Magazine - Year 1942 - Version 2
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Language: HINDI
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साधन की सफलता
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(पं. देवीप्रसादजी चतुर्वेदी ‘प्रसाद’ गोहद)
मेरे पितामह ने श्री गोस्वामीजीकृत रामायण और हनुमान चालीसा के पाठ का श्री गणेश कराया था और उसका निरन्तर स्वाध्याय करते रहने का उपदेश दिया था। मैंने उनकी आज्ञा का पालन करने में श्रद्धा और विश्वास की पुट और लगा दी और अब तक इसी सुलभ नियम को पालन करता आ रहा हूँ। इससे मुझे अनेक हार्दिक अभिलाषाओं में सफलता मिली है और आध्यात्मिक तत्व की ओर रुचि भी स्वतः उत्पन्न हो गई है। इसी साधन की निरंतरता का प्रतिफल मैं यह पा चुका हूँ कि मुझे अपने वाँछित आध्यात्मिक गुरु की प्राप्ति भी हो गई है। मेरे अनुभव का संक्षेप में यही सार है कि आध्यात्मिक साधन चाहे छोटी सी क्यों न हो उसकी निरन्तरता ही सफलता की जननी है।
प्रिय पाठक बन्धुओं! मेरे जीवन में अनेकों उलटफेर विचित्रतापूर्ण हुए हैं और अपने उसी छोटे से साधन से अनेक सफलताएँ मिली हैं। मेरा अनुभव है कि श्रद्धा, विश्वास और निरंतरता के साथ किये हुए सत्-साधन अवश्य सफल होते हैं।