Magazine - Year 1955 - Version 2
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Language: HINDI
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गायत्री महायज्ञ की प्रगति
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अब विशद गायत्री महायज्ञ को आरम्भ हुए दसवाँ महीना चल रहा है। चैत्र सुदी 11, 12, 13, 14, 15 इन पाँच दिनों पूर्णाहुति होगी। इसका समय अब अधिक नहीं रहा है। विशेष यज्ञों में सरस्वती यज्ञ, रुद्र यज्ञ, विष्णु यज्ञ, महामृत्युँजय यज्ञ, पितृ यज्ञ, शतचण्डी यज्ञ पूर्ण हो चुके। लक्ष्मी यज्ञ इन दिनों चल रहा है जिसके पूर्णाहुति में नवग्रह यज्ञ पूर्ण हो जायेगा। मार्गशीर्ष से चारों वेदों का पारायण यज्ञ आरम्भ हो जायेगा, जो पूर्णाहुति तक चलता रहेगा। इस प्रकार सभी कार्यक्रम बड़े ही आनन्द पूर्वक, इस युग का यह अभूतपूर्ण यज्ञ सम्पन्न होना। हम लोगों की शक्ति, श्रद्धा, सामर्थ्य, योग्यता बहुत ही सीमित है पर उस अनन्त शक्तिशाली माता की सामर्थ्य का कहना ही क्या है? आरम्भ में ऐसा लगता था कि इतना विशाल आयोजन जिसे कोई राजा महाराजा या धन कुबेर ही पूरा कर सकता है, इतनी स्वल्प सामर्थ्य से कैसे पूरा होगा? पर माता की कृपा कोर से वह यथावत् चलता आया है और शेष मंजिल भी वैसे ही पूरी होगी, जैसे अब तक पूरी होती आई है। इस महायज्ञ से जो शक्ति उत्पन्न होगी उसका सत्परिणाम हम लोग यथा समय अपनी आंखों देखेंगे।
अब पूर्णाहुति की तैयारी में लगना है। नये संरक्षक और भागीदार बढ़ने में तनिक भी शिथिलता नहीं आनी चाहिये। पाँच महीनों में संरक्षण की एक माला जपते रहने के लिये प्रयत्न करने पर कुछ न कुछ नये उपासक हम लोग चाहें तो अवश्य तैयार कर सकते हैं। भागीदार भी बढ़ाये जाने चाहिये। जो भागीदार हैं उन्हें और अधिक भागीदारी लेनी चाहिये। अपने परिवार के जो लोग अभी तक इस दिशा में शिथिल रहे उन्हें इन अन्तिम दिनों में इसके लिये अवश्य ही प्रयत्न करना चाहिये ताकि यह अलभ्य अवसर यों ही हाथ से न निकल जाये। गायत्री अंक वितरण करने में अभी लोगों ने उतनी उदारता और दान वृत्ति नहीं दिखाई जितनी ब्रह्मभोज के अभाव को पूर्ण करने के लिये आवश्यक है। जप, हवन के समान ही ब्रह्मभोज भी अनुष्ठान का एक अंग है। जो लोग केवल जप करके ही निश्चित हो जाते हैं, वे उतना सत्परिणाम नहीं उठा सकते, जितना सर्वांगपूर्ण साधना का होना चाहिये। जिन्होंने अभी तक गायत्री अंक वितरण नहीं किये हैं उन्हें 40 अंक मंगा लेने चाहिये। अनुष्ठान की सफलता के लिये 5) खर्च करना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। जो लोग सामर्थ्यवान हैं वे 40 तक ही सीमित न रहकर 108, 240, 1080 अंक मँगाकर अपने प्रदेश में दूर-दूर तक उन्हें वितरण करें और ब्रह्मभोज का पुण्य लाभ करें।
नवरात्रि समारोह
आश्विन की नवरात्रि में गायत्री तपोभूमि में बहुत ही मनोरम कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। भारत के कोने-कोने से बड़ी संख्या में गायत्री उपासक आये थे। सबने आनन्द पूर्वक अपना-अपना गायत्री अनुष्ठान तथा हवन का कार्यक्रम पूरा किया। वृंदावन, मथुरा, गोकुल, महावन, दाऊजी, गोवर्द्धन, जतीपुरा, राधाकुण्ड, नन्दगाँव, बरसाना आदि की यात्रा बड़े ही आनन्द पूर्वक हुई। तपोभूमि से बस में जाने और वहाँ वापिस आकर उतरने की व्यवस्था बड़ी ही सुविधाजनक रही। इतनी लम्बी यात्रा का कुल किराया चार रुपये से भी कम पड़ा। नवरात्रि में शतचण्डी पीठ पूरा हुआ दुर्गा सप्तशदी से चण्डी यज्ञ कराया गया। सहस्र लक्ष्मी पाठ पूरे हुये और लक्ष्मी यज्ञ भी हुआ। सायंकाल नित्य दीपदान होता था, जिसमें तपोभूमि की शोभा देखते ही बनती थी। तीसरे पहर आचार्य जी के तथा अन्य विद्वानों के प्रवचन होते रहते थे। नवमी के तर्पण, मार्जन आदि कृत्यों के साथ लोगों ने अपने अनुष्ठान पूरे किये और पूर्णाहुति की। यों तो तपोभूमि में इस वर्ष नित्य ही 30-40 गायत्री उपासक रहने से बड़ा दृश्य बड़ा ही अनुपम बन जाता है। जप, पाठ, हवन आदि करते हुये तपस्वियों का दृश्य ऐसा प्रतीत होता था मानों इस भूमि पर सतयुग उतर आया हो। रविवार के दिन बाहर से आये हुये साधकों के फोटो खींचे गये जो अगले अंक में छपेंगे।