Magazine - Year 1945 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
मुक्ति के चार द्वारपाल
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(पं. चन्द्रदेव शर्मा, पु. तीर्थ सा. रत्न, बेतिया)
अज्ञान के बंधन में से ज्ञान रूपी मुक्ति के प्रकाश में ले जाने वाले उपायों में से आध्यात्म विद्या के आचार्यों में चार को सर्व प्रधान माना है। 1. सत्संग 2. विचार 3. शम 4. संतोष। श्रेष्ठ पुरुषों की वाणी या लेखनी से निकले हुए विचारों को ग्रहण करना, उनके आचरणों के अनुसार अपने जीवन को ढालने का प्रयत्न करना, उनके जैसे सद्गुणों का अपने में पैदा करना यही सत्संग है। मनुष्य कोरे कागज के समान होता है, उस पर संगति का असाधारण प्रभाव पड़ता है। जैसे लोगों के बीच जैसे वातावरण के बीच मनुष्य रहता है वैसा ही बन जाता है। इसलिए अपने को श्रेष्ठ बनाने के इच्छुकों के लिए सब से पहली आवश्यकता इस बात की है कि अपने को श्रेष्ठ संगति का समीप ले जावें। मुक्ति का दूसरा उपाय है- विचार। उचित अनुचित का, सत्य असत्य का, आवश्यक अनावश्यक, धर्म अधर्म का, विचार करते रहने से ही जीवन तत्व की प्राप्ति होती है। इस संसार में ऐसे औंधे सीधे, विचार, विश्वास और आचरण भरे हुए हैं कि किसी का अंधानुकरण करना एक खतरे का नाम है। विवेक की कसौटी पर हर एक विचार और सिद्धान्त को खूब घिस-घिसकर परखना चाहिए और जो बात सत्य एवं उचित प्रतीत हो विचारपूर्वक उसे ही ग्रहण करना और आचरण में लाना चाहिये। तीसरा उपाय है- शम। इन्द्रिय निग्रह, संयम, वासनाओं पर अधिकार दुर्भावों का दमन-कुविचारों का समाधान करके अपनी आत्मिक स्थिति को पवित्र रखना शम कहलाता है। चौथा उपाय संतोष है- जैसी स्थिति उपलब्ध हो उससे ही बिना जी को जलाये काम चला लेना और भविष्य के लिए, आत्मोन्नति के लिए घोर प्रयत्न करते रहना। इन चार उपायों से मुक्ति मिलती है।