Magazine - Year 1953 - Version 2
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Language: HINDI
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माँ का अनुराग (Kavita)
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[श्री महावीरप्रसाद विद्यार्थी, एम. ए., साहित्य-रत्न]
माँ प्राची के आँगन में बिखरा अनुराग तुम्हारा!
आलोक राशि रवि-शशि-युत
नीलत-सा अम्बर श्यामल
छाया रहता जग-शिशु पर
ममतामय उज्ज्वल अंचल!
खगकुल के कल कल स्वर में मुखरित है राग तुम्हारा!
मदु-रञ्जित-पल्लव-विरचित-
बल्लरी-अंक में सोती-
कलिका-कपोल पर बिखरे
जो उजले-उजले मोती
करुणों! उनके अणु-अणु में अंकित है त्याग तुम्हारा!
प्यासी धरती पर घिरती
जलधर-माला नव श्यामल,
माँ, बरस-बरस पड़ता है
तब प्यार तुम्हारा उज्ज्वल!
सुरभित पुलकित फूलों में मधु, रूप, पराग, तुम्हारा।
सरिता के वक्षःस्थल में
उमड़ाती दया तुम्हारी,
माँ, प्राण फूँक कर अपने
तुमने जड़ सृष्टि संवारी!
कृमि-कीट मात्र रह जाते हम खोकर भाग तुम्हारा!
माँ, प्राची के आँगन में बिखरा अनुराग तुम्हारा!
*समाप्त*