Magazine - Year 1955 - Version 2
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Language: HINDI
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महायज्ञ के भागीदारों से कुछ आवश्यक प्रश्न
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गायत्री तपोभूमि में विशद् गायत्री महायज्ञ व्यवस्थित गतिविधि से आनंद पूर्वक चल रहा है। अब तक छः मास में लगभग एक तिहाई संकल्प पूर्ण हो चुका है। अगले महीने दो तिहाई कार्यक्रम पूरा करना शेष है। इसलिए जिस गतिविधि से अब तक कार्य चला है। उससे ड्यौढ़ी तीव्रता, तत्परता, स्फूर्ति और निष्ठा के साथ कार्य करने की आवश्यकता है। जो सज्जन महायज्ञ में भागीदार तथा संरक्षक हैं उनसे प्रार्थना है कि (1) अब तक जिस गति विधि से जप करते रहे हैं, उससे ड्यौढ़ा जप कर दें (2) नये भागीदार और संरक्षक बढ़ाने के लिए कुछ और प्रयत्न करें तो निर्धारित जप की संख्या आसानी से पूर्ण हो जाती है।
महायज्ञ के अंतर्गत अब तक कितना कार्य हो चुका? किन महानुभाव ने कितना सहयोग दिया? इसका एक विवरण तैयार किया जा रहा है। इसलिये प्रत्येक गायत्री उपासक से नीचे लिखे प्रश्न पूछे जा रहे हैं और आशा की जा रही है कि उनका उत्तर शीघ्र ही देंगे।
(1) महायज्ञ के आरम्भ से अब तक आपने कितना जप किया? कितनी भागीदारी प्राप्त कीं? (2)आपने अपने जप का शताँश या कितना हवन तपोभूमि की यज्ञशाला में किया? (3) आपने कितने नये भागीदार बनायें? (4) कितने संरक्षक बनाये? (5) आपके द्वारा बनाये हुए संरक्षकों तथा भागीदारों की साधना नियमित रूप से चलती है या नहीं। (6) आपके द्वारा कितने गायत्री अंकों का वितरण हुआ? (7) महायज्ञ के दिनों में क्या आप तपोभूमि में आ चुके हैं? यदि नहीं आये तो कब आने का विचार है? (8) महायज्ञ की भागीदारी काल में आपको या किन्हीं अन्य गायत्री उपासकों को यदि कोई दैवी सहायता जैसे लाभ प्राप्त हुये हों तो उन्हें विस्तार पूर्वक अखंड ज्योति में प्रकाशित करने के लिये फोटो के साथ छपने भेजें। (9) इस बार भाद्रपद अधिक मास है। यह शुभ कार्यों के लिए बहुत ही पुनीत हैं। आप इस मास क्या कुछ विशेष सत्कार्य करेंगे? (10) श्रावण से चैत्र तक जो दस यज्ञ होने वाले हैं, उनमें से किसी या की भस्म आप को चाहिये तो लिखें? ताकि उसे भेजने का प्रबन्ध कि या जाय।
इन प्रश्नों का उत्तर स्वयं देने के अतिरिक्त आपके द्वारा जो भागीदार तथा संरक्षक बने हों किन्तु अखण्ड ज्योति के ग्राहक न हों तो उन्हें इन दस प्रश्नों की सूचना देकर उनसे भी उत्तर भिजवाने का प्रयत्न करें।
एक बात स्मरण रखने कि जिस प्रकार अनुष्ठान में जप और हवन आवश्यक है, उसी प्रकार ब्रह्म भोज (ज्ञान दान) भी अनिवार्य है। दो आने मूल्य का गायत्री अंक इसी उद्देश्य के लिए लागत से भी बहुत कम मूल्य में हजारों का घाटा उठाकर दिया जा रहा है। 125 करोड़ जप, 125 लाख आहुति के हवन के साथ−साथ 125 हजार इन अंकों के विवरण करने का ब्रह्मभोज भी हम सबको करना है। जिन संरक्षकों तथा भागीदारों ने अब तक यह अंक न मँगाये हों, उन्हें अधिक भाद्रपद के पुरुषोत्तम मास में 40 अंक मंगाकर बेचने या बांटने चाहिये। जिन्हें आर्थिक असुविधा हो वे 5) के 40 अंक उधार भी मँगा सकते हैं। अंकों का मूल्य पीछे सुविधानुसार भेजा जा सकता है। जिन संरक्षकों या भागीदारों के पास अखण्ड ज्योति नहीं जाती, उन तक ब्रह्मभोज (गायत्री अंक दान) की आवश्यकता समझाने और उनके लिये प्रेरणा देने का कार्य इन पंक्तियों के पाठकों को करना चाहिये।