Magazine - Year 1949 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
अपनी उत्तम कल्पनाओं को चरितार्थ कीजिए।
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
एक तत्ववेत्ता ने कहा था कि हर व्यक्ति काम करने के पहले हवाई किले ही बनाता है। दूसरे शब्दों में पहले पहले किले हवा में ही बनाये जाते हैं। मनुष्य कुछ भी करने के पहले सोचता है, विचारता है, कल्पना करता है और अपने कार्य की रूप रेखा तैयार करता है। क्या है यह सब कुछ, हवाई किला ही न? यदि वह अपनी इन कल्पनाओं पर न चले, अपनी बनाई हुई रूप रेखा, योजना को काम में न लाये, आकार न दे, रंग न भरे तो क्या उसे हम हवाई किला न कहेंगे। इसीलिए उस तत्ववेत्ता ने फिर कहा- ‘हमने जो किले हवा में तैयार किये हैं, हमारा काम है कि हम उनमें मिट्टी की नींव रखें। उनका आधार मजबूत कर दें। अथवा तन्मय होकर उन्हें आकार देने में लग जावें।’
संसार में जो कुछ दिखाई दे रहा है उसके बनने के पहले निश्चय ही वे सब पहले कर्त्ता की कल्पना में रहे होंगे। उसने कल्पना की बड़ी-बड़ी उड़ान मारी होंगी, पर क्या वे सिर्फ उड़ान मार कर ही रह गये? नहीं, यदि ऐसा होता तो शायद हमारा अस्तित्व भी इस दुनिया में न होता। उन्होंने उड़ान मारी, कल्पना को आकार दिया, रूप दिया, रंग दिया और पीछे से उन्होंने उसमें जीवन भी भर दिया।
जिधर दृष्टि डालिये, प्रत्येक में कल्पना का ही निवास मिलेगा। इसलिए कल्पना करना व्यर्थ नहीं है, बल्कि कल्पना करना जीवन की निशानी है, बशर्ते कि तुम्हारी कल्पनाओं में तुम्हारे जीवन का प्राण भरा हो। निष्प्राण कल्पना जीवनी शक्ति को बढ़ाती नहीं, बल्कि नष्ट कर देती है, मनुष्य को निष्प्राण बना देती है। इसलिए हमें सजीव कल्पना-सप्राण कल्पना करना आना चाहिए।
‘मनुष्य’ नाम की इस बड़ी भारी मशीनरी में चारों ओर प्राण ही प्राण भरा हुआ है। चारों ओर जीवन ही जीवन लहरें ले रहा है और वही तो कल्पना के रूप में बाहर निकल कर अपने अनेक रूप, आकृति, प्रकृति बनाना चाहता है। वह अपने जीवन को, अपनी सत्ता को, अपनी चेतना को चारों ओर बखेर देना चाहता है, इसीलिए तो कल्पना करता है। लेकिन उसकी सीमा कल्पना तक ही जब रह जाती है और अपनी आत्मा को, प्राण को उसमें नहीं रहने दे पाता तब वह निस्तेज हो जाता है। इसलिए तेजस्वी बनना हो तो जो कुछ तुम चाहते हो, जो भी तुमने अपने मन में सोच रखा है और जैसे भी तुमने अपने हवाई किले का ढांचा तैयार किया हो, उसे इस पृथ्वी पर उतार लाने के लिए दृढ़ संकल्प हो जाओ। जब तुम कल्पना कर सकते हो तो कौन सी शक्ति ऐसी है जो उसके पृथ्वी पर उतरने में बाधा डाले?
जानते हो, जब किसी कल्पना के आकार धारण करने में बाधा पड़ती है तो वह बाधा क्या होती है हमारी निराशा, हमारा अपने आप पर का अविश्वास, हमारी दृढ़ता की कमी, हमारा प्रसाद, हमारी चंचलता। ये ही वे तत्व हैं जो कि हमारे सामने बाधाओं के रूप में आकार धारण किए हुए दर्शन देते हैं और हम अपनी इन कमजोरियों को बाहर की चीज जानकर डर जाते हैं। इस तरह क्रमशः कल्पनाओं पर कल्पनाएं करते और उन्हें बिना पृथ्वी पर उतारे छोड़ते चले जाते हैं। हमारी कमजोरियाँ कहें या हमारी अज्ञानता फिर धीरे-धीरे बढ़ती जाती हैं, और हम अपनी शक्ति को, अपनी प्रवृत्ति को छोड़ते जाते, भूलते जाते हैं और तब निर्जीव से हो जाते हैं। तब जीते हुए भी मृतक के समान दिखाई देते हैं।
निष्क्रिय जीवन क्या जीवन है? बिजली से भरी हुई बैटरी या डायनेमो आदि उपयोग में नहीं आता तो उससे क्या लाभ? प्रत्येक मनुष्य एक डायनेमो है। उसमें अपरिमित शक्ति भरी हुई है। वे शक्तियाँ नित्य प्रति प्रकट होने के लिए आकुल हो रही हैं। वे बन्द नहीं रहना चाहतीं वरन् सक्रिय होना और आकार वान बनना चाहती है इसीलिए सबसे पहले वे कल्पना की शक्ल अख़्तियार करती हैं। प्रत्येक कल्पना अपनी पूरी शक्ति के साथ हवा में उड़ती है परन्तु मनुष्य प्रमाद वश कल्पना में रहने वाली शक्ति को छिन्न-भिन्न कर देता है, वह क्षण-क्षण में कल्पनायें बदलता और नई कल्पना को जन्म देता है, इसलिए वह सिर्फ कल्पनामय ही हो जाता है। साकार बनने की नौबत ही नहीं आती। इसलिए आवश्यक यह है कि जिस समय एक कल्पना उठे तो जब तक काफी मनोयोग से उस पर विचार नहीं कर लिया जाय, तब तक दूसरी विचार कल्पना को नहीं उठने दें। और अपनी सारी शक्ति अपनी पहली कल्पना को आकार देने में लगा दें। अपनी सारी शक्ति लगा दें। यह सिर्फ व्यक्त करने की भाषा है। शक्ति लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। कल्पना तो स्वयं शक्ति भरी रहती है, बस उस शक्ति को उससे भिन्न न होने दें इतना ही काम तो करना है। इस प्रकार कल्पना को आकार देने के लिए कल्पना के प्रति तन्मय होने की आवश्यकता है।
दृढ़ विश्वास रखो कि आत्मा अपरिमित शक्ति सम्पन्न है और वही अपने आपको प्रकट होने के लिए अपनी सम्पूर्ण शक्ति के साथ शुभ कल्पना का रूप धारण करती है। इसलिए प्रत्येक शुभ कल्पना में आकार धारण करने की पूर्ण शक्ति होती है।