Magazine - Year 1953 - Version 2
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Language: HINDI
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बालक की जीवन रक्षा
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(श्री प्रहलाद सिंह धर्मप्रेमी, गुड़गाँव)
मैं कई वर्ष से तत्परतापूर्वक गायत्री की उपासना कर रहा हूँ। हमारे घर में गायत्री माता के प्रति सभी की श्रद्धा है। गायत्री सम्बन्धी पुस्तकें पढ़ने के बाद यह विश्वास बहुत गहरा हो गया है कि मनुष्य के लौकिक और पारलौकिक कल्याण के लिए उस महामन्त्र का साधन करना बहुत आवश्यक है।
सुनते है कि ऐसे अनेकों महात्मा हुए हैं जिन्होंने गायत्री का तप करके बड़ी ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त की हैं। उनमें से अनेकों में भूत भविष्य का ज्ञान तथा दूसरों को लाभ पहुँचाने की यहाँ तक कि प्राण बचाने की भी शक्ति थी। बहुत से लोग इन बातों पर सहसा विश्वास नहीं करते क्योंकि उन्हें इसके लिए प्रत्यक्ष उदाहरण दिखाई नहीं पड़ते। पर मैंने अपने घर में ही ऐसा उदाहरण देखा है जिसके कारण यह विश्वास दृढ़ होता जा रहा है कि माता को आत्म समर्पण करने वाले साधक निस्सन्देह सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं और सर्व समर्थ बन सकते हैं।
कुछ महीने पहले की ही बात है। मेरी धर्मपत्नी कुंए से पानी भर कर लाई, घर में ही कुँआ है। रोज ही पानी भरती थी पर कभी कोई खराब बात न होती थी। उस दिन वह आई और पानी भरती मुझ से बोली- कोई इस कुँए में गिरेगा, उसका बचना मुश्किल है।
उसके यह शब्द बड़े अटपटे थे। कुँए में गिरने और मुश्किल से बचने का कोई प्रसंग उस समय न था। मैंने उसकी बात को बेतुकी और मूर्खतापूर्ण समझकर अनसुना कर दिया। कुँआ बने मुद्दतें हो गईं उसमें कभी कोई नहीं गिरा तो अभी कोई उसमें कैसे गिरेगा? और गिर भी पड़ेगा तो मुश्किल से बचेगा, इस बात की कोई संगति न थी। स्त्रियाँ अकसर ऊटपटाँग बातें सोचा करती हैं अपनी इस सहज मान्यता के कारण मैंने उसकी बात पर कुछ भी ध्यान न दिया और अनसुनी करके अपने काम से चल दिया।
इस बात को कोई पाँच मिनट ही हुए होंगे कि पीछे की ऊपर वाली छत में से मेरे छोटे भाई का ढाई वर्ष का लड़का कुंए में आ पड़ा। बच्चे के गिरने की आवाज सुनते ही सब लोग हड़बड़ा गये छत पर से कुंए में गिरना, ढाई वर्ष का बालक गहरा पानी, कुंए का पक्का भीतरी भाग इन सब बातों को एक साथ सोचने पर आँखों के सामने भयंकर अनिष्ट का घोर अन्धकार सामने आ खड़ा हुआ।
क्षण भर में निकालने का प्रबन्ध किया गया, रस्सी के सहारे एक व्यक्ति कुंए में उतरा। घर भर में कुहराम मचा हुआ था। सब की आंखें उस कुंए में उतरने वाले व्यक्ति पर लगी हुई थी। मैं गायत्री माता से करुणामयी प्रार्थना कर रहा था कि माता आज सहायता करो, किसी प्रकार बालक के प्राण बचाओ। रोने धोने वाले धर के सब लोग भी गायत्री माता का ध्यान कर रहे थे। कुंए में घुसने वाला व्यक्ति नीचे पहुँचा उसने आवाज दी कि बालक बिलकुल अच्छा है। अभी ऊपर आता है। बच्चे को ऊपर निकाल लिया गया। देखा तो सबके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, उसको कहीं खरोंच भी न आई थी। प्रसन्नता और सन्तोष से सबके चेहरे खिल गये।
इस घटना को कोई दूसरी दृष्टि से देखना चाहे तो देख सकता है पर मेरी दृष्टि में इसमें माता की कृपा का चमत्कार छिपा हुआ है। स्त्री को किसी के कुंए में गिरने की पूर्व सूचना अकारण नहीं है। वह कहती थी कि मुझे बिलकुल ऐसा लग रहा था मानो कोई अब तब इस कुंए में गिरने ही वाला है। संभवतः उसकी आत्मिक पवित्रता के कारण उसे भविष्य की घटना का पूर्णाभास हो गया था। इतने ऊंचे से गहरे जल में ढाई वर्ष के बच्चे का गिरना और उसका अछूता हंसना खेलना निकलना, हम लोगों के ऊपर दैवी अनुग्रह का विशेष चिन्ह ही है। हम लोगों की साधना बहुत स्वल्प है, उसका फल यदि हो सकता है तो नैष्ठिक उपासक और पूर्णरूपेण माता को आत्म समर्पण करने वाला साधक यदि बहुत कुछ पाते हैं, ऋद्धि सिद्धियों के स्वामी बनते हैं तो उसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए।