
इस कालकूट से बचिए।
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
आजकल तम्बाकू पीने का बड़ा रिवाज है। बीड़ी, सिगरेट, सिगार एवं हुक्का में सहस्रों रुपये की तम्बाकू प्रतिदिन स्वाहा हो जाती है। देखा देखी एक फैशन की तरह इसे पीना आरंभ किया जाता है पर पीछे जाकर इसकी आदत ऐसी गले पड़ जाती है कि पिये बिना काम ही नहीं चलता। इससे फिजूल खर्ची होती है, एक बुरे व्यसन की लत पड़ती है साथ ही स्वास्थ्य की बर्बादी होती है।
रासायनिक परीक्षणों से सिद्ध हुआ है कि तम्बाकू में निकोटिन, पायरीडीन, पायकोलिन, कोलीडिन, मार्शगैस, साइनोजेन, परफेरोल, अमोनिया, कार्बोनिक एसिड, पूसिक एसिड, कार्बन मोनोक्साइड, फुरफुरल, सेकोलिन, एजोलिन आदि 24 प्रकार के विष रहते हैं। जब तम्बाकू जलाई जाती है तो उसके धुएं के साथ 19 विष रहते हैं। यह सभी विष एक से एक बढ़कर भयंकर हैं।
कोलिडीन से सिर चकराने लगता है और स्नायु शिथिल पड़ जाते हैं। कार्बोनिक एसिड से अनिद्रा, स्मरण शक्ति की कमी, चिड़चिड़ापन उत्पन्न होता है। फुरफोरल तथा पूसिक एसिड थकान, जड़ता, उदासी पैदा करते हैं। कार्बन मोनोक्साइड से दमा, हृदय रोग, नेत्रों की कमजोरी बढ़ती है। एजोलिन तथा साइनोजेन खून को खराब करते हैं, मार्शगैस से वीर्य पतला पड़ जाता है। पर फेरील से दाँत खराब होते हैं, पायरीडीन से आँतों में खुश्की तथा आमाशय में कब्ज रहने लगती है। अमोनिया जिगर को बिगाड़ता है। इस प्रकार सभी विष किसी न किसी प्रकार शरीर को हानि पहुंचाते हैं।
यदि धुआँ खींच कर फिर बाहर न निकाल दिया जाय, और धुआँ पेट में ही पच जाय तो एक सिगरेट से ही प्राण घातक संकट उत्पन्न हो सकता है। थोड़ी सी तम्बाकू खा लेना मृत्यु के मुँह में ले जा सकता। एक सेर तम्बाकू का विषैला सत लगभग 800 चूहों का, 170 खरगोशों का तथा 30 मनुष्यों का प्राण लेने के लिए पर्याप्त है। छोटे-मोटे कीड़े-मकोड़े तो हुक्के का पानी ऊपर पड़ जाने मात्र से मर जाते हैं।
तम्बाकू पीने वाले के भीतरी अवयवों में उसके विष धीरे-धीरे रमते जाते हैं। हर बार बहुत थोड़ी थोड़ी मात्रा शरीर में जाती है इसलिए तुरन्त ही कोई भयंकर परिणाम तो उत्पन्न नहीं होता पर वे विष अपना असर शनैः शनैः छोड़ते रहते हैं जिससे देह के भीतर वे विष व्याप्त हो जाते हैं। हुक्के की नली में जैसे काला कीट जम जाता है वैसे ही पदार्थ श्वांस नली, फेफड़े तथा अन्य स्थानों में जम जाते हैं। जिनके कारण समय समय पर विभिन्न प्रकार के छोटे बड़े रोग उठते रहते हैं।
कोई बुद्धिमान मनुष्य जान बूझ कर स्वेच्छा पूर्वक, खुशी-खुशी साँखिया कुचला, पारा, बछनाग आदि विष नहीं खाता पर उन आदमियों की बुद्धि पर तरस आता है जो इस प्रकार के चौबीस विषों के अधिराज इस तम्बाकू रूपी कालकूट को दिन रात पिया करते हैं, और धीरे-धीरे अपने स्वास्थ्य तथा दीर्घ जीवन को नष्ट करते हैं। और साथ ही धन की बहुत बड़ी बर्बादी करते रहते हैं। तम्बाकू से विषैले हुए रक्त और वीर्य का संतान पर भी बड़ा बुरा असर पड़ता है। हमारी नस्लें दिन दिन खराब होती जाती हैं।
विज्ञ पाठकों के यदि गले उतरे-तो हमारी प्रार्थना है कि इस कालकूट को-तम्बाकू को-परित्याग करने का साहस दिखावें। इसके त्यागने से एक बहुत बड़ी बर्बादी से बचाव होता है।