Magazine - Year 1945 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
आत्म त्यागी की निष्ठुरता
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(रा. कु. रत्नेशकुमारी ‘ललन’ मैनपुरी स्टेट)
एक दिन मैंने दीपक से पूछा- ‘तुम इतनी निष्ठुरता क्यों करते हो? बेचारे पतंगे तुम से अभिन्नता लाभ करने की चेष्टा में आत्म बलिदान कर देते हैं, पर तुम उनके इस प्राणोत्सर्ग की नितान्त उपेक्षा सी करते हुए ‘स्व’ में ही निमग्न सदैव एक रस रहते हो। क्या उनके इस आत्मोत्सर्ग का तुम्हारी दृष्टि में किंचित मात्र भी मूल्य नहीं? उनके सर्वस्व समर्पण से भी तुम्हारी निष्ठुरता बढ़ी है? उनका यह सर्वस्व बलिदान भी तुम्हारे हृदय को विचलित नहीं कर पाता? कोई प्रभाव नहीं छोड़ जाता? उस पर भी अखिल विश्व तुमको स्नेह जीवी कहता है, धन्य हो तुम दीपक! और धन्य तुम्हारी कठोरता।
मेरी बातें धैर्यपूर्वक सुनकर दीपक करुणोत्पाक भाव से मुस्कराया। बोला- ‘यदि तुम विवशता निर्दयता कहो तो अपना वश ही क्या है? जलना ही मेरा जीवन है अगर कोई मुझ से अभिन्न होना चाहे तो जलने से उसे मैं कैसे बचा सकता हूँ? पतंगे जब-जब जलने आते हैं मैं उनसे सकरुण हृदय से साग्रह अनुरोध करता हूँ, ‘प्रिय! तुम दूर ही रहो क्यों व्यर्थ मेरे साथ जलते हो। मुझे ही अकेले जलने दो मित्र!
तब वे आदत मन से कह उठते हैं- ‘देव! हम जानते हैं जो अंधकार से त्रस्त है अथवा पथ भ्रष्ट होकर भटक रहे हैं उनको आपके समान प्रकाश दे सकने की हम क्षुद्र जीवों में सामर्थ्य ही कहाँ? पर क्षण भर को अपने पावन प्रकाश से अभिन्न होकर के हमें प्रकाशित तो हो जाने दीजिये। खाने, पीने, सोने तथा आमोद-प्रमोद में ही तो जीवन की सार्थकता नहीं। अन्धकार में दीर्घ जीवन प्राप्त करने की अपेक्षा क्या प्रकाश प्राप्ति की चेष्टा में मरना श्रेष्ठ नहीं है? कौन जाने हमारी ये तपस्या, ये आत्म विसर्जन, अगले जन्म में हमें आपके पद चिह्नों पर चल सकने के योग्य बना दे। किसी की भी अनन्य अभिलाषा, पूर्ण प्रयत्न, अथक उत्साह, और सर्वस्व बलिदान व्यर्थ नहीं जाता फिर आप स्वयं आदर्श स्वरूप होकर हमें श्रेय प्राप्ति के प्रयत्न से क्यों विरत करते हैं? जीवन के श्रेष्ठ लक्ष्य से भटकने की प्रेरणा क्यों देते हैं? आप का कर्त्तव्य तो पथ प्रदर्शन है।
उनकी इन युक्त संगत बातों को मैं अस्वीकार नहीं कर पाता। क्या यही मेरी निर्ममता का प्रमाण है? तुम कैसे जानती हो, उनके प्राण विसर्जन का मेरी दृष्टि में कोई मूल्य नहीं? क्या मेरे पास अश्रु प्रवाह और करुणा विलाप की शब्द व्यंजना नहीं, इसी से तुम मेरी सहृदयता पर संदेह करती हो? अश्रुओं का कोष मेरे पास नहीं इसके लिए तो मैं जगत नियन्ता का सम्पूर्ण हृदय से आभारी हूँ नहीं तो जल ही कैसे पाता? अश्रु बरस कर मेरी हृदयाग्नि को शाँत न कर देते और यदि जलता ही नहीं तो प्रकाश दान करके जीवन सफल भी कैसे कर पाता? किसी के लिए कुछ भी न कर पाता तब तो पृथ्वी पर केवल भार स्वरूप ही रहता। और विलाप? उनको क्षण भर प्रकाश प्राप्ति की कामना में जलते देखकर मेरी जीवन ज्योति तक थर्रा उठती है, उन दग्ध प्रायः श्रेय की प्राप्ति के हेतु बलिदान हुए पतंगों को अपने स्नेहपूर्ण हृदय में किस भाव से विभोर होकर स्थान देता हूँ इसे प्रगट कर सकने की मेरे आहत हृदय में शक्ति नहीं और न प्रदर्शन करने की लालसा ही। तुम मुझे निर्मोही, निर्दयी समझती हो, समझाती रहो, सारा संसार ही समझता है। मुझे किसी से कुछ भी शिकायत नहीं। अन्तर्यामी ही जानते हैं वही निर्णय कर सकेंगे कि क्या मैं सचमुच ही हृदय हीन हूँ?
मैं दीपक की हृदय स्पर्शिनी बातों को सुनकर कुछ क्षण तो आश्चर्य की अधिकता से अवाक् रह गई फिर श्रद्धा पूर्वक मस्तक नवाकर मैंने आत्म त्यागी तपस्वी दीपक से कहा-पूज्यवर! मुझ अज्ञान बालिका को क्षमा दान करते हुए ऐसा आशीर्वाद दीजिए मैं भी आपकी भाँति कर्त्तव्य की वेदी पर सर्वस्व बलिदान कर सकूँ और अपने प्रियजनों को आत्मोत्सर्ग करते देखकर मोहवश बाधक न बनूँ।