Magazine - Year 1951 - Version 2
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Language: HINDI
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जीवन का अस्तित्व
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जीवन क्या है, कैसे जाने!
जीवन क्या है, कैसे जाने! युग-युग बीते जिन अमरों को, उनको जीवित सभी बखाने!
(1)
जीवित रहना ही जीवन है,
या मरना जीवन कहलाता है?
जीवित को जीवित कहकर क्यों-
मानव जग को बहलाता है?
मरकर भी जो जीवित ही है-
क्यों न उसी को जीवित माने?
जीवन क्या है, कैसे जाने!
(2)
इन रूखे धन पतियों को है,
मानवता क्या जीवित कहती?
मर-मर कर जो जीते हैं,
उनकी कहीं निशानी रहती?
जब भी, आखिरी हिचकी आई-
काल आ गया नाम मिटाने।
जीवन क्या है, कैसे जाने!
(3)
मानव ने सुन्दरता पायी,
वह उस पर फूला फिरता है।
क्षण-क्षण वह मिटती जाती है,
नहीं जरा उसमें स्थिरता है।
फिर भी उसको देख-देख क्यों-
उसके रोम लगे थहराने?
जीवन क्या है, कैसे जाने!
(4)
गैरों के सुख के खातिर ही-
जिसने अपना जीवन त्यागा।
बचा वही, पर मरा वही-
जिसने सोचा है पीछा-आगा।
अपना मरना ही जीवन है,
आया हमको शलभ दिखाने।
जीवन क्या है, कैसे जाने!
(श्री बजरंगलालजी सुलतानिया) *समाप्त*
(श्री बजरंगलालजी सुलतानिया) *समाप्त*