Magazine - Year 1955 - Version 2
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Language: HINDI
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दस महायज्ञों की शृंखला
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विशद् गायत्री महायज्ञ अपने सुनिश्चित कार्यक्रम के अनुसार भली प्रकार चल रहा है। विशेष यज्ञों में से सद्बुद्धि की वृद्धि करने वाला सरस्वती यज्ञ ज्येष्ठ मास में भली प्रकार सुसम्पन्न हो चुका है। अब श्रावण से लेकर चैत्र तक क्रमशः रुद्र यज्ञ, महामृत्युञ्जय यज्ञ, विष्णु यज्ञ, शतचंडी यज्ञ, नवग्रह यज्ञ, यजुर्वेद यज्ञ, ऋग्वेद यज्ञ, अथर्ववेद−यज्ञ, सामवेद यज्ञ, आदि की शृंखला बराबर चलती रहेगी। गायत्री यज्ञ तो अपनी स्वतन्त्र यज्ञशाला पर यथावत् चालू रहेगा।
रुद्र यज्ञ का उद्देश्य मानव जाति की श्री समृद्धि सुख सम्पत्ति की वृद्धि एवं आर्थिक कठिनाइयों की निवृत्ति के लिये है। इसे एक प्रकार से वैश्य यज्ञ कहना चाहिए। यह श्रावण वदी 5 से चल रहा है और श्रावण सुदी 15 को समाप्त होगा।
महामृत्युञ्जय यज्ञ पूरे प्रथम भाद्रपद मास में होगा। इसका उद्देश्य संसार के रोग, कष्ट, शरीर पीड़ा, दुर्बलता आदि की निवृत्ति करना है। इस मास जैसा सूर्य ग्रहण पड़ा है उसकी तुलना 400 वर्षों में नहीं मिलती। इसका प्रभाव संसार के प्राणियों के स्वास्थ्य, शरीर और जीवन पर पड़ेगा इस संकट की निवृत्ति में यह महामृत्युञ्जय यज्ञ सहायक होगा।
दूसरी भाद्रपद में अधिक मास है। यह पुरुषोत्तम मास ब्रह्मनिष्ठा का, भगवत् उपासना का, आध्यात्मिक उन्नति का पुण्य काल है। इस अवसर पर यजुर्वेदीय पुरुष सूक्त से विष्णु यज्ञ होगा। इसे ब्राह्मण यज्ञ कहना चाहिए। इससे संसार का आध्यात्मिक स्तर ऊंचा उठेगा पाप मनोविकार, कुसंस्कार, स्वार्थ, तृष्णा, अनीति आदि में कमी होकर सत्य, प्रेम, न्याय, सदाचार, धर्म प्रवृत्ति की इससे वृद्धि होगी।
अनिष्ट संघर्ष क्लेश द्वेष घृणा, बैर, अन्याय आदि असुरों को संसार कारिणी दुर्गा कर शतचंडी यज्ञ आश्विन में होगा। इसे क्षत्रिय यज्ञ कहना चाहिए। यह अशान्ति के अँधियारे बादलों को हटा कर शान्ति की शीतल चाँदनी चमकाने वाला है। मातृ जाति का, नारियाँ का कल्याण भी इसी यज्ञ से सम्बन्धित है।
कार्तिक में नवग्रह यज्ञ होगा। सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु की अनिष्टकर राशियों की शान्ति और श्रेयष्कर राशियों की शक्ति वृद्धि इस यज्ञ का उद्देश्य है। गृह दशा से पीड़ित मनुष्य इस यज्ञ का लाभ विशेष रूप से उठा सकते हैं।
इन पांचों यज्ञों के बाद अगहन से लेकर फाल्गुन तक चारों वेदों के यज्ञ एक एक महीने होंगे। इनके महत्व भी अनोखे एवं असाधारण हैं।
इन यज्ञों में भाग लेने के लिये हम सभी सत्पात्रों को आमन्त्रित करते हैं। जो यज्ञ जिस प्रयोजन के लिए हो रहा है उसमें जिन्हें रुचि हो वे अपने मनोरथ से सम्बन्धित यज्ञ से विशेष रूप से भाग लें। जैसे श्रावण का रुद्र यज्ञ एक प्रकार से वैश्य यज्ञ है। इस यज्ञ में समस्त वैश्य समाज का कर्त्तव्य है कि इसमें विशेष तत्परता पूर्वक भाग लें। दूसरे भाद्रपद में होने वाला विष्णु यज्ञ ब्राह्मण यज्ञ है। इसमें ब्राह्मण समाज की अधिक तत्परता आवश्यक है। आश्विन का चण्डी यज्ञ क्षत्रिय समाज के कल्याणार्थ है। उन्हें इसमें अधिक भाग लेना चाहिए। यों सभी यज्ञों का द्वार सभी के लिए खुला हुआ है।
जो सज्जन इन यज्ञों में भाग में भाग लेने के इच्छुक हों किन्तु अपना भोजन व्यय स्वयं न उठा सकते हों वे भी प्रसन्नता पूर्वक तपोभूमि में पधारें, उनके भोजन एवं ठहरने की यहाँ व्यवस्था रहेगी।