Magazine - Year 1951 - Version 2
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Language: HINDI
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अपनी आन्तरिक दशा सुधारिए।
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(ले॰ पं॰ चुन्नीलाल शर्मा ओकास, जबलपुर)
प्रत्येक मनुष्य के जीवन की घटनाएँ उसके आन्तरिक विचारों का ही परिणाम हुआ करती हैं। परिस्थितियाँ व घटनाएँ जो भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्य के समक्ष समस्या बन कर उपस्थित होती हैं वे सब मुझे आन्तरिक विचारों गुणों और शक्तियों द्वारा खिंच कर ही उसके सामने साकार रूप में आ खड़ी होती हैं। मनुष्य के विचारों में बड़ी विलक्षण आकर्षण शक्ति है। मनुष्य इस शक्ति को पहचानने में भूल रहा है तथा उसी के परिणाम स्वरूप उसे अनेकों घटनाओं तथा भीषण परिस्थितियों का दास बनना पड़ रहा है। मनुष्य के जीवन को बिगाड़ने और बनाने में इन घटनाओं और परिस्थितियों का बड़ा महत्व रहता है। घटनाओं का कारण बहुधा आँतरिक विचारों पर ही निर्भर रहता है। कहा भी है-”जैसे आप हैं वैसा ही आपका संसार है”।
जैसे आप हैं ठीक वैसा ही आपका संसार बन जाता है। विश्व की प्रत्येक वस्तु का समावेश आपके आँतरिक अनुभव में हो जाया करता है आपके विचारों वासनाओं एवं अभिलाषाओं द्वारा आपकी सुन्दर सृष्टि निर्मित होती है। अपने विचारों द्वारा आप अपने जीवन-जगत् और विश्व को बनाते अथवा बिगाड़ते हैं। क्योंकि यदि आप सोचें कि परिस्थितियाँ आपको बनाती है तो यह उचित न होगा। क्योंकि अगर परिस्थितियों में सुख-दुःख पहुँचाने की शक्ति होती तो वे (परिस्थितियाँ) सब मनुष्यों को एक ही प्रकार सुखी एवं दुखी बना सकतीं। परन्तु एक ही दशा का भिन्न-भिन्न मनुष्यों पर अच्छा अथवा बुरा प्रमाणित होना यह सिद्ध करता है कि भलाई-बुराई करने की, सुख-दुःख पहुँचाने की, शक्ति उस घटनाचक्र में नहीं है बल्कि उस व्यक्ति के मस्तिष्क में है जिसे उसका सामना करना है। इसलिए ठीक समझ लीजिए कि जैसे आपके विचार हैं वैसा ही आपका संसार भी होगा।
इन विचारों के अनुसार आपका अड़ोस-पड़ोस तथा जीवन जगत तथा जिस वातावरण में आप रहेंगे वहाँ आप के विचारों का प्रभाव बिना पड़े न रह सकेगा। जो कुछ भी आप हैं वह सब आपके आँतरिक विचारों का ही फल है। यह न भूलें कि “आप डूबे तो जग डूबा”।
जैसे हम हैं वैसा ही हमारा संसार होगा। यदि हम सुखी हैं तो हमारा सारा संसार सुखी है और यदि हम दुखी हैं तो हमें सारा संसार (चाहे वह कितना ही सुखमय क्यों न हो) दुखमय प्रतीत होता है। यह सब हमारी मनोदशा पर ही अवलम्बित रहता है। यदि हम दुःख में भी सुख अनुभव करने लगें तथा सोचने लगें कि यह सब हमें केवल अपने जीवनस्तर की सीढ़ियों पर चढ़ने के हेतु परीक्षार्थ ही मिला करता है, तो हमें दुःख की छाया भी नहीं छू सकती। जब हम इस प्रकार अनुभव करने लगेंगे तो वास्तव में हम दुःख को सुख में बदल सकेंगे और अध्यात्म तत्व की ओर अग्रसर होकर दूसरों के दुःख को भी सुखों में बदल सकेंगे-
ऐसा करने के लिए हमें त्याग व तपस्या की आवश्यकता पड़ती है जिसकी प्रतिक्रिया हमारी आत्मा पर होती है। यदि हमारी आत्मा इन सबको सहन कर लेती है तो वास्तव में हम में एक आध्यात्मिक शक्ति का विकास होता है जिसका निर्माण हम अपने विचारों द्वारा ही करते हैं। आज हम चाहे जिस परिस्थिति में भी क्यों न हों, अपने दृष्टिकोण को बदल देना चाहिए अपने विचारों को सदा, प्रसन्नता, आशा, शान्ति, शक्ति और प्रयत्न की ओर दौड़ाना चाहिए। जिस समय आप ऐसा करने लगेंगे तो देखेंगे कि आपका जीवन सहसा प्रसन्नता, शान्ति, शक्ति आदि गुणों से विभूषित होता हुआ नजर आवेगा।
यदि आज भी आप बुरी परिस्थितियों तथा वातावरण में जकड़े हुए हैं तो निराश मत हूजिए, अपने भाग्य को मत कोसिए, इस परिस्थिति के लिए किसी दूसरे को दोषी मत ठहराइये, सिर्फ अपना दृष्टिकोण बदल दीजिये। बुराई का कारण तो आप में ही विद्यमान है उसे समझकर अपने आपको खुशी-खुशी घटनास्थल पर घटना को सामने आने दीजिये। यह घटना आपकी स्वतः की निर्मित की हुई है। उसे आप शीघ्र दूर कर सकते हैं। यदि आप अपना दृष्टिकोण बदल दें, सदा उत्तम विचारों में लीन रहें, अपनी आन्तरिक स्थिति को सुधारने का दृढ़ संकल्प करले तो बाह्य जीवन में भी वह दशा सफलतापूर्वक कर सकते हैं जिसके लिए आप चिन्तित रहते हैं।
यदि हम क्रोध, चिन्ता, ईर्ष्या, लोभ आदि असंगत मानसिक दोषों के शिकार होते हुए भी उन्नति पूर्व स्वस्थ जीवन की कल्पना करते हैं तो यह असम्भव बात का स्वप्न देखना मात्र है। यदि हम वस्तुतः अपने जीवन को सुखी एवं उन्नतिशील देखना चाहते हैं तो क्रोध, चिन्ता, ईर्ष्या आदि कुविचारों को घटाने और हटाने के लिए प्रयत्न करना होगा।
अन्तःकरण में उच्चविचारों का प्रवेश कराते रहिए तथा सदा सुखमय जीवन की आशा लेकर आगे बढ़िये, आप देखेंगे कि स्थिति में आशाजनक सुधार हो रहा है। जिन बुरी दशाओं के कारण जीवन भार स्वरूप बन रहा था वे घट रहीं हैं दयामय प्रभु ने मनुष्य की अनिष्टकारी दशाओं का सामना करने के लिये बड़ा भारी अस्त्र-मस्तिष्क दिया है उसका सच्चा उपयोग करना ही जीवन का ध्येय बनाइये। यदि आप दिन रात उसी चिन्ता में लगे रहते हैं तो कठिनाइयों का भार कदापि दूर नहीं कर सकते क्योंकि उस चिंता से अपनी मानसिक प्रवृत्ति बिगड़ती है और वे जंजीरें जिनसे आप जकड़े हुए हैं। सबल बनती जाती हैं। आप अब भी उसे बदल सकते हैं।
आप जीवन के प्रति अपनी धारणा बदल डालिए। विश्वास तथा ज्ञान में ही अपना जीवन भवन निर्माण कीजिए। यदि वर्तमान आपत्तिग्रस्त है तो उसका यह अर्थ नहीं है कि भविष्य भी अंधकारमय है। आपका भविष्य उज्ज्वल है विचारपूर्वक देखिए कि जो कुछ आपके पास है उसका सबसे अच्छा उपयोग कर रहे हैं, अथवा नहीं? क्योंकि यदि प्रस्तुत साधनों का दुरुपयोग करते हैं, तो चाहे वह कितनी ही तुच्छ और सारहीन क्यों न हो, आप उसके भी अधिकारी न रहेंगे-वह भी आपसे दूर भाग जावेंगे या छीन लिए जावेंगे।
यह सत्य है कि जब तक आप स्वतः अपनी दशा नहीं सुधारेंगे तब तक दुख, शोक तथा चिन्ताएँ पीछा नहीं छोड़ सकतीं और परिणाम स्वरूप आप सदा दुखी रह सकते हैं। इसलिए अपनी आन्तरिक दशा सुधारिये। आँतरिक जीवन के साथ साथ बाह्य जीवन में परिवर्तन होना निश्चित है। जिसकी मनोदशा उत्तम है वह स्वल्प साधने होने पर भी सदा सुखमय वातावरण में विचरण करेगा।