर्व स्नेह को ध्यान में रखकर उनसे लड़ने की इच्छा न थी, तो भी घटनाएं आगे बढ़ी और मुझे आगे कदम बढ़ाना पड़ा। एक दिन चाचा साहब दोपहर में कहीं से घर आये और अनेक प्रकार की गालियाँ बकने लगे। माताजी ने कहा, अब हम लोगों से सहन नहीं होता, जो कुछ करना हो जल्दी तय करो। फिर क्या था लट्ठ लेकर पिता जी कुएं की जगत पर चढ़ गये, मैं भी क्या करता, बाँस लेकर पिता जी की रक्षा के लिए खड़ा हो गया। पिता जी ने उनसे कहा- “अच्छा है, यह रोज-रोज क्यों झगड़ा हो, आज जिस तरह चाहो, निपट लो, हम तैयार हैं, अब अधिक बातचीत की आवश्यकता नहीं हैं।” जब तक हम लोग सहन करते थे, तब तक तो चाचा जी खूब बड़बड़ करते थे, पर आज जब मरने-मारने पर उतारू हो गये तो परिणाम दूसरा ही हुआ। चाचा जी घबराये और लड़ने के बदले बिल्कुल शाँत हो गये।
उन्होंने कहा- हम फौजदारी लड़ाई नहीं चाहते, पंचायत से फैसला करा लो। इस बात पर पिता जी भी तैयार हो गये और पंचायत के फैसले से दोनों भ्राताओं ने सन्तोषप्रद लाभ उठाया।
यह छोटी सी घटना मानव जीवन के एक महत्वपूर्ण पहलू पर प्रकाश डालती है जब तक आप ज्यादतियों को सहते हैं, तब तक उनका अन्त नहीं होता, वरन् कठिनाइयाँ बढ़ती ही जाती हैं। जिस दिन उनका प्रतिकार करने के लिए सचमुच खड़े हो जाते हैं, तब वे बुराइयां भाग जाती हैं और परिणाम सन्तोषजनक ही होता है।