Magazine - Year 1955 - October 1955
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Language: HINDI
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करो मत श्रद्धा से व्यापार (kavita)
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दूर से ही तुम मुझको देख
पूछते, ‘क्या लोगी वरदान’?
चाहते हट जाये कुछ देर
तुम्हारी पूजा पर से ध्यान,
विसर्जन के बदले में देख, न देना करुणामय उद्गार!
करो मत श्रद्धा से व्यापार!
चाहते हो क्या कुछ फल माँग
अर्चना को मैं करदूँ भीख,
साधना जाये मेरी टूट
तुम्हारी कैसी भोली सीख,
नहीं रच सकें मिलन का पन्थ, विरह की पलकों के नीहार!
करे मत श्रद्धा से व्यापार!
माँगने लेने का व्यवसाय
परायेपन की है पहचान,
तुम्हारे बन जाने का देव
युगों से व्याकुल मेरे प्राण,
श्वास की सरिता को कर पार, हृदय से आती करुण पुकार!
करो मत श्रद्धा से व्यापार!