Magazine - Year 1951 - Version 2
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उपवास कब और कैसे?
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(डा॰ लक्ष्मी नारायण टण्डन ‘प्रेमी’ एम॰ ए॰)
साधारणतया उपवास सभी कर सकते हैं और सबको ही उपवास लाभप्रद हो सकता है किन्तु कुछ रोगों में तो उपवास ही राम-बाण है।
यदि किसी अंग-विशेष से हम बहुत दिनों तक काम न लें तो वह निर्बल या बेकाम हो जाता है। बहुत से साधु जो सदा अपना हाथ उठाते रहते हैं बहुत दिनों के बाद उनका वह हाथ बेकाम हो जाता है। वैसे ही जब कोई अंग ठीक-ठीक काम नहीं करता तो स्वयं उस अंग में कोई दोष न होते हुए भी वह रोगाक्रांत हो जाता है। ऐसे रोग प्रतिक्रियात्मक कहलाते हैं। वे निश्चय रूप से उपवास से ठीक हो जाते हैं।
अर्वुद (केन्सर) में उपवास राम-बाण है। रोग की आरंभ अवस्था में तो कैंसर बिल्कुल ही ठीक हो सकता है। किन्तु बढ़ी हुई अवस्था में भी उपवास के अतिरिक्त और किसी चीज से आरोग्य की आशा की ही नहीं जा सकती। ऐसी दशा में उपवास शीघ्रता से रोगी के कष्ट को रोकता और कम करता है और अपेक्षाकृत अधिक कष्ट रहित तथा लम्बा जीवन दे सकता है।
यदि चोट आ जाने के कारण मस्तिष्क में चोट आ गई हो तो उपवास से अवश्य लाभ होगा। जिस समय तक मस्तिष्क के गूदे में वह पड़ने के कारण उत्पन्न हुआ पागलपन होश-हवास का दुरुस्त न रहना तथा अन्य भयंकर लक्षण समाप्त न हो जाएं उपवास जारी रखना चाहिए। वैसे ही विषों के प्रभाव से जो एक नशा-सा रह कर मन की बीमारी हो जाती है उसमें भी उपवास लाभ प्रद है।
लाल बुखार साधारण ज्वर तथा सब प्रकार के ज्वरों में, गले की सूजन, कुकर खाँसी, जुकाम, सर्दी, खाँसी, जुकाम, सर्दी, खाँसी, पायेरिया, छोटी माता या खसरा, बच्चों के अर्धांग वात रोग की प्रारम्भिक दशा में हिस्टीरिया (अपतन्त्र वायु), मानसिक, वायु रोग, आधा-शीशी, सर-दर्द, दस्त, कै, जी मिचलाना आदि में भी उपवास तथा हल्के उपवास बहुत लाभ प्रद होते हैं।
गर्मी या उपदेश की प्रारंभिक अवस्था में उपवास विशेष लाभप्रद होता है।
महात्मा गाँधी ने भी लिखा है-”डॉक्टर मित्रों से माफी माँगते हुए किन्तु अपने सम्पूर्ण अनुभवों के और अपने जैसे दूसरों के अनुभवों के आधार पर मैं बिना किसी हिचकिचाहट के यह कहूँगा कि यदि निम्नलिखित शिकायत हो तो अवश्य ही उपवास किया जाय-
1-कब्ज में 2- रक्त की कमी में 3-बुखार आने पर 4-बदहजमी में 5-सिर दर्द में 6-वायु के दर्द में 7-जोड़ों के दर्द में 8-भारीपन मालूम होने पर 9-उदासी और चिन्ता में 10-बेहद खुशी में। यदि इन अवसरों पर उपवास किया जाय तो डा. के नुस्खों और पेटेन्ट दवाओं से बचत हो जायगी।”
बादी, मोटापा कम करने की इच्छा वालों के लिए उपवासों से बढ़ कर कोई सरल और उत्तम उपाय है ही नहीं। बादी को दूर करने में भी उपवास रामबाण है।
लकुवा, कण्ठ माली, ताप तिल्ली, बवासीर आदि में भी उपवास बहुत लाभ करता है। मन्दाग्नि, पेट के दर्द, अतिसार, पेचिश, आँतों, पेट तथा प्रदर के अन्य सभी रोगों में उपवास करना चाहिये। जीर्ण रोगों में भी उपवास लाभप्रद है। आँव-अन्तर प्रदाह, भीतरी सूजन, पित्त सम्बन्धी रोगों में, दमा, गठिया, मधुमेह, जिगर के रोग, जुकाम, गले में खराश, खाँसी, चिड़चिड़ापन क्रोध तथा मानसिक विकारों को दूर करने के लिये बाई, वायुगोला, शूल-दर्द आदि में उपवास करें।
आत्मिक शान्ति तथा मानसिक आवेगों को दबाने में भी उपवास बड़ा सहायक सिद्ध होता है। क्रोध, शोक, घृणा आदि भी उपवास द्वारा दबाये जा सकते हैं। इससे कुत्सित विचार तथा बुरी भावनाओं आदि का शमन हो जाता है।
गठिया बाई, मूत्राशय सम्बन्धी रोगों (जैसे गर्मी, सुजाक, सूजन, मधुमेह) दमा, लकुवा, यकृत में रक्त का जमा होना, बादी, मोटापा, मस्तिष्क में खून का जमा होना, पेट तथा सीने की जलन, नसों के कड़े होने या अन्य विकारों में, कैन्सर, मोतीझरा, अपेंडी साइरिस आदि में लम्बे उपवास करने चाहिये।
कब्ज, पेचिश, मन्दाग्नि, अतिसार, शूल-दर्द, खाँसी, जुकाम-सर्दी, फोड़े-फुँसी, खुजली तथा अन्य चर्म रोगों में, दाँत, आँख, नाक, आदि में दर्द, छूत के रोगों जैसे शीतला, खसरा आदि में पेट में कृमि पड़ जाने या चुनने होने पर, सर-दर्द, पेट-दर्द, साधारण बुखार, डिफथीरिया आँतों या पेट के अन्य यन्त्रों के स्थानापन्न होने आदि रोगों में छोटे उपवास करना चाहिये।
लम्बे उपवासों की पहले से कोई निश्चित दिनों की संख्या निर्धारित नहीं की जा सकती। यह तो मनुष्य की शारीरिक दशा स्थिति आदि के ऊपर निर्भर है। साधारणतया जब तक स्वाभाविक भूख न लगे तब तक उपवास जारी रखना चाहिए। साधारण रोगों में भी जब तक रोग की तीव्रता न समाप्त हो जाय तब तक उपवास करें। छोटे-छोटे उपवास करके अच्छा होने में समय अधिक लगता है और लम्बे उपवास में रोग से मुक्ति शीघ्र ही होती है। अप्टन सिंक्लेयर का मत है-’मेरी समझ में पाचन शक्ति के मन्द पड़ने, आँतों में मल जमा होने, सिर में दर्द रहने, कब्जियत होने अथवा इसी प्रकार की और दूसरी साधारण छोटी-मोटी शिकायतों के लिए दस-बारह दिनों का उपवास बहुत ठीक होता है। पर जिन लोगों को नासूर, गर्मी, बवासीर, गठिया आदि भारी और भयंकर रोग हैं, उन्हें अधिक दिनों तक उपवास करना चाहिये।” दुबले पतले आदमियों को लम्बे उपवास नहीं करना चाहिए पर मोटे आदमी लम्बा उपवास कर सकते हैं क्योंकि उनके शरीर में फालतू द्रव्य बहुत होता है।
छोटे बच्चों को लम्बे उपवास न कराइए। पाँच छः दिन से अधिक लम्बे उपवास उन्हें बिना किसी विशेषज्ञ की देख रेख और सलाह से कभी न करावे। 14 वर्ष तक के बच्चों को छोटे उपवासों से जितना लाभ होता है उतना बड़ों को कभी नहीं होता। जुकाम, खाँसी, हर प्रकार के ज्वर उपवास करते ही भाग जायेंगे। बच्चों के शरीर का संगठन ही प्रकृति की ओर से ऐसा होता है कि वे शीघ्र ही उपवास द्वारा आरोग्य हो जाते हैं।
एक सप्ताह से अधिक दिनों तक का महीना-दो या तीन महीने का उपवास लम्बा और एक सप्ताह तक का छोटा उपवास कहलाता है। 10 दिन के उपवास से पूरा विष शरीर से बाहर नहीं निकल सकता। जीभ पर पड़ी हुई पपड़ी और मैल, दुर्गन्धितवास, वेजयिका जीभ तथा खुलकर स्वाभाविक भूख लगना आदि लक्षण जब तक फिर प्रकट न हो जायं तब तक अपूर्ण तथा अधूरा रहता है। 8-10 दिन के उपवास अधूरे ही होते हैं। ऐसा उपवास तो प्रत्येक दशा और प्रत्येक अवसर पर बिना किसी हानि अथवा कष्ट के कोई मनुष्य कर सकता है। लम्बे उपवासों में भी जब भूख लौट आवे तभी उपवास तोड़ा जाय यह आवश्यक नहीं है। कई ऐसी दुर्घटनाएँ हुई हैं कि भूख नहीं लौटी पर अन्य चिन्ह उपवास तोड़ने लायक प्रकट हो गए, पर उपवास कर्त्ता जिद पकड़े रहा और अन्त में उसने भारी हानि उठाई।