Magazine - Year 1945 - Version 2
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Language: HINDI
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श्री गायत्री सिद्धि
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(पं. शम्भुप्रसाद मिश्र भू.पू. चेयरमैंन डि.बो. मंडला)
ॐ गायत्रीं त्रिऽक्षराँवालाम् साक्ष सूत्र कमंडल्म्।
रक्त वस्त्राँ चतुरवक्राँ हंसवाहने संस्थिताम्॥
ब्रह्माणीं ब्रह्मदैवत्याम् ब्रह्मलोक निवासिनीम्।
आबाह्यामहं देवी मायाँतीम् सूर्य मंडलात्॥
आगच्छ वरदे देवी त्रिऽक्षरे ब्रह्मवादिनी।
गायत्री छंद साँमातर्ब्रह्मयोने नमोस्तुते॥
प्रातः सायं-संध्या पूजन में श्री गायत्री जी का उपरोक्त ध्यान करना मेरा नित्य-कर्म है। यद्यपि त्रिकाल संज्ञा में गायत्री, सावित्री, सरस्वती ये तीन ध्यान गायत्री के प्रत्येक पृथक हैं पर मेरे हृदय में यही एक उपरोक्त ध्यान दोनों काल की संध्या में बसा हुआ है। इसके सिवाय सन् 1930 ई. में कृष्ण मन्दिर (मंडला जेल) के अन्दर मैंने भाषा में श्री गायत्री ध्यान व स्तोत्र लिखा था। यह ध्यान व स्तोत्र भी नित्य सूर्योदय से पूर्व अपने बिस्तर में ही विनीत करता है। भाषा स्तोत्र का शाँति में विनीत ने सवा लक्ष गायत्री जप ब्रह्म मुहूर्त में कृष्ण मन्दिर में किया था, जिसका प्रत्यक्ष असर तो यह था कि विधर्मी बड़े-बड़े अफसर भी विनीत के प्रति बड़े नम्र आदरणीय भाव रखते, रसोइया ब्राह्मण दिया, पानी के लिए अहीर दिया, मकर संक्राँति आदि पर्वों को नर्मदा स्नान जेलर के साथ जाकर करने की आज्ञा भी भाषा स्तोत्र करने से 3 माह के अन्दर गाँधी इरविन समझौते के नाम पर विनीत बिला शर्त छोड़ दिया गया था। श्री गायत्री इष्ट के कई चमत्कार भी विनीत को अनुभव हुए व होते हैं। यथा स्वप्न में वही उपरोक्त ध्यान स्वरूप श्री गायत्री जी लाल वस्त्र धारण किये हुए तेजोमय दिव्य रूप में दर्शन जब कभी देती है तब बड़े हानि-लाभ व जीवन मरण की बातों का जो भविष्य में आने वाली हैं उनका दिग्दर्शन यानी रक्षा का मार्ग बतलाती है। स्वप्न में ऐसे दर्शन श्री गायत्री जी के कई बार हुए हैं यह बिल्कुल सत्य बात कह रहा हूँ।
एक बड़ी असाध्य बीमारी से मेरी रक्षा गायत्री इष्ट द्वारा कुछ वर्ष पूर्व हुई है। पारसाल मैं मृत्यु शैया पर था मैं जीवन की आशा छोड़ रहा था कि गायत्री इष्ट से मेरी प्राण रक्षा हुई। अभी हाल की बात है मेरा पुत्र चि- रामेश्वरप्रसाद मिश्र सन्निपात से सख्त बीमार हो गया, डॉक्टर वैद्य सभी को बीमारी चिन्ताजनक थी। घर के लोग भी रोने पीटने के सिवाय असहनीय कष्ट में रात-दिन दुखी थे, मैंने अपना प्रसिद्ध गायत्री मंत्र इष्ट का आधार लिया और नित्य पूजन के बाद गायत्री मंत्र से लड़के को झाड़ना शुरू किया, लड़का चि. रामेश्वरप्रसाद कुल 17 दिन की लाँगन के बाद शनैःशनैः रोग मुक्त हो गया। संसारी व्यवहार में भी श्री गायत्री इष्ट द्वारा महान सफलता व शक्ति प्राप्त होने का अनुभव हुआ है। सन 1933 में जब मैं मंडला डिस्ट्रक्ट बोर्ड के चेयरमैनी के लिए खड़ा हुआ तो मेरे खिलाफ एक बड़े जमींदार जो जिला के राजा कहे जाते हैं खड़े हुए। उनकी पैरोकारी में बड़े-बड़े प्रभावशाली व्यक्ति वकील आदि भी थे, उन राजा साहब के मुकाबले न पैसा में और न कार्यकर्त्ताओं में, मैं कोई चीज नहीं था पर श्री गायत्री जी कृपा से विपक्षी के सभी अस्त्र बेकाम हो गये और मैं बिना विरोध चेयरमैन डिस्ट्रक्ट बोर्ड चुन लिया गया। इसी सिलसिले में कुछ दिनों बाद विपक्षी दल की साजिश से एक भारी रकम मुझ पर सर चार्ज हुई। प्राँतीय सरकार की आज्ञा से सरचार्ज में मेरी गैरमनकूला जायदाद को कुर्की की कार्रवाई शुरू हो गई, विपक्षी दल के यहाँ महान खुशी व मेरे यहाँ महान दुख मनाये जाने लगे, ऐसे संकट के समय में मेरा एक मात्र आधार गायत्री माता ही थीं। मैंने उन्हीं के भरोसे इस आपत्ति व मामले का सामना किया। आखिर को प्राँतीय सरकार ने अपनी कुल कार्रवाई को रद्द कर दिया और विपक्षियों को भी पूरी लथेड़ आई। इस तरह मेरे जीवन में गायत्री इष्ट के चमत्कार की अनेक घटनाएं घटित हुई हैं। यहाँ मैंने बड़े संक्षेप में आश्चर्य श्रीराम जी शर्मा अपने प्रिय बंधु के अनुरोध पर लिख भेजा है।
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