Magazine - Year 1952 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
घर्षण स्नान के लाभ
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(श्री वीरनरायण दलेला एम. कौम,)
हम श्वाँस केवल मुँह और नासिका पुट के द्वारा ही नहीं लेते प्रत्युत शरीर की त्वचा के छोटे छोटे छिद्रों द्वारा भी लेते हैं, यद्यपि कि यह शारीरिक क्रिया हमारी अनभिज्ञता में होती है त्वचा के रोम कूप बन्द हो जाने पर दीर्घ और निरोग जीवन प्रायः असम्भव है। त्वचा हमारे शरीर का वेष्टन यानी ओढ़ना है। वही (त्वचा) जब शुद्ध दशा में रहती है तो रात दिन शरीर का मल बाहर निकल जाता है। जिस मनुष्य की त्वचा शुद्ध नहीं है उसे निर्बलता, मन्दाग्नि, कब्ज ऐसे अनेक रोग होते हैं। यदि हम स्वस्थ एवं नीरोग जीवन के इच्छुक हैं तो हमें चाहिए कि त्वचा के इन सूक्ष्म छिद्रों को किसी प्रकार बन्द न होने दें। इसके लिए विधि पूर्वक घर्षण स्नान का स्थान बहुत ऊँचा है।
घर्षण का अर्थ है रगड़ना। प्रातः विधिपूर्वक घर्षण स्नान का अर्थ हुआ वह स्नान जिसमें किसी उचित विधि के अनुसार रगड़ने की क्रिया हो।
जिस तरह से एक बर्तन बिना रगड़े हुये अच्छी तरह से साफ नहीं होता और उसमें चमक नहीं आती उसी प्रकार हमारा शरीर भी, केवल दो चार लोटे पानी डालने से धूल मिट्टी के छोटे कणों को जो कि त्वचा के छिद्रों के अन्दर भर जाते हैं, परिमार्जित नहीं कर सकता। अतः स्नान से प्रथम हमें चाहिए कि हम समस्त शरीर को ऊपर से नीचे की ओर अपने दोनों हाथों की हथेलियों से शरीर के प्रत्येक अवयव को उचित शक्ति के साथ घर्षण करें। सिर के बालों को धीरे धीरे हाथ की अंगुलियों से रगड़ें। ऐसा करने से सिर की माँस पेशियों में रक्त की गति में वृद्धि हो जाती है अतः बाल पुष्ट होते हैं और कुसमय में हुए श्वेत बाल भी काले हो सकते हैं।
शरीर को रगड़ने की क्रिया किसी छोटे से खुरदरे वस्त्र से भी जा सकती है परन्तु हथेलियों से रगड़ने की क्रिया अधिक उत्तम है क्योंकि उसके द्वारा त्वचा के छिद्र तो साफ होते हैं, इसके साथ साथ हथेलियों की रगड़ से एक प्रकार की विद्युत उत्पन्न होती है जो कि हमारे शरीर में स्फूर्ति एवं नवीन शक्ति का संचार करती है। तदुपरान्त, हमें स्वच्छ एवं शीतल जल से स्नान उस समय तक लेना चाहिए जब तक कि त्वचा अच्छी तरह से साफ न हो जावे। इसका समय 10-15 मिनट से लेकर आधे घण्टे तक ऋतु एवं शरीर की सहन शक्ति के अनुसार हो सकता है। स्नान में जल सबसे प्रथम सिर पर डालना चाहिए। हमें चाहिए कि पेडू को ऊपर से नीचे और बायें से दायें और दायें से बायें एक हाथ से रगड़ें और दूसरे हाथ से लोटे से जल पेडू पर डालते जावें। सीने को रगड़ना भी न भूलें। इससे सीना विस्तृत होता है और जमा हुआ कफ आसानी से निकल जाता है।
स्नानोपरान्त हम शरीर के प्रत्येक अवयव को अच्छी तरह से किसी वस्त्र से पोंछ डालें ताकि सारा बदन शीघ्र ही सूख जाय क्योंकि शरीर के बिना सूखे ही वस्त्र पहनने से कभी कभी दाद जैसे दुखदायी रोग से पीड़ित होना पड़ता है।
इस प्रकार के घर्षण स्नान से त्वचा के छिद्र खुल जाते हैं जिसके कारण शरीर का बहुत सा विष पसीने द्वारा निकल जाता है और त्वचा स्वच्छ वायु को श्वाँस द्वारा सेवन कर सकती है।
जिस प्रकार बर्तन माँजने के बाद उसे धोने की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार शरीर की त्वचा को रगड़ने के कारण निकले हुए विष को साफ करने के लिए जल स्नान की आवश्यकता है। फिर जल का कहना ही क्या, यह तो परम पिता परमात्मा ने प्राणी के लिए एक प्रकार का अमृत प्रदान किया है। जल पर तो एक प्रकार की चिकित्सा ही निर्भर है जिसे हम जल चिकित्सा के नाम से पुकारते हैं। परन्तु हाँ जहाँ दो चार दिन के लिए जल स्नान का प्रबन्ध न हो सके वहाँ शरीर को हाथों द्वारा रगड़ कर एक भीगे तौलिये से अवश्य पोंछ लेना चाहिए।
जो मनुष्य इस प्रकार का स्नान प्रतिदिन लेते हैं उन्हें चर्म रोग तो कभी हो ही नहीं सकते। मेरा अपना तो ऐसा विश्वास और दावा है कि उपयुक्त स्नान शरीर को चर्म रोगों से रोकने के लिए रामबाण है।
पेट और पेडू को रगड़ने के कारण,उनकी नसों को एक अच्छी कसरत मिल जाती है। बहुत समय का संचित हुआ विजातीय द्रव्य ढीला पड़ जाता है अतः गुदा मार्ग द्वारा निकलने में सुविधा हो जाती है। इस प्रकार से हम कोष्ठबद्धता अथवा कब्ज से जो कि प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार प्रायः समस्त रोगों की जड़ है, छुटकारा पा जाते हैं। इससे सिर की पीड़ा और आलस्य कोसों दूर भाग जाता है। शरीर में चैतन्यता आ जाती है और यह शीशे की भाँति चमकने लगता है। मुख भी सतेज हो जाता है, स्नानोपरान्त दिन भर चित्त प्रसन्न रहता है। नवीन शक्ति आयी हुई सी प्रतीत होती है अतः कार्य क्षमता में वृद्धि हो जाती है। ऐसा मेरा स्वयं का अनुभव है। मैं इसको किसी प्रकार भी एक पौष्टिक औषधि से कम नहीं समझता हूँ। जब जब मैंने अपने में मानसिक एवं शारीरिक थकान का अनुभव किया है तब तब मैंने इस स्नान द्वारा अपने को पुनः ही स्वस्थ किया है।